विविधा आदिवासियों का प्रणय पर्व भगोरिया February 14, 2011 / December 15, 2011 by सतीश सिंह | 4 Comments on आदिवासियों का प्रणय पर्व भगोरिया सतीश सिंह आधुनिकता का लबादा ओढ़कर हम धीरे-धीरे अपनी सभ्यता, संस्कृति, परम्परा और पहचान को भूलने लगे हैं। जबकि हमारे रीति-रिवाज हमारे लिए संजीविनी की तरह काम करते हैं। हम इनमें सराबोर होकर फिर से उर्जस्वित हो जाते हैं और पुन: दूगने रफ्तार से अपने दैनिक क्रिया-कलापों को अमलीजामा पहनाने में अपने को सक्षम पाते हैं। […] Read more » Aboriginal आदिवासी भगोरिया
समाज आदिवासियों में जेण्डर समानता का मिथ December 18, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी आदिवासियों के बारे में यह मिथ प्रचलित है कि उनमें स्त्री-पुरूष का भेद नहीं होता। यह धारणा बुनियादी तौर पर गलत है। आदिवासियों के परंपरागत नियम-कानून के मुताबिक स्त्री का दर्जा पुरूष से नीचे है। वह पुरूष की मातहत है। जिन आदिवासी इलाकों में जमीन के सामूहिक स्वामित्व की जगह जमीन के व्यक्तिगत […] Read more » Aboriginal आदिवासी
समाज आदिवासी जीवन में परिवर्तन का विरोध क्यों ? December 10, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 1 Comment on आदिवासी जीवन में परिवर्तन का विरोध क्यों ? -जगदीश्वर चतुर्वेदी आदिवासियों के जब भी सवाल उठते हैं तो एक सवाल मन में आता है कि क्या आदिवासी अपरिवर्तनीय हैं ? क्या वे जैसे रहते आए हैं उन्हें वैसे ही रहने दिया जाए ? भारत में पूंजीवादी परिवर्तनों का आदिवासियों पर क्या असर हुआ है ? भारत में 400 आदिवासी समुदाय रहते हैं। जिन्हें […] Read more » Aboriginal आदिवासी
समाज आदिवासी कौन है ? December 4, 2010 / December 19, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | 5 Comments on आदिवासी कौन है ? -जगदीश्वर चतुर्वेदी ‘आदिवासी’ पदबंध के बारे में पहली बात यह कि यह हिन्दी का नाम है और हिन्दी क्षेत्र में इसकी एक सीमा तक प्रासंगिकता है। लेकिन अन्यत्र कोई प्रासंगिकता नहीं है। ‘आदिवासी’ पदबंध विभ्रम पैदा करता है। यह मूल जनजातियों के साथ अनेय जनजातियों के बीच तनाव पैदा करता है। ‘आदिवासी’ पदबंध के पीछे […] Read more » Aboriginal आदिवासी
स्वास्थ्य-योग स्वास्थ्य के मानकों पर लड़ाई हारते आदिवासी June 23, 2010 / December 23, 2011 by राखी रघुवंशी | Leave a Comment -राखी रघुवंशी खुली अर्थव्यवस्था, बाजारवाद और नव उपभोक्तावाद की चकाचौंध में कई मूलभूत समस्याएं सरकारी फाइलों में, नेताओं के झूठे वादों में और समाज के बदलते दृष्टिकोण के चलते दबकर रह जाती हैं। गरीबी, बदतर स्वास्थ्य सेवाएं और अशिक्षा के साथ-साथ बच्चों का बढ़ता कुपोषण भारत में एक बड़ी समस्या है जिसका निदान कहीं नहीं […] Read more » Aboriginal आदिवासी कुपोषण
विविधा वंचित जनजातियों की तरक्की में राह बनना होगा June 11, 2010 / December 23, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on वंचित जनजातियों की तरक्की में राह बनना होगा – भरतचंद्र नायक अराजकता को ही सरल भाषा में जंगल कानून कहा जाता है। लेकिन यह एक हकीकत है कि जंगल कानून को तोड़कर देश और मध्यप्रदेश के जनजाति समुदाय और स्वतंत्रता प्रेमी जनता ने ब्रिटिश शासन को कड़ी चुनौती दी थी। माना जाता है कि स्वतंत्रता प्रेमी वनवासियों की उत्कट आजादी की लालसा का […] Read more » Aboriginal आदिवासी जनजाति वनवासी
विविधा घास की रोटी आदिवासियों के हिस्से में ही क्यों? May 4, 2010 / December 24, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on घास की रोटी आदिवासियों के हिस्से में ही क्यों? -अशोक मालवीय इन दिनों मध्यप्रदेश के अखबारों की सुर्खियों में खबर हैं कि ”घास की रोटी खा रहे है आदिवासी” यह खबर ने तूल पकड़ा हैं रायसेन जिले की सिलवानी तहसील के आदिवासी बाहुल्य ग्राम गजनई से यहां पर आदिवासी समुदाय भुखमरी से लड़ने के लिये घास की रोटी खा-खाकर जिन्दा है। यह उस प्रजाति […] Read more » Aboriginal आदिवासी
प्रवक्ता न्यूज़ आदिवासियों को पट्टे न मिलने से खफा है केंद्र January 7, 2010 / December 25, 2011 by लिमटी खरे | Leave a Comment छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश काफी पिछडे नई दिल्ली 05 जनवरी। आदिवासियों को वनभूमि के पट्टे देने की केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना में पलीता लगाने वाले राज्यों पर जल्द ही केंद्र सरकार की नजरें तिरछी हो सकतीं हैं। देश के लगभग डेढ दर्जन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग तीस लाख प्रकरण अभी भी […] Read more » Aboriginal वन पट्टा