अभाविप के बढ़ते कदम…..

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अजीत कुमार सिंह

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(अभाविप) का जन्म एक ऐतिहासिक परिघटना है। स्व. जवाहरलाल नेहरू ने जिसे नियति से साक्षात्कार कहा, सदियों की गुलामी से स्वतंत्र होने के उस ऐतिहासिक क्षण में विजय का उल्लास कहीं उन्माद न बन जाये, इस आवश्यक सावधानी की अनिवार्यता के गर्भ से अभाविप का जन्म हुआ है।

भारत को स्वावलम्बी बनाना ही नहीं अपितु वैश्विक भूमिका के लिये तैयार करने की चुनौती देश के सामने थी। स्वाभाविक ही इसके लिये सर्वाधिक अपेक्षा उस वर्ग से थी जो शिक्षित था और ऊर्जावान भी। विद्यार्थी समुदाय को परिवर्तन का सशक्त माध्यम मानते हुए युवाओं की छोटे समूह ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की।

भारत की चिति का अभिव्यक्त रूप यहां की संस्कृति के प्रति अनुराग, राष्ट्र की एकता और अखण्डता के सर्वोपरि होने का विश्वास तथा भारत को सशक्त, समृद्ध और स्वावलम्बी राष्ट्र के रूप में विश्वमालिका में उसे यथोचित स्थान दिलाने की महदाकांक्षा ने अभाविप के संगठन को गढ़ा है। राष्ट्र की अंतर्निहित चेतना को स्वर देने का काम परिषद ने अपनी स्थापना के साथ ही शुरू कर दिया था। भारतीयकरण उद्योग का प्रारंभ इसका प्रमाण है। स्व. भाऊराव देवरस, दत्तोपंत ठेंगड़ी, रामशंकर अग्निहोत्री, ओमप्रकाश बहल, गिरिराज किशोर और दीनदयाल उपाध्याय तथा श्री बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी, प्रा. यशवंदराव केलकर, वेदप्रकाश नंदा आदि युवाओं ने अपने उद्यम से इस अभियान को राष्ट्रव्यापी स्वरूप प्रदान किया।

छात्र संगठन होने के कारण विद्यार्थियों की नयी पीढ़ियां आती रहीं और पुरानी जाती रहीं। किन्तु अभाविप की विकास यात्रा जारी रही। राष्ट्र की मुख्य धारा के साथ तादात्म्य निरंतर बना रहा जिसके कारण संगठन सतत वर्धमान बना रहा। विचारवंत शिक्षकों की श्रृंखला भी बनी रही जिसने विद्यार्थियों का योग्य मार्गदर्शन किया साथ ही उनके व्यक्तिगत विकास की भी चिन्ता की। समाजजीवन के अनेकानेक क्षेत्रों में आज जो अभाविप के पूर्व कार्यकर्ताओं की जो मालिका दिखायी देती है उसके पीछे कार्यकर्ता विकास की अनूठी पद्धति का ही योगदान है।

आज छः दशक बाद सिंहावलोकन करने पर अभाविप के खाते में अनेक उपलब्धियां दिखायी देती हैं। इन्हें हम दो भागों में बांट सकते हैं – प्रथम, राष्ट्र के दिशा निर्धारण में हमारा योगदान और द्वितीय, एक संगठन के रूप में हमारी उपलब्धियां।

अभाविप के विविध आयाम…

थिंक इंडिया (THINK INDIA)

देश की प्रतिभा को पहचानने और छात्रों के बीच राष्ट्रप्रथम की भावना को विकसित करने के उद्देश्य से अभाविप का यह प्रकल्प (थिंक इंडिया) देश के विभिन्न अखिल भारतीय शिक्षण संस्थान में कार्यरत है। जैसे – आईआईटी, आईआईएम,आईएसएम,एनएलयू , एम्स, इ. देश के अग्रणी संस्थान के छात्रों के बीच जाकर “थिंक इंडिया” राष्ट्र के प्रति सोचने की नजरिया पैदा करती है। थिंक इंडिया की विधिवत स्थापना 2006 की गई थी। यह अ.भा. शिक्षण संस्थान के विद्यार्थियों को अनुभूति प्रकल्प के माध्यम से इंटर्नशीप प्रदान करती है।

अंतर राज्य छात्र जीवन दर्शन (SEIL)

पूर्वोत्तर भारत में 220 से अधिक जनजातीय समूहों के लोग निवास करते हैं। इनकी जितनी जातियां हैं, उतनी ही भाषाएं हैं , बावजूद इसके सभी एक संस्कृति से जुड़े हैं। इसीलिए भारत को विविधता में एकता वाला देश कहते हैं। ‘विविधता में एकता’ के मूल मंत्र को 1966 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने देश के दूर दराज के सीमावर्ती क्षेत्रों  के बीच  भावनात्मक एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से “अंतर राज्य छात्र जीवन दर्शन” के नाम से एक अभिनव प्रकल्प प्रारंभ किया।

जागरूकता, एकात्मता एवं स्वालंबन के तीन सूत्रीय लक्ष्य को लेकर पूरे देश में सील (SEIL) नाम से काम कर रहा है, यह प्रकल्प लोगों को शेष भारत से परस्पर संवाद स्थापित करने के साथ ही जीवन की विविधताओं में निहित  भावनात्मक और सांस्कृतिक एकता को निरूपित करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

विश्व विद्यार्थी युवा संगठन (WOSY)

भारत समस्त विश्व को अपना परिवार मानती है। इसी को आधार बनाकर 1985 में विश्व विद्यार्थी परिषद् (WOSY) का शुभारंभ दिल्ली में हुआ।  सारे संसार के युवाओं को दूसरे राष्ट्रों को आध्यात्मिक अनुभूति और मानवीयता के आधार पर देखने का सुअवसर प्रदान करने वाला यह एक अन्तरराष्ट्रीय मंच है। विश्व विद्यार्थी युवा संगठन अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर संवाद के माध्यम से सहयोग और आपसी सद्भाव विकसित करने का काम कर रही है।

उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् अपने विविध आयामों  जैसे – प्रतिभा-संगम, रंगतोरण, स्पर्धा-डिपैक्स, सृजन, सृष्टी, विद्यार्थी विकास, छात्र विकासार्थ(SFD), सील, थिंक इंडिया, आदि के जरिये पूरे देश को एक सूत्र में बांधने का काम कर रही है। चाहे  देश के लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना विकसित करने का काम हो, वन्देमातरम का उद्घोष का काम हो, भारतीय अनुरूप शिक्षा की बात हो, राष्ट्रीय प्रश्नों पर आंदोलन करने की जरूरत, या फिर शैक्षिक परिवार की संकल्पना की बात हो अभाविप हर मुद्दे पर प्रहरी का काम करती है। यूं कहें तो विद्यार्थी परिषद्  लोकतंत्र के प्रहरी की भूमिका निभा रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की स्वीकार्यता पूरे देश के छात्रों के बीच स्थापित है। वर्तमान परिदृश्य में अभाविप छात्रसंगठन की भूमिका से आगे निकलकर एक जनता की आवाज के रूप स्थापित हो चुकी है।

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