राकेश कुमार आर्य
ऋग्वेद 6/20 /3 में बहुत सुंदर व्यवस्था राष्ट्रधर्म के बारे में दी गई है । वहां पर राजा के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि राजा शत्रु नाशक हो। बात स्पष्ट है कि राजा किसी भी प्रकार के आतंकवाद और आतंकवादियों का समर्थक न हो , इसके विपरीत राजा का आचरण ऐसा हो कि वह प्रजा को कष्ट देने वाले किसी भी संगठन के प्रति सदा कठोरता का व्यवहार करने वाला हो । वेद का ऋषि कहता है कि प्रजाओं को प्रसन्न रखने में राजा का राजत्व है ।
दूसरा गुण बताते हुए वेद का ऋषि कहता है कि राजा दूसरों से अधिक ओजस्वी हो । ओजस्वी राजा से ही तेजस्वी राष्ट्र का निर्माण होता है । राजा की ओजस्विता इसमें है कि वह प्रजाजनों को कष्ट देने वाले लोगों के प्रति कठोर उपायों का प्रयोग कर सकता हो। देश की एकता और अखंडता को आहत करने वाले या तोड़ने वाले लोगों के विरुद्ध उसकी वाणी में क्रोध का भाव हो ।राजा ओजस्वी नहीं होगा तो राज्य में व्यवस्था स्थिर नहीं रख सकेगा ।
तीसरा गुण राजा का बताया गया है कि राजा बलवान से भी बलवान हो । राजा के बल से ही कोई भी राष्ट्र बलशाली होता है । यदि वह स्वयं आत्मबल से हीन है , और शत्रु दल का सामना करने में स्वयं को अक्षम पाता है , तो ऐसा राजा देश की एकता और अखंडता को बनाए नहीं रख सकता । स्वाभाविक बात है कि उसके लिए बल चाहिए । ओजस्वी होने के साथ-साथ राजा सर्वाधिक शक्तिमान हो ।
राजा का चौथा गुण बताया गया है कि वह कृतब्रह्मा अर्थात धन् ,अन्न , ज्ञान का संचय करने वाला हो । वेद सृष्टि का आदि संविधान है ,और यह केवल और केवल वेद ही कह सकता है कि राजा के अंदर ज्ञान का खजाना छिपा हो । ज्ञानी होने का अर्थ है कि राजा पाप से घोर घृणा करता हो । ऐसा ना हो कि वह बात – बात पर झूठ बोलता हो , (किसी रोगी को देखने के लिए जाए और बाहर आकर झूठ बोल दे कि रोगी ने मुझसे अमुक – अमुक बातें कहीं हैं ) भ्रष्टाचार करता हो, चोरी की प्रवृत्ति में संलिप्त हो या ऐसी प्रवृत्ति को बढ़ाने में सहायक हो इत्यादि । राज्य में व्यवस्था के लिए जिन पदार्थों की आवश्यकता होती है , उनका संग्रह करने वाला राजा होना ही चाहिए ।
राजा का पांचवां गुण बताया गया है कि वह वृद्धों की पूजा करने वाला हो। वृद्धों को जनसाधारण के द्वारा भी वह पूजित कराने वाला हो । राजा देश में पूरी व्यवस्था बनाए रखे और समाज में नैतिकता का अर्थात धर्म का शासन स्थापित करे । वृद्धों के प्रति सेवाभाव प्रत्येक बच्चे के मानस में बचपन में ही उतर जाए । ऐसी व्यवस्था से राष्ट्र समृद्ध और शांत बना रहता है ।
आज की यह व्यवस्था कि वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम बनाए जाएं – वेद की इस व्यवस्था के सर्वथा विपरीत है । वृद्धाश्रम बनाने की व्यवस्था रोग को और बढ़ा ही रही है , घटा नहीं रही है । जबकि वेद का संकेत है कि वृद्धों के प्रति स्वाभाविक श्रद्धाभाव प्रत्येक मनुष्य के हृदय में बचपन से ही डल जाना चाहिए । राजा ऐसी व्यवस्था को बनाने वाला हो । इस कर्म कार्य से राष्ट्र में उसका शासन अक्षुण्ण बना रहता है ।
राजा का छठा गुण बताया गया है कि वह समस्त शत्रु नगरों को नष्ट करने वाली सेना का रक्षक हो अर्थात विजयिनी सेना का अधिपति हो । यदि शत्रु राष्ट्र में जाकर ‘सर्जिकल स्ट्राइक ‘ भी करनी पड़े तो राजा इस से भी पीछे हटने वाला न हो । उसका पौरुष और उसका साहस राष्ट्र का पौरुष और साहस बनकर सब राष्ट्रवासियों का मार्गदर्शन करता रहे ।
