व्यंग्य व्यंग्य/बाल भोगी महाराज की जय!! August 8, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/बाल भोगी महाराज की जय!! समाज के तमाम सज्जनों की मानसिक कमजोरियों की वजह से, आपकी जेब, हैसियत और असंतोष के प्रति आपका अथाह प्रेम देखकर बाल भोगी जी महाराज आपका खराब हुआ वर्तमान सुधारने चौथी बार आपके शहर में पधार चुके हैं। तमाम मानसिक भोगियों को यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि हम बाल भोगी हर भोग विद्या के […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : हे कुत्ते, तुझे सलाम!! July 26, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य : हे कुत्ते, तुझे सलाम!! वे मेरे परमादरणीय पड़ोसी हैं। मेरे लिए रोल माडल हैं। परमादरणीय इसलिए कि उन्होंने मुझे दुनियादारी की बहुत सी बातें सिखाई हैं। उनके ही आशीर्वाद से मैं यहां तक मक्खन लगाने की कला में निपुण हो पाया हूं। वे न होते तो कसम खाकर कहता हूं कि आज मैं एक अच्छे पद पर होने के […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ तालियां! तलियां!! तलियां!!! July 21, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य/ तालियां! तलियां!! तलियां!!! पहाड़ पर एक गांव था। गांव में सबकुछ था। पर पानी न था। कई बार चुनाव आए। वहां के लोगों से भरे पूरे मुंह मंत्रियों ने वोट के बदले पानी पहुंचाने के वादे किए और वोट ले रफूचक्कर होते रहे। और वे बेचारे पहाड़ पर से कोसों नीचे बहती नदी को देख अपनी प्यास बुझाते […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य : यार, लौट आओ!! – डॉ. अशोक गौतम July 19, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 2 Comments on व्यंग्य : यार, लौट आओ!! – डॉ. अशोक गौतम इस इश्तहार के माध्यम से सर्व साधारण को एक बार फिर सूचित किया जाता है कि हमारे मुहल्ले का पिछले कई महीनों से गुम हुआ प्रेम अभी भी गुम है। इस बारे मैं कई बार देश के प्रमुख समाचार पत्रों के माध्यम से इश्तहार भी दे चुका हूं। पर आज तक न तो सूचना पढ़कर […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ बिन जूते सब सून/ अशोक गौतम July 17, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment विश्व आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा हो तो गुजरता रहे भाई साहब! मुझे विश्व की आर्थिक मंदी से कोई लेना देना नहीं। विश्व को परेशान होते देख पत्नी ने मुझसे कहा, ‘जब तक मैं चाय बनाती हूं, विश्व को ढांढस बंधा आओ।’ ‘मेरे अपने रोने ही क्या कम है जो विश्व के रोने […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/ अपनी राय दीजिए!! May 12, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment वे हाथ में कुछ लहराते हुए पटरी से उतरी रेल के डिब्बे की तरह मेरी ओर आ रहे थे। डर भी लगा, हैं तो मेरे ताऊ! पर इन दिनों ताऊ ही दुश्मनों से अधिक पगला रहे हैं। वैसे भी आज के दौर में दुश्मन कौन से माथे पर दुश्मन का लेबल लगाए आते हैं? सावधानी में ही सुरक्षा है सो मैं सावधान हो गया। असल में क्या है कि न पिछले दिनों मुझे मेरे उस पालतू कुत्ते ने काट दिया जिसे मैं अपने मुंह का भी कौर देता रहा था। Read more » vyangya व्यंग्य
राजनीति व्यंग्य/बिल्लू चले संसद!! May 11, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/बिल्लू चले संसद!! वे अपने आप ही अपने चमचों से मालाएं छीन-छीन कर गले में डाले जा रहे थे, धड़ाधड़-धड़धड़। यह दूसरी बात थी कि अभी भी उन्हें अपनी जीत पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। मुझे भी नहीं हो रहा था कि अपना बिल्लू, बिल्लू राम से बी आर हो गये। Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/शपथ खा, मौज़ मना May 8, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment उसके बीसियों बार अपने बेटे के माध्यम से बुलाने पर मैं कुढ़ा, जला भुना उसके घर पहुंचा। हालांकि वह मेरा इमीजिएट पड़ोसी है। कहते हैं कि पेट और पड़ोस कभी खराब नहीं होने चाहिए। पर कहीं भी देख लो, आजकल और तो सब जगह सब ठीक है पर ये दो ही चीजें ठीक नहीं। Read more » vyangya व्यंग्य शपथ
प्रवक्ता न्यूज़ व्यंग्य/ हिप्प, हिप्प, हुर्रे!! May 7, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment हे मेरे प्रिय वोटरों, हे मेरे आदरणीय सपोर्टरों! आपको यह जानकर अति प्रसन्नता होगी कि मुझे संसद में जाने हेतु हाथी ब्रांड पार्टी का टिकट मिल गया है।हाथ ने डटकर मेरा भोग-उपभोग कर लास्ट मूमेंट में अंगूठा दिखाया। जाते-जाते पूछा, ‘स्टार-व्टार भी हो?’ ‘हूं।’ मैंने सीना तान कर कहा। ‘काहे के?’ ‘भ्रष्टाचार के।’ ‘वो तो […] Read more » vyangya व्यंग्य
प्रवक्ता न्यूज़ व्यंग्य/8230;..बोल मरी मछली कितना पानी!!! May 2, 2009 / December 27, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment उस रोज-रोटी की तलाश में वह तड़के ही निकल पड़ा था। और वे लाल बत्ती वाली कार में शिकार करने। चालक ने बस के एक्सीलेटर पर दोनों पांव पुरजोर रखे थे, क्योंकि बड़े दिनों बाद वह पत्नी के चुंगल से छूट प्रेमिका से मिलने जा रहा था, सो फुल स्पीड में था।उसने भी सोचा, चलो! […] Read more » vyangya व्यंग्य
प्रवक्ता न्यूज़ व्यंग्य/ आ वोटर, जूते मार!! April 30, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | 1 Comment on व्यंग्य/ आ वोटर, जूते मार!! उनका भाषण था कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक घंटा…. दो घंटे… यार क्या इस बंदे ने एक ही जगह चुनावी रैली को संबोधित करना होगा? हद है यार, पानी पर पानी पिए जा रहा है और जो मन में आए बकी जा रहा है।’….मैं हूं ही इसी काबिल, चाहे […] Read more » vyangya व्यंग्य
व्यंग्य व्यंग्य/बुंदु उठ, लीडर बन April 27, 2009 / December 27, 2011 by अशोक गौतम | Leave a Comment बुंदु उठ, घराट बंद कर। चुनाव आ गया। खड्ड सूख गई। सिर में हाथ मत दे। परेशान मत हो। घराट का स्यापा मत कर। वोटर ही मत रह। वोटर होकर बहुत जी लिया। अब लीडर बन। Read more » vyangya लीडर व्यंग्य