मात्र-ज़न-लोकपाल विधेयक से ’भ्रष्टाचारमुक्त भारत’ क्या सम्भव है?

श्रीराम तिवारी

 

यह स्मरणीय है कि अपने आपको गांधीवादी कहने वाले कुछ महापुरुष पानी पी-पीकर राजनीतिज्ञों को कोसते हैं, जबकि गांधीवादी होना क्या अपने-आप में राजनैतिक नहीं होता? याने गुड खाने वाला गुलगुलों से परहेज करने को कह रहाहो तो उसके विवेक पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक नहीं है क्या? दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपने ढाई दिनी अनशन को तोड़ते हुए समाज सुधारक और तथाकथित प्रसिद्द गांधीवादी{?}श्री अन्ना हजारे ने भीष्म प्रतिज्ञा की है कि ’निशचर हीन करों मही, भुज उठाय प्रण कीन” हे! दिग्पालो सुनो, हे! शोषित-शापित प्रजाजनों सुनो-अब मैं अवतरित हुआ हूँ {याने इससे पहले जो भी महापुरुष, अवतार, पीर, पैगम्बर हुए वे सब नाकारा साबित हो चुके हैं} सो मैं अन्‍ना हजारे घोषणा करता हूँ कि ’यह आन्दोलन का अंत नहीं है, यह शुरुआत है. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए पहले लोकपाल विधेयक का मसविदा बनेगा. नवगठित समिति द्वारा तैयार किये जाते समय या केविनेट में विचारार्थ प्रस्तुत करते समय कोई गड़बड़ी हुई तो यह आन्दोलन फिर से चालू हो जायेगा.यदि संसद में पारित होने में कोई बाधा खड़ी होगी तो संसद कि ओर कूच किया जायेगा. भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने, सत्ता का विकेन्द्रीयकरण करने, निर्वाचित योग्य प्रतिनिधियों को वापिस बुलाने, चुनाव में नाकाबिल उमीदवार खड़ा होने इत्यादि कि स्थिति में ’नकारात्मक वोट’ से पुनः मतदान की व्यवस्था इत्यादि के लिए पूरे देश में आन्दोलन करने पड़ सकते हैं. यह बहुत जरुरी और देश भक्तिपूर्ण कार्य है अतः सर्वप्रथम तो मैं श्री अणा हजारे जी का शुक्रिया अदा करूँगा और उनकी सफलता की अनेकानेक शुभकामनाएं.

उनके साथ जिन स्वनाम धन्य देशभक्त-ईमानदार और महानतम चरित्रवान लोगों ने -इलिम्वालों -फिलिम्वालों, बाबाओं, वकीलों और महानतम देशभक्त मीडिया ने जो कदमताल की उसका भी में क्रांतिकारी अभिनन्दन करता हूँ.दरसल यह पहला प्रयास नहीं है, इससे पहले भी और भी व्यक्तियों ,समूहों औरदलों ने इस भृष्टाचार की महा विषबेलि को ख़त्म करने का जी जान से प्रयास किया है, कई हुतात्माओं ने इस दानव से लड़ते हुए वीरगति पाई है, आजादी के दौरान भी अनेकों ने तत्कालीन हुकूमत और भृष्टाचार दोनों के खिलाफ जंग लड़ी है. आज़ादी के बाद भी न केवल भ्रष्टाचार अपितु अन्य तमाम सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक बुराइयों के खिलाफ जहां एक ओर विनोबा,जयप्रकाश नारायण ,मामा बालेश्वर दयाल ,नानाजी देशमुख ,लक्ष्मी सहगल,अहिल्या रांगडेकर और वी टी रणदिवे जैसे अनेक गांधीवादियों/क्रांतिकारियों /समाजसेवियों ने ताजिंदगी स�¤ �घर्ष किया वहीं दूसरी ओर आर एस एस /वामपंथ और संगठित ट्रेड यूनियन आन्दोलन ने लगातार इस दिशा में देशभक्तिपूर्ण संघर्ष किये हैं.यह कोई बहुत पुरानी घटना नहीं है कि दिल्ली के लोग भूल गएँ होंगे!विगत २३ फरवरी को देश भर से लगभग १० लाख किसान -मजदूर लाल झंडा हाथ में लिए संसद के सामने प्रदर्शन करने पहुंचे थे.वे तो अन्ना हजारे से भी ज्यादा बड़ी मांगें लेकर संघर्ष कर रहे हैं ,उनकी मांग है कि- अमà ��रिका के आगे घुटने टेकना बंद करो! देश के ५० करोड़ भूमिहीन गरीब किसानों -मजदूरों को जीवन यापन के संसाधान दो!बढ़ती हुई मंहगाई पर रोक लगाओ !देश कि संपदा को देशी -विदेशी सौदागरों के हाथों ओउने -पौने दामों पर बेचना बंद करो!गरीबी कि रेखा से नीचे के देशवासियों को बेहतर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गेहूं -चावल -दाल और जरुरी खद्यान्न कि आपूर्ती करो! पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस और केरोसि�¤ ¨ के दाम कम करो! जनता के सवालों और देश कि सुरक्षा के सवालों को लगातार उठाने के कारन ही २८ जुलाई -२००८ कि शाम को यु पी ये प्रथम के अंतिम वर्ष में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मनमोहनसिंह ने कहा था -हम वाम पंथ के बंधन से आज़ाद होकर अब आर्थिक सुधार कर सकेंगे’ याने जो -जो बंटाधार अभी तक नहीं कर सके वो अब करेंगे.इतिहास साक्षी है ,विक्किलीक्स के खुलासे बता रहे हैं कि किस कदर अमेरिकी लाबिस्टोà �‚ और पूंजीवादी राजनीतिज्ञों ने किस कदर २-G ,परमाणु समझोता,कामनवेल्थ ,आदर्श सोसायटी काण्ड तो किये ही साथ में लेफ्ट द्वारा जारी रोजगार गारंटी योजना को मनरेगा नाम से विगत लोक सभा चुनाव में भुनाकर पुनः सत्ता हथिया ली.

