राजनीति बलात्कार, ब्लैकमेल और ‘सबाब’ May 5, 2025 / May 5, 2025 by गजेंद्र सिंह | Leave a Comment गजेन्द्र सिंह अभी मई 2025 में भोपाल की घटनाएं, जहाँ मुस्लिम युवकों द्वारा संगठित रूप से हिन्दू लड़कियों को फंसाकर बलात्कार किया गया, वीडियो बनाकर ब्लैकमेल किया, रोजे रखवाए, बुर्का पहना कर फोटो खिंचवाया, इस तरह के घृणित कृत्य समाज को झकझोरने वाले हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मो फरमान ने इकबाले बयान में कहा कि मुझे कोई पछतावा नहीं है, मुझे “सबाब” मिला। ये घृणित कृत्य तब और भी कठोर हो जाते है जब युवा अपराधों को धर्म के आयतो से न्ययोचित ठहराते है। क्या सच में मुस्लिम युवाओं को हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार करने पर सबाब मिलता है ? क्या किसी भारतीय मौलवी, धर्मगुरु और इस्लामिक स्कॉलर ने इस युवा की बात का तथ्यात्मक खंडन किया ? 1992, अजमेर में 11 से 20 साल की उम्र की 250 हिंदू छात्राएं फारूक और नफीस चिश्ती के नेतृत्व में सामूहिक बलात्कार और ब्लैकमेलिंग की शिकार हुईं । ब्यावर जिले में मुस्लिम युवकों द्वारा हिंदू नाबालिग लड़कियों का शोषण और ब्लैकमेल किया गया, जिसका बिजयनगर पुलिस थाने में मामले दर्ज किया गया। हाल ही में उत्तराखंड में 74 वर्षीय मौलवी द्वारा एक 12 वर्षीय हिन्दू बच्ची के साथ बलात्कार करना, 1992 के अजमेर कांड से लेकर उत्तराखंड में एक मौलवी द्वारा नाबालिग बच्ची से बलात्कार तक, कई ऐसे मामले रहे हैं जहाँ पीड़ित पक्ष ने धार्मिक कट्टरता, सामूहिक और व्यवस्थागत शोषण की पीड़ा झेली है। यह न केवल पीड़ितों के लिए अमानवीय है बल्कि समाज की उस चुप्पी को भी उजागर करता है जो इन अपराधों के प्रति केवल “धार्मिक तुष्टिकरण” या “राजनीतिक सुविधा” के कारण खामोश रहती है। बेशक, अपराध कानून के दायरे में आते हैं और हर दोषी को न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से सज़ा मिलनी चाहिए लेकिन जब अपराध के पीछे धार्मिक पहचान, धार्मिक शिक्षा या धार्मिक ग्रंथों की विकृत व्याख्या एक कारक बन जाती है, तब यह केवल कानून का विषय नहीं रह जाता बल्कि सामाजिक, धार्मिक और वैचारिक नेतृत्व की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे सामने आएं और स्पष्ट प्रतिक्रिया दें। जिस तरह की महिलाओं और बच्चियों के साथ लगातार हो रहे अपराध पर सोशल मीडिया के माध्यम से इस्लामिक स्कॉलर, मौलवी और अन्य धर्म उपदेशकों द्वारा इसे 72 हूरो और इस्लाम और कुरान की आयतों के नाम पर जायज और इस्लाम परस्त ठहराया जा रहा है। क्या सच में ये इस्लाम के नाम पर पाखंड नहीं है ? क्या ये युवाओं के मन में घृणा और भ्रम पैदा नहीं करता है? वहीं, कुछ चिंतकों का यह भी मत है कि जिन अपराधों को इस्लाम और कुरान के नाम पर वैध ठहराया जाता है, उनके मूल में इस्लामिक शिक्षा की कुछ व्याख्याएं, मदरसों में दी जा रही कट्टर शिक्षा, सोशल मीडिया पर प्रसारित इस्लामिक स्कॉलर्स के भाषण, 72 हूरों की अवधारणा और बहुविवाह जैसी परंपराएं हैं जो लगातार नई पीढ़ी को भ्रमित और उग्र बना रही हैं। जहाँ सोशल मीडिया पर इस्लामिक स्कॉलर्स या कुछ मौलवियों द्वारा अपराधों का समर्थन, कुछ प्रगतिशील विचारधारा के लोगो द्वारा तुष्टिकरण किया जाता है, वहीं समाज के प्रभावशाली वर्ग की चुप्पी और सोशल मीडिया के माध्यम से दोहरे मापदंड क्या आत्मघाती नहीं है ? हर बार जब कोई अपराध धर्म के नाम पर होता है, अथवा धर्म से उसे न्ययोचित किया जाता है तो सम्पूर्ण समुदाय और धर्म के अनुयायी क्या कटघरे में खड़े नहीं होते? क्या सामूहिक दोषारोपण से सामाजिक समरसता को क्षति अनुयायी नहीं पहुँचती ? क्या धार्मिक, सामाजिक और वैचारिक नेतृत्व को सामने आकर स्पष्ट और सशक्त प्रतिक्रिया देने की जरुरत नहीं है ? क्या धर्मगुरुओं को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वे न केवल देशविरोधी कृत्यों का स्पष्ट रूप से विरोध करें बल्कि धर्म की सही व्याख्या करें और देश के प्रति सम्मान को भी उजागर करें, ताकि नई पीढ़ी