आरक्षण

 

मेरे गांव में एक दलित (चमार) है। लालजी राम उसका नाम है। उसकी पत्नी ने मेरी माँ की बहुत सेवा की थी। लालजी राम भी मेरे पिताजी के हर आदेश पर एक पैर पर खड़ा रहता था। वह लगभग रोज ही सवेरे मेरे घर आता था। आम के बगीचे की देखभाल उसी के जिम्मे थी। पिताजी तो अब नहीं रहे, लेकिन मेरे परिवार के सभी लोग उसे आज भी बहुत प्यार करते हैं। उसमें और उसकी पत्नी में एक ही बुरी आदत थी। वह यह कि दोनों अत्यधिक कच्ची शराब का सेवन करते थे। पसिया टोली मेरे घर के पास ही है जो आज भी नीतीश कुमार की शराबबंदी को ठेंगा दिखाते हुए देसी शराब का जिले में सबसे बड़ा केन्द्र बन चुका है। लालजी की पत्नी पाँच साल पहले कच्ची शराब के सेवन से इस लोक से चली गई। लालजी भी शराबियों के आपसी संघर्ष में एक बार बुरी तरह पिटा जिसके कारण रीढ़ की हड्डी में चोट आई, फलस्वरूप वह मुश्किल से चल-फिर सकता है, कोई काम नहीं कर सकता। वृद्धावस्था पेंशन और मेरे घर से प्राप्त आर्थिक सहायता ही उसका संबल है। उसके दो बच्चे हैं। बारी-बारी से दोनों उसे खिलाते हैं। बड़े बेटे वीरेन्द्र का पढ़ने में मन नहीं लगा। किसी तरह कक्षा आठ तक पढ़ा। उसके बाद वह जयपुर चला गया जहां मेरे गांव के अधिकांश युवक दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करते हैं। छोटा बेटा प्रदीप पढ़ने में कुछ अच्छा था। उसे हमलोगों ने प्रोत्साहित किया, रुपए-पैसे, किताब-कापी की व्यस्था की। येन केन प्रकारेण उसने बी.ए. पास कर लिया। मुझे उम्मीद थी कि दलितों के आरक्षण कोटे के तहत उसे नौकरी मिल जाएगी। लेकिन वहां हर एक पद के लिए उसकी प्रतियोगिता दलित समाज के क्रीमी लेयर के उन लड़कों से थी जिनके पिता आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी पाने के बाद शहरों में बस गए थे। प्रदीप ने कई प्रयास किए लेकिन हर बार असफलता ही मिली। इस बीच उसकी शादी भी हो गई। अत्यधिक तनाव और आर्थिक तंगी के कारण उसके पेट में दर्द रहने लगा। डाक्टरों ने बताया कि उसके पेट में ट्यूमर है। सबने उसे टाटा मेमोरियल हास्पीटल, मुंबई जाने की सलाह दी। लेकिन वहां जाकर इलाज़ कराना उसके वश में नहीं था। गांव के ही कुछ युवक पिछली गर्मियों में घर आए थे। वे उसे लेकर जयपुर गए। वहां सवाई माधो सिंह अस्पताल में उसका इलाज हुआ। आपरेशन करके ट्यूमर बाहर निकाल दिया गया। गांव के जो युवक जयपुर में रह रहे थे, उन्होंने ही चन्दा लगाकर उसका इलाज कराया। इलाज में डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए। जातीय भावना से ऊपर उठकर युवकों ने उसका इलाज़ कराया। अभी होली में प्रदीप से मेरी मुलाकात हुई थी। अब वह ठीक है। वह सरकारी नौकरी पाने की उम्र पार कर चुका है। एक कंपनी के घरेलू उत्पाद घूम-घूमकर बेचकर वह अपनी आजीविका चला रहा है।