लगातार संघर्ष जारी है किन्तु पूंजीवाद और उसकी नाजायज औलाद ’भृष्टाचार’ सब पर भारी है.प्रश्न ये है कि क्या अभी तक की सारी मशक्कत वेमानी है?क्या देश की अधिसंख्य ईमानदार जनता के अलग-अलग या एकजुट सकारात्मक संघर्ष को भारत का मीडिया हेय दृष्टी से देखता रहा है?क्या देश की सभी राजनेतिक पार्टियाँ चोर और अन्ना हजारे के दो -चार बगलगीर ही सच्चे देशभक्त हैं?क्या यह ऐसा ही पाखंडपूर्ण कृà ��्य नहीं कि ’एक में ही खानदानी हूँ’याने बाकि सब हरामी?

दिल्ली के जंतर -मंतर पर हुए प्रहसन का एक पहलू और भी है’ नाचे कुंदे बांदरी खीर खाए फ़कीर’

बरसों पहले ’झूंठ बोले कौआ कटे’ गाने पर ये विवाद खड़ा हुआ था कि ये गाना उसका नहीं जिसका फिलिम में बताया गया ये तो बहुत साल पहले फलां-फलां ने लिखा था. यही हाल हजारे एंड कम्पनी का है. इनके और मजदूरों के संघर्ष में फर्क इतना है कि प्रधान मंत्री जी और सोनिया जी इन पर मेहरबान हैं. क्योंकि हजारे जी वो सवाल नहीं उठाते जिससे पूंजीवादी निजाम को खतरा हो. वे अमेरिका की थानेदारी, भारतीय पूंजीपतियों की इजारेदारी, बड़े जमींदारों की लंबरदारी पर चुप है, वे सिर्फ एक लोकपाल विधेयक की मांग कर मीडिया के केंद्र में है और भारत कि एक अरब सत्ताईस करोड़ जनता के सुख दुःख से इन्हें कोई लेना -देना नहीं . दोनों की एक सी गति एक सी मति.

अन्ना हजारे के अनशन को मिले तात्कालिक समर्थन ने उनके दिमाग को सातवें आसमान पर बिठा दिया है. मध्य एशिया-टूनिसिया, यमन, बहरीन, जोर्डन, मिस्र और लीबिया के जनांदोलनों की अनुगूंज को भारतीय मीडिया ने कुछ इस तरह से पेश किया है कि भारत में भी ’एक लहर उधर से आये, एक लहर इधर से आये, शासन-प्रशासन सब उलट-पलट जाये. जब भारतीय मीडिया की इस स्वयम भू क्रांतिकारिता को भारत की जनता ने कोई तवज्जों नहीं दी तो मीडिया ने क्रिकेट के बहाने अपना बाजार जमाया. अब क्रिकेट अकेले से जनता उब सकती है सो जन्तर-मंतर पर देशभक्ति का बघार लगाया. हालाँकि भ्रष्टाचार की सड़ांध से पीड़ित अवाम को मालूम है की उसके निदान का हर रास्ता राजनीति की गहन गुफा से ही गुज़रता है. किन्तु परेशान जनता को ईमानदार राजनीतिज्ञों की तलाश है,सभी राजनैतिक दल भ्रष्ट नहीं हैं, सभी में कुछ ईमानदार जरूर होंगे उन सभी को जनता का समर्थन मिले और नई क्रांतिकारी सोच के नौजवान आगे आयें, देश में सामाजिक-आर्थिक और हर किस्म की असमानता को दूर करने की समग्र क्रांति का आह्वान करें तो ही भय-भूख-भ्रष्टाचार से देश को बचाया जा सकता है. यह एक अकेले के वश की बात नहीं.

