केंद्र की संप्रग सरकार ने खाद्य पदार्थों की जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने हेतु उनके भंडारण पर सीमा और कारोबार पर लाइसेंस आदि की शर्तो की मियाद एक साल के लिए बढा दिया है .
सरकार ने इसके लिए आवश्यक वस्तु कानून के तहत दालों, चीनी, धान, खाद्य तेल, तिलहन और चावल के संबंध में केंद्रीय अधिसूचनाओं की अवधि अगले वर्ष सितंबर तक बढ़ा दी है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया। बैठक में सर्वसम्मति से दालों, धान, खाद्य तेल, तिलहन और चावल के संबंध में दो अप्रैल 2009 को जारी केंद्रीय अधिसूचना में तय की गई अवधि को एक अक्तूबर 2009 से आगे एक साल के लिए और बढ़ा दिया गया है। यह अधिसूचना अब 30 सितंबर 2010 तक लागू रहेगी।
चीनी के संबंध में दो जुलाई 2009 को जारी अधिसूचना में तय अवधि को नौ जनवरी 2010 से बढ़ाकर 30 सितंबर 2010 कर दिया है। नियंत्रण आदेश का मुख्य उद्देश्य राज्य सरकारों को आवश्यक वस्तु कानून, 1995 के तहत जमाखोरी के खिलाफ प्रभावशाली कार्रवाई करने में मदद करना था।
इसके तहत मानसून की कम बारिश के कारण बढ़ रही उक्त उत्पादों की कीमत के आलोक में उनकी भंडारण सीमा और लाइसेंसिंग आवश्यकताएं तय कर दी गई थीं।
अगस्त 2006 में तय किया गया था कि गेहूं और दालों के मामले में 15 फरवरी 2002 के आदेश के कुछ प्रावधानों को अलग रखा जाए। इस आदेश की वैधता को समय समय पर बढ़ाया गया और इसमें कुछ अन्य आवश्यक वस्तुओं को शामिल किया गया। कैबिनेट ने 30 मार्च 2009 की अपनी बैठक में आदेश की वैधता दो अप्रैल 2009 तक बढ़ाने का फैसला किया था।
चीनी के संबंध में कैबिनेट ने 19 जून 2009 को हुई बैठक में तय किया कि नौ मार्च 2009 को पारित आदेश की अवधि आठ जनवरी 2010 तक बढ़ाई जाए। केंद्र सरकार ने राज्यों को स्थानीय हालात के अनुरूप भंडारण की सीमा तय करने और जमाखोरी के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार दिया।
बहरहाल , सरकार द्वारा कालाबाजारी पर नियंत्रण के लिए उठाया गया यह कदम स्वागतयोग्य माना जा रहा है . अब आगे देखना होगा कि यह कारगर साबित होता है या फ़िर सरकार के अन्य कदमों की तरह इसका भी टाँय -टाँय फिस्स हो जायेगा !