धर्म-अध्यात्म श्रीमद्भगवद्गीता व सत्यार्थप्रकाश के अनुसार जीवात्मा का यथार्थ स्वरूप October 1, 2015 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment जीवात्मा के विषय में वैदिक सिद्धान्त है कि यह अनादि, अनुत्पन्न, अजर, अमर, नित्य, चेतन तत्व वा पदार्थ है। जीवात्मा जन्ममरण धर्मा है, इस कारण यह अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार जन्म लेता है, नये कर्म करता व पूर्व कर्मों सहित नये कर्मों के फलों को भोक्ता है और आयु पूरी होने पर मृत्यु को […] Read more » Featured जीवात्मा का यथार्थ स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता सत्यार्थप्रकाश
साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-७ August 11, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 1 Comment on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-७ विपिन किशोर सिन्हा प्रत्येक मनुष्य, मनुष्य ही नहीं प्रत्येक जीवात्मा में ईश्वर का अंश है। प्रकृति की प्रत्येक कृति ईश्वर की उपस्थिति की अनुभूति कराती है। प्रत्येक मनुष्य ईश्वर का ही अवतार या रूप है, समस्या सिर्फ स्वयं को पहचानने की है। प्रत्येक मनुष्य में ईश्वरत्व प्राप्त करने की क्षमता होती है। गीता के माध्यम […] Read more » Srimadbhagwat Gita छद्म धर्मनिरपेक्षवादी श्रीमद्भगवद्गीता
साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-६ August 10, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 4 Comments on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-६ विपिन किशोर सिन्हा छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों का श्रीमद्भगवद्गीता पर एक आरोप यह भी है कि गीता जाति-व्यवस्था को न सिर्फ स्वीकृति देती है, वरन् इसे ईश्वरीय भी मानती है। अपने समर्थन में वे गीता के अध्याय चार के निम्न श्लोक का उद्धरण देते हैं – चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः। तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्॥ “चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं” […] Read more » Srimadbhagwat Gita छद्म धर्मनिरपेक्षवादी श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी
धर्म-अध्यात्म श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-४ August 8, 2011 / August 8, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 4 Comments on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-४ विपिन किशोर सिन्हा कर्म गीता का मूलमंत्र है। निष्काम कर्मयोग में सारे दर्शन समाहित हैं। Work is worship — कार्य ही पूजा है, का सिद्धान्त गीता से निकला (Derived) है। ईश्वर की प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण के पूर्व यह मान्यता थी कि संसार का परित्याग कर घने वन, पर्वत पर, नदी के किनारे या […] Read more » छद्म धर्मनिरपेक्ष श्रीमद्भगवद्गीता
धर्म-अध्यात्म श्रीमद्भगवद्गीता और छद्मधर्मनिरपेक्षवादी : चर्चा-३ August 7, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment विपिन किशोर सिन्हा प्रवक्ता में इसी सप्ताह एक लंबे लेख में एक निरंकुश लेखक ने गीता के एक श्लोक को उद्धरित करते हुए टिप्पणी लिखी है — “इस श्लोक का हिन्दी अनुवाद हिन्दुओं में आदरणीय मानेजाने वाले विद्वान आदि शंकर ने आठवीं शताब्दी में इस प्रकार किया है –” लेखक के अज्ञान पर रोना आता […] Read more » Srimadbhagwat Gita छद्मधर्मनिरपेक्ष श्रीमद्भगवद्गीता
साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-२ August 6, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 5 Comments on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-२ विपिन किशोर सिन्हा श्रीकृष्ण को अच्छी तरह समझे बिना गीता तक नहीं पहुंचा जा सकता। शरीर और आत्मा जैसी दो चीजें नहीं हैं। आत्मा का जो छोर दिखाई देता है, वह शरीर है और शरीर का जो छोर दिखाई नहीं पड़ता, वह आत्मा है। परमात्मा और संसार जैसी दो चीजें नहीं हैं। परमात्मा और प्रकृति […] Read more » Srimadbhagwat Gita कृष्ण छद्म धर्मनिरपेक्षवादी श्रीमद्भगवद्गीता
धर्म-अध्यात्म श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-१ August 5, 2011 / December 7, 2011 by विपिन किशोर सिन्हा | 7 Comments on श्रीमद्भगवद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-१ विपिन किशोर सिन्हा जबसे मध्य प्रदेश की सरकार ने गीता के अध्ययन की विद्यालयों में व्यवस्था की है, स्वयं को प्रगतिशील और धर्म निरपेक्ष कहने वाले खेमे में एक दहशत और बेचैनी व्याप्त हो गई है। उनके पेट में दर्द होने लगा है। उनको यह डर सताने लग गया है कि अगर इसकी स्वीकृति हिन्दू […] Read more » Srimadbhagwat Gita धर्मनिरपेक्षता श्रीमद्भगवद्गीता