17 COMMENTS

  1. मीणा जी आप को राजेश जी से ज्यादा जरुरत है एक योग्य मनोचिकित्सक की!

    अरे आप को रामदेव जी से इतनी पीड़ा क्यूँ है?
    अगर आप लाखों लोगों के स्वस्थ होने का इंतजाम नहीं कर सकते तो वेवजह क्यूँ भोंकते रहते हो जिस भी संगठन के आप महा मंत्री हैं उसी पर अपनी राजनीती करते रहिये और कृपा कर के किसी का भला नहीं कर सकते तो बुरा भी मत कीजिये नकारात्मकता फैला कर क्या आप पाप के भागी नहीं बन रहे?

  2. हम भारतीयों को यह नहीं
    भूलना चाहिए की इस कलयुग में विभीषण राम के साथ नहीं रावण के साथ है क्योकि कलयुग का विभीषण भी भ्रष्टाचारी राक्षस है , अन्ना के अभियान को भी एक भ्रष्ट विभीषण ने ही ठोकर मारी है क्योकि बाप बड़ा ना भैया………सबसे बड़ा रुपैया

  3. sarkari vyapar bhrashtachar
    *********************omsaiom **********************
    भारत वर्ष में नेता मतलब चोर,बेईमान और भ्रष्ट
    आम आदमी को लड़नी होगी भ्रष्टाचार से सीधी लड़ाई
    भ्रष्टाचार की सीधी लड़ाई आम आदमी को लड़नी होगी और इस सीधी लड़ाई में लाखो भारतीयों का कलेजा सरदार पटेल,भगतसिंह,सुखदेव,चंद्रशेखर आजाद,सुभाष चन्द्र बोस आदि…….जैसा चाहिए ,किन्तु आज जब भ्रष्ट भारत सरकार और राज्य सरकारों की महा भ्रष्ट पुलिस के डंडे और गोलिया चलती है तो ९९% लड़ाई लड़ने वाले चूहों की तरह भाग खड़े होते है और 1% ही श्री अन्ना हजारे की तरह मैदान में डटे रह पाते है | सुप्रीम कोर्ट ने भी हाथ खड़े कर दिए है की भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने वालो की सुरक्षा के लिए देश में कोई क़ानून ही नहीं है| देश के भ्रष्ट नेताओं और मंत्रियो ने ऐसा कोई कानून बनाया ही नहीं, जिस प्रकार अंग्रेजो ने आजादी के लिए जान देने वालो के लिए कोई क़ानून नहीं बनाया था | मैंने सूना था की देश का क़ानून सर्वोपरि है किन्तु यहाँ तो देश के न्यायालय भी भ्रष्ट नेताओं की जमात पर निर्भर है , यही कारण है की हमारे देश में न्याय और क़ानून भ्रष्ट नेताओं,मंत्रियो और अमीरों की जेब में रखा रुपिया है वे जैसा चाहते है खर्च करते है | जँहा तक लोकपाल विधेयक का सवाल है वहा भी संसद और विधान सभा की तरह बहुमत भ्रष्ट नेताओं,मंत्रियो,संतरियो,अधिकारिओ और अमीरों का ही होना तय है अर्थात फैसला भ्रष्टाचार के पक्ष में ही होना है | आज निरा राडिया २ग़ स्पेक्ट्रुम घोटाले में शरद पवार की अहम् भूमिका बता रही है तो भी देश का कानून चुप है यही कानून जब किसी गरीब आम भारतीय को किसी शंका के आधार पर भी पकड़ता है भारतीय भ्रष्ट पुलिस गरीब भारतीय नीरा या शरद को पागल कुत्ते की तरह इतना दौड़ा कर मारती है की वह निर्दोष होकर भी पुलिस जैसा चाहती है वैसा अपराध कुबूल कर लेते है कई बार तो भरष्ट नेताओं,मंत्रियो,संतरियो, अधिकारिओ और अमीरों के अपराध भी गरीब भारतीयों के गले बांध दिए जाते है | इसलिए आदरणीय अन्ना का लोकपाल विधेयक फ़ैल होना तय है,क्योकि देश को लाखो सरदार पटेल,भगतसिंह,सुखदेव,चंद्रशेखर आजाद,सुभाष चन्द्र बोस चाहिए जो अंग्रेजो की तरह भ्रष्टाचारियो को काटकर भारत माता को बलि चड़ा दे | तभी भारत माता भ्रष्टाचारियो की गुलामी से आजाद हो सकती है| या…………