ऋग्वेद 7 /34 /11 में भी कहा गया है कि राजा राष्ट्रों अर्थात राष्ट्रवासियों ,नदियों अर्थात गरजने वाली सेनाओं का रूप होता है । इसका अभिप्राय है कि राजा के रहते हुए राष्ट्र की सेनाएं इतनी अधिक आधुनिकतम हथियारों से सुसज्जित हों कि उनका सामना करने का साहस किसी भी शत्रु राष्ट्र का न हो । इसके लिए राजा सदा क्षात्रबल से युक्त हो । राजा एक प्रकार से समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधि होता है । अतः वह सब का रूप है। अथर्ववेद 4 / 22/ 2 में कहा गया है कि हमारा राजा सभी क्षत्रियों में श्रेष्ठ हो । उसी के संबंध में अथर्ववेद 4 / 22 /3 में फिर से कहा गया है कि यह राजा धनियों का धनी हो और प्रजाजनों का स्वामी हो । राजा धनेश्वर , ज्ञानी ,तेजस्वी ,ओजस्वी ,बली ,विविध सदगुण संपन्न होना चाहिए ।
हमारा वर्तमान संविधान राजा से तेजस्वी और ज्ञानी होने की अपेक्षा नहीं करता । यही कारण है कि वर्तमान संविधान के चलते हमारे देश में ऐसी व्यवस्था नहीं बन पाई जो इस देश को ज्ञानसंपन्न , बलसंपन्न और श्री संपन्न बना सकती । राजा के लिए यहां पर छूट है कि वह जब चाहे झूठ बोल सकता है , जब चाहे भ्रष्टाचार कर सकता है , जब चाहे अनैतिक कामों में संलिप्त हो सकता है । जहां पर इतनी छूट हो वहां पर अराजकता का वास होता है और इस लोकतंत्र में यही हो रहा है । अराजकता का यही स्वरूप यहां पर लोकतंत्र मान लिया गया । सबको जो चाहे सो करने की छूट है । मर्यादा स्थापित करने के लिए यदि यहाँ प्रयास किया जाता है तो लंबे कुर्ते वाले नेता ही अराजकता के संरक्षक बनकर बाहर निकल कर आ जाते हैं । कहते हैं कि यह लोकतंत्र है और इस लोकतंत्र में आप किसी को मांस खाने से नहीं रोक सकते , किसी को सड़क पर अवैध अतिक्रमण करने से नहीं रोक सकते , किसी को अपने घर के सामने की नाली को साफ करने के लिए नहीं कह सकते , किसी को राष्ट्रहित में सरकार का समर्थन करने के लिए नहीं कर सकते , सत्ता पक्ष को विपक्ष के प्रति विनम्र बनने के लिए नहीं कह सकते और विपक्ष को सत्ता पक्ष के साथ सहयोगी बनने के लिए नहीं कर सकते हैं । पता नहीं यह कैसा लोकतंत्र है ? वेद तो ऐसे लोकतंत्र समर्थक नहीं है ।
हम यह भी मान सकते हैं कि हमारा वर्तमान संविधान भी किसी बड़े नेता को बात – बात पर झूठ बोलने की अनुमति नहीं देता और ना ही लोकतंत्र में अड़ियल दृष्टिकोण अपनाकर संसद को बंधक बनाने की किसी गतिविधि का समर्थन करता है ,परंतु इस सब के उपरांत भी संविधान की सौगंध उठाकर काम करने वाले लोग ही संसद को बंधक बना रहे हैं ,और कदम कदम पर झूठ बोल कर देश को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं। सचमुच हम किधर जा रहे हैं ? – कुछ कहा नहीं जा सकता।
कांग्रेस के अध्यक्ष (राजा ) राहुल गांधी की बात करें तो राफेल सौदे को लेकर वह वर्तमान सरकार को जिस प्रकार बार बार घेर रहे हैं ,अब उससे देश की जनता का भी मन भर चुका है । गोवा के मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षा मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर के साथ उन्होंने अभी बैठक की । वास्तव में वह अस्वस्थ चल रहे श्री पर्रिकर का हाल-चाल पूछने के लिए गोआ स्थित उनके आवास पर गए थे । यह एक शिष्टाचार भेंट थी , जिसकी जितनी सराहना की जाए उतनी कम है , परंतु इस शिष्टाचार भेंट का