साँप

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शाम के सात बज रहे थे। पटना के ईकलॉजिकल पार्क में अविनाश अपनी गर्लफ़्रेंड अनामिका की गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था और अनामिका उसके घुंघराले बालों में अपनी उँगलियाँ फेर रही थी। तभी अविनाश के मोबाइल फोन का रिंगटोन बजा। फोन पर बात करने के बाद अविनाश ने अनामिका से कहा – “चलो अब चलते हैं।”
“क्या हुआ? किसका फोन था?” अविनाश को थोड़ा परेशान देखकर अनामिका ने पूछा।
“पापा का फोन था। कह रहे थे कि दादी की तबीयत बहुत ख़राब है। घर आ जाओ।” अविनाश ने कहा।

अनामिका गुप्ता और अविनाश मिश्रा पटना के आर्जव बिजनेस कॉलेज में एमबीए के स्टूडेंट थे। दोनों की पहली मुलाकात छह महीने पहले कॉलेज में ही हुई थी। दोनों के रिश्ते दिल से भी जुड़े थे और जिस्म से भी।अविनाश सुपौल जिले के रामपुर गाँव का रहने वाला था और अनामिका सहरसा जिले के बरियाही गाँव की रहने वाली थी। सहरसा और सुपौल दोनों पड़ोसी जिले थे। रेल मार्ग से सुपौल जाने पर पहले सहरसा जाना पड़ता था।

अविनाश जब सहरसा जंक्शन पहुंचा तो रात के दो बज रहे थे। सुपौल जाने वाली ट्रेन पाँच बजे सुबह में थी। अविनाश घर जल्दी पहुँचना चाहता था। इसलिए उसने ट्रेन की बजाय ऑटो रिक्शा से घर जाने का फैसला किया, क्योंकि ऑटो रिक्शा से वह तीन घंटे में घर पहुंच सकता था।
“रामपुर चलोगे?” अविनाश ने जंक्शन के बाहर खड़ी ऑटो रिक्शा के ड्राइवर से पूछा।
“हाँ भैया, ज़रूर चलेंगे।” ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने कहा।
“ठीक है, फिर जल्दी चलो। अविनाश ने ऑटो रिक्शा में बैठते हुए कहा।
“भैया मात्र तीन घंटे बाद आप रामपुर में होंगे।” ड्राइवर ने अपना ऑटो रिक्शा स्टार्ट करते हुए कहा।
रात के सन्नाटे को चीरते हुए ऑटो रिक्शा सहरसा से रामपुर की ओर चल पड़ी। कुछ देर बाद ऑटो वाले ने अविनाश से पूछा – “भैया जी पटना से आ रहे हैं क्या?”
“हाँ।” अविनाश ने जवाब दिया।
“पटना में पढ़ते हैं या कोई नौकरी करते हैं?” ऑटो वाले ने पूछा।
“आर्जव बिजनेस कॉलेज से एमबीए कर रहा हूँ।” अविनाश ने जवाब दिया।
“अरे भैया! मेरी पत्नी भी उसी कॉलेज में पढ़ती है।” ऑटो वाले ने उत्साहित होते हुए कहा।
“क्या? तुम्हारी पत्नी! नाम क्या है उसका?” अविनाश ने विस्मित होते हुए पूछा।
“अनामिका गुप्ता नाम है उसका। आप जानते हैं उसको?” ऑटो वाले ने नाम बताते हुए पूछा।
“नाम तो सुना हूँ, लेकिन याद नहीं आ रहा। क्या तुम्हारे पास उसकी कोई फ़ोटो है?” अविनाश ने चतुराई से जवाब देते हुए पूछा।
“हाँ भैया, बहुत सारे फ़ोटो हैं। आप खुद ही देख लीजिए। रात का समय है, गाड़ी चलाते हुए लापरवाही करना ठीक नहीं है। ऑटो वाले ने अपना मोबाइल फोन अविनाश को देते हुए कहा।
अविनाश ऑटो वाले के मोबाइल फोन में तस्वीरें देखने लगा। मोबाइल फोन में ऑटो वाले की शादी से लेकर पिछले महीने तक की सैकड़ों तस्वीरें थीं और तक़रीबन सभी तस्वीरों में उसकी पत्नी उसके साथ थी। तस्वीरों को देखकर अविनाश का दिमाग़ शून्य हो गया। ऑटो वाले की पत्नी ही अविनाश की गर्लफ़्रेंड थी। अनामिका ने अपनी शादी की बात अपने कॉलेज में सबसे छिपा रखी थी।
“क्या भैया? पहचाने?” ऑटो वाले ने अविनाश से पूछा।
“अरे हाँ, आपकी पत्नी तो मेरे ही कॉलेज में पढ़ती हैं। बहुत अच्छी स्टूडेंट हैं।” अविनाश ने कहा।
“हमारी शादी दो साल पहले हुई थी। शादी के बाद अनामिका के भाई ने मुझे बताया कि अनामिका एमबीए करना चाहती थी, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उसका एमबीए करने का सपना सिर्फ़ एक सपना बनकर रह गया था। आर्थिक स्थिति तो मेरी भी अच्छी नहीं थी लेकिन मैंने उसके सपने को सच करने की ठान ली और उसका दाख़िला आर्जव बिजनेस कॉलेज में करवा दिया। दिन और रात दोनों समय ऑटो इसलिए चलाता हूं ताकि कॉलेज की फ़ीस और अनामिका की ज़रूरतों के लायक पैसे हो सकें।” ऑटो वाले ने अविनाश से कहा।
“आप बहुत अच्छे पति हैं। आपके जैसे पुरुष बहुत कम हैं इस संसार में।” अविनाश ने ऑटो वाले से कहा।
सुबह के पाँच बज चुके थे। अविनाश भी अपने गाँव पहुँच चुका था। ऑटो रिक्शा से उतरने के बाद अविनाश ने ऑटो वाले से पूछा – “क्या मैं आपके साथ एक फ़ोटो ले सकता हूँ?”
“जैसी आपकी इच्छा।” ऑटो वाले ने जवाब दिया।
जब अविनाश ने फ़ोटो ले ली तब ऑटो वाले ने कहा – “एक विनती है भैया आपसे।”
“हाँ, बोलिए।” अविनाश ने कहा।
“आपकी मुलाकात मुझसे हुई थी, यह बात अनामिका को नहीं बताइएगा। वो क्या है ना कि, वह नहीं चाहती कि उसके कॉलेज में किसी को भी पता चले कि उसका पति एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर है।” ऑटो वाले ने विनीत भाव से कहा।
“आप फ़िक्र मत कीजिए। मैं यह बात किसी को, कभी नहीं बताऊँगा।” अविनाश ने कहा।

