हरिओम शर्मा
मरुधरा के नाम से मशहूर राजस्थान के अभयारण्यों में न केवल बाघ बल्कि बघेरों का कुनबा भी तेजी से बढ़ रहा है। पूरे प्रदेश में जहां जहां भी टाइगर रिजर्व हैं, वहां इनकी आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है। आम आदमी और वन्यजीवों में रुचि रखने वाले तो इस बात से सहमत हैं ही, स्वयं सरकार ने भी इस बात को स्वीकार किया है। वन्यजीवों की आबादी में इजाफा और इनकी बढ़ती गतिविधियां वन और पर्यावरण दोनों के हित में हैं लेकिन वन और वन्यजीवों की देखभाल पर अभी बहुत ध्यान दिए जाने की जरूरत है। विशेषरूप से अभयारण्यों में बढ़ता मानवीय दखल और सरकारी तंत्र की उपेक्षा इसमें सबसे बड़ी बाधा है।
हालात ये हैं कि आज अरावली से लगते जिलों से लेकर उत्तर पूर्वी राजस्थान के बड़े भू भाग के जंगलों से लेकर दक्षिण और पश्चिम राजस्थान समेत अधिकांश हिस्सों में टाइगर की दहाड़ के साथ बघेरों की धमाचौकड़ी भी कम नहीं है। आंकड़ों के अुनसार प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बीते पांच साल में बघेरों का कुनबा लगभग दो गुना से अधिक बढ़ा है। हालात ये हैं कि जंगल में रहने वाला बघेरा परिवार अब गांव-ढाणियों से लेकर शहर और कस्बों तक दस्तक दे रहा है। बधेरों की बढ़ती आबादी सुखद संकेत है लेकिन जंगल से निकलकर आबादी में पहुंचना लोगों के लिए कम खतरा नहीं कहा जा सकता। इसके पीछे के कारणों से भी सब वाकिफ हैं लेकिन उनके निदान की दिशा में कोई नहीं जाना चाहता। मानवीय दखल ने ही बघेरों को जंगल से आबादी क्षेत्र में आने को मजबूर किया है इसमें कोई संदेह नहीं है। जिम्मेदार भी इस बात से सहमत हैं लेकिन इसके पीछे के कारणों के निदान की तरफ किसी का ध्यान नहीं है।
गौरतलब है कि वर्ष २०२४ की शुरुआत में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव की ओर से जारी भारत में तेंदुओं की स्थिति नामक रिपोर्ट में भी बघेरों की बढ़ती आबादी को लेकर तथ्य प्रस्तुत किए गए थे। रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में वर्ष २०१८ से २०२० के बीच बघेरों की संख्या ४७६ से बढ़कर ७२१ हो गई है। केन्द्रीय मंत्री की इस रिपोर्ट में राजस्थान के चार टाइगर रिजर्व मुकुंदरा, रामगढ़ विषधारी, रणथंभौर और सरिस्का को ही शामिल किया गया है। इसके अलावा अन्य वन्यजीव पॉर्क और लेपर्ड रिजर्व को देखें तो इनकी आबादी का आंकड़ा बहुत आगे जाकर ठहरता है। आज राजस्थान के अभयारण्यों से इतर देखें तो जयपुर शहर के आसपास के जंगल और अन्य क्षेत्रों पर नजर डालें तो यह आंकड़ा एक हजार से कम नहीं कहा जा सकता। आए दिन शहरों में और गांव-कस्बों में जिस तरह बघेरा और उनके शावकों की दखल बढ़ रही है उससे लगता है कि बघेरा अब जंगल में कम शहरों की और ज्यादा मूवमेंट कर रहा है। बघेरों की गणना कैमरा ट्रैप पद्धति से की गई है।
खास यह है कि देश में सर्वाधिक आबादी वाले टाइगर रिजर्व की श्रेणी में सरिस्का और रणथंभौर दोनों की टॉप १५ में शुमार हैं। यदि प्रदेश के लेपर्ड रिजर्व, सेंचुरी और अन्य वन्य क्षेत्रों को मिलाकर देखा जाए तो यह संख्या वास्तव में १,००० के आंकड़े को पार कर जाएगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। केन्द्र सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में देशभर में बघेरों की संख्या 12,852 से बढ़कर 14,000 के आंकड़े को छू गई है। गौरतलब है कि राजस्थान में बीते पांच वर्ष के दौरान बघेरों का कुनबा में 250 से अधिक की वृद्धि हुई है। सरिस्का अब टॉप 3 में … विश्वसनीय जानकारी के अनुसार देश में सर्वाधिक लेपर्ड की आबादी वाले टाइगर रिजर्व की श्रेणी में राजस्थान का सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य तीसरे स्थान पर है। सरिस्का में लगभग 275 से अधिक बघेरे हैं। वर्ष 2018 से 2022 के मध्य यहां लगभग 105 बघेरे बढ़े हैं। दूसरी ओर राजस्थान के ही दूसरे बड़े वन्यजीव अभयारण्य रणथंभौर नेशनल पॉर्क में भी वर्ष 2018 से 2022 के बीच लगभग 90 बघेरे बढ़े हैं।
बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता
टाइगर रिजर्व में बघेरों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है लेकिन उनके लिए आहार और आवास(प्रबेस एंड हेबिटॉट) पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इसके चलते वन्यजीव खासकर टाइगर फैमिली को जंगल से आबादी क्षेत्र की ओर रुख करना पड़ रहा है। चारों टाइगर रिजर्व में हमारे वन विभाग के उच्चाधिकारी सिर्फ बाघों की मॉनिटरिंग में जुटे नजर आते हैं, बघेरों को लेकर कोई विशेष इंतजाम नहीं किए जाने से इनका जीवन संकट में हैं, यानि जंगल में रहें तो संकट और आबादी में जाएं तो और अधिक संकट। ऐसे में बघेरों के लिए अलग से मैनेजमेंट प्लान की आवश्यकता यहां लंबे समय से महसूस की जा रही है। यहां तक कि भाजपा के पिछले शासनकाल के दौरान लागू हुआ लेपर्ड प्रोजेक्ट भी अभी तक ठंडे बस्ते में है। यही कारण है कि भोजन और आहार की तलाश में बघेरे घनी आबादी में पहुंच कर अपनी जान गंवा रहे हैं। जयपुर सहित राज्य के अनेक बड़े शहरों और कस्बों से आए दिन बाघ-बघेरों के आबादी,खेत, होटल और गांव-ढाणियों में बघेरों के घुसने के समाचार सुर्खियों में रहते हैं।
सरकारी लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जंगलों में वन्यजीवों के लिए पीने के पानी तक के पुख्ता इंतजाम नहीं होने से ये जीव आबादी का रुख करने को मजबूर हो जाते हैं। यही हाल जंगल में फूड चैन का है। वन्यजीवों की आबादी के हिसाब से इनके आहार श्रेणी के हिरण वर्ग के जीव अनेक अभयारण्यों में बहुतायत में हैं लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही के कारण जरूरत वाले जंगलों में इन्हें नहीं छोड़ा जाने से वन्यजीव आहार की तलाश में ग्रामीणों के आक्रोश का खुद शिकार होकर जान दे रहे हैं। कई जगह तो बाघ-बघेरों की ग्रामीणों ने घेरकर बड़े ही निर्मम तरीके से हत्या की है।
हरिओम शर्मा