बचपन में स्कूल में हमें गुरुजी ने एक सूत्र रटाया था, ‘‘सौ रोगों की एक दवाई, सफाई सफाई सफाई।’’ कुछ बड़े हुए, तो संसार और कारोबार में फंस गये। इससे परिवार और बैंक बैलेंस के साथ ही थोंद और तनाव भी बढ़ने लगा। फिर शुगर, रक्तचाप और नींद पर असर पड़ा। डॉक्टर के पास गये, तो उसने दवा के साथ ही इस पुराने सूत्र में कुछ संशोधन करते हुए कहा, ‘‘सौ रोगों की एक दवाई, हंसना सीखो मेरे भाई।’’ लेकिन पिछले दिनों हुई राजनीतिक उठापटक से लगता है कि इस सूत्र को शायद फिर बदलना होगा। शर्मा जी कल इसी विषय पर गंभीरली चर्चा करने लगे।
– वर्मा, ये ठीक नहीं हो रहा।
– आप किसकी बात कर रहे हैं शर्मा जी ?
– मैं भारत की राजनीतिक उथलपुथल की बात कर रहा हूं।
– इसमें नया क्या है ? राजनीति में उथल-पुथल पिछले हजार साल से हो रही है और अगले कई हजार साल तक होती रहेगी।
– लेकिन बिहार में एक ही समाजवादी विचारधारा में पले नीतीश कुमार और शरद यादव परस्पर ताल ठोक रहे हैं। जबकि कभी ये दोनों बड़े गहरे दोस्त थे।
– शर्मा जी, इनकी दोस्ती का कारण विचारधारा नहीं, सत्ताधारा है। किसी समय लालू और रामविलास पासवान भी इनके दोस्त थे; पर सत्ता के लिए दोस्ती बनते और बिगड़ते देर नहीं लगती। अब के.सी.त्यागी को ही लीजिए। यों तो वे शरद यादव के खास आदमी हैं। शरद यादव के कहने से ही उन्हें राज्यसभा की सीट मिली; पर जब उन्होंने देखा कि शरद यादव नेता भले ही बड़े हों; पर सत्ता नीतीश बाबू के पास है, तो वे शरद यादव के कंधे से उतर कर नीतीश की गोदी में आ बैठे। अब नीतीश बाबू उन्हीं से शरद यादव को धमकी और चेतावनियां दिलवा रहे हैं। कल यदि नीतीश और शरद बाबू फिर मिल गये, तो वे शरद यादव के गुण गाने लगेंगे। इन समाजवादियों का कोई दीन-ईमान नहीं है। इनका मूल मंत्र है, ‘‘जहां मिलेगी तवा परात, वहीं कटेगी सारी रात।’’
– लेकिन समाजवादी तो मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी हैं।
– जी बिल्कुल। तभी तो वे हमेशा सत्ता की धारा के साथ चलते हैं। मुलायम सिंह ने ये सोचकर बेटे को कुर्सी सौंपी कि इससे उनकी इज्जत बनी रहेगी; पर जब बेटे ने देखा कि बाप और चाचा ही बाधा बन रहे हैं, तो दूध में से मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका। लड़ने के लिए मिलना और गले मिलकर फिर लड़ना ही आज का समाजवाद है।
– पर तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक के दोनों गुट मिल रहे हैं।
– शर्मा जी, ये समाजवाद का दक्षिण भारतीय संस्करण है। जयललिता भगवान के पास चली गयी और शशिकला जेल। अब बाहर जो नेता बचे हैं, उन्हें लगता है कि अगर हम आपस में लड़ते रहे, तो दो बिल्लियों के झगड़े में घुसकर कोई बंदर पूरी रोटी हड़प लेगा। इसलिए आपस में मिलकर जितनी हो सके मलाई खा लें। पता नहीं कल क्या हो ? क्योंकि शशिकला के छूटने के बाद हो सकता है इनकी कोई न सुने।
– भारत एक होने के बावजूद उत्तर और दक्षिण भारत की राजनीति में कितना अंतर है ?
– हां, पर उत्तर में हो रही टूट और दक्षिण में हो रहे मिलन में एक समानता भी है और वो ये कि इन दोनों का कारण नरेन्द्र मोदी हैं।
– अच्छा, वो कैसे ?
– देखिए शर्मा जी, मोदी और उनके सेनापति अमित शाह ने नीतीश कुमार को समझाकर पहले लालू से अलग कराया और फिर शरद यादव के ही सामने खड़ा कर दिया। यही हाल उ.प्र. में है। मुलायम सिंह तो कांग्रेस और मायावती से घृणा करते हैं; पर अखिलेश नहीं। मोदी ने इस आग को और भड़काकर उ.प्र. जीत लिया।
– यानि नरेन्द्र मोदी पार्टियां तुड़वाते हैं ?
– जी नहीं, वो पर्दे की आगे की राजनीति और पर्दे के पीछे की कूटनीति दोनों में माहिर हैं। इसलिए वे पार्टियां तुड़वाते और बनवाते हैं। नेताओं में फूट डालते हैं, तो मतभेद मिटाते भी हैं। तमिलनाडु में उन्होंने दोनों गुटों का मेल करा दिया और अब उनसे समझौता कर 2019 की राह आसान कर लेंगे।
– ये चक्कर तो मेरी समझ से बाहर है वर्मा।
– इसका कारण ये है कि आपने आज दवा नहीं ली। दवा लेंगे, तो दवाई वाला पुराना सूत्र समझ में आयेगा, जिसे मोदी और शाह ने बदल दिया है।
– अच्छा, तो अब नया सूत्र क्या है ?
– फूट-मिलन की एक दवाई, दोनों मर्जों में सुखदाई
नाम रटो मोदी का भाई।
इतना कहकर मैं तो वापस घर चला आया; पर शर्मा मैडम बता रही थीं कि तब से वे 108 मनकों वाली माला पर यही मंत्र जप रहे हैं।
– विजय कुमार