केरल में बांध बने बाढ़ का कारण

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प्रमोद भार्गव

नयनाभिराम प्राकृतिक संपदा और बहुआयामी जल-संसाधनों के कारण केरल को भगवान का घर माना जाता है। किंतु मूसलाधार बारिश  और तबाही ने केरल में जो कोहराम मचाया हुआ है, उसने तय कर दिया है कि यह आपदा भगवान की देन न होकर मानव निर्मित है। पर्यावरणविदों ने भी इस बाढ़ को मानव निर्मित आपदा करार दिया है। इसका कारण बड़ी मात्रा में जंगलों की कटाई और पर्यटन में वृद्धि है। एकाएक यह तबाही इसलिए भी मची, क्योंकि केरल के 80 बांधों में से 36 बांधों के दरवाजे एकाएक खोल दिए गए। इनमें से 13 बांध उस पेरियार नदी पर हैं, जो केरल की जीवनदायिनी नदी मानी जाती है। यहां के सुंदर समुद्र तटीय क्षेत्रों के आलावा इसी नदी के किनारे खड़े जंगल और  राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्य हैं। 3.5 करोड़ आबादी वाले इस कृषि  प्रधान प्रांत में नारियल, केला, मसाले और शुश्क मेवा की फसलें खूब होती हैं। इसके अलावा पर्यटन भी राज्य की आमदनी व रोजगार का मुख्य स्रोत है। आय के ये सभी संसाधन प्राकृतिक हैं। गोया, प्रकृति का इस तरह से रूठ जाना आर्थिक रूप से खस्ताहाल केरल को लंबे समय तक भारी पड़ेगा।
केरल एक ऐसा राज्य है, जहां इस तरह की बारिश  और बाढ़ की उम्मीद किसी को नहीं थी। इसलिए यहां ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से एकाएक सामना करने के सुरक्षा उपाय भी सरकार के पास नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने केरल को चेताया था कि प्राकृतिक आपदा की  द्रष्टि  से जो असुरक्षित राज्य हैं, उनमें केरल का दसवां  स्थान  है। लेकिन यहां बरसाती बाढ़ की बजाय समुद्री तूफान की आशंका  जताई गईं थीं। दरअसल 1924 में 94 साल पहले ऐसी ही बाढ़ और बारिश  से तबाही का केरल को सामना करना पड़ा था। मौसम वैज्ञानियों का कहना है कि इस बार केरल में कम दबाव के कारण समान्य से 37 प्रतिशत अधिक बारिश  हुई है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि केरल के 90 फीसदी क्षेत्र में चक्रवाती परिक्रमा की स्थिति बन गई थी। इसी समय पश्चिम बंगाल और आसपास के इलाकों में मानसूनी हवाएं आगे बढ़ने की बजाय केरल में ही चक्रवाती दायरे में सिमटकर रह गई। इस कारण बारिश  एक निश्चित  क्षेत्र में मूसलाधार वर्षा  में बदल गई। इसके अलावा कर्नाटक और केरल के समुद्र में उठे ज्वार-भाटे की स्थिति में भी वर्षा  में वृद्धि का काम किया। नतीजतन केरल  भीषण  बाढ़ की चपेट में आ गया। बाढ़ की विभीशिका आलम यह है कि अबतक 8.47 लाख लोग बेघर हो गए हैं। इनका अब 3734 राहत शिवरों में अस्थाई हटाना है। करीब 40,000 एकड़ भूमि में खड़ी फसलें चैपट हो चुकी है। राज्य के 134 पुल और 96000 किमी लंबी सड़के जमींदोज हो गए हैं। करीब 1500 मकान पूरी तरह और 27000 घर  आंशिक  रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। 375 लोगों की जान जा चुकी है और अनेक लोग लापता हैं। जल की सतह पर अनेक शव तैरते देखे जा रहे हैं। राज्य के 14 जिलों में से 13 जिलों में बर्बादी का यही मंजर पसरा हुआ है। बाढ़ के साथ भूस्खलन के चलते ज्यादा तबाही फैली है। अब यहां महामारी का खतरा भी मंडरा रहा है।
आजादी के बाद से केरल में ज्यादातर समय कांग्रेस और वामपंथी सरकारें रही हैं। इस समय माकपा नीत एलडीएफ की सरकार है और मुख्यमंत्री पी. विजयन है। इस त्रासदी से त्रस्त विजयन का कहना है कि राज्य की इस बद्हाली के लिए पड़ोसी राज्यों की सरकारें भी जिम्मेदार हैं। हाल ही में विजयन और तमिलनाडू के मुख्यमंत्री पलानीसामी के बीच पानी छोड़े जाने को लेकर मुंहबाद भी हुआ था। इस विवाद से  स्पष्ट  है कि पड़ोसी राज्यों और केरल के बड़े बांधों से बड़ी मात्रा में एकाएक पानी छोड़े जाने के कारण यह त्रासदी उपजी है। दूसरी तरफ इस त्रासदी का कारण मौसम विभाग द्वारा बारिश  बढ़ा-चढ़ाकर की गईं चेतावनियां भी रही हैं। इन चेतावनियों की वजह से एक साथ केरल के सिंचाईं विभाग को 36 बांधों के द्वार खोलने पड़े। नतीजतन समूचे राज्य में जल-प्रलय ने विकराल रूप धारण कर लिया। हालांकि केरल में बाढ़ की स्थिति जुलाई माह के शुरूआत में ही बन गई थी। पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन शुरू हो गया था। 