बिहार के पिछले विधान सभा के चुनाव में लालू-नीतीश गठबन्धन को प्रचंड बहुमत मिला था। मैं जब भी घर जाता हूं, लालजी मुझसे मिलने अवश्य आता है। मैं जबतक रहता हूं, उसे खैनी खाने के लिए प्रतिदिन बीस रुपए देता हूं। मेरे चचेरे बड़े भाई स्थानीय राजनीति में सक्रिय रहते हैं। वे भाजपा के मंडल अध्यक्ष हैं। विधान सभा चुनाव के बाद मैं घर गया था। मैंने लालजी से पूछा – “चुनाव में तुमने किसे वोट दिया था?” उसने भैया को न बताने के आश्वासन के बाद बताया — “ मैं सबसे झूठ बोल सकता हूं, लेकिन आपसे नहीं। आप मनोज भैया को मत बताइयेगा। उन्होंने मुझसे कमल पर वोट डालने के लिए कहा था, लेकिन मैंने तीर (नीतीश) को वोट दिया।” मैंने फिर प्रश्न किया — “तीर में तुम्हें क्या अच्छाई दिखाई पड़ी?” “ बबुआ आप समझते नहीं। लालू भैया ने मीटिंग में कहा था कि कमल वाले पावर में आने पर दलितों का आरक्षण खत्म कर देंगे।” उसने तपाक से उत्तर दिया। मैंने उससे पूछा कि आरक्षण से तुम्हें कभी कोई फायदा हुआ है? तुम्हारा बी.ए. पास बेटा दर-दर की ठोकरें खाता रहा, लेकिन उसे चपरासी की भी नौकरी नहीं मिली। इसके बाद भी तुमने लालू की बातों पर विश्वास कर लिया। उसने कहा कि जाने दीजिए; बिरादरी के किसी न किसी को फायदा तो मिलता ही होगा।

मैं उसकी त्याग-भावना के आगे नतमस्तक था। मैं घर जाता हूं तो वह पहले की तरह ही आने का समाचार पाकर मिलने के लिए आता है और खैनी का पैसा लेता है। उसका बेटा प्रदीप सायकिल से अब भी घूम-घूमकर घरेलू उत्पाद बेचता है। प्रदीप की पत्नी मेरे ही घर में झाड़ू-पोंछा करती है। लालजी का परिवार साठ साल पहले जैसा था, आज भी वैसा ही है। उसे आरक्षण की आजतक कोई सुविधा नहीं मिली लेकिन वह आरक्षण नीति में किसी तरह के बदलाव का प्रबल विरोधी है।

13 COMMENTS

  1. देश की उन्नति आरक्षित होनी चाहिए. उन्नति को केंद्र में रखकर आरक्षण का ढाँचा भी सुनिश्चित किया जाए. हर कोई को ऊंचा उठाना है, पर देश का घाटा भी नहीं होना चाहिए. उन्नति सध रही है; उस उन्नति की बालटी को उठाने में आरक्षण सहित सहायता कैसे की जा सकती है? इस बिन्दू पर देश हित को सामने रखकर चिन्तन चाहिए.
    बालटी में अपना पैर गाडकर उन्नति नहीं हो सकती. देश की उन्नति ही अंततोगत्वा आरक्षित समाज के भी हित में ही होंगी. जब कूँए में पानी नहीं होगा, तो आपकी गागर भी खाली रहेगी.
    ** संघर्ष से वैर भाव बढता है, अलगाव बढता है.** जिस भेदभाव को खतम करने निकले थे, वही विफल हो रहा है.और वैर बढ रहा है. ये तो औषधि ही रोग बढा रही है. देश के हितचिन्तक विचार करें.

  2. साहस हो, तो पढिए:
    मूल मराठी टिप्पणी भी बिना छेडछाड प्रस्तुत है. (हिन्दी अनुवाद साथ है)
    आरक्षित भारतीय बंधु की लिखित टिप्पणी ही आप की आँखें खोल देगी.

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    आरक्षण का अनचाहा पहलू: एक विचार-प्रवर्तक टिप्पणी

    Posted On February 16, 2017 & filed under महत्वपूर्ण लेख, समाज.

    डॉ. मधुसूदन (एक) सारांश: अपनी टिप्पणी में, पिछडे समाज का,एक टिप्पणीकार अपना अनुभव बताता है; ==> ***आरक्षण के कारण समाजपर होनेवाले मानसिक दुष्परिणाम*** ***सभी से बुरा है, आरक्षित समाज में, हीन ग्रंथि का उदय*** ***और समग्र देश में फैलती परस्पर अलगाव की भावना*** अंत में टिप्पणीकार अपना निश्चय व्यक्त करता है: ***इस लिए, आरक्षण की… Read more »