    भारत सरकार यदि इमानदारी से भरष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करना चाहती है तो देश से भ्रष्टाचार मिटाने का काम मुझे ठेके पर दे दे जैसे सारे सरकारी काम केंद्र और राज्य सरकारों ने ठेके पर दे रखे (जिनसे देश के भ्रष्ट नेताओं,मंत्रियो,संतरियो,अधिकारिओ,कर्मचारियो और काला बाजारी अमीरों को भरपूर कमीशन मिलता है | सरे हरराम्खोर ऐश कर रहे है और गरीब जनता भूखो मर रही है |) मै ६३ वर्षो के भ्रष्टाचार की कमाई को मात्र ७ वर्षो में वसूल करके सरकारी खजाने में जमा कर दूंगा और भ्रष्टाचार को जड़ मूल से उखाड़ फेकुंगा , मेरी भ्रष्टाचार निवारण की प्रक्रिया के बाद कोई भी नेता,मंत्री,संत्री,अधिकारी,कर्मचारी और कालाबजारी भ्रष्ट होने से पहले हजार बार सोचेगा |
    मुझे कुल वसूली का मात्र 0.०७% मेहनताना ही चाहिए |
    मई पिछले २५ वर्षो से देश के भ्रष्ट कर्णधारों को लिखता आ रहा हु की मुझे भ्रष्टाचार मुक्त भारत का काम ठेके पर दे दो ,मै ६३ वर्षो के भ्रष्टाचार की कमाई को मात्र ७ वर्षो में वसूल करके सरकारी खजाने में जमा कर दूंगा और भ्रष्टाचार को जड़ मूल से उखाड़ फेकुंगा| मेरे पत्रों को पड़कर देश के भ्रष्ट कर्णधारों को सांप सूंघ जाता है |
    “भ्रष्टाचार सामाजिक अन्याय का जन्म दाता है और सामाजिक अन्याय उग्रवाद और आतंकवाद का जन्म दाता है”
    मात्र-ज़न-लोकपाल विधेयक से ’भ्रष्टाचारमुक्त भारत’ क्या सम्भव है?
    नहीं क्योकि……………
    रामदेव Vs अण्णा = “भगवा” Vs “गाँधीटोपी सेकुलरिज़्म”?? इसतरह का हिसाब है लोक तंत्र के चौथे खम्बे का जबकि इस खम्बे पर भी देश की जनता को विश्वास नहीं रहा इस पर भी भ्रष्टाचार की लगी जंग जनता को स्पष्ट दिखाई दे रही है |जँहा तक सेकुलरिज़्म का सवाल है उसका गणित आम जनता की समझ से बाहर hai ……………..

    भ्रष्ट नेता+ भ्रष्ट मंत्री + भ्रष्ट संत्री + भ्रष्ट अधिकारी + भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी +असामाजिक तत्त्व +आतंकवादी + पाशचात्य संस्कृति =”सेकुलरिज़्म”
    सेकुलरिज़्म के पाँच मुख्या गुण है …..१-चोरी २-चुगली ३-कलाली ४-दलाली ५-छिनाली
    वर्तमान में स्वयं को देश के कर्णधार समझाने वाले नेता इन पांचो गुणों से संपन्न है….. महेश चन्द्र वर्मा , प्रधान सम्पादक,
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार ,
    साप्ताहिक समाचार पत्र, इंदौर म.प्र.

