कविता वंदना शर्मा की कविता March 16, 2010 / December 24, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on वंदना शर्मा की कविता याद आता है मुझे वो बीता हुआ कल हमारा, जब कहना चाहते थे तुम कुछ मुझसे, तब मै बनी रही अनजान तुमसे, जाना चाहती थी मैं दूर, पर पास आती गई तुम्हारे, लेकिन धीरे-धीरे होती रही दूर खुदसे, फिर तो जैसे आदत बन गई मेरी हर जगह टकराना जाके यूँ ही तुमसे, जब तक नहीं […] Read more » poem कविता
कविता कविता : अब हैरान हूँ मैं …. February 12, 2010 / December 25, 2011 by शिवानंद द्विवेदी | 2 Comments on कविता : अब हैरान हूँ मैं …. जीवन की इस भीड़ भरी महफ़िल में, एक ठहरा हुआ सा वीरान हूँ मै, क्यों आते हो मेरे यादों के मायूस खंडहरों में , अब चले जाओ बड़ा परेशान हूँ मै … तुमसे मिलकर ही सजोयी थी चंद खुशियाँ मैंने, पर तुम्हें समझ ना पाया ऐसा अनजान हूँ मैं, बड़ा मासूम बनकर उस दिन जो […] Read more » poem
कविता मत आना लौट कर January 28, 2010 / December 25, 2011 by केशव आचार्य | 3 Comments on मत आना लौट कर मत आना इस धरा पर तुम लौट कर, इस विश्वास के साथ कि तुम्हारे तीनों साथी अब भी बैठे होंगे, कान आंख और मुंह बंद कर बुरा ना सुनने, देखने और कहने के लिए, मत आना तुम इस धरा पर लौट कर इस आशा के साथ कि तुम्हारी लाठी अब भी तुम्हारे रास्ते का हमसफ़र […] Read more » poem कविता
कविता मां शारदे मुझे सिखाती January 20, 2010 / December 25, 2011 by स्मिता | 2 Comments on मां शारदे मुझे सिखाती दौर नया है युग नया है हानि-लाभ की जुगत में चारों ओर मची है आपाधापी मां शारदे मुझे सिखाती तर्जनी पर गिनती का स्वर न काफी भारत की थाती का ज्ञान न काफी सिर्फ अपना गुणगान न काफी मां शारदे मुझे सिखाती नवसृजन की भाषा सीखो मानव मुक्ति का ककहरा सीखो भव बंधन के बीच […] Read more » poem कविता मां शारदे
कविता कविता / मेरा मन December 13, 2009 / December 25, 2011 by सतीश सिंह | 3 Comments on कविता / मेरा मन ई मेल के जमाने में पता नहीं क्यों आज भी मेरा मन ख़त लिखने को करता है। मेरा मन आज भी ई टिकट की जगह लाईन में लग कर रेल का आरक्षण करवाने को करता है। पर्व-त्योहारों के संक्रमण के दौर में मेरा मन बच्चों की तरह गोल-गप्पे खाने को करता है। फोन से तो […] Read more » poem कविता
कविता साहित्य कविता \ रंग October 9, 2009 / December 26, 2011 by हिमांशु डबराल | Leave a Comment रंग बदल जाते है धुप में, सुना था फीके पड़ जाते है, सुना था पर उड़ जायेंगे ये पता न था! हाँ ये रंग उड़ गए है शायद… जिंदगी के रंग इंसानियत के संग, उड़ गए है शायद… अब रंगीन कहे जाने वाली जिंदगी, हमे बेरंग सी लगती है, शक्कर भी हमें अब फीकी सी […] Read more » poem कविता
कविता साहित्य कविता : पंख फैलाकर वो उड़ गया…..!! October 6, 2009 / December 26, 2011 by शालिनी अग्रहरि | 12 Comments on कविता : पंख फैलाकर वो उड़ गया…..!! आसमान से एक पक्षी गिरा, फिर शुरू हुआ उसके जीवन का सिलसिला जब-जब वो उड़ना चाहे, तब-तब वो नीचे गिर जाए जब-जब उसने पंख फैलाए तब-तब उसके दर्द उभर आये, उसके थे बस इतने अरमान, वो बने सबके दिल का मेहमान, उसकी नहीं टूटी आस, उसको था खुद पर विश्वास, उसका विश्वास हिम्मत बन गया, […] Read more » poem कविता
कविता कविता / नचिकेता शेष है, भगीरथ जिंदा है September 5, 2009 / December 26, 2011 by राकेश उपाध्याय | 2 Comments on कविता / नचिकेता शेष है, भगीरथ जिंदा है उम्र से बड़प्पन नहीं आता दिमाग से भी नहीं, ये दिल का सवाल है भाई दिल बड़ा है तो आदमी भी बड़ा हो जाता है। जगत में आए हो तो कुछ ऐसा कर जाओ कि आने वाली नस्लें तुम्हें सम्मान से याद करें, जब तुम मिलो अपने चाहने वालों से तो तुम्हारी आंख ना झुके। […] Read more » poem कविता
कविता अमल कुमार श्रीवास्तव……..की कविता September 5, 2009 / December 26, 2011 by अमल कुमार श्रीवास्तव | 3 Comments on अमल कुमार श्रीवास्तव……..की कविता न छेड़ो चिंगारियों को आग लग जाएंगी जलजले उठ जाएंगे सारी चमन जल जाएंगी न समझो इन्सानियत को हमारे तुम बेकारगी जो खड़े हो गए भारत मां के सच्चे सपूत तो आतंकियों तुम्हारी अस्तित्व ही मिट जाएंगी।… Read more » poem
कविता रामस्वरूप रावतसरे की पांच लघु कविताएं September 5, 2009 / December 26, 2011 by रामस्वरूप रावतसरे | Leave a Comment 1-नीम नीम खुद ही हकीम 2-हिम्मत फटे को सीना और सिले को फाडना हिम्मत का काम है 3-घर आदमी को पता है, घर जाते ही समस्याओं से जुझना पडेगा फिर भी वह खूंटे के बैल की तरह गर्दन नीची किए हर शाम चला जाता है घर 4-मूल्यांकन हम उच्च व्यवस्था का दम्भ भरते है पर […] Read more » poem
कविता कविता/अबोध बच्चा August 7, 2009 / December 27, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on कविता/अबोध बच्चा अबोध बच्चा कल मिला मुझे अबोध बच्चा एक आंखों में आंसू होंठों पर सिसकियों के साथ न जाने उसका अपना कौन, क्या कहां गुम था ? सुनाई पड़ रही थी उसके रोने की हिचकियां चुप कराने की बहुत की कोशिश बच्चा नहीं माना नहीं थम रहे थे आंसू आंखों में टंगा था किसी के लिए […] Read more » poem कविता
प्रवक्ता न्यूज़ कनिष्क: वो दरिया था,आकर उन्हे बुझा जाता August 5, 2009 / December 27, 2011 by कनिष्क कश्यप | Leave a Comment मैं शौक से मनाता जश्न उनकी जीत का उस रौशनी में लेकिन कई घर जल रहे थे मलाल तो था जरूर उनके जलने का उनकी छावं मे हम कब से पल रहे थे वो दरिया था,आकर उन्हे बुझा जाता दूर कहीं शायद पत्थर पिघल रहे थे नही थी खबर ज़िन्दगी बसती हैं यहीं हम तो […] Read more » poem कनिष्क कश्यप कनिष्क की कविताएं कविता कविताएं ग़जल