उसका अनुसरण कर सके और धार्मिक मूल्यों की सच्ची भावना बनी रहे। अपराध को व्यक्ति की ज़िम्मेदारी मानकर देखा जाता रहा है किन्तु जब अपराध सामूहिक रूप से संगठित हों, और उनमें धार्मिक पहचान या विचारधारा की भूमिका दिखे, तब पूरे समुदाय के बुद्धिजीवी वर्ग और धार्मिक नेतृत्व को सामने आकर यह कहना होगा — “यह हमारे धर्म की आत्मा नहीं है।” मदरसों, धार्मिक संस्थानों की जिम्मेदारी केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि उस शिक्षा की मानवीय व्याख्या, संवेदनशीलता और नैतिकता का प्रशिक्षण भी होना चाहिए। धर्म को डर या भ्रम का उपकरण न बनाकर करुणा, समानता और सह-अस्तित्व का आधार बनाया जाना चाहिए। जब समाज का प्रभावशाली वर्ग — चाहे वह मीडिया हो, बुद्धिजीवी हों या राजनेता — इन घटनाओं पर केवल राजनीतिक लाभ-हानि के चश्मे से प्रतिक्रिया देता है या चुप रहता है, तब यह चुप्पी ही सबसे बड़ा अपराध बन जाती है। यह न केवल युवाओं को भ्रमित करती है, बल्कि अपराधियों को यह संदेश भी देती है कि उनके पास धार्मिक तुष्टिकरण का कवच है। गजेंद्र सिंह Read more » blackmail and 'Sabaab' rape ब्लैकमेल और 'सबाब'
महत्वपूर्ण लेख राजनीति करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार June 10, 2019 / June 10, 2019 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment हर आँख नम है हर शख्स शर्मिंदा है क्योंकिआज मानवता शर्मसार है इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे लेकिन आज का समाज तो इनके […] Read more » aligarh rape case kathua rape case raoe accused rape rape with small kid दुष्कर्म बेटी से दुष्कर्म
समाज बलात्कार: पितृसत्ता का हिंसात्मक उत्सव December 29, 2017 by राजू पाण्डेय | Leave a Comment जब महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी ने नवम्बर 2016 में यह बयान दिया था कि बलात्कार के मामलों के संदर्भ में भारत उन चार देशों में सम्मिलित है जहाँ सबसे कम बलात्कार होते हैं तो उनकी बड़ी आलोचना हुई थी और उन्हें बताया गया था कि भारत बलात्कार के मामलों की संख्या के […] Read more » Featured rape Violent Celebration of Patriarchy पितृसत्ता बलात्कार हिंसात्मक उत्सव
समाज बलात्कार : भारतीय समाज का कलंक December 7, 2017 by निर्मल रानी | Leave a Comment निर्मल रानी हम भारतवासी कभी-कभी तो स्वयं को अत्यंत सांस्कृतिकवादी,राष्ट्रवादी,अति स य,सुशील,ज्ञान-वान,कोमल तथा योग्य बताने की हदें पार करने लग जाते हैं और स्वयं को गौरवान्वित होता हुआ भी महसूस करने लगते हैं। परंतु आडंबर और दिखावा तो लगता है हमारी नस-नस में समा चुका है। अन्यथा क्या वजह है कि जिन स्त्रीरूपी देवियों के […] Read more » Featured rape कलंक बलात्कार भारतीय समाज
समाज रेपः कानून व्यवस्था ही नहीं समाज को भी बदलने की ज़रूरत है! January 6, 2013 / January 6, 2013 by इक़बाल हिंदुस्तानी | 1 Comment on रेपः कानून व्यवस्था ही नहीं समाज को भी बदलने की ज़रूरत है! इक़बाल हिंदुस्तानी लड़कियों के साथ पक्षपात घर से ही ख़त्म करना शुरू करें? बलात्कार के कुल मामलों में 94.2 प्रतिशत बलात्कारी परिचित होते हैं। इसका मतलब यह है कि लड़की अपनों के बीच ही सुरक्षित नहीं है। अकसर ख़बरें आती रहती हैं कि लड़की के साथ उसके बाप, भाई, पड़ौसी, रिश्तेदार, गुरू, दोस्त और अपने […] Read more » rape rape and role of our society
जन-जागरण बलात्कार : स्थितियां कैसे बदलेंगी? December 31, 2012 / December 31, 2012 by डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' | 5 Comments on बलात्कार : स्थितियां कैसे बदलेंगी? सच यह है कि हमारे देश में कानून बनाने, कानून को लागू करने और कोर्ट से निर्णय या आदेश या न्याय या सजा मिलने के बाद उनका क्रियान्वयन करवाने की जिम्मेदारी जिन लोक सेवकों या जिन जनप्रतिनिधियों के कंधों पर डाली गयी है, उनमें से किसी से भी भारत का कानून इस बात की अपेक्षा नहीं करता कि […] Read more » rape