घर पहुँचकर अविनाश को पता चला कि उसकी दादी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया था, जिसके कारण उन्हें साँस लेने में कठिनाई होने लगी थी। इस वज़ह से घर के सभी सदस्य घबरा गए थे। जब डॉक्टर को बुलाया गया तो डॉक्टर ने दादी की शारीरिक जाँच करने के उपरांत उन्हें आराम करने की सलाह दी।
कुछ ही दिनों में दादी की तबीयत में काफ़ी सुधार हो गया था। इसलिए अविनाश अपने पिता के कहने पर पटना लौट आया।

पटना पहुँचने के अगले दिन अविनाश ने अनामिका को शाम में पटना के कालीघाट मिलने को बुलाया। अनामिका जब काली घाट पहुँची तो अविनाश ने उसे एक बैग दिया और कहा – “इस बैग में तुम्हारे लिए एक सरप्राइज गिफ़्ट है। लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम इस बैग को आँखें बंद करके खोलो और गिफ़्ट निकालो।”
“ओके डियर, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।” अनामिका ने चहकते हुए कहा।
अनामिका ने अपनी आँखें बंद की और बैग खोलकर गिफ़्ट निकालने के लिए जैसे ही उसमें हाथ डाला, एक जहरीला साँप उसके हाथ से लिपट गया और डंक मार दिया।
दरअसल दो घंटे पहले अविनाश ने एक सपेरे से एक ज़हरीला साँप खरीद कर उसे अपने बैग में रख लिया था।
साँप के डंक से अनामिका की आँखें खुल गईं। अनामिका ने देखा, अविनाश सामने खड़ा उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। यह देखकर अनामिका ने अविनाश से पूछा – “आख़िर क्यों?”
अविनाश उसके क़रीब आया और उसने उसे अपने मोबाइल फोन में वह तस्वीर दिखाई, जो तस्वीर उसने उसके पति के साथ ली थी।
उस तस्वीर को देखकर अनामिका ने कहा – “यह सच है कि मैं मैरिड हूँ, लेकिन यह भी सच है कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती थी।”
“तुम सिर्फ़ धोखेबाज़ हो और यह धोखेबाज़ी की वह सज़ा है जो तुम्हारा पति तुम्हारी हक़ीक़त जानने के बाद भी तुम्हें कभी नहीं देता, क्योंकि वह एक बहुत अच्छा इंसान है और तुमसे बहुत प्यार करता है।” अविनाश ने क्रोध और घृणा से भरे स्वर में कहा।
“हाँ, मैं धोखेबाज़ हूँ। लेकिन धोखा मैंने तुम्हें नहीं अपने पति को दिया है और इसकी सज़ा देने का हक भी सिर्फ़ मेरे पति को ही था। शादी की बात छिपाकर भी मैंने तुमसे प्यार ही किया था। मरते हुए तकलीफ़ भी मुझे सिर्फ़ इसलिए हो रही है, क्योंकि मुझे इस बात का अफ़सोस है कि मैंने साँप जैसी फ़ितरत वाले इंसान से प्यार किया और सज़ा भी मुझे बेवफाई की नहीं, प्यार करने की मिली।” इतना कहते ही अनामिका की आँखें बंद हो गईं।
अनामिका की आँखें बंद होने के बाद अविनाश उसके सिर को अपनी गोद में रखकर दो घंटे तक वहीं बैठा रहा। जब अनामिका की साँसें रुक गईं और उसके दिल ने धड़कना बंद कर दिया, तब अविनाश उसे लेकर अस्पताल चला गया। अस्पताल में डॉक्टर ने अनामिका की शारीरिक जाँच करने के पश्चात् उसे मृत घोषित कर दिया।

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