प्रवक्ता न्यूज़ लोकमंथनः बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ November 27, 2016 by संजय द्विवेदी | Leave a Comment -संजय द्विवेदी भोपाल में संपन्न हुए लोकमंथन आयोजन के बहाने भारतीय बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ देखने को मिला। यह एक ऐसा आयोजन था, जहां भारत की शक्ति, उसकी सामूहिकता, बहुलता-विविधता के साथ-साथ उसकी लोकशक्ति और लोकरंग के भी दर्शन हुए। यह आयोजन इस अर्थ में खास था कि यहां भारत को […] Read more » बौद्धिक विमर्श बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ लोकमंथन
प्रवक्ता न्यूज़ लोकमंथन के राष्ट्रीय यज्ञ से निकलता विश्वव्यापी प्रकाश November 12, 2016 by मयंक चतुर्वेदी | Leave a Comment डॉ. मयंक चतुर्वेदी देश, काल, स्थिति इन तीन विषयों को आधार बनाकर मध्यप्रदेश की राजधानी में हो रहे तीन दिवसीय विचारकों एवं कर्मशीलों के राष्ट्रीय विमर्श लोकमंथन में जिन चिंतकों ने अपने भाव प्रकट किए एवं वर्तमान भारत के सामने चुनौतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए जो कहा कि भारत अपने सनातन मार्ग पर चलकर […] Read more » लोकमंथन लोकमंथन के राष्ट्रीय यज्ञ से निकलता विश्वव्यापी प्रकाश
प्रवक्ता न्यूज़ एक आकांक्षावान भारत का उदय ! November 11, 2016 by संजय द्विवेदी | Leave a Comment भोपाल में आयोजित लोकमंथन के बहाने उपजे कई सवाल -संजय द्विवेदी लगता है देश ने अपने ‘आत्म’ को पहचान रहा है। वह जाग रहा है। नई करवट ले रहा है। उसे अब दीनता नहीं, वैभव के सपने रास आते हैं। वह संघर्ष और मुफलिसी की जगह सफलता और श्रेष्ठता का पाठ पढ़ रहा है। […] Read more » एक आकांक्षावान भारत का उदय ! भोपाल भोपाल में आयोजित लोकमंथन के कार्यक्रम की तिथिवार ब्यौरा लोकमंथन
प्रवक्ता न्यूज़ नये भारत की नींव लोकमंथन November 10, 2016 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment “कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी “! डॉ. नीलम महेंद्र, (लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) आगामी 12 ,13 ,14 नवंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लोकमंथन कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है। जैसा कि इस आयोजन का नाम अपने विषय में स्वयं ही बता रहा है, लोक के साथ मंथन। किसी भी समाज […] Read more » नये भारत की नींव नये भारत की नींव लोकमंथन लोकमंथन
विविधा एक बेहतर दुनिया के लिए लोकमंथन November 6, 2016 by संजय द्विवेदी | Leave a Comment लोकमंथन के बहाने हमें एक नया समाज दर्शन भी चाहिए जिसमें राजनीति नहीं लोक केंद्र में हो। समाज का दर्शन और राजनीति का दर्शन अलग-अलग है। राजनीति का काम विखंडन है जबकि समाज जुड़ना चाहता है। राजनीति समाज को लडाकर, कड़वाहटें पैदाकर अपने लक्ष्य संधान करती है। ऐसे में राजनीति और समाज में अंतर करने की जरूरत है। वैचारिक शून्य को भरे बिना, जनता का प्रशिक्षण किए बिना यह संभव नहीं है। हमें इसके लिए समाज को ही शक्ति केंद्र बनाना होगा। लोगों की आकांक्षाएं, कामनाएं, आचार और व्यवहार मिलकर ही समाज बनाने हैं। Read more » एक बेहतर दुनिया के लिए लोकमंथन लोकमंथन