सुंजवां में सेना के शिविर पर आतंकी हमला

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प्रमोद भार्गव
जम्मू शहर के रिहायसी इलाके में सुंजवां स्थित थल सेना के शिविर पर आतंकियों के हमले में जेसीओ समेत दो जवान शहीद हो गए हैं। शहीद जवानों की पहचान मदनलाल और मोहम्मद अशरफ के रूप में हुई है। दोनों ही जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं। हालांकि जवाबी कार्रवाई में सेना ने सभी आतंकियों को मार गिराया है, लेकिन मानव बस्तियों में स्थित सेना के शिविरों में सेना के भेष में आतंकी एक के बाद एक जिस तरह से हमला बोल रहे हैं, उससे लगता हैं और नियंत्रण रेखा पर जिस तरह से संघर्ष विराम का उल्लंघन हो रहा है, उससे साफ है कि पाकिस्तान से निर्यात आतंकवाद पर कतई अंकुश नहीं लगा है। इन हलातों से साफ है कि मोदी वैश्विक फलक पर भले ही कूटनीति के रंग दिखाने में सफल हो गए हों, लेकिन अपने देश की आंतरिक स्थिति को सुधारने और पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से उनकी रणनीति नाकाम ही रही है। शोपियां में सेना की पत्थरबाजों से रक्षा में चलाई गोली के बदले मेजर आदित्य कुमार पर एफआईआर दर्ज होना और हाल ही में करीब 1000 पत्थरबाजों पर से दर्ज मुकदमे वापस लेने की कार्रवाइयों ने सेना का मनोबल गिराने का काम किया है। ये दोनों कार्रवाइयां इसलिए और हैरतअंगेज हैं, कि जिस पीडीपी की महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री हैं, उस सरकार में भाजपा की भी भागीदारी है। बावजूद राष्ट्रवाद की हुंकार भरने वाली भाजपा पीडीपी के समक्ष लाचार नजर आ रही है।
सीमा पार से सैन्य ठिकानों पर आतंकी हमलों की सूची लंबी होती जा रही है। हंदवाड़ा, शोपियां, पुलवामा, तंगधार, कुपवाड़ा, पंपोर, श्रीनगर, सोपोर, राजौरी, बड़गाम, उरी और पठानकोट में हमलों में हमने अपने सैनिकों के रूप में बड़ी कीमत चुकाई है। पाकिस्तानी फौजियों द्वारा भारतीय सीमा के मेंढ़र सेक्टर में 250 मीटर अंदर घुसकर भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल के दो सैनिकों की हत्या स्तब्ध कर देने वाली घटना रही है। पाक सैनिक भारतीय सैनिको के साथ आदिम बर्बरता दिखाते हुए उनके सिर भी काटकर ले गए थे। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से तामाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह शांति कायम रखने और निर्धारित शर्तों को मानने के लिए कतई गंभीर नहीं हैं। और हम हैं कि मुंहतोड़ जवाब देने की बजाए, मुंह ताक रहे हैं ?
30 जुलाई 2011 को शहीद जयपाल सिंह और देवेन्द्र सिंह के भी सिर काट ले गए थे। 8 जनवरी 2013 को हेमराज सिंह और सुधाकर सिंह की पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके के ही मेंढर क्षेत्र में करीब आधा किलोमीटर भीतर घुसकर हत्या कर दी थी, फिर शहीद सैनिक हेमराज का सिर काट ले गए थे। 22 नवंबर 2016 को मांछिल में हुई मुठभेड़ में तीन जवान शहीद हुए थे। इनमें से प्रभु सिंह का सिर काट लिया गया था। 28 अक्टूबर 2016 को शहीद जवान मंदीप सिंह के शव को मांछिल में क्षत-विक्षत किया था। कारगिल युद्ध के समय ऐसी ही हिंसक बर्बरता पाक सैनिकों ने कप्तान सौरभ कालिया के साथ बरती थी। यही नहीं सौरभ का शरीर क्षत-विक्षत करने के बाद शव बमुश्किल लौटाया था। युद्ध के समय भी अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक ऐसी वीभात्सा बरतने की इजाजत नहीं है। ये वारदातें युद्ध अपराध की श्रेणी में आती हैं। लेकिन भारत सरकार इस दिशा में कोई पहल नहीं करती और युद्ध अपराधी, निरपराधी ही बने रहते हैं। भारत की यह सहिष्णुता विकृत मानसिकता के पाक सैनिकों की क्रूर सोच को प्रोत्साहित कर रही है। यहां दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह भी है कि ऐसी जघन्य हालत में पाक के साथ भारतीय सेना नायक क्या बर्ताव करें, इस परिप्रेक्ष्य में भारत के नीति-नियंताओं के पास कोई स्पष्ट नीति ही नहीं दिखाई देती है। यही वजह है कि बड़ी से बड़ी घटना भी आश्वासन और आस्वस्ति के छद्म बयानों तक सिमटकर रह जाती है। भारत इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का भी साहस नहीं दिखा पाता। नतीजतन संबंध सुधार के द्विपक्षीय प्रयास इकतरफा रह जाते हैं। हकीकत तो यह है कि संबंध सुधार के लिए बातचीत ही समस्या की जड़ बन गई है, इसी कारण भारत बार-बार धोखा और मात खा रहा है। किंतु अब समय आ गया है कि पाकिस्तान संबंधी नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। साथ ही कश्मीर के परिप्रेक्ष्य में भी नई और ठोस रणनीति अमल में लाई जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए 56 इंची सीना तानकर हुंकारें तो खूब भरीं, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे। मोदी ने सिंधू जल संधि पर विराम लगाने की पहल की थी। लेकिन कूटनीति के स्तर पर कोई अमल नहीं किया। यदि सिंधु नदी से पाक को दिया जाने वाला पानी बंद कर दिया जाए तो पाक की लाखों हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलेगा और पेय-जल का संकट भी पैदा होगा। लेकिन भारत यह कूटनीतिक जवाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। भारत ने पाकिस्तान को भारत के अनुकूल राष्ट्र का दर्जा दिया हुआ है। इससे दुनिया से व्यापार के स्तर पर पाक की मजबूत साख बनी हुई है। भारत इस दर्जे को खत्म करने की हिम्मत जुटा लेता है तो पाक की अंतरराष्ट्रीय साख पर बट्टा लगेगा। पाक के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के स्तर पर यह स्पष्ट किया गया था कि आतंकवाद और शांतिवर्ता एक साथ नहीं चल सकते हैं। लेकिन आतंकवाद पर बातचीत भी हो रही है और पाक नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंधन कर सीमा पर तैनात जवानों से लेकर मानव बस्तियों में स्थित सैन्य शिविरों में आतंकियों के जरिए छद्म हमले बोलने में लगा है।

