लेख जिंदगी निकट से होकर चली गई… January 2, 2025 / January 2, 2025 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment हम फूल चुनने आए थे बागे हयात में।दामन को खारजार में उलझा के रह गए।। आत्मा की इच्छा थी कि मानव योनि को पाकर ईश्वर का सानिध्य, सामीप्य मिलेगा, उसकी आराधना और उपासना का समय मिलेगा और उसकी आराधना- उपासना का आनंद अनुभव कर सकूँगी। पर मानव ने यहाँ आते ही दूसरी दुकानों पर जाकर […] Read more » जिंदगी
कविता जिंदगी May 22, 2021 / May 22, 2021 by डॉ शंकर सुवन सिंह | Leave a Comment डॉ. शंकर सुवन सिंह सुबह होती है रात होती है|हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|किताब के हर पन्ने पे,वही अध्याय होता है|हर अध्याय में,वही दैनिक दिनचर्या होती है|सुबह होती है,रात होती है|हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है|वक़्त न जाने किस मोड़ पे,किताब की जगह कॉपी दे दे|सारे कर्मों का लेखा जोखा […] Read more » जिंदगी सुबह होती है रात होती है हर दिन यूँ ही खुली किताब होती है……
राजनीति डीएनए कानूनः खुल जाएंगे जिंदगी के राज May 3, 2018 by प्रमोद भार्गव | 1 Comment on डीएनए कानूनः खुल जाएंगे जिंदगी के राज डीएनए कानूनः खुल जाएंगे जिंदगी के राज प्रमोद भार्गव केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को बताया है कि वह संसद के मानसून सत्र में डीएनए प्रोफाइलिंग बिल यानी, ‘मानव डीएनए सरंचना विधेयक‘ पेश करेगी। इस भरोसे के बाद न्यायालय ने गैर-सरकारी संगठन लोकनीति फाउंडेशन की 6 साल पुरानी जनहित याचिका का निपटारा कर दिया। इस […] Read more » Featured उच्चतम न्यायालय केंद्र सरकार जिंदगी डीएनए कानून पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी व कवयित्रि मधुमिता शुक्ला व्यक्तिगत स्वतंत्रता सेंटर फाॅर सेल्युल
चिंतन समस्याओं का मूल कहां है ? June 17, 2015 / June 17, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- हर मनुष्य सफल होना चाहता है और सफलता के लिये जरूरी है समस्याओं से संघर्ष। समस्याओं रूपी चुनौतियों का सामना करने, उन्हें सुलझाने में जीवन का उसका अपना अर्थ छिपा हुआ है। समस्याएं तो एक दुधारी तलवार होती है, वे हमारे साहस, हमारी बुद्धिमता को ललकारती है और दूसरे शब्दों में वे हममें […] Read more » Featured जिंदगी जीवन परेशानी बुद्धि समस्याओं का मूल कहां है ? समाधान हल
चिंतन श्रेय और प्रेय का मार्ग June 13, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -अशोक “प्रवृद्ध”- पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण में दो ध्रुव – उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव हैं । दोनों ध्रुवों को ही पृथ्वी की धुरी कहा जाता हैं और दोनों में ही असाधारण शक्ति केन्द्रीभूत मानी जाती हैं । इसी भान्ति चेतन तत्त्व के भी दो ध्रुव हैं जिन्हें माया और ब्रह्म कहा जाता है […] Read more » Featured जिंदगी जीवन मनुष्य श्रेय और प्रेय का मार्ग
चिंतन आसान बनाएं जिन्दगी June 11, 2015 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on आसान बनाएं जिन्दगी -डॉ. दीपक आचार्य- बहुद्देशीय प्रतिस्पर्धा और तेज रफ्तार भरे इस युग में दूसरी सारी बातों से कहीं अधिक जरूरी है जिन्दगी को आसान बनाना। हम सभी का जीवन खूब सारी जटिलताओं और घुमावदार रास्तों से होकर गुजरने वाला बना हुआ होने से जिन्दगी का काफी कुछ समय निरर्थक भी बना हुआ है और बरबाद […] Read more » Featured आसान बनाएं जिन्दगी जिंदगी जीवन मनुष्य
