महिला सम्मान की परिभाषा…समझिए?
संविधान एवं सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाली पार्टी के कुछ विधायकों की मानसिकता आये दिन उजागर होती रहती है जिसके कारण सरकार की फजीहत होने की दशा आ जाती है। परंतु यह मानसिक रूपी बीमार लाल बत्ती के मरीज एवं सत्ता की ठसक के अंहकार में डुबे हुए नेता है जिनको कुछ भी दिखाई अथवा सुनाई नहीं देता है।
जबकि भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी बार बार अपने मंत्रियों एवं संत्रियों को हिदायत देते रहते हैं कि शांत रहना एवं शब्दों की मर्यादा बनाये रखना तथा न्याय पूर्ण तरीके से कार्य करना एवं अपशब्दों के प्रयोग से बहुत ही दूर रहने की लगातार हिदायत देते रहते हैं परंतु कुछ ऐसे महानुभाव हैं जो कि ऐसे प्रयोग से कदापि दूर रहना नहीं चाहते। क्योकि उनका कद शायद प्रधानमन्त्री से भी ज्यादा बड़ा है|
आज जनता एवं विधायक तथा सांसद एवं मंत्री की बीच की बढ़ती हुई दूरी को समाप्त करना एवं समान्य जनता एवं विशेष व्यक्ति के मध्य खुदी हुई गहरी खाई को प्रधानमंत्री जी लगातार पाटने का प्रयास करते हुए दिखाई दे रहे हैं, जिसका प्रमाण गाड़ियों के ऊपर से लाल बत्ती को हटाने का प्रस्ताव इस बात की पुष्टी करता है कि सत्ता के शीर्ष पर विराजमान व्यक्ति इस गहरी खुदी हुई खाई को पाटने के लिए जी जान से लगा हुआ है।
परंतु कुछ लाल बत्ती के मानसिक बीमार सत्ता की ठसक एवं हनक को लगातार बनाये रखने की जुगत में लगे हुए हैं, सम्भवत इसीलिए शीर्ष नेता के द्वारा दिये गए आदेश एवं सुझावों को मुंह चिढ़ाते हुए नजर आते रहते हैं, गाड़ी से लाल बत्ती उतारने का आदेश तो आ गया परंतु मस्तिष्क के ऊपर ठुकी हुई अहंकारी नेताओं की लाल बत्ती उतरने का नाम नहीं ले रही है । संभवत: इसीलिए लगातार कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ते हुए इन अहंकारी एवं मानसिक समस्याओं से ग्रस्त नेताओं के द्वारा गाहे बेगाहे कहीं न कहीं इनके कार्यों से इनकी मानसिकता उजागर हो जाती है, जो कि स्पष्ट रूप से जनता के बीच गहरी खाई को बढ़ते हुए दिखाई देती है।
कानून व्यवस्था, अपराध एवं महिला सम्मान को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ने वाली पार्टी के टिकट पर जीते हुए प्रत्याशी क्या अब स्वयं उसी मुद्दे से भटक रहे हैं अथवा महिला सम्मान एवं कानून व्यवस्था की उन व्यक्तियों के द्वारा सही परिभाषा यही है इसे गंभीरता से सोचने, समझने एवं गहनता से मंथन करने की अतिशीघ्र अवश्यकता है क्योंकि इसकी वास्तविकता को समझना अत्यंत आवश्यक है।
यह बड़ा प्रश्न है कि क्योंकि उत्तर प्रदेश की धरती पर पिछली सरकार के ऊपर गंभीर आरोप महिला उत्पीड़न एवं जंगल राज एवं थानों में सत्ता धारी पार्टी के द्वारा दबाव बनाने का आरोप लगा था। तो क्या आज के समय में विधायक के द्वारा किये जा रहे ऐसे कार्य न्यायपूर्ण एवं सराहनीय हैं, अथवा क्या ऐसा कार्य सही एवं न्यायसंगत है क्योंकि अब विधायक साहब एक साथ सभी प्रश्नों की परिभाषा अपने अनुसार गढ़ते हुए सम्पूर्ण रूप से जनता के सामने दिखाई देते हैं।
थानों पर दबाव बनाने का आरोप तो पिछली सरकार पर लगाया गया परंतु विधायक जी सीधे चार कदम तेजी से बढ़ाकर और आगे उछाल मारते हुए स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि पिछली सरकार के कार्यकर्ताओं पर तो थानों पर दबाव बनाने का आरोप था परंतु विधायक जी तो सीधे-सीधे एक (आई.पी.एस.) अधिकारी को धमकाते हुए नजर आते हैं तो क्या मान लिया जाए कि न्याय एवं संविधान तथा कानून व्यवस्था की सही एवं न्यायसंगत परिभाषा यही है| शायद इसी को न्याय व्यवस्था कहते हैं, इसी को कानून का राज कहते हैं, तथा महिलाओं के सम्मान को मुद्दा बनाकर जीते हुए प्रत्याशी जो आज विधायक की भूमिका में हैं तो उनके द्वारा किया गया एक महिला अधिकारी का सम्मान यह सही एवं न्याय पूर्ण है क्योंकि इस परिभाषा को समझना पड़ेगा, कि महिलाओं के सम्मान हेतु बड़ी-बड़ी बात करने वाले विधायक के द्वारा एक महिला अधिकारी के प्रति किया गया व्यवहार वास्तविक रूप से महिला सम्मान के आंदोलन की सम्पूर्ण रूप से पोल खोलाता है|
