खुद देखिए, “आईएएस आकाश त्रिपाठी का काम बोल रहा है“

विवेक कुमार पाठक
मप्र कॉडर के आईएएस ऑफीसर और सख्त छवि के प्रशासन की छवि बनाने वाले आकश त्रिपाठी एक बार फिर चर्चा में हैं। पश्चिम क्षेत्रीय विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड की कमान संभालकर उनका बेहतर काम राज्य शासन का ब्रांड बना है। उनके कार्यकाल में मप्र में मालवा क्षेत्र को रोशन करने वाली पश्चिमी बिजली कंपनी इंदौर उज्जैन संभाग के घरों से अंधेरा खत्म करने में सफलता हांसिल की है। उनकी बिजली कंपनी ने बिजली सुधार की दिशा में क्या बेहतर किया है उसका विश्लेषण और असर अलग से फिलहाल मप्र के लिए बेहतर प्रशासन करने वाले ग्वालियर के पूर्व कलेक्टर आईएएस आकाश त्रिपाठी के काम की शैली की कुछ बात। मुख्य धारा के प्रशासन से एकतरफ उनका काम आंकड़ों से बोला है और इस कारण से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें प्रदेश के स्वतंत्रता दिवस समारोह में सम्मिनत किया है। सूबे के इस अफसर के काम के जज्बे पर फलैशबैक से कुछ बात।
बात ग्वालियर के कलेक्टरों की…1
नई दुनिया में राजदेव पांडे जैसे सरोकारपरक वरिष्ठ पत्रकार के बाद मुझे ग्वालियर में प्रशासन पत्रकारिता का मौका मिला। इस मौके के लिए नई दुनिया के यशस्वी संपादक डॉ. राकेश पाठक के प्रति मैं आजीवन शुक्रगुजार हूं।
“ पाठकजी समावेशी संपादक हैं सबको साथ लेकर चलने के लिए जाने जाते हैं“
नई दुनिया जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में जिले के प्रशासन को कवर करना मेरे लिए अविश्मरणीय रहा।
“ ये शायद धर्म आस्था बीट में लेखन व उससे मिले प्रताप का भी फल था शायद“।
“मैंने जिला प्रशासन तक कवर किया जब ग्वालियर में आकाश त्रिपाठी जैसे धांसू कलेक्टर गोरखी के सर्वेसर्वा थे।“
आकाश त्रिपाठी मुरैना की कलेक्टरी करके ग्वालियर आए थे।
वहां खदान माफिया पर कार्रवाई के दौरान उनके दल को धमकाने के लिए दबंगों की गोलीबारी चर्चित है।
इस एक घटना मात्र से मुरैना में कलेक्टर की चुनौतियां क्या होती हैं समझी जा सकती हैं हालांकि चुनौतियों से सामना करने वाला तपता भी है।
“आकाश त्रिपाठी मुरैना से एकदम तपकर ग्वालियर आए थे।“
वे पहले भी अंर्तमुखी थे इसका पता नहीं मगर ग्वालियर में अपने कार्यकाल में वे गिन गिनकर शब्द बोलते थे।
“ उनका कम बोलना उनकी सख्त छवि बनाता चला गया। इसका उन्होंने ग्वालियर में प्रशासन की साख बनाने में बेहतर उपयोग किया।“
जो ग्वालियर राकेश श्रीवास्तव की उदार कलेक्टरी चार साल से देख रहा था वो आकाश त्रिपाठी के अंदाजों से सन्न सा रह गया।
कलेक्टर त्रिपाठी का अपना फिक्स टाइमटेबिल था। उनके कार्यकाल में उनके अधीनस्थ अफसरों से लेकर मातहत कर्मचारी सभी एकदम अलर्ट रहते थे।
गोरखी की पुरानी कलेक्ट्रेट में त्रिपाठी से मिलना भी कोई कम उपलब्धि नहीं होती थी।
ऐसा नहीं था कि वे मिलना नहीं चाहते थे मगर वे अनुशासन के मामले में बेहद सख्त रहे।
