Tag: ईश्वर

धर्म-अध्यात्म

ईश्वर को जानना, उसके स्वरूप व गुणों का चिन्तन मनन तथा ध्यान तथा सदाचरण ही उपासना है

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ईश्वर के सत्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए सबसे सरल उपाय सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन है। सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द की विश्व प्रसिद्ध कृति है। इसमें ईश्वर के सत्यस्वरूप सहित ईश्वर से संबंधित सभी प्रकार की शंकाओं व प्रश्नों का उत्तर दिया गया है। ऋषि दयानन्द के अन्य ग्रन्थों पंचमहायज्ञविधि, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्याभिविनय एवं संस्कारविधि आदि का अध्ययन व अभ्यास कर भी ईश्वर, जीवात्मा व सृष्टि का यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ईश्वर के स्वरूप पर दृष्टि डालें तो आर्यसमाज के दूसरे नियम से इसका ज्ञान हो जाता है।

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धर्म-अध्यात्म

ईश्वर-जीवात्मा का परस्पर संबंध और ईश्वर के प्रति मनुष्य का कर्तव्य

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मनुष्य को शुभ कर्म करने के लिए शिक्षा व ज्ञान चाहिये। यह उसे ईश्वर ने प्रदान किया हुआ है। वह ज्ञान वेद है जो सृष्टि के आदि में दिया गया था। इस ज्ञान का प्रचार व प्रसार एवं रक्षा सृष्टि की आदि से सभी ऋषि मुनि व सच्चे ब्राह्मण करते आये हैं। आज भी हमारे कर्तव्याकर्तव्य का द्योतक वा मार्गदर्शक वेद व वैदिक साहित्य ही है। मनुष्य व अन्य प्राणधारी जो भोजन आदि करते हैं वह सब भी सृष्टि में ईश्वर द्वारा प्रदान करायें गये हैं। इसी प्रकार अन्य सभी पदार्थों पर विचार कर भी निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इससे ज्ञात होता है कि सभी मनुष्य व प्राणी ईश्वर के ऋणी हैं। जीव ईश्वर का ऋण चुकायंे, इसका ईश्वर से कोई आदेश नहीं है। इतना अवश्य है कि प्रत्येक मनुष्य सच्चा मनुष्य बने। वह ईश्वर भक्त हो, देश भक्त, मातृ-पितृ भक्त हो, गुरु व आचार्य भक्त हो, ज्ञान अर्जित कर शुभ कर्म करने वाला हो, शाकाहारी हो, सभी प्राणियों से प्रेम करने वाला व उनका रक्षक हो आदि। ईश्वर सभी मनुष्यों को ऐसा ही देखना चाहता है। यह वेदों में मनुष्यों के लिए ईश्वर प्रदत्त शिक्षा है। यदि मनुष्य ऐसा नहीं करेगा तो वह उसका अशुभ कर्म होने के कारण ईश्वरीय व्यवस्था से दण्डनीय हो सकता है।

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धर्म-अध्यात्म

हमारी रक्षा के लिए उसका धन्यवाद करना हम सबका परम कर्तव्य

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प्रतिदिन प्रातः एवं सायं ईश्वर का सम्यक् ध्यान वा सन्ध्या करना सभी मनुष्यों का परम कर्तव्य है। जो नहीं करता वह अपराध करता है। ऋषियों का विधान है कि सन्ध्या न करने वाले के सभी अधिकार छीन लेने चाहिये और उसे श्रमिक कोटि का मनुष्य बना देना चाहिये। सन्ध्या पर अनेक विद्वानों ने टीकायें लिखी हैं। पं. विश्वनाथ वेदोपाध्याय, पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय, पं. चमूपति, स्वामी आत्मानन्द सरस्वती जी आदि की टिकायें उपलब्ध हो जाती हैं। अभ्युदय व निःश्रेयस की प्राप्ति के इच्छुक सभी मनुष्यों को प्रतिदिन दोनों समय सन्ध्या अवश्य करनी चाहिये

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