कला-संस्कृति खोने लगे हैं मूल्य और संस्कार June 6, 2015 by डॉ. दीपक आचार्य | 1 Comment on खोने लगे हैं मूल्य और संस्कार -डॉ. दीपक आचार्य- जब तक मूल्यों का दबदबा था तब तक सभी प्रकार की अच्छाइयों का मूल्य था। जब से मूल्यहीनता का दौर आरंभ हुआ है सभी प्रकार के मूल्यों में गिरावट आयी है। मूल्यों में जब एक बार गिरावट आ जाती है तब यकायक इसका पारा ऊपर नहीं चढ़ पाता। यह कोई सेंसेक्स […] Read more » Featured खोने लगे हैं मूल्य और संस्कार जिंदगी जीवन संस्कार
चिंतन वैष्णव जन तो तैने कहिये, जे पीर पराई जाने रे June 4, 2015 / June 4, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- आप अपनी जिंदगी किस तरह जीना चाहते हैं? यह तय होना जरूरी है, आखिरकार जिंदगी है आपकी! यकीनन, आप जवाब देंगे-जिंदगी तो अच्छी तरह जीने का ही मन है। यह भाव, ऐसी इच्छा इस तरह का जवाब बताता है कि आपके मन में सकारात्मकता लबालब है, लेकिन यहीं एक अहम प्रश्न उठता है-जिंदगी […] Read more » Featured इंसान जिंदगी जीवन जे पीर पराई जाने रे मनुष्य वैष्णव जन तो तैने कहिये
चिंतन मनुष्य की वास्तविक पहचान के मायने May 21, 2015 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- मानव धर्म का हार्द है मनुष्य का मनुष्य के प्रति तादात्म्य भाव, एक-दूसरे के प्रति संवेदनशीलता और नैतिक एवं चारित्रिक उज्ज्वलता। जो धर्म मनुष्य को दुर्गति, हीनता और चारित्रिक भ्रष्टता से मुक्त करता है, जो हर इंसान की आत्मा को तेजोदीप्त बनाता है, हर हृदय को परदुःखकातर और संवेदनशील बनाता है, उसे मानव […] Read more » Featured जिंदगी मनुष्य मनुष्य की वास्तविक पहचान के मायने
विविधा मरना कठिन है, पर जीवित रहना उससे अधिक कठिन होता है May 19, 2015 by गंगानन्द झा | 4 Comments on मरना कठिन है, पर जीवित रहना उससे अधिक कठिन होता है -प्रो. गंगानन्द झा- मूल्य-बोध धारण किए रहने वालों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती रहती है, इसलिए उनका जीना और भी अधिक कठिन हो जाया करता है। हमारे पिता के जीवन में कठिनाइयों का अभाव कभी भी नहीं रहा ; मरना भी सहज और यन्त्रणा-रहित नहीं रहा । कठिनाइयाँ तो औसत आदमी के जीवन में […] Read more » Featured जिंदगी जीवन मरना कठिन है पर जीवित रहना उससे अधिक कठिन होता है
कविता जिंदगी August 8, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- हो गया हूं मैं थोड़ा इस जिंदगी से निराश, पर कही जगी हुई है, मेरे अंदर थोड़ी आस। लाख कोशिशें कर ली मैंने, वक्त पर किसका जोर है, हाय तौबा मची जहां में, हर तरफ तो शोर है। वक्त का आलम है ऐसा, कर दिया जिसने मजबूर, खेला ऐसा खेल मुझसे, […] Read more » कविता जिंदगी जिंदगी कविता हिन्दी कविता
कहानी कहानी/ अपनी-अपनी जिंदगी June 28, 2011 / December 9, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment आर. सिंह अमर थोड़ी देर पहले ऑफिस से लौटा था और चाय पीकर निकल पड़ा था यों ही सड़क नापने. चलते-चलते वह सोच भी रहा था कि क्या अजीब मूडी इंसान है वह भी. यह भी पता नहीं क्या करना है? कहाँ जाना है? पर सड़क नापे जा रहे हैं. सीधी सादी जिंदगी थी अमर […] Read more » life जिंदगी