दुखद पहलू यह रहा कि राहुल गांधी ने श्री पर्रिकर से भेंट करने के पश्चात बाहर आकर अपनी इस शिष्टाचार भेंट को भी अशिष्ट बना दिया । उन्होंने कह दिया कि मुझसे श्री पर्रिकर ने अपनी व्यक्तिगत बातचीत में यह स्वीकार किया कि उन्हें राफेल सौदे के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी । इस प्रकार के ओछे व्यवहार से अब राहुल गांधी की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगना आरंभ हो गया है । देश की राजनीति वर्तमान में जिस दौर से गुजर रही है वह राजनेताओं की विश्वसनीयता के संकट का सबसे गिरा हुआ दौर है । इसका कारण केवल यही है कि हमारे वर्तमान शासक या जनप्रतिनिधियों से वेद की शैली में ऐसी कोई अपेक्षा नहीं की गई है कि वह अपने नैतिक आचरण और निजी जीवन में कितने शुद्ध बुध्द और पवित्र आत्मा होंगे । ऐसे में श्री राहुल गांधी जैसे युवा नेता को कुछ नया करके दिखाना चाहिए था । अच्छा होता कि वह गिरी हुई राजनीति को ऊंचाई पर ले जाने के लिए संघर्ष करते और जमीनी लड़ाई लड़कर कांग्रेस को फिर उसी ऊर्जा से भरते जिसके लिए यह संगठन इसके इतिहास लेखकों की दृष्टि में जाना जाता रहा है । परंतु श्री गांधी ने ऐसा ना करके जिस रास्ते को स्वयं अपने लिए चुन लिया है वह रास्ता उनके लिए स्वयं के लिए भी आत्मघाती है । यदि ऐसे में जनता को वह एक बार बहकाने में सफल भी हो गए तो वह स्थाई सरकार नहीं दे पाएंगे ।बेहतर होता कि श्री गांधी राफेल सौदे पर कुछ नया अनोखा कहने के पहले कुछ सोच लेते या समझ लेते कि वह इस संबंध में पहले कितना कुछ कह चुके हैं ? – वह जो कुछ भी कहते हैं , उसका एक प्रबल खंडन दूसरे पक्ष की ओर से आ जाता है । जैसे उन्होंने पहले फ्रांस सरकार और राफेल बनाने वाली कंपनी के बारे में कुछ कहा तो फ्रांस सरकार की ओर से उनके दावों का खंडन किया गया । इसके पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे को सही बताया । अब समझ नहीं आता कि राहुल गांधी क्या अपने आप को सर्वोच्च न्यायालय से भी सर्वोच्च समझने लगे हैं या देश की राजनीति का बेड़ा गर्क करने का उन्होंने ठेका ले लिया है ? श्री गांधी जैसे नेताओं के कारण पहले से ही पथभ्रष्ट भारत की राजनीति और कितने पतन के गर्त में जाकर समाएगी ? – यह समझ नहीं आता ।
अब समय आ गया है जब देश के राजनीतिज्ञों को वैदिक राष्ट्रधर्म और वैदिक राष्ट्रनीति के मर्म को समझने के लिए उसका भी अध्ययन करना चाहिए । हमारे देश के पास एक से एक बढ़कर चाणक्य और एक से एक बढ़कर भी दूर हैं । एक से एक बढ़कर महाभारत जैसे राजनीति का सुंदर पाठ पढ़ाने वाले ग्रंथ है , एक से एक बढ़कर नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली रामायण और एक से एक युद्ध के मैदान में खड़े अर्जुन को सही राह दिखाने वाली गीता हैं । यहां पर धर्म का आदि श्रोत वेद है । वेद से जिस राष्ट्रधर्म का स्रोत प्रवाहित होता है , वही इस देश की और संपूर्ण मानवता की समस्याओं का एक मात्र समाधान कर सकता है । राहुल गांधी जैसे लोगों को सचमुच वेद पढ़ना चाहिए और उनके अनुसार अपना आचरण बनाकर राजनीति की पहली परीक्षा में सफल होना चाहिए । उन्हें समझना चाहिए की झूठ राजनीति को गंदला तालाब बनाता है और गंदले तालाब में पड़ी सारी मछलियां मर जाती हैं । जिससे महाप्रलय आ जाती है ।दायित्व बोध होना राजनीति की पहली सीढ़ी है ,इस ककहरे को श्री गांधी को समझना ही होगा ।