बच्चों का पन्ना चांद पे बुढ़िया रहती क्यों है October 9, 2012 / October 9, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment चांद युवाओं की बस्ती है चांद पे बुढ़िया क्यों रहती है पता नहीं युवकों की पीढ़ी यह गुस्ताखी सहती क्यों है | पूर्ण चंद्र पर जाने कब से डाल रखा है उसने डेरा सदियों सदियों से देखा है जग ने उसका वहीं बसेरा जाये तपस्या करने वन में वहां पड़ी वह रहती क्यों है | […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना हम रिश्वत न खायेंगे October 9, 2012 / October 9, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 2 Comments on हम रिश्वत न खायेंगे ‘ पापा अगर आज आप ,रिश्वत के रुपये लायेंगे, तो निश्चित ही आज शाम का ,खाना हम न खायेंगे| यदि गरीब निर्बलों से न,रिश्वत लेना बंद किया, भ्रष्टाचार विरोधी जन,आंदोलन से जुड़ जायेंगे| कापी कलम किताबॆं यदि, रिश्वत के धन से आयेंगीं, तब तो यह तय है पापाजी,हम पढ़ लिख न पढ़ पायेंगे| रिश्वत का […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना दादी को समझाओ जरा October 9, 2012 / October 9, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment मुझे कहानी अच्छी लगती कविता मुझको बहुत सुहाती पर मम्मी की बात छोड़िये दादी भी कुछ नहीं सुनातीं पापा को आफिस दिखता है मम्मी किटी पार्टी जातीं दादी राम राम जपती हैं जब देखो जब भजन सुनातीं मुझको क्या अच्छा लगता है मम्मी कहां ध्यान देती हैं सुबह शाम जब भी फुरसत हो टी वी […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना मोबाईल का आर्डर October 8, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सुबह ‘चार’ पर मुर्गे उठकर, हर दिन बाँग लगाते थे| सोने वाले इंसानों को, “उठो उठो “चिल्लाते थे| किंतु आजकल भोर हुये, आवाज़ नहीं ये आती है| लगता है कि अब मुर्गों की, नींद नहीं खुल पाती है| मुर्गों के घर चलकर उनको, हम मोबाईल दे आयें| और अलार्म है, कैसे भरना, […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना तुलसी चौरा मुस्कराता October 8, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment बिल्ली को मौसी कहते हैं , और गाय को हम माता| यही हमारे संस्कार हैं, पशुओं तक से है नाता| चिड़ियों को देते हैं दाना, कौओं को रोटी देते| प्यासों को पानी देने में, हमको मज़ा बहुत आता| यहाँ बाग में फूलों फूलों हर दिन भँवरा मड़राता, पेड़ लगा है जो आंगन में […] Read more » poem for kids तुलसी चौरा मुस्कराता
बच्चों का पन्ना मां October 8, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment गरम तवे पर रोटी जैसी, हर दिन सिकती रहती मां| फिर भी मटके के जल जैसी ,शीतल दिखती रहती मां| चेहरे पर मुस्कान बिखेरे ,खिल खिल हँस भी लेती है, बिना कोई दुख दर्द बताये ,सब कुछ सहती रहती मां| सर्कस के तंबू में जैसे, इस झूले से उस झूले, घर में किसी […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना चुहिया की नसीहत October 8, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सुबह सुबह चूहे ने कर दी, सिगरेट की फरमाइश| बोला चुहिया से, लेकर आ, अच्छी सी सिगरेट बस| लंबा एक लगाऊँगा कस, बड़ा मजा आयेगा| सिगरेट पीकर जैसे मेरा, जन्म सुधर जायेगा| चुहिया बोली सही बात है, कश लंबा ही लेना| कश लेने को बिछा दिया है, मैंने एक बिछोना| अच्छा लंबा कश लेने से, […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना बड़े बुजुर्गों के चरणों में October 8, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment जब से हुई दोस्ती उसकी मच्छरजी के साथ मक्खी उससे हर दिन करती मोबाईल पर बात। हाय हलो करते करते वह हँसती जाती है कहती है कि मच्छर भैया आओ मेरे पास। दोनों खूब करेंगे मस्ती नाचें गायेंगे घर से बाहर आज गई है मेरी बूढ़ी सास। मच्छर बोला सासु की इज्जत करना सीखो बड़े […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना मेंढक मामा October 8, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment क्यों न सच्ची बात बताते| मेंढक मामा क्यों टर्राते| डबरों में पानी कम है तो, बादल को क्यों नहीं बुलाते? यदि नहीं बरसा पानी तो नगर पालिका क्यों न जाते एक टेंकर पानी भरकर, क्यों अपने घर नहीं ले आते? [2] फ्राग फ्राग ,फ्राग व्हाई आर यू क्राइंग| टू साल्व युवर प्राबलम, वी आर […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना जंगल October 7, 2012 / October 8, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment पीपल नीम आम के जंगल होते बड़े काम के जंगल | कितने निश्छल भोले भाले होते तीर कमान के जंगल | कभी कभी क्यों हो जाते हैं बारूदी अंजाम के जंगल | बच्चो कभी न बनने देना ओसामा सद्दाम के जंगल | वंशी की मधु तान सुनाते नटनागर घनश्याम के जंगल | रामायण के पाठ […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना अम्मा बापू October 6, 2012 / October 6, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सुबह-सुबह जब धूप गुनगुनी, छत पर आती है| सूरज कि किरणों में बैठी, मां मुस्कराती है। आसमान भी देख देख कर, गदगद हो जाता| जब छत रूपी बिटिया को, हँसकर दुलराती है। ठंडी शीतल हवा झूमती, नदियों के ऊपर| लहरों पर भी खुशियों की, चादर बिछ जाती है| बिजली के तारों पर […] Read more » poem for kids
बच्चों का पन्ना नाक पकड़ ,सारी मत बोलो October 6, 2012 / October 6, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on नाक पकड़ ,सारी मत बोलो आद्ध्या बोली,नाक पकड़ सारी मत बोलो दादाजी| नियम कायदे नहीं जानते ,पोल न खोलो दादाजी| कान पकड़कर ही तो सारी ,बोला जाता है हरदम, किंतु ताज्जुब है दादाजी ,अक्ल आपमें इतनी कम| अब तो कान पकड़कर सारी ,सबको बोलो दादाजी| नियम कायदे नहीं जानते ,पोल न खोलो दादाजी| नहीं थेंक यू अब तक बोला , […] Read more » poem for kids