  3. आरक्षण को लेकर श्री विपिन किशोर सिन्हा जी का व्यक्तिगत अनुभव लगभग पिछले सत्तर वर्षों में कल के नेताओं व उनके शासकीय व्यवस्था में मध्यमता एवं अयोग्यता का जीता जागता उदाहरण है| कालांतर मध्यमता और अयोग्यता के नए स्वरूप भ्रष्टाचार व अराजकता के बीच आधुनिक व मूलभूत उपलब्धियों से अभाव-ग्रस्त भारतीय समाज में विकारों से कोई अछूता नहीं रह पाया होगा और ऐसे वातावरण में श्री गिरधारी लाल जी जैसे पथभ्रष्ट लोगों द्वारा उन विकारों का निरंतर वर्णन अथवा उनके दोहराए जाने पर न केवल उनका अनुत्पादक सिद्ध होना ही नहीं (श्री संदीप उपाध्याय जी की टिप्पणी) बल्कि राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा अब तक उन विकारों पर राजनीति करते स्थिति को ज्यों की त्यों (लेख के साथ प्रस्तुत व्यंग्यात्मक चित्र) बनाए रखने की भयंकर शंका बनी रही है| ऐसे में कोई पथभ्रष्ट पागलों को डॉक्टर मधुसूदन जी की औषधि कैसे पिलाए? औषधि को ही वह थूक देता है!

    • इस औषधि से पहले अपना इलाज कर लीजिए फिर बाकी लोगों का इलाज करने की सोचिएगा । पथभ्रष्ट तो वे लोग लोग हैं जिन्होंने उच्च वर्ग होने की अफीम खा ली है और इस नशे में उन पर कोई दवा असर नहीं कर रही है। अच्छा होता कि जो दवा आप दूसरों को पिला रहे हैं उसका आप स्वयं सेवन कर आरोग्यता प्राप्त करें ताकि आपके विचारों में सभी के प्रति समता का भाव पैदा हो।

      • क्षमा कीजिए श्रीमान गिरधारी लाल जी, संदीप जी का पागलपन ठीक करते आप भटक अथवा पथभ्रष्ट हो गए हैं और ऊंच-नीच की हठधर्मी में क्रुद्ध आपसे फिर चूक हो गई है| उनकी मार्च १७, २०१८ की टिप्पणी श्री विपिन किशोर सिन्हा जी और उनके लेख को संबोधित करती है| सामाजिक उच्च और निम्न वर्ग नहीं बल्कि अमीर और गरीब नागरिकों के आचरण में स्वाभिमान, आत्मविश्वास, सद्भावना, परानुभूति, व देशप्रेम द्वारा सामंजस्य हेतु निष्पक्ष व करुणामय न्याय व विधि व्यवस्था की मांग होनी चाहिए| जब देश का दो तिहाई जनसमूह (75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम २०१३ के अंतर्गत रियायती खाद्य पदार्थ पाने को बाध्य है तो आज ऐसी स्थिति में उसी बड़े गरीब और लाचार वर्ग में सम्मिलित कुल जनसंख्या के २४.४% अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नागरिकों के लिए किसी प्रकार का आरक्षण केवल पक्षपाती ही नहीं, भारतीयों के अतिआवश्यक संगठन में पारस्परिक सामंजस्य को क्षति पहुंचाता है|

  4. (१)
    आरक्षण का चिर-स्थायी आर्थिक लाभ लेनेवाला व्यक्ति हीनता ग्रंथि से मुक्त शायद ही हो सकता है. सदा के लिए आर्थिक सहायता भी भीख के बराबर ही मानता हूँ. दो तीन आलेख डाल चुका हूँ.(मेरे नाम पर खोज लीजिए.) आप भीख तो नहीं चाहते; और हक आपको योग्यता से ही मिलेगा. भीख लेनेवाले के हाथ हमेशा नीचे ही होते हैं. हीनता ग्रंथिका यही कारण होता है.
    (२)
    अस्थायी सहायता ठीक है. पर परमनंट सहायता बहुत बार , अकर्मण्यता प्रोत्साहक मानता हूँ.
    (३)
    मैं सारे राष्ट्रीय समाज का हितैषी हूँ. परमनंट आरक्षण मेरे भारत के कल्याण का रास्ता नहीं मानता. मैं मेरे समाज में भेद भाव भी नहीं करता. सारा समाज अपना मानता हूँ.
    देश के विकास को बाधित करने का घोर अपराध मैं नहीं करुँगा.
    एक ऐतिहासिक उदाहरण सोच के लिए प्रस्तुत:
    (क)
    मुस्लिमों को कम से कम ७००-८०० वर्षों का शासकीय आरक्षण ही नहीं उन्हीका राज था.
    (ख)
    अंग्रेज़ों के शासन के समय भी हिन्दू की अपेक्षा प्राथमिकता का ही इतिहास है.
    (ग)
    यु पी ए ने भी मुस्लिमों के पक्ष में झुकता ही तोला है.
    तो मुस्लिम क्यों आगे नहीं बढ पाए ? सोचिए. चिन्तन के लिए बिन्दू है.
    ——————————————————————————————————-
    डॉ. अम्बेडकर और महामहिम श्री. रामनाथ कोविंद अपनी योग्यता के बलपर आगे बढे थे/हैं. चिरस्थायी आरक्षण से नहीं.
    ——————————————————————————————–
    आप को चिन्तन का अनुरोध है.
    समाज के स्थायी हित दृष्टि से यह सोच है.
    **इसपर भी यदि आप सहमत नहीं हो. तो आपकॊ अपना मत अपने पास रखने की पूरी स्वतंत्रता, मुझे मान्य है.**

