राष्ट्र के विकास की धरोहर हमारे पुस्तकालय 


डा. राधेश्याम द्विवेदी
वास्तव में मनुष्य के लिए ज्ञान अर्जन व बुद्धि के विकास के लिए पुस्तकों का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है । शास्त्रों में भी पुस्तकों के महत्व को सदैव वर्णित किया गया है । संस्कृत की एक सूक्ति के अनुसार –
“ काव्य शास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम् । व्यसनेन च मूर्खाणां, निद्रयाकलहेन वा ।।”
अर्थात् बुद्‌धिमान लोग अपना समय काव्य-शास्त्र अर्थात् पठन-पाठन में व्यतीत करते हैं वहीं मूर्ख लोगों का समय व्यसन, निद्रा अथवा कलह में बीतता है । वर्तमान में छपाई की कला में अभूतपूर्व विकास हुआ है । आधुनिक मशीनों के आविष्कार से पुस्तकों के मूल्यों में काफी कमी आई है तथा साथ ही साथ उनकी गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है । पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ विविध प्रकार के ज्ञान, सूचनाओं, स्रोतों, सेवाओं आदि का संग्रह रहता है। पुस्तकालय शब्द अंग्रेजी के लाइब्रेरी शब्द का हिंदी रूपांतर है। लाइबेरी शब्द की उत्पत्ति लेतिन शब्द ‘ लाइवर ‘ से हुई है, जिसका अर्थ है पुस्तक। पुस्तकालय का इतिहास लेखन प्रणाली पुस्तकों और दस्तावेज के स्वरूप को संरक्षित रखने की पद्धतियों और प्रणालियों से जुड़ा है।हिन्दी में पुस्तकालय शब्द ‘पुस्तक’ और ‘आलय’ दो शब्दों के योग से बना है । आलय का अर्थ है- घर । इस प्रकार पुस्तकालय शब्द का अर्थ हुआ- ‘पुस्तकों का घर’ अर्थात् वह घर जहाँ पुस्तकें रहती हैं । प्रकाशकों तथा पुस्तक-विक्रेताओं के घरों में भी पुस्तकें काफी संख्या में होती हैं, किंतु उन्हें हम पुस्तकालय नहीं कहते । उन्हीं घरों को हम पुस्तकालय कह सकते हैं, जहाँ पढ़ने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की पुस्तकों का संग्रह किया जाता है । पुस्तकालय तीन तरह के होते हैं- १. सरकारी, २. सरकारी सहायता प्राप्त और ३. व्यक्तिगत ।
गरीब और आम जनों के लिए पुस्तकें खरीदकर पढ़ना संभव नहीं हो पाता है । देश-देशांतर का भ्रमण करना तथा भिन्न-भिन्न देशों की नई-नई बातों को सीखना भी उनके लिए अत्यंत कठिन होता है । सर्वसाधारण के लिए ज्ञानोपार्जन का यदि कोई सबसे सरल और सुगम साधन है तो वह पुस्तकालय ही है । पुस्तकालय सभी के लिए उपयोगी होता है । अपनी-अपनी रुचि और प्रवृत्ति के अनुसार सभी वहाँ से पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं; सभी उससे लाभान्वित हो सकते हैं । विभिन्न विषयों के अनुसंधान करनेवाले शोधार्थियों को यदि पुस्तकालयों का सहारा न मिले तो वे अपने उद्‌देश्य में सफल नहीं हो सकते । नए-नए अनुसंधान, नए-नए आविष्कारों तथा नई-नई रचनाओं को उपलब्ध कराने का श्रेय पुस्तकालयों को ही जाता है । प्रत्येक नए ज्ञान का आधार पाचीन ज्ञान ही होता है । प्राचीन ज्ञान प्राचीन साहित्य में सुरक्षित होता है ।