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  4. श्रीयुत डा. पुरुषोत्तम मीना जी ,
    आपने जो पुष्पवर्षा मुझ पर करने की कृपा की है, उसके लिए धन्यवाद.
    महोदय आपने मेरे प्रति जिन विशेषणों का प्रयोग किया, क्या आप उन सब के पात्र नहीं ? मुझे तो किसी सम्प्रदाय या व्यक्ति से घृणा नहीं. पर जब कोई हमारे देश, संस्कृति, साहित्य पर कीचड उछालता है तो उसका तर्क सगत उत्तर देना कर्तव्य बनता है. मैंने वही करने का प्रयास अनेक बार किया है. आपने उसके जवाब में क्या किया, कितने तर्क दिए, वह सामने है.
    – जिस लेख पर आप मेरी प्रतिक्रया की अपेक्षा कर रहे हैं, देख कर अपनी समझ के अनुसार उत्तर देने में मुझे प्रसन्नता होगी. पर महोदय मेरे उठाये प्रश्नों का उत्तर भी दे देते तो बड़ी कृपा होती.
    – आपने जिन सभ्य (?) शब्दों का प्रयोग मेरे प्रति किया है, वे किस स्तर को प्रदर्शित करते हैं ? ऐसी भाषा लिखने वाले सज्जन को योग व ध्यान की शरण में जाना चाहिए या नहीं ?
    – विनम्र निवेदन पर ज़रूर विचार करें कि भोगों से थका सारा संसार सनातन संस्कृति, योग, आयुर्वेद कि शरण में आकर विश्राम पा रहा है. आप भी दुराग्रह छोड़ कर इसकी शरण ग्रहण करें तो आप सरीखे सज्जन का कल्याण होगा और विद्वेष कि अग्नि से मुक्त होकर विश्व कल्याण में भागीदार बनने का सौभाग्य भी प्राप्त कर सकेंगे.
    सत्य ह्रदय से आपका शुभाकांक्षी, सादर, सप्रेम,
    – राजेश कपूर.

  5. मात्र-ज़न-लोकपाल विधेयक से ’भ्रष्टाचारमुक्त भारत’ क्या सम्भव है?
    नहीं क्योकि……………
    रामदेव Vs अण्णा = “भगवा” Vs “गाँधीटोपी सेकुलरिज़्म”?? (भाग-2)
    ********************************************OMSAIOM ************************************************
    भ्रष्ट नेता+ भ्रष्ट मंत्री + भ्रष्ट संत्री + भ्रष्ट अधिकारी + भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी +असामाजिक तत्त्व +आतंकवादी + पाशचात्य संस्कृति =”सेकुलरिज़्म”
    सेकुलरिज़्म के पाँच मुख्या गुण है …..१-चोरी २-चुगली ३-कलाली ४-दलाली ५-छिनाली
    वर्तमान में स्वयं को देश के कर्णधार समझाने वाले नेता इन पांचो गुणों से संपन्न है ……………………..
    ९९%सच्चे भारतीय इस गणित के सहमत होंगे |
    महेश चन्द्र वर्मा
    प्रधान सम्पादक
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार
    साप्ताहिक ,इंदौर म.प्र.

  6. हमें सबका इतिहास मालूम है आलोकजी ,कहो तो आपका भी बता दें!
    इन बाबाओं की जगह आपके दिल में नहीं बल्कि तिहाड़ जेल में होनी चाहिए!ये जो भोली -भाली जनता को शाशन-प्रशाशन के खिलाफ खड़ा कर ब्लेक मैलिंग का स्वांग रचते हैं,ये जो अपने ही गुरु के कातिल हैं,ये जो राजीव दीक्षित जैसे होनहार देशभक्त के कातिल हैं,इन पर अब जनता ने सवाल दागना शुरू कर दिए हैं ,जिस महिला कामरेड वृंदा कारात को तुम पराजित बता रहे हो उसने तो सत्य का शिलान्याश भर किया था,आगे -आगे देखना तुम्हारी भी तबियत हरी होने वाली है और तुम्हारे इन ढोंगी बाबाओं की भी!!!

  7. आदरणीय मीणा जी से पूर्ण रूप से सहमत । लाल झंडा आज देश भक्त बनने की बात करते है आैर अपने विचार बाहर बैठे आकाआे के इशारे से तय करते है शायद उन्हे आजादी व भारत चीन युद्ध में अपने दोगले इितहास का ज्ञान नही है । जहा तक बात बाबा की है तो जान लो कुछ दिनो पहले तुम्हारी महिला कमांडर धूल खा चुकी है अब तो शर्म करो

  8. अन्ना हजारे ने अधा गिलास पानी दिया है अधा आम जनता को भरना है.और भरे गिलास पानी की ताकत से भ्रष्टाचार नामक गम्भीर बीमारी को खत्म करना है.तो क्या अब आम जनता जाग चुकी है.अब क्या भारत में भ्रष्टाचार नहीं होगा.रेलवे के बर्थ को पाने के लिए टिटि को पैसा नही देंगे.अपना ट्रान्सफ़र रुकवाने के लिए साहब को पैसा नही देन्गे. अगर इतना मात्र एक अनशन से होगा तो क्यों
    ना अनशन हर महीने किया जाए.भले हि देश का काम धाम बन्द रहे महीने में एक दिन बन्द ही सही.
    दरअसल हमारी नजर मे सरकार कि भ्रष्टाचार तो दिखती है अपनी नही. भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपने अन्तरात्मा को टटोलना होगा.
    अब मेरा सवाल क्या सवा अरब में पिता पुत्र के अलावा समिती में सामिल होने की योग्यता किसी के पास नहीं है या अन्ना हजारे कि नजर में पिता पुत्र ही विद्वान है बाकि सब……. क्या यह वंशवाद नहीं.