“उन्होंने मीडिया में अपनी एक छवि गड़ रखी थी। शाम के अखबार में लिखने वाले संवाददाता को उनके समय में खबरों की कमी नहीं रही। उनका सोमवार औचक छापों के नाम रहा अक्सर।“
अनिल बनबारिया, प्रदीप तोमर, आर के पांडे और रामनिवास सिंह सिकरवार उनके सिपहसलार तहसीलदार थे।
मिलावटखोरों के खिलाफ उनके छापे जनता को खूब पसंद आए।
नकली घी, नकली मावा, नकली दवाओं के कारोबार पर उन्होंने सख्त प्रहार किया।
एक कलेक्टर की कार्रवाइयां शुरु होते ही उन्हें रुकवाने वाले उससे तेजी से हरकत में आ जाते हैं।
सत्तारुढ़ दल वाले कई प्रभावशील तो बस आर्शीवाद देने बैठे ही रहते हैं ऐसे दुखियारों को।
ऐसे दुखियारों की सिफारिशें त्रिपाठी के टाइम में भी थोक में पहुंचती होंगी मगर छापों की गति कम पड़ने की जगह और तेज होना कलेक्टर की मंशा को जाहिर कर देता है।
आकाश त्रिपाठी ने सत्ताधीशों का दवाब शुरु से ही नहीं बनने दिया ये उनके कार्यकाल की बहुत बड़ी उपलब्धि रही।
उनके कार्यकाल में तत्कालीन महापौर समीक्षा के नेतृत्व में भाजपा शासित नगर निगम पर कांग्रेस के जनआंदोलनकारी विधायक प्रधुम्न सिंह तोमर हमेशा हमलावर रहे।
ऐसे में प्रशासन को विकास के अलावा हर दूसरे महीने लॉ एंड आर्डर पर माथापच्ची करनी पड़ी।
उस वक्त ए सांई मनोहर जैसे सख्त और ईमानदार अफसर कलेक्टर को राहत देने वाले रहे।
डीएम को विकास के लिए इससे भरपूर समय मिला। ग्वालियर के विकास को लेकर और उसके बहाने भी कलेक्टर से नाराज सत्ताधीशों ने कलेक्टर की कई दफा शिकवें शिकायते कीं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के समक्ष भी कई दफा आकाश त्रिपाठी से नाराजगी मुखरता से व्यक्त की गई। ऐसा देखा नहीं मगर शिकायत करने वाले और उनके समर्थकों ने बताया है सो ये बातें सूत्रों के हवाले से ही।
ग्वालियर के विकास पर भोपाल बैठक में आकाश त्रिपाठी और नगर निगम आयुक्त कुछ बिन्दुओं पर घेरे भी गए। खासकर सत्तारुढ़ दल, उसके नेताओं की अनुशंसाओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा पर। ये बातें खुलकर न कहते हुए कलेक्टर और निगमायुक्त को विकास के विभिन्न मुद्दों पर घेरने के प्रयास हुए।
इन शिकवे शिकायतों और उनके बाद मुख्यमंत्री से मिले खुलकर विकास के एजेंडे ने ही एक महाअभियान का जन्म कराया।
मुख्यमंत्री ने कई प्रियजनों की बात पर कलेक्टर और नगर निगम आयुक्त को फ्री हैंड दे दिया।
कहा ग्वालियर अब मेरा है आप ग्वालियर को चमका दें। खूबसूरत बना दें।
ग्वालियर में इस भोपाली बैठक के बाद ही तेज आवाज करने वाले बुलडोजर और थ्रीडी मशीनें गरजीं थीं।
बाबूलाल गौर के अतिक्रमण विरोधी अभियान पर उन्हें बुलडोजर मिनिस्टर से जाना जाता है आज तक। आकाश त्रिपाठी भी विजय सिंह के बाद ग्वालियर के सख्त बुलडोजर और थ्रीडी वाले कलेक्टर बनकर सामने आए। 2010 में शहर में अभूतपूर्व अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरु हुआ। शहर के प्रमुख मार्गों के चैड़ीकरण की मुहिम लोहिया बाजार, नया बाजार, दौलतगंज हर जगह घन और बुलडोजर चले।