क्योंकि यह कार्य स्वयं महिला सम्मान के रक्षक विधायक जी के द्वारा एक महिला अधिकारी के प्रति किया गया है तो इससे स्पष्ट रूप से साफ हो जाता है कि जब एक महिला (आई.पी.एस.) अधिकारी को एक विधायक के अहंकार का सामना करना पड़ता है तो प्रदेश की साधरण जानता एवं आम जन-मानस का क्या हाल होगा।
ज्ञात हो कि शराब बंदी के विरोध में कुछ महिलाओं ने प्रदर्शन करते हुए यातायात बाधित कर दिया था| जिसका शिकार मार्ग पर चलने वाली आम जनता हो रही थी, इसलिए महिला पुलिस अधिकारी ने बाधित यातायात को चालू करने का प्रयास किया, क्योकि सड़क पर चलरहे यात्रियों का क्या कसूर था कि वह सड़क पर शराब विरोधी आन्दोलन का शिकार बनें|
ध्यान रहे की मौत तथा जिंदगी के बीच जूझ रहे मरीजों को भी एम्बूलेंस अथवा अपने निजी साधन से सड़कों के माध्यम से ही चिकित्सालय तक कि यात्रा पूरी करनी पड़ती है, सड़कों पर जब कभी भी आन्दोलन होता है तो स्वस्थ व्यक्ति एवं मरीज दोनों प्रकार के व्यक्ति इस आन्दोलन का शिकार बनते हैं, वास्तव में जिनका कोई गुनाह नहीं होता| ऐसी स्थिति कमों बेस प्रत्येक देश एवं प्रत्येक स्थान पर कुछ अंतराल के बाद देखने को मिल जाती है| क्या यह स्थिति अथवा या तरीका सही है, जबकि आबादी इतनी अधिक हो गई है कि, किसी भी सड़क के यातायात को यदि पांच मिनट के लिए रोक दिया जाए तो सड़कों पर फंसे हुए यात्रियों का दम घुटने लगता है| क्योकि प्रदूषण की स्थिति जग जाहिर है, सांस लेना अत्यंत कठिन हो जाता है, जब एक स्वस्थ व्यक्ति का दम घुटने लगता है तो एक बीमार एवं मरीज का क्या हाल होगा?…यह कल्पना एवं चिंता का विषय है, इसपर गहन विचार करने कि आवश्यकता है, सम्पूर्ण मानव समाज को गहनता से इसपर मंथन करना पडेगा|
क्योकि सडकों पर चक्का जाम कि स्थिति यदि ऐसी ही बनी रही तो वह दिन दूर नहीं कि लोगों का दम सड़कों पर आन्दोलन कारियों कि भेंट चढ़ता हुआ दिखाई देगा| यदि समय रहते इसकी चिंता नहीं कि गई तो इसके घातक परिणाम होंगे| क्योकि दिन दूना और रात चौगुना बढ़ती हुई आबादी, इस बात को दर्शाती है|
चक्का जाम की स्थिति यदि यही बनी रही तो सड़को पर एक दिन हम भी फंसेगे, चक्का जाम करने वाले व्यक्तियों को शालीनता से इसपर विचार करना चाहिए, यह हमारे साथ भी हो सकता है, इसलिए कि सड़को पर चलने वाले यात्री हममें से ही होते हैं, जोकि अपने जरूरी कार्यों को कारण आवास को छोड़ सड़कों पर यात्रा कर रहे होते हैं, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए, इससे प्रत्येक व्यक्ति का नुकसान है, इसलिए इसपर विचार करने कि आवश्यकता है|
साथ ही समाज में फैली हुई बुराई को रोकना भी हमार कर्तव्य है, क्योकि हम ही उसके शिकार होते हैं, बुराई को रोकने के लिए तो बुराई का विरोध निश्चित करना ही पड़ेगा, तथा बुराई का विरोध भी करना चाहिए, यह हमारी जिम्मेदारी है, जिससे समाज के दूषित वातावरण को बचाया जा सके, यह भी सत्य है कि बिना विरोध किए समाज से बुराई का पतन हो ही नहीं सकता, ऐसे स्थिति में विरोध तो करना ही पडेगा, यह अति आवश्यक है|
परन्तु इस तरह से सड़कों पर विरोध दर्ज करना किसी भी तरीके से सही नहीं है, इससे आम जन-मानस प्रभावित होता है, इस चक्का जाम से शराब के कारोबारी को तकलीफ नहीं होती, शराब का कारोबारी अपने महल में आराम से करवटें बदलते हुए अंगड़ाई लेता रहता है, और बेचारी गरीब जाना सड़को पर आन्दोलन का शिकार बनती है|
तो इसको बड़ी गंभीरता से समझने की आवश्यकता है, आम जन-मानस को अपना शिकार बनाना ठीक नहीं है, कल हम भी इसी स्थान पर होंगें जब दूसरे लोग आन्दोलन कर रहे होंगें और हम उस आन्दोलन का शिकार बनते हुए नजर आएगें, तो समय रहते हुए इसपर विचार करने की आवश्यकता है|
विरोध दर्ज करने के लिए नया रास्ता खोजना चाहिए, नए स्थान को चिन्हित करना चाहिए, इस पुराने तरीके को त्यागना चाहिए, जिससे आम-जनमानस प्रभावित न हो|
कल्पना करिए सोचिए उस महिला पुलिस अधिकारी की क्या गलती थी, उसने तो अपना फर्ज निभाया की यातायात बाधित न हो| अन्यथा वह पुलिस अधिकारी तो अपने सरकारी आवास पर थी, उसे क्या जरूरत थी, कि वह विधायक जी के अहंकार का शिकार बने?…आम जन-मानस के हित के लिए उस महिला पुलिस अधिकारी ने अपना कार्य किया