  9. श्रीमान तिवारी जी का सवाल वाकई बहुत महत्वपूर्ण है की मात्र-ज़न-लोकपाल विधेयक से ’भ्रष्टाचारमुक्त भारत’ क्या सम्भव है? – लगभग पूर्ण. अगर पूरे १००% नहीं ९९% से कम भी नहीं. भ्रष्टाचार भले ही बाबुओ के द्वारा अस्तित्व में आया हो किन्तु होता तो ऊपर वालो के आशीर्वाद से क्योंकि प्रसाद का हिस्सा किसी न किसी रूप में ऊपर जाता ही है. जब मंत्री अफसर के ऊपर लगाम रहेगी तो वह न तो खुद खायेगा और न ही किसी को खाने देगा. जब मंत्रियो के पांच साल भी पक्के नहीं रहेगे तो कोई भी अफसर मंत्री के गलत कार्य को आगे नहीं बढ़ने देगा. यही स्तिथि तहसील से लेकर संसद तक की रहेगी. फिर कोई सरकार अमेरिका या किसी अन्य देश का कचरा नहीं खरीदेगा या उनकी बात मानेगा.
    श्री हजारे जी ने इस बिल के माध्यम से आम लोगो में मिलकर भ्रस्टाचार के विरुद्ध लड़ने को जागरूक किया है.

    रही बात राजनितिक धरने, आंदोलोनो की तो कोई भी पार्टी के लोग कभी भी अपने पैसे से तहसील, विधानसभा, संसद नहीं जाते है. वे लाये जाते है. ५०% से ज्यादा को तो यह भी नहीं पता होता है की किस लिए जा रहे है. उन्हें तो बस उनके छेत्र के नेता का कहा सुनना होता है जो उनके आने, जाने, खाने पीने की व्यवस्था करता है. राजनितिक धरने, आंदोलोनो से न तो कुछ हुआ है और न ही कुछ होगा. जरुरत है श्री हजारे जी जैसे जन आंदोलनों की.
    आज जरुरत है इस देश की जनता को अंग्रेजो के – चाय, क्रिकेट और अंग्रेजी आदि वायरस से सावधान करने की.

  10. क्या ये जरूरी है की अन्ना उन्ही बातों को सरकार के समक्ष उठाये जिन्हें वामपंथी चाहते है, अन्ना अपने जीवन के ७३ सालों में बहुत कुछ साबित कर चुके है, और उनका यह विचार की भ्रष्टाचार सभी समस्याओं की जननी है सही लगता है, और एक दिशा में उन्होंने शुरुआत की है हम सभी उनके साथ है
    अन्य सभी सामाजिक / राजनितिक संस्थाओं को उनका आन्दोलन चलाने से अन्ना ने रोका तो नहीं है

  11. मैं श्रीराम तिवारी जी के विचारो से सहमत हूँ

  12. नोट : नीचे लिखी टिप्पणी केवल आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी को ही सम्बोधित हैं और उन्हीं से प्रतिउत्तर की भी अपेक्षा है, यद्यपि आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी प्रतिउत्तर लिखने के लिये बाध्य नहीं हैं| अन्य सम्माननीय पाठकों को इस बारे में टिप्पणी करने का हक है, जिसका मैं समर्थन भी करता हूँ, लेकिन साथ ही विनम्र आग्रह भी है कि कृपया आदरणीय श्री डॉ. कपूर जी को ही टिप्पणी करने दें| अन्य कोई पाठक आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी की टिप्पणियॉं पूर्ण होने तक इस बारे में अपनी राय व्यक्त करके मुझसे अपनी टिप्पणी के बारे में प्रतिउत्तर की अपेक्षा नहीं करें तो बेहतर होगा| इसके लिये मैं आप सभी का आभारी रहूँगा| आगे आप सबकी इच्छा सर्वोपरि है|

    धन्यवाद|

    आदरणीय श्री डॉ. राजेश कपूर जी, आप दूसरों को योग और शान्ति की की शरण में जाने की और योग तथा शांति के बहाने बाबा रामदेव तथा रवि शंकर को अपना हितैषी मानाने की शिक्षा देते रहते हैं| जबकि ये दोनों ही भारत के नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (आर एस एस) के शुभचिंतक हैं!