युद्धविराम उल्लंघन की घटनाएं 2017 में जितनी मर्तबा हुई हैं, उतनी बीते सात सालों में नहीं हुई। 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इनकी संख्या डेढ़ गुनी हो गई है। 2016 में जहां अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर 449 बार युद्धविराम का उल्लंघन हुआ, वहीं 2017 में 778 बार हुआ। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए दोनों देशों के बीच युद्धविराम संधि नए सिरे से लागू हुई थी। बावजूद अटल जी से लेकर मनमोहन सिंह तक हालात भड़काऊ और चिंताजनक ही रहे।
दरअसल पाक के जो निर्वाचित प्रतिनिधि इस्लामाबाद की सत्ता पर सिंहासनारुढ़ हैं, उनका अपने ही देश की सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चंगुल में है। हुकूमत पर आईएसआई का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि वह भारत के खिलाफ सत्ता को उकसाने का भी काम करती है। यही वजह है कि सेना की अमर्यादित दबंगई भाड़े के सैनिकों को भारत में घुसपैठ कराकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की भूमिका रचती है। दरअसल पाकिस्तानी शासन-प्रशासन और सेना की बीच संबंध मधुर नहीं। जब-जब ये संबंध बिगड़ते हैं, तब-तब पाकिस्तान का भारत के खिलाफ क्रूरतम बर्ताव सामने आता है। पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर वहीद बाजवा बिना किसी हिचक के सीमा के निकट हाजी पीर सेक्टर तक आकर आतंककियों को भड़का जाते हैं। यही नहीं बाजवा ने कश्मीर में चल रहे राजनीतिक संघर्ष का समर्थन किया था और कश्मीर में चल रही भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई को राज्य प्रायोजित आतंकवाद कहा था। बावजूद हम पाक को कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं।
पाक के इरादे भारत के प्रति नेक नहीं हैं, यह हकीकत सीमा पर घटी इस ताजा घटना ने तो साबित की ही है, इसी नजरिए से वह आर्थिक मोर्चे पर भारत से छद्म युद्ध भी लड़ रहा है। देश में नकली मुद्रा की आमद नोटबंदी के बाद भी जारी है। आतंकियों के पास भारतीय मुद्रा की कमी न रहे इसीलिए बैंक की कैश वैन को लूट लिया गया था। इसमें 50 लाख रुपए नकद थे। नोटबंदी के बाद भी नकली नोटों की तश्करी कश्मीर, राजस्थान, नेपाल और दुबई तथा समुद्री जहाजों से हो रही है। जाली मुद्रा के लेन-देन में अब तक सैंकड़ों लोग पकड़े जा चुकने के बाद भी जमानत पर छूटकर इसी कारोबार को अंजाम देने में लगे हैं। कानून सख्त न होने के कारण यह व्यवसाय उनके कैरियर का हिस्सा बन गया है।
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक कई मुस्लिम देशों की यात्रा कर चुके हैं। इस समय भी जाॅर्डन, फिलिस्तीन और यूएई की यात्रा पर हैं। फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने तो नरेंद्र मोदी को अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड काॅलर‘ से भी सम्मानित किया और उन्हें वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए अहम् व्यक्ति बताया। यह अच्छी बात है कि हमारे प्रधानमंत्री को इस योग्य माना जा रहा है, लेकिन इस तरह की कोई योग्यता मोदी अपने देश में नहीं दिखा पा रहे हैं। द्विपक्षीय वार्ता में इस्लामी देशों को पाकिस्तान से अलग-थलग करने में भी मोदी नाकाम रहे हैं। बहरहाल भारत यह मानकर चले कि अब उंगली टेढ़ी किए बिना घी निकलने वाला नहीं है।

 

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