15 जुलाई तक इडुक्की और इदामालय बांध आधे से अधिक भर गए थे। किंतु केरल विद्युत मंडल ने इनसे पानी छोड़ने की बजाय इनके पूरे भरने का इंतजार किया, जिससे बिजली का ज्यादा उत्पादन कर अधिकतम मुनाफा कमाया जा सके। जल विद्युत उत्सर्जन ट्रांसमीटरों का निजीकरण कर दिए जाने के कारण भी यह हालात बने। लिहाजा ओवरफ्लो हो जाने के बाद एक साथ बांधों के द्वार खोल दिए गए, जो तबाही का बड़ा कारण बना। इस समय भी बांधों के द्वार नहीं खोले जाते तो बांध पानी के दबाव से टूट भी सकते थे।
इन हालातों से साफ होता है कि प्रशासनिक व तकनीकी गलतियों पर पर्दा डालने के लिये भारी वर्षा और ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेबार ठहराया जा रहा है। जिन बड़े बांधों को बहुउद्धेशीय जलाशय का दर्जा देकर बाढ़ नियंत्रण की दृष्टि से अस्तित्व में लाया गया था, आज वही जलाशय मानव लापरवाही के चलते तबाही का कारण बन रहे हैं। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग से वर्षा अनियंत्रित हुई है और कई इलाकों में औसत से ज्यादा तेज बारिश ने तबाही का मंजर रचा है। लेकिन केरल में आई बाढ़ का कारण ग्लोबल वार्मिंग कतई नहीं है। लकड़ी, कोयला और डीजल पेट्रोल की बढ़ती खपत से 21 वीं सदी की शुरूआत में वायुमण्डल में कार्बनडाईआॅक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से धरती का पारा 2-3 डिग्री सेन्टीग्रेड ऊपर चढ़ा है। इस बडे तापमान से पृथ्वी के वायुमण्डल में भारी परिवर्तन होने की आशंकाऐं निरंतर जताई जा रही हैं। इस परिवर्तन से दुनिया के किस-किस हिस्से में औसत से ज्यादा वर्षा होगी और किस क्षेत्र में सूखा पड़ेगा इन पूर्वानुमानों के अनुसार अमेरिका और रूस परिवर्तित वायुमण्डल के केन्द्र में रहेंगे। लिहाजा अधिक वर्षा या सूखे से इन्हीं देशों को हानि उठानी पड़ेगी। इस बदले मौसम का खाद्य उत्पादानों पर भी असर संभावित है। जबकि पूर्वानुमानों के अनुसार भारत, चीन, इण्डोनेशिया, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, जापान और अरब देशों में फसल उत्पादान के लिये मौसम के अच्छे संकेत दिये गये हैं। अरब देशों के लिये तो यह खुशखबरी दी गई है कि 21 वीं सदी में इन देशों में जमकर वर्षा होगी और खूब फसलों का उत्पादन होगा। भारत को भी एक बड़ी खा़द्य शक्ति के रूप में उभरने के संकेत दिये गये हैं। ऐसे में यह कहना कि ग्लोबल वार्मिंग केरल में बाढ़ का कारण बना है, गलत है। भारत में फिलहाल ग्लोबल वार्मिंग से इतना जरूर असर देखने में आ रहा है कि मौसम की पद्धति पिछले दस साल से परिवर्तित होती नजर आ रही है। परंपरागत मानसून निर्धारित समय से आगे खिसका है। बारिश एक समान नहीं हो रही है, कहीं बारिश की तीव्रता अत्याधिक होती है तो कहीं बेहद कम। इस कारण अतिवृष्टि और अल्पवर्षा का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन प्रकृति के चक्र में यह परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही आया है अथवा इसके पीछे प्रकृति का कोई अन्य रहस्य काम कर रहा है इसका अर्थ अभी समझने की जरूरत है। इसलिए हमें लगातार सचेत रहने और जीवन-यापन के तौर-तरीके बदलने की जरूरत है। इस हेतु महानगरीय विकास से थोड़ा पीछे हटना होगा और ग्रामीण विकास को महत्व देना होगा। अंधाधुंध विकास के चलते महानगरों में जल निकासी के जो रास्ते संकीर्ण हो गए है, उन्हें पूर्व की स्थिति में लाना होगा। आने वाले दिनों में केरल को खाद्यान्न एवं महामारी से जूझना होगा। हालांकि केरल की मदद के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ विदेश  से भी मदद मिलने लग गई है। फिल्म उद्योग और गैर-सरकारी संगठन ही आगे आए हैं। लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के अनुभव यही कहते है कि सरकारी  भ्रष्टाचार  के चलते पीड़ितों तक तयमदद नहीं पहुंच पाती है। इस कदाचरण से निपटना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।

 

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