इंदरगंज पर ऐतिहासिक रोटरी को भी आमजनों की सहूलियत के लिए सकरा किया गया। ये बड़ी और जनता के लिए राहत भरी बात थी।
फूलबाग से किलागेट तक खूब घन बरसे और विभिन्न नापतौल के निशान लगे।
प्रशासन और उसकी टीम का लगाया लाल रंग पूरे शहर में चर्चित रहा।
ये लाल रंग नई सड़क पर भी लगा और सर्राफे में भी लगा।
“ जिस सर्राफे में अतिक्रमण विरोधी अभिमान की हवा निकलने के दावे किए जा रहे थे वहीं सबसे ज्यादा बुलडोजर गरजे।“
एकदम याद है कि नगर निगम और जिला प्रशासन के इस अभियान को कवर करते हुए मैंने और मेरे वरिष्ठ और वर्तमान में प्रदेश टुडे के सिटी चीफ ब्रजमोहन शर्माजी ने कितनी धूल खाईं थीं।
ये धूल पत्रिका से आदरणीय राजदेव पांडे, अनूप भार्गवए दैनिक भास्कर से स्वर्गीय गिरीश अग्रवाल, राज एक्सप्रेस से विकास पांडे सहित तमाम पत्रकारों ने नगर हित समझकर जमकर खाईं।
पीआरओ हितेन्द्र भदौरिया तो शायद धूल का लबादा ओड़कर हर दिन ही घर पहुंचते होंगे उन दिनों।
भदौरिया जी ग्वालियर के ऐसे पीआरओ हैं जो सरकारी पीआरओ कार्यालय में निजी सेक्टर के पीआरओ जैसे समर्पण, ईमानदारी और जज्बे से काम करते हैं।
वे कलेक्टर त्रिपाठी के बेहतर काम को मीडिया तक पहुंचाने के लिए रात 10 11 बजे तक भी फोन खटखटाने में चूकते नहीं थे।
इसके बदले में हम कुछ मित्र उन पर चाय का बोझ हमेशा डालते रहे हैं। जगह फिक्स है वही मोतीमहल में रुपेन्द्र सरकार के बगल की चैपाल में।
चाय के ब्रांड एम्बेसडर आदरणीय और सरोकारपरक विलुप्तप्राय कलमकार राजदेव पांडेजी की वजह से जीवंत हैं ऐसी चाय की यादें।
खैर सरकार के फ्रीहैंड व आकाश त्रिपाठी के आदेश पर एनबीएस राजपूत के बुलडोजर पूरे शहर में दम से गरजे।
चैतरफा लाल निशान लगे और लगभग 90 फीसदी जगहों पर तुड़ाई हुई।
इस अभियान के बाद चैड़ी हुई सड़क पर फुटपाथ, पार्किंग और अन्य उपयोगी इंतजाम नगर निगम को करने थे जिसमें से 50 फीसदी उसने किए भी मगर 50 फीसदी काम राजनीतिक प्रभाव से युक्त प्रशासन वाला नगर निगम नहीं कर पाया।
ग्वालियर नगर निगम में कामकाज का ऐसा ही राग है।
इसका ऐसा नेचर है इसे स्वीकारे बिना विकास नहीं हो सकता।
ये सबसे निचली लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसके अगुआ 60 से 65 पार्षद हर विकास कार्य में हां या न करने की कोशिश करते हैं।
ये अधिकार उन्हें लोकतंत्र ने दिए हैं सो इसके फायदे नुकसान सब सिर माथे।
सुधार धीरे धीरे ही आते हैं और अभी नगरीय लोकतंत्र और स्थानीय स्वशासन उतना धीर गंभीर नहीं है ग्वालियर सहित प्रदेश से लेकर देश में।
खैर आकाश त्रिपाठी के कार्यकाल में जमकर तुड़ाई के बाद सेवा नगर से किलागेट के मकान वालों को मुआवजा नहीं मिला हो कई जगह तुड़ाई गलत भी हो गई हो नगर निगम वाले कई जगह गलत निशान लगा गए हों या पटवारी आरआई और तहसीलदार गलती पर हों मगर इस महाअभियान की उपलब्धियां इससे कहीं ज्यादा रहीं।
