Tag: सृष्टि

धर्म-अध्यात्म

-वैदिक साधनप आश्रम तपोवन के शरदुत्सव के दूसरे दिन सायंकालीन का सत्संग-“ऋषि ऋत्मभरा बुद्धि को प्राप्त समाधि अवस्था में वेद मंत्रों के रहस्यों को जानने वाला होता है : आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ”

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मनमोहन कुमार आर्य,  वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के शरदुत्सव के दूसरे दिन सांयकालीन व रात्रिकालीन सत्संग का आरम्भ भजनों से हुआ। प्रथम आर्य भजनोपदेशक श्री आजाद सिंह लहरी ने एक भजन सुनाया जिसके बोल थे ‘ओ३म् नाम का सुमिरन कर ले कह दिया कितनी बार तुझे’। इसके बाद सहारनपुर से पधारे भजनोपदेशक श्री रमेश […]

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कविता

कहाँ जाने का समय है आया !

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  (मधुगीति १८०८०१ अ) कहाँ जाने का समय है आया, कहाँ संस्कार भोग हो पाया; सृष्टि में रहना कहाँ है आया, कहाँ सृष्टि  से योग हो पाया ! सहोदर जीव कहाँ हर है हुआ, समाधि सृष्ट कहाँ हर पाया; समादर भाव कहाँ आ पाया, द्वैत से तर है कहाँ हर पाया ! बीज जो बोये दग्ध ना हैं हुए, जीव भय वृत्ति से न मुक्त हुए; भुक्त भव हुआ कहाँ भव्य हुए, मुक्ति रस पिया कहाँ मर्म छुए ! चित्त चितवन में कहाँ है ठहरा, वित्त स्वयमेव कहाँ है बिखरा; विमुक्ति बुद्धि है कहाँ पाई, युक्ति हो यथायथ कहाँ आई ! नयन स्थिर चयन कहाँ कीन्हे, कहाँ मोती हैं हंसा ने बीने; कहाँ ‘मधु’ उनकी शरण आ पाया, पकड़ हर चरण कमल कब पाया ! रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’

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कला-संस्कृति विविधा

सृष्टि की रचना का पहला दिन

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प्रचीन भारत और मघ्यअमेरिका दो ही ऐसे देश थे, जहां आधुनिक सैकेण्ड से सूक्ष्मतर और प्रकाशवर्ष जैसे उत्कृष्ठ कालमान प्रचलन में थे। अमेरिका में मय सभ्यता का वर्चस्व था। मय संस्कृति में शुक्रग्रह के आधार पर कालगणना की जाती थी। विश्वकर्मा मय दानवों के गुरू शुक्राचार्य का पौत्र और शिल्पकार त्वष्टा का पुत्र था। मय के वंशजो ने अनेक देशों में अपनी सभ्यता को विस्तार दिया। इस सभ्यता की दो प्रमुख विशेषताएं थीं, स्थापत्य कला और दूसरी सूक्ष्म ज्योतिष व खगोलीय गणना में निपुणता। रावण की लंका का निर्माण इन्हीं मय दानवों ने किया था। प्रचीन समय में युग,मनवन्तर,कल्प जैसे महत्तम और कालांश लधुतम समय मापक विधियां प्रचलन में थीं। समय नापने के कालांश को निम्न नाम दिए गए

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