डा. राधेश्याम द्विवेदी
गाली- गलौज की शुरुआत बसपा ने की:-भाजपा के दयाशंकर सिंह ने मायावती के लिए जो कहा , निश्चित रूप से आपत्तिजनक है । यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि चुनाव कोई भी हो मायावती पैसे लेकर ही अपनी पार्टी का टिकट किसी को देती हैं । यह बात इतनी बार , इतने सारे लोग , कितने सारे तरीके से कह चुके हैं कि वह बेहिसाब है । दयाशंकर सिंह ने भी उसी बात को दुहराया है । लेकिन उन का बात करने का तरीका निहायत ही गंदा और शर्मनाक है । अभी-अभी कुछ दिन पहले ही यही आरोप स्वामी प्रसाद मौर्य और आर के चौधरी भी बसपा छोड़ते समय लगा गए हैं मायावती पर । लेकिन तब इस बात पर हंगामा नहीं हुआ । क्यों कि यह तथ्य था और रूटीन भी । दयाशंकर सिंह मां को बाप की बीवी कह गए । सच कहा लेकिन सच कहने की मर्यादा भूल गए ।लेकिन भारतीय राजनीति में यह गाली गलौज कोई नई बात नहीं है । राजनीति में इस गाली गलौज की शुरुआत भी बसपा ने ही की है । बसपा के संस्थापक कांशीराम और आज की उस की मुखिया मायावती ने ही की है । तो जो बोया है , वह काटना भी पड़ेगा ।
याद कीजिए वह अस्सी-नब्बे का दशक । जब तिलक , तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार ! जैसे जहरीले और नीचता भरे नारों के दिन थे । गांधी को शैतान की औलाद कहने के जहरबुझे दिन थे वह । उस गांधी को शैतान की औलाद कहा जा रहा था जिसे दुनिया पूजती है । एक बार दैनिक जागरण , लखनऊ ने मायावती की ही पार्टी के एक पूर्व मंत्री रहे और बनारस के दलित नेता दीनानाथ भास्कर के इंटरव्यू के मार्फत छापा था कि मायावती विवाहित हैं और कि उन के एक बेटी भी है । उन का पति एक सिपाही है । आदि-आदि । इस इंटरव्यू के छपने के कुछ दिन बाद लखनऊ के बेगम हज़रत महल पार्क में बसपा कि एक रैली हुई । इस रैली में कांशीराम ने इस मुद्दे पर जितना भला बुरा कहना था कहा । खैर पगलाई भीड़ ने पूरे हज़रतगंज बाज़ार को जिस तरह बंधक बना लिया , वह तो शर्मनाक था ही । उस से भी ज़्यादा शर्मनाक था , काशीराम का अपनी जांघ ठोक-ठोक कर माइक पर बार-बार बहुत अश्लील ढंग से यह कहना कि नरेंद्र मोहन की बेटी लाओ ! इस से कम पर बात नहीं होगी । नरेंद्र मोहन तब दैनिक जागरण के स्वामी और संपादक थे । अब वह दिवंगत हैं । तब वह कोहराम कोई तीन चार घंटे चला । और कांशीराम का वह अश्लील नारा भी कि नरेंद्र मोहन कि बेटी लाओ ! इस पूरी कवायद में मायावती उन के साथ थीं । दैनिक जागरण दफ्तर के सभी कर्मचारी तब दफ्तर छोड़ कर भाग गए थे । जो दो-चार लोग मिले भी वह लोग बुरी तरह पीटे गए थे । लहूलुहान हो गए थे । पुलिस के हाथ पांव तब फूल गए थे । लगभग असहाय सी थी । सारा प्रशासन हाथ बांधे मूक दर्शक बना खड़ा था ।
बाद के दिनों में मायावती मुख्य मंत्री बनीं तो अजब यह हुआ कि सब से पहला इंटरव्यू उनका दैनिक जागरण में ही छपा। उसी दैनिक जागरण में जिस के मालिक नरेंद्र मोहन की बेटी कांशीराम मांग रहे थे माइक पर चीख – चीख कर । उसी दैनिक जागरण में जिस में कभी बतौर मुख्य मंत्री मुलायम सिंह की एक फोटो छपी थी जिसमें कांशीराम और मायावती के सामने कान पकड़े मुलायम झुके हुए खड़े थे । जिस के प्रतिकार में मुलायम के समाजवादी कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाऊस कांड किया । मायावती को मारने कि कोशिश में उन के कपड़े फाड़ दिए थे । उन की जान पर बन आई थी । लोकसभा में अगर अटल बिहारी वाजपेयी ने उसी दिन यह मामला उठा कर मायावती की जान न बचाई होती तो शायद तब वह इतिहास के पृष्ठों में समा गई होतीं । जातीय राजनीति के ऐसे कई दागदार पृष्ठ भरे पड़े हैं । किन-किन को पलटा जाए ? उत्तर प्रदेश विधान सभा में हुई सपा बसपा भाजपा की खूनी लड़ाई क्या लोग भूल गए हैं ?