    इसके ठीक विपरीत आपकी जगह-जगह पर प्रदर्शित टिप्पणियों को पढकर तो ऐसा लगता है कि आपके मनोमस्तिष्क पर विद्वेष, घृणा, पूर्वाग्रह, जातिवाद, वर्णवाद, साम्प्रदायिता, धार्मिक उन्माद, दलित-आदिवासी और पिछड़ों की प्रगति के प्रति विरोध आदि मानसिक विकृतियों का कब्ज़ा है तथा आपके दिमांग में अल्पसंख्यकों के प्रति भयंकर वितृष्णा भरी हुई है और लगता है कि आप अनेक मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं| (काश मेरी यह सोच गलत हो और आप स्वस्थ हों)

    अत: बेहतर होगा कि आप दूसरों को सलाह देने से पूर्व अपना मानसिक उपचार करावें| आप जगह-जगह दूसरों को ललकारते रहते हैं| ( यह भी इस बात का संकेत है की आपके मनोमस्तिष्क पर मानसिक विकृतियों का कब्ज़ा है) आपकी टिप्पणियों को पढ़ने पर एक सामान्य व्यक्ति को ऐसा लगता है, मानों विद्वता, सुसंस्कृतता और देशभक्ति का ठेका अकेले आपने ही ले रखा है|

    अनेकों स्थानों पर आपने मेरा (यदि आपकी टिप्पणियों में डॉ. मीना/मीणा लिखने का मतलब मुझसे ही है तो) उल्लेख करके मुझसे अकारण टिप्पणी मांगी हैं, लेकिन मेरे उन आलेखों पर आपकी एक भी टिप्पणी नहीं हैं, जिनपर टिप्पणी करते ही आप जैसों को मुखौटे उघड़ जाने का खतरा नजर आता है|

    आदरणीय आप उम्र और अनुभव में (सम्भवत:) मुझसे बड़े हैं, इसलिये मैं आपको आपकी भॉंति ललकारूँगा नहीं, बल्कि आपसे निवेदन की भाषा में ही आग्रह करना चाहूँगा कि आप प्रवक्ता पर प्रकाशित मेरे आलेख ‘‘हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दुवादी सरकार?’’ पर अपनी समग्र और ईमानदार टिप्पणी बिन्दुबार विस्तार से करके दिखावें| फिर आपसे संवाद को आगे बढाना मुश्किल नहीं होगा|

    आपसे विनम्र आग्रह है कि आप जिन भी संस्कारों में पले-बढे हों, लेकिन आप अपने आपको भारतीय संस्कृति का वाहक और संरक्षक मानने का दम्भ भरते हैं, परन्तु दु:ख के साथ लिखने को विवश हूँ कि आपकी टिप्पणियॉं भारतीय संस्कृति और बहुसंख्यक (अनार्य) भारत को अपमानित और बदनाम करने वाली होती हैं!

    आशा है कि आप मेरे विनम्र निवेदन पर विचार करेंगे और मेरे आलेख ‘‘हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दुवादी सरकार?’’पर अपनी टिप्पणी विस्तार से लिखेंगे| जिससे कि आगे से संवाद कायम करे|

    यदि आपको मेरी भाषा के कारण तकलीफ हुई हो या आपको किसी प्रकार का आघात पहुँचा हो तो उसके लिये मैं कोई क्षमायाचना नहीं करूँगा, क्योंकि आप इसी प्रकार की टिप्पणी प्राप्त करने के पात्र हैं|

    किसी भी व्यक्ति को वही मिलता है, जिसकी वह आकांक्षा करता है| संसार का सनातन सत्य है कि दूसरों का अहित चाहने वाला या दूसरों को स्वयं से निम्नतर समझने वाला कभी सुख, शान्ति, स्वास्थ्य और सम्पन्नता का रसास्वादन नहीं कर सकता|

    यदि आप शान्ति चाहते हैं तो दूसरों को शान्त रहने दें| यदि अपने धर्म का भला चाहते हैं तो दूसरों के धार्मिक मामलों में अनाधिकार हस्तक्षेप नहीं करें| यदि इस देश के दस प्रतिशत आर्य ९० प्रतिशत अनार्यों पर शासन करना चाहते हैं तो अनार्यों को अपमानित और तिरस्कृत करना बन्द करें|