    • मान्यवर आरक्षण एक अधिकार है । सामाजिक न्याय स्थापित करने की एक विधा है । देश के शासन और प्रशासन की प्रक्रिया में दलितों एवं वंचित का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की एक संवैधानिक व्यवस्था है । जब तक सामाजिक न्याय की अवधारणा मूर्त रूप में परिलक्षित नहीं हो जाती है तब तक इसे लागू बनाए रखना वंचितों के हित में होगा। आरक्षण को हम दूसरे शब्दों में प्रतिनिधित्व भी कह सकते हैं । यह कोई खैरात नहीं है । यह अधिकार है । आरक्षण के कारण दलितों व पिछड़ों में हीन भावना देखने की प्रवृत्ति को दृष्टि दोष ही कहा जाएगा ।अभिजात्य वर्ग अपने ढंग से अपने हक में सोच रहा है और दलित और पिछड़ा वर्ग अपने हक में सोच रहा है । यह सोच का अंतर है। आज देश को तथाकथित प्रतिभाएं ही विभिन्न क्षेत्रों में अपना नेतृत्व प्रदान कर रही हैं और उन्हीं के नेतृत्व में देश प्रगति की तरफ कम ; अधोगति की तरफ ज्यादा गया है। क्या है यह सब अधोगति आरक्षित वर्ग के लोगों के प्रतिनिधित्व के कारण हुई है ? क्या आरक्षित वर्ग के लोग कम प्रतिभा संपन्न होते हैं ? यह प्रश्न विचारणीय है।

      • आंशिक सहमति:====>(१) आप ने अंत में कहा. ==>*क्या आरक्षित वर्ग के लोग कम प्रतिभा संपन्न होते हैं ? यह प्रश्न विचारणीय है।* <===
        अवश्य यह प्रश्न ही विचारणीय है. आपने इस प्रश्न पर जो चिन्तन या विचार किया हो, उसपर उत्तर दीजिए. या आलेख डालिए. जिससे खुलकर चर्चा हो सके. मेरे २ ही प्रश्न हैं.
        —————————————–
        प्रश्न:(१) अगर आरक्षित वर्ग के लोग प्रतिभासम्पन्न हैं, तो फिर आरक्षण की क्या आवश्यकता?
        प्रश्न:(२) अगर आरक्षित वर्ग, प्रतिभासम्पन्न नहीं है, तो आरक्षण कब तक होना चाहिए?
        ——————————————
        बिन्दुऒं पर टिक कर उत्तर दीजिए. विषय को फैलाकर खो न दे. मुझे विरोधक न माने.
        संवाद चाहता हूँ, विवाद नहीं. हार जीत के लिए मात्र विषय कॊ आप रखेंगे–तो आगे बढनेका कोई अर्थ नहीं होगा. तो उत्तर नहीं दूँगा. बुरा न माने.
        प्रोफ़ेसर मधुसूदन (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसॅच्युसेट्स)

  5. Ekdum ummda !!
    sashwat satya hai ye, ek bar press conference me Maine ek RPI group ke neta se puchha tha karib 13 sal pahle ki apko nahi lagta ki arakshan ka phayda us jati ke jaruratmando ko kam hi milta hai, banispat krimi layer hai unko jyad milta hai jo us jati se blong karte hai, usko bad puchha tha ki apko nahi lagta ki garib har tabke me hai, isliye arakshan usi ko milna chahiye jo garib ho phir wo chahe kisi bhi jati se kyo na ata ho, taki sab samajhe ki mere sath sarkar koi bhed-bhaw nahi kar rahi hai. Maine kai uchi jati ke logo ko dekha hai, jo gaon chhod ke kisi shahar me riksha chalate hai, Tabiyat kharab rahata hai phir bhi dawai kha ke riksha chalate hai taki unke bachho ka bharan-poshan ho sake, lekin unko koi sarkari sahayata nhi milti kyoki wo agadi jati se ate hai. Isper neta ji chup ho gaye, bad me press conference ke bad kahne lage dekhiye positive story banaiyega.