इतिहास अपने को दुहरा रहा:- जैसे इतिहास अपने को दुहरा रहा है । लखनऊ के उसी हज़रतगंज में बसपा की मजलिस सजी हुई है । और जिस तरह से गाली-गलौज हो रही है खुले आम माइक पर वह अचरज में नहीं डालता । दयाशंकर सिंह की बहन और बेटी मांग रहे हैं , बहन जी के कार्यकर्ता । कांशीराम की याद आ रही है । कांशीराम ने बार-बार अपनी दोनों जांघ ठोक – ठोक कर कहा था , नरेंद्र मोहन की बेटी लाओ ! इस से कम पर बात नहीं होगी । आज लखनऊ के हज़रतगंज में कई कांशीराम आ गए हैं । यह सारे कांशीराम दयाशंकर सिंह की बेटी बहन दोनों मांग रहे हैं । आज की राजनीति में ईंट का जवाब पत्थर शायद इसी को कहते हैं । यह पत्थर अभी और आएंगे । पुलिस और प्रशासन के हाथ-पांव तब भी फूल गए थे , आज भी फूल गए हैं । वोट की गंगा में बह कर राजनीति तेरी बोली गंदी हो गई ! तिलक , तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार ! की राजनीति के पड़ाव अभी और भी हैं । कुतर्क की राजनीति की आग अभी और भी है ।
जो भी हो जाने-अनजाने दयाशंकर सिंह ने जाने-अनजाने बसपा को संजीवनी बूटी दे दी है । जिस बसपा की सांस उखड़ रही थी , लोकसभा में शून्य हो गई थी , जिस बसपा से दलित अब छिटक कर भाजपा में शिफ़्ट हो रहे थे अब वह बसपा में बने रह सकते हैं । मायावती और बसपा को दिल ही दिल कृतज्ञ होना चाहिए । भाजपा दयाशंकर सिंह के मूर्खता भरे इस एक बेशर्म बयान द्वारा दिया यह घाव बहुत जल्दी नहीं भूल पाएगी । फ़िलहाल यह घाव कोई एंटीबायोटिक भी नहीं सुखा पाती परंतु आज दयाशंकर की पत्नी का मायावती को खुला चैलेंज देना थोड़ा बहुत मरहम जरूर लगा गया |
पलटती बाजी:- राजनीति की बिसात पर बाजी पलटने में देर नहीं लगती है। कब किस पार्टी के नेता/कार्यकर्ता क्या बोल जाये और विरोधी उसका क्या मतलब निकालते हुए राजनैतिक फायदा उठा लें, यह हमेशा से अबूझ पहेली रहा है। हाल ही में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमों मायावती ने ‘दयाशंकर प्रकरण’ पर सियासी बिसात बिछाकर बीजेपी को जबर्दस्त ‘शह’ दी थी। जब माया की ‘शह’ पर बीजेपी के धुरंधरों को भी अपनी मात पक्की नजर आ रही थी है।
उसी समय माया के लिये अपशब्द कहने वाले भाजपा से निष्कासित नेता दयाशंकर सिंह की मा तेतरा देवी ने अपनी एक चाल से बाजी पूरी तरह से पलट के रख दी। अब स्थिति यह है कि बैकफुट पर नजर आ रही बीजेपी फ्रंट पर आ गई है और कल तक दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सड़क पर हल्ला काटने वाले बीएसपी नेताओं को जबाब देते नहीं बन रहा हैं। मुकदमों की झड़ी लग गई है। बसपा नेताओं की तहरीर पर पुलिस ने दयाशंकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की तो अगले ही पल दयाशंकर की मा की तहरीर पर पुलिस को बसपा सुप्रीमों मायावती, नसीमुद्दीन सिद्दीकी सहित तमाम बसपा नेताओं के खिलाफ उन्हीं धाराओं में एफआईआर दर्ज करनी पड़ गई जिन धाराओं में उसने दयाशंकर सिंह के खिलाफ कार्रवाई की थी।
बसपा अपने ही बुने जाल में फंस गई:- लगता है दलित सियासत चमकाने के चक्कर में बसपा अपने ही बुने जाल में फंस गई है। उत्तर प्रदेश में आजकल जो भी सियासी ड्रामा चल रहा है उसके पीछे की वजह अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव हैं। सभी पार्टियां अपना वोट बैंक को धार देने में लगी हैं। इसी लिये उन बातों अैर मसलों को बेवजह ही हवा दी जा रही है जिससे जनता का कोई सरोकार नहीं है। अब कोई यह कैसे कह सकता है कि अगर मायावती के खिलाफ कोई अपशब्द बोलता है तो उससे पूरे दलित समाज का अपमान होता है। कहीं किसी हिन्दू पर कोई अत्याचार हो जाये तो उसके लिये पुरी मुस्लिम कौम को अगर किसी मुसलमान के साथ कुछ गलत हो जाये तो उसके लिये पूरी हिन्दू जमात को कैसे कटघरे में किया जा सकता है। मगर हो यह रहा है। कोई साधू – साध्वी,धर्मगुरू या राजनेता आदि किसी मुसलमान के लिये उलटा सीधा बोल देता है तो उसके बयान को सभी हिन्दुओं का विचार मान लिया जाता है और अगर कोई मुस्लिम धर्मगुरू,मुल्ला मौलवी या नेता हिन्दुओं के लिये कुछ उलटा-सीधा कह देता है तो उसे पूरी मुस्लिम जगत की आवाज मान लिया जाता है, जो बिल्कुल गलत है, लेकिन दुर्भाग्य से शार्टकर्ट से राजनीति करने वाले नेतागण अपने सियासी फायदे के लिये ऐसे विवादित बोलों को भुनाते रहते हैं।