    परमात्मा सभी को शान्ति, स्वास्थ्य, सुद्बुद्धि, सुख और सम्पन्नता प्रदान करें|

    सभी का शुभाकांक्षी
    सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  13. बहुत अच्छा सत्य के साथ तो दिखावे के लिए वो भी खड़े हो जाते हैं जो इसे पसंद नहीं करते पर सत्य को नकारना हिम्मत का काम है जो आपने किया .आप के अनुसार अच्छा व्यति ही चुनाव जीतता है शायद श्री मनमोहन सिंह एक भी चुनाव (लोकसभा का )नहीं जीत पाए हैं .स्वतंत्रता के समय भी ब्रिटिश काल शासन के पक्ष में उस समय इस प्रकार के लेख लिखे जाते रहे हैं उसी परंपरा को जारी रखना बहुत मुश्किल कार्य है

  14. मेरी समझ में श्री अन्ना हजारे और उनके साथी जानते हैं कि लोकपाल बिल में अनेकों अड़ंगे पड़ेंगे, इस बिल के पारित हो जाने पर भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होना है. सरकार में बैठे घाघ भी समय निकाल रहे हैं और मौक़ा देख रहे हैं की कब और कैसे इस आन्दोलन की हवा निकाली जाये.
    – इस सारे परिदृश्य में भारत की जनता की कोई सबसे बड़ी जीत है तो वह यह की देश की जनता और और अन्ना जी जैसी सात्विक ताकतों का आत्मविश्वास मजबूत हुआ है कि हम भ्रष्ट सत्ता को झुका सकते हैं, इन दुष्टों पर हम विजय पा सकते हैं इस अल्प कालीन आन्दोलन कि यह सबसे बड़ी, सबसे कीमती उपलब्धि है.
    -अगले संघर्ष के संकेत अन्ना दे चुके हैं कि चुने नेता को ज़रूरत पड़ने पर वापिस बुलाने का अधिकार मतदाता को मिले. झूठे वादों और हथकंडे अपनाकर चुनाव जीत जाने के बाद पांच साल तक देश को लूटने का लाइसेंस नहीं मिल जाना चिहिए विधायक या सांसद को. उसे जनमत का डर तो रहना ही चाहिए. अतः चुने नेता को ५ वर्ष से पहले वापिस बुलाने का अधिकार पाने के लिए, संविधान में यह संशोधन करवाने के लिए आगामी संघर्ष हो सकता है.
    – इसी प्रकार जनता का आत्म विश्वास जगाते हुए, संगठनों कि आपसी तालमेल बनाते हुए आगे बढ़ते जाना है और एक दिन अंतिम संघर्ष. कर देना है व्यवस्था परिवर्तन (सत्ता परिवर्तन नहीं.)हम सब देख रहे हैं कि ” आर्ट ऑफ़ लिविंग” तथा ”भारत स्वाभिमान आन्दोलन” अन्ना के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं. शुभ लक्षण है.
    – एक आशंका भी है. अन्ना जी के आसपास कुछ संदेहास्पद भूमिका के लोग भी मंडराने लगे हैं. मेधा पाटेकर और अग्निवेश पर अनेक लोगों को संदेह है कि ये देश तोड़क ताकतों के लिए काम करते हैं. अतः इनसे सावधान रहने कि ज़रूरत है. इन दोनों का अतीत शंकाओं को जन्म देना वाला है.
    ** अंत में मेरा लेखक महोदय से निवेदन है कि वे वामपंथ कि ऐनक पहन कर देखने का स्वभाव त्याग कर सोचें तो अधिक स्पष्ट दृष्टि विकसित होगी. आपको अमेरिका के आगे भारत के घुटने टेकने से कष्ट है जो कि किसी भी देशभक्त को हटा है, पर चीन द्वारा इस देश में साम्यवादियों के सहयोग से जो विध्वंसक कार्य हो रहे हैं; उन्हें आप क्यूँ अनदेखा कर रहे हैं ? भारत के जो चीनी एजेंट सीआईए के साथ मिल कर भारत को बर्बाद कर कर रहे हैं, उस पर आपका मौन आप के प्रति संदेह क्यों नहीं जगायेगा ?
    – आपको आहत करने की मेरी नीयत नहीं पर देश और समाज हित में यह स्पष्ट होना चाहिए कि कौन चीन के साथ है, कौन अमेरिका के साथ और कौन है जो भारत के साथ है.
    सादर, सप्रेम, शुभाकांक्षी,
    – राजेश कपूर.

  15. काफ़ी कुछ हकीकत के करीब लिखा है और अक्सर आपके लेखों से असहमत होने के बावजूद इस लेख के कई बिंदुओं से सहमत हूँ… (हालांकि आपसे सहमत होने के “हजारे प्रकरण” में मेरे कारण थोड़े अलग हैं, जो मैं अपने लेख में विस्तार से लिखूंगा)
    फ़िलहाल इस लेख का शुक्रिया…

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