    Is desh me kuchh jwalant mudde hai jaise; Arakshan, dhar 370, Ayodhya ram mandir, Population, Isi desh me rah kar muslim is desh ka kanoon manne ko taiyar nahi jiske liye population aur ek se jyada shadi jaisi shamashya hai. Jisko koi rajnitik party chhedna nahi chahti.

    Ane wale dino me desh ke liye sabse ghatak hoga !!

    • संदीप उपाध्याय जी, क्षमा करना मैंने आपकी अंग्रेजी में लिप्यंतरित टिप्पणी को पुनः देवनागरी लिपि में प्रस्तुत करने का दुस्साहस किया है| मेरे विचार में हिंदी अथवा किसी अन्य प्रांतीय भाषा का रोमन लिप्यान्तरण न केवल उस भाषा का निरादर है बल्कि उसकी आत्मा, लिपि, को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचती है|

      “एकदम उम्दा!!
      शाश्वत सत्य है ये, एक बार प्रेस कांफ्रेंस में मैंने एक आरपीआई ग्रुप के नेता से पूछा था करीब १३ साल
      पहले कि आपको नहीं लगता कि आरक्षण का फायदा उस जाति के जरुरतमंदो को कम ही मिलता है, बनिस्पत
      करीमी लेयर है उनको ज्यादा मिलता है जो उस जाति से ब्लोंग करते हैं, उसको बाद पूछा था कि आपको नहीं लगता कि
      गरीब हर तबके में है, इसलिए आरक्षण उसी को मिलना चाहिए जो गरीब हो फिर वो चाहे किसी भी जाति से क्यों
      न आता हो, ताकि सब समझें कि मेरे साथ सरकार कोई भेद-भाव नहीं कर रही है| मैंने कई ऊंची जाति के
      लोगों को देखा है, जो गाँव छोड़ के किसी शहर में रिक्शा चलाते हैं, तबियत ख़राब रहता है फिर भी
      दवाई खा के रिक्शा चलाते हैं ताकि उनके बच्चों का भरण-पोषण हो सके, लेकिन उनको कोई सरकारी
      सहायता नहीं मिलती क्योंकि वो अगाड़ी जाति से आते हैं| इसपर नेता जी चुप हो गए, बाद में प्रेस कांफ्रेंस के
      बाद कहने लगे देखिये पॉजिटिव स्टोरी बनाइएगा|

      इस देश में कुछ जवलंत मुद्दे हैं जैसे; आरक्षण, धारा ३७०, अयोध्या राम मंदिर, पापुलेशन, आईएसआई
      देश में रह कर मुस्लिम इस देश का कानून मानने को तैयार नहीं जिसके लिए पापुलेशन और एक से ज्यादा
      शादी जैसी समस्या है| जिसको कोई राजनीतिक पार्टी छेड़ना नहीं चाहतीं|

      आने वाले दिनों में देश के लिए सबसे घटक होगा!!”

  6. पागलों को औषधि कैसे पिलाओगे? औषधि को ही थूक देता है. विपिन जी, आरक्षण एक अकर्मण्य और अनपढ समाज को परिपुष्ट कर रहा है. आषाढ चूक न जाए. पर जो भी हो, सत्य कथा लगती है. बहुत बहुत धन्यवाद.
    अकर्मण्येवाधिकारस्ते –पर–सर्व फलेषु सदाचन॥ अकर्मण्य रहने का अधिकार हमारा है, पर फल सदा मिलतो रहे!