परेशान मायावती:- बसपा सुप्रीमों मायावती आजकल काफी परेशान नजर आ रही हैं। उनके दिग्गज सहयोगी साथ छोड़ते जा रहे हैं तो भाजपा उनके दलित वोट बैंक पर आंख लगाये बैठी है। बैठी ही नहीं है, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने माया के इस मजबूत वोट बैंक में सेंध भी लगा दी थी। जाटव को छोड़कर कई अन्य दलित बिरादरियों ने खुलकर भाजपा के पक्ष में मतदान किया था। माना जा रहा था कि स्वामी प्रसाद मौर्य व आरके चैधरी के पार्टी से जाने से झटके पर झटके खा रही बसपा के लिए दयाशंकर प्रकरण ने आक्सीजन का काम किया था। मगर बसपा ने जिस तरह इस मुद्दे को पुरी आक्रामकता के साथ भुनाने की कोशिश की, वह उल्टी पड़ गई। मायावती ने जिन शब्दों में दयाशंकर की टिप्पणी का जवाब दिया और उनकी मां, बहन और बेटी को निशाना बनाया, उसे लोगों ने ठीक नहीं माना। लेकिन ,चंकि दयाशंकर के निशाने पर मायावती आई थीं लिहाजा लोगों ने बसपा अध्यक्ष के जवाब को आक्रोश का नतीजा मानकर ज्यादा तूल नहीं दिया।
जब धरना प्रदर्शन में बसपा ने पोस्टर में दयाश्ंकर कि लिए अपमानजनक शब्द और उसकी मां, बहन बेटी को पेश करने की मांग जैसा अपमानजनक आचरण दिखाया तो न सिर्फ बसपा के प्रति लोगों में उपजी सहानुभूति ठंडी होती नजर आई, बल्कि आक्रोश मानकर नजरअंदाज की जा रही टिप्पणी व नारे ही चर्चा कव विषय बन गए। इससे जहां दयाशंकर के परिवार को पलटवार का मौका मिला गया, वहीं सोशल मीडिया से लेकर हर स्तर पर दयाश्ंकर की बूढ़ी मां, नाबालिग बच्ची को निशाना बनाए जाने की आलोचना शुरू हो गई । बदले हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लखनऊ में धरना-प्रदर्शन करके अपनी ताकत दिखाने वाली बसपा सुप्रीमों मायावती दूसरे दिन दिल्ली में सफाई देती दिखीं। बसपा महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी को भी अपने और पार्टी के बचाव में आगे आना पड़ा।बसपा के खिलाफ क्षत्रिय समाज भी खुल कर सामने आ गया है। वहीं बसपा के स्वर्ण प्रत्याशियों के खिलाफ अगड़े समाज के कुछ संगठनों ने मुहिम छेड़ने की योजना बनानी शुरू कर दी है। यह बात भी सर्वसमाज का समर्थन पाने की कोशिश में जुटी बसपा के खिलाफ जाती दिख है।
भाजपा को इस पूरे घटनाक्रम से ठाकुर वोट बैंक मजबूत होता दिखा रहा। इसी लिये वह भले ही दयाशंकर से दूरी बनाकर चल रही हो लेकिन उनके परिवार के साथ मजबूती के साथ खड़ी है। दयाशंकर के परिवार के पक्ष में भाजपा का लखनऊ में प्रदर्शन इस बात का प्रमाण है।मायावती के पक्ष में लड़ी जा रही लड़ाई का रुख इस आम गृहणी स्वाती सिंह ने चंद घंटे में मोड़ दिया है. वह गृहणी जो TVS स्कूटी से चलती है. रोज सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ती है. घर के लिए सब्जी लाने जाती है. आशियाना के मोहल्ले वालों की माने तो वह आम गृहणी बहुत ही सहज स्वभाव की है. हम बात कर रहे हैं दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाती सिंह की. महज 24 घंटे के भीतर स्वाती ने मायावती पर जो पलटवार किया है उसने उत्तर प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है. स्वाती आज आम नागरिक का चेहरा बन चुकी है. अपनी सास, मां और बच्चों की सुरक्षा के लिए स्वाती जिस तरह से लड़ रही हैं, उससे स्वाती यूपी में हर औरत और हर घर का चेहरा बनती जा रही है.