कलेक्टर अगर अपने चेंबर में बैठकर भी कलेक्टरी करे और रस्मी तौर पर एक दिन जनसुनवाई एक दिन राजस्व न्यायालय अन्य दिनों सदा सनातन बैठकें और दो दिन डबरा भितरवार का चक्कर लगाता रहे तो भी उसकी कलेक्टरी चलती रहती है।
मप्र क्या देश के कई जिलों में ऐसे कलेक्टर थे रहें हैं और होंगे भी जो रुटीन कलेक्टर हैं।
वे परंपराओं के वाहक हैं जो डिफेंसिव कलेक्टरी करते हैं।
सरकार ने जो कहा उसे अपने नीचे वालों से लिखित में कह दो।
नीचे वाला अपने और नीचे वाले को आदेश निर्देश दे और फिर सबसे उपर का आदेश इसी तरह नीचे नीचे सबसे नीचे।
इस बीच उपर वाले के आदेश का नीचे तक क्या हुआ इसकी विशेष चिंता या फिकर किसी को नहीं रहती।
इन गजब प्रशासनिक अंदाजों के बीच आगे बढ़कर चुनौतियों लेना और तमाम आरोप, बुराइयां, मनमुटाव, नाराजगी का सामना करते हुए कलेक्टरी करना हर किसी के बस की बात नहीं।
आईएएस बनने वाला हर युवा सरोकारपरक नहीं होता।
दिल्ली में यूपीएससी वाले धौलपुर हाउस में लिया जाने वाला इंटरव्यू चंद मिनिटों में पूरी जिंदगी और विचार को नहीं जान सकता।
इसके बाबजूद भी यूपीएससी अपने बस तक अच्छे अफसर देने के लिए पूरा जोर लगा रही है।
अच्छी नीयत रखने वाले युवा अच्छे अफसर और कलेक्टर बनें इसके लिए साहस और आत्मबल कूट कूटकर भरा होना जरुरी है।
संभव है कि आईएएस आकाश त्रिपाठी ने अपने कार्यकाल में कुछ गलत फैसले लिए होंगे उनके सही फैसलों पर निचले सिस्टम का गलत रुख हुआ होगा……….
कई जगह वे अपने दावे और वादे पूरे न कर पाएं हो शहर को बुलडोजर से तोड़ ताड़कर विधवा महिला की जगह सुंदर नवविवाहिता जैसा खूबसूरत न बना पाए हों मगर ग्वालियर जिले में कलेक्टर के रुप में उन्होंने जो किया वो अपने वरिष्ठ और कनिष्ठ आईएएस और प्रमोटी आईएएस अफसरों के लिए एक नजीर था।
उनकी कलेक्टरी ग्वालियर वाले जब तब खुलकर याद करते हैं। जिन्हें प्रशासन से वादा अनुसार मुआवजा न मिला हो या तुड़ाई अभियान ने जिन्हें असुविधा और मुसीबत में डाला हो या फिर वो जनता जो तुड़ाई के बाद चैड़े हुए ग्वालियर को पूर्व से बेहतर मानती है।
उनके पहले कलेक्टर विजय सिंह ने कैसा काम किया वो देखा तो नहीं मगर सुना है वो भी नजीर था। आकाश त्रिपाठी जैसे सख्त कलेक्टर अगर लोकहित और जनकल्याण करते हुए कुछ गलतियां करते हैं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
जितने ज्यादा काम किए जाएंगे उतनी ज्यादा गलतियां कर्मठ व्यक्ति के खाते में जाएंगी।
और गलतियां इंसान को बेहतर बनाती हैं ये राहुल गांधी ने हाल ही में कहा है तो जो कलेक्टर जनता के लिए आगे बढ़कर रुटीन से ज्यादा कुछ करेगा उसी से गलतियां और उसी का विरोध स्वभाविक सत्य है।
कुछ न करने वालों का कभी विरोध नहीं होता…

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