    • डॉक्टर मधुमधुसूदन जी की दवा काफ़ी असरदार रही । संदीप जी का पागलपन एकदम ठीक हो गया । उन्होंने अपने तरीक़े से मधुसूदन जी जैसे विचारानुरूप लोगों के लिए उनका मनपसंद ज़ायक़ेदार कथन छाप दिया और मधुसूदन जी गदगद हो गए।किंतु विद्वान मधुसूदन जी ने यह नहीं बताया कि आरक्षण एक अकर्मण्य और अनपढ़ समाज किस प्रकार परिपुष्ट कर रहा है? विपिन सिन्हा जी ने अपने गाँव की एक रोचक कहानी गढ़ कर आरक्षण के औचित्य को नकारने की चेष्टा की है । तो आप जैस लोगों को यह भी जान लेना चाहिए कि आरक्षण की परिधि में आने वाले पदों पर वैसी ही प्रतियोगिता होती है जैसे अन्य श्रेणी के लिए आरक्षित पदों पर । हो सकता है कि प्रदीप ने बी.ए. किया हो और आरक्षित पदों पर अभ्यर्थन भी किया हो और अभ्यर्थित पदों की परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु निर्धारित न्यूनतम अंक प्राप्त न किया हो और नौकरी प्राप्त करने से रह गया हो तथा मेरिट में उससे ऊपर के अभ्यर्थियों को नौकरी मिल गई हो। ऐसी स्थिति में व्यवस्था में कमी किस द्रष्टि से दिखती है ?आरक्षित पदों पर भी वही लोग रखे जाते हैं जो उस पद के लिए योग्यता निर्धारित होती है – तो दोष आरक्षण विरोधी द्रष्टि में है या आरक्षण व्यवस्था में । ऐसा लगता है कि आज कल कुछ नाकाम लोगों का आरक्षण के विरुद्ध अनर्गल बातें लिखना एक पेशा व फ़ैशन जैसा बन गया है । मानसिकरूप से दिवालिया लोगों ने यह कभी नहीं सोंचा कि जन्मजात आरक्षण (वर्ण व्यवस्था व जाति व्यवस्था) के आधार पर हज़ारों वर्षों से दलित वर्ग की प्रतिभा को आगे बढ़ने से रोक कर रखा गया है।अब अगर आरक्षण व्यवस्था के माध्यम से कुछ दलित अपनी योग्यता के आधार पर आगे बढ़ रहे हैं तो सामंतवादी सोंच के लोगों को दलितों का उनकी बराबरी पर खड़ा होना अच्छा नहीं लगता और अपना सामंतवादी क़िला बचाए रखने के लिए आरक्षण विरोधी बकवास लिखते पढ़ते रहते हैं जो कि निंदनीय है।

      • (१)
        आरक्षण का चिर-स्थायी आर्थिक लाभ लेनेवाला व्यक्ति हीनता ग्रंथि से मुक्त शायद ही हो सकता है. सदा के लिए आर्थिक सहायता भी भीख के बराबर ही मानता हूँ. दो तीन आलेख डाल चुका हूँ.(मेरे नाम पर खोज लीजिए.) आप भीख तो नहीं चाहते; और हक आपको योग्यता से ही मिलेगा. भीख लेनेवाले के हाथ हमेशा नीचे ही होते हैं. हीनता ग्रंथिका यही कारण होता है.
        (२)
        अस्थायी सहायता ठीक है. पर परमनंट सहायता बहुत बार , अकर्मण्यता प्रोत्साहक मानता हूँ.
        (३)
        मैं सारे राष्ट्रीय समाज का हितैषी हूँ. परमनंट आरक्षण मेरे भारत के कल्याण का रास्ता नहीं मानता. मैं मेरे समाज में भेद भाव भी नहीं करता. सारा समाज अपना मानता हूँ.
        देश के विकास को बाधित करने का घोर अपराध मैं नहीं करुँगा.
        एक ऐतिहासिक उदाहरण सोच के लिए प्रस्तुत:
        (क)
        मुस्लिमों को कम से कम ७००-८०० वर्षों का शासकीय आरक्षण ही नहीं उन्हीका राज था.
        (ख)
        अंग्रेज़ों के शासन के समय भी हिन्दू की अपेक्षा प्राथमिकता का ही इतिहास है.
        (ग)
        यु पी ए ने भी मुस्लिमों के पक्ष में झुकता ही तोला है.
        तो मुस्लिम क्यों आगे नहीं बढ पाए ? सोचिए. चिन्तन के लिए बिन्दू है.
        ——————————————————————————————————-
        डॉ. अम्बेडकर और महामहिम श्री. रामनाथ कोविंद अपनी योग्यता के बलपर आगे बढे थे/हैं. चिरस्थायी आरक्षण से नहीं.
        ——————————————————————————————–
        आप को चिन्तन का अनुरोध है.
        समाज के स्थायी हित दृष्टि से यह सोच है.
        **इसपर भी यदि आप सहमत नहीं हो. तो आपकॊ अपना मत अपने पास रखने की पूरी स्वतंत्रता, मुझे मान्य है.**

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