मायावती पर भद्दा बयान देने के बाद जिस दयाशंकर को सभी राजनीतिक पार्टियों ने अछूत घोषित कर दिया था. जिसे बीजेपी ने खुद पार्टी से निकाल दिया. उसी दयाशंकर को लेकर जो लड़ाई स्वाती ने छेड़ी है, उसके समर्थन में बीजेपी शनिवार को सूबे की राजधानी लखनऊ में बेटी के सम्मान को लेकर मैदान में उतरने के लिए कमर कस ली है. स्वाती के बयानों और आरोपों पर मायावती लाख सफाई दे रही हों लेकिन सच तो ये है कि मायावती ने खुद अपने सलाहकारों को जमकर फटकार लगाई है. हलांकि अपने कॉडर को बचाने के लिए मायावती ने उनपर कोई कार्रवाई तो नहीं कि है लेकिन नसीमुद्धीन सिद्धकी से लेकर रामअलच राजभर तक को खरी खोटी सुनाने में कोई कसर नहीं बख्शी है. यहां तक कि नीचे से लेकर ऊपर तक बैठे नेताओं को साफ चेतावनी दी है कि ऐसी हरकत दोबारा करने कर उन्हे बख्शा नहीं जाएगा.
स्वाती सिंह की 12 साल की बेटी लखनऊ के लेरॉन्टो कानवेंट स्कूल में पढ़ती है. जिसे स्वाती सिंह खुद स्कूटी से स्कूल छोड़ने जाती है. इसके अलावा घर की सब्जी से लेकर राशन तक का सामान स्वाती खुद ही लाती है. इसलिए उस पर खतरे का डर ज्यादा है. जिसके चलते स्वाती ने पुलिस सुरक्षा की मांग की है.बलिया की रहने वाली स्वाती ने लखनऊ विश्वविधालय से पढ़ाई की है. इसी दौरान विश्वविधायल में ही पढ़ने वाले छात्र नेता दयाशंकर सिंह से उनकी दोस्ती हो गई. देखते ही देखते दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों ने शादी कर ली.जैसे ही पति दयाशंकर की जान खतरे में पड़ी तो स्वाती ने अपने पति और बच्चों की जान बचाने को लेकर उसने मायावती पर पलटवार कर चंद घंटो में ही प्रदेश का नया चेहरा बन गईं. हर परिवार इस महिला के समर्थन में बातें कर रहा है. लखनऊ के आशियाना इलाके के लोग इस सहज नारी का ये रूप देख कर हैरान हैं. और उसके जज्बे को सलाम करते नजर आ रहे हैं. सबकी जुबान पर ये चर्चा है कि वो अपने पत्नी का धर्म निभा रहे हैं.स्वाती ने मायावती के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए अपनी नीजि जिंदगी को ताक पर रख दिया. स्वाती पिछले दो दिनों से अपनी सास, मां और बेटी को भी संभाल रही है. पिछले दो दिनों से पूरे परिवार के लोग परेशान हैं. स्वाती का कहना है कि उसकी बेटी डिप्रेशन में चली गई है. स्वाती का कहना है कि घर के जरूरी सामान लेने के लिए घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है. दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती और दो अन्य नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है. उनका कहना है कि मुझे और मेरी बेटी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले नेताओं को मायावती क्यों नहीं हटा रही है ?