किसी भी समाज अथवा राष्ट्र के उत्थान में पुस्तकालयों का अपना विशेष महत्व है। इनके माध्यम से निर्धन छात्र भी महँगी पुस्तकों में निहित ज्ञानार्जन कर सकते हैं। पुस्तकालय में एक ही विषय पर अनेक लेखकों व प्रकाशकों की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जो संदर्भ पुस्तकों के रूप में सभी के लिए उपयोगी होती हैं। कुछ प्रमुख पुस्तकालयों में विज्ञान व तकनीक अथवा अन्य विषयों की अनेक ऐसी दुर्लभ पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जिन्हें सहजता से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: हम पाते हैं कि पुस्तकालय ज्ञानार्जन का एक प्रमुख श्रोत है जहाँ श्रेष्ठ लेखकों के महान व्याख्यानों व कथानकों से परिपूर्ण पुस्तकें प्राप्त की जा सकती हैं। इसके अतिरिक्त समाज के सभी वर्गों- अध्यापक, विद्यार्थी, वकील, चिकित्सक आदि के लिए एक ही स्थान पर पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जो संपर्क बढ़ाने जैसी हमारी सामाजिक भावना की तृप्ति में भी सहायक बनती हैं। पुस्तकालयों में मनोरंजन संबंधी पुस्तकें भी उपलब्ध होती हैं। पुस्तकालयों का महत्व इस दृष्टि से और भी बढ़ जाता है कि पुस्तकें मनोरंजन के साथ ही साथ ज्ञानवर्धन में भी सहायक सिद्ध होती हैं। पुस्तकालयों में प्रसाद, तुलसी, शेक्सपियर, प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकारों, कवियों एवं अरस्तु, सुकरात जैसे महान दार्शनिकों और चाणक्य, मार्क्स जैसे महान राजनीतिज्ञों की लेखनी उपलब्ध होती है। इन लेखनियों में निहित ज्ञान एवं अनुभवों को आत्मसात् कर विद्यार्थी सफलताओं के नए आयाम स्थापित कर सकता है। अत: पुस्तकालय हमारे राष्ट्र के विकास की अनुपम धरोहर हैं। इनके विकास व विस्तार के लिए सरकार के साथ-साथ हम सभी नागरिकों का भी नैतिक कर्तव्य बनता है जिसके लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है।
पुस्तकालय विज्ञान के पाँच सूत्र :- प्रसिद्ध पुस्तकालयविज्ञानी डॉ शियाली रामामृत रंगनाथन द्वारा प्रस्तुत सिद्धान्त हैं। उन्होंने सन् १९२८ में पुस्तकालय विज्ञान के इन पाँच नियमों का प्रतिपादन किया था-
1. पुस्तकें उपयोग के लिए हैं।
2. प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक मिलनी चाहिए।
3. प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक मिलना चाहिए।
4. पाठक का समय बचाओ।
5. पुस्तकालय संवर्धनशील संस्था है।
पुस्तकालय का उपयोग करने वाले एसे विरले लोग होते हैं जो आम जनता और पाठकों के विचारों जिज्ञासाओं का ध्यान रखते हैं। कुछ एसे भी बड़े बड़े लोग होते हैं जो पुस्तके अपने कक्ष में रखना पसन्द तो करते हैं पर औरों के हकों का ध्यान नहीं देते हैं। वे पुस्तकों को अनावश्यक अपने पास रोककर पाठको ना केवल हक मारते हैं, अपितु हर पुस्तक का हक भी मारते हैं, जिसके अनुसार हर पुस्तक को उसका पाठक मिले। हमारे 30 साल के पुस्तकालय सेवा के अनुभव में एसे अनेक महान हस्तियों आयी हैं, जो पुस्तकों के जितने प्रेमी होते हैं, पुस्तकालय या आम पाठक के उतने बड़े दुश्मन भी होते हैं । फुरसत के क्षणों में लेख माला की एक श्रृंखला के माध्यम से एसे कुछ महानुभावों के इन दूषित मानसिकताओं और कृत्यों से आम जनता और मित्र मण्डली को अवगत कराना चाहुंगा। पुस्तकालय हमारे राष्ट्र के विकास की अनुपम धरोहर हैं । इनके विकास व विस्तार के लिए सरकार के साथ-साथ हम सभी नागरिकों का भी नैतिक कर्तव्य बनता है जिसके लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,031 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress