जीत से पहले हार के संकेत।

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  जी हां बात करते हैं उत्तर प्रदेश के धरती की। इसलिए की कहते हैं दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरता है। तो आइए आपको उत्तर प्रदेश की धरती पर लेकर चलते हैं, जहाँ गठबंधन की जीत से पहले ही हार का खाका अभी से ही खींचा जाने लगा। बड़े-बड़े वायदे एवं बाते करने वाला गठबंधन चुनाव से पहले ही बिखरने लगा, जिससे विरोधियों को अब और मौका मिलना तय है। अब विरोधी पूरी ताकत के साथ गठबंधन पर टूट पड़ेगें। यह सत्य है। अब भाजपा को बैठे बैठाए बहुत ही बड़ा चुनावी अवसर मिल गया कि यह गठबंधन जब चुनाव में अपनी सहयोगी पार्टियों को सम्मान पूर्वक सीट नहीं दे पाता तो यह देश के नेतृत्व के लिए प्रधानमंत्री क्या देगा?

    हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के एक क्षेत्रीय दल निषाद पार्टी की, यह पार्टी वैसे तो देश स्तर एवं प्रदेश स्तर पर अपना कोई बहुत बड़ा जिताऊ जनाधार नहीं रखती यह तो तय है। परन्तु, पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों पर इसका जनाधार काफी मजबूत है। इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि, निषादपार्टी का वास्तविक जनाधार गंगा नदी के किनारे पर पूरी तरह से बसा हुआ है, जिस पर निषाद पार्टी की पूरी राजनीति टिकी हुई है।

    क्योंकि, आज के इस जातिगत राजनीति की परंपरा में भला निषादपार्टी ही क्यों पीछे रहती। तो निषाद पार्टी ने भी अपनी बिरादरी को आधार बनाया और एक पार्टी बना ली। यह पार्टी पहले कोई खास चर्चा में नहीं थी। परन्तु, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट के उपचुनाव में चर्चा में आई जब सपा बसपा और निषादपार्टी ने मिलकर प्रदेश के मुख्यमंत्री की परंपरागत सीट को ही छीन लिया। तब सियासत के महारथियों की निगाह निषादपार्टी पर जाकर केंद्रित हुई। अवगत करा दें कि गंगा नदी के किनारे बसे हुए केवट एवं मल्लाहों के बीच निषाद पार्टी जातिगत राजनीति के युग में अपनी पैठ तेजी के साथ मजबूत करती हुई दिखायी दे रही है। मुख्य रूप से प्रयागराज (इलाहाबाद) से लेकर वाराणसी तथा गोरखपुर तक इस पार्टी का अपना कैडर दिन प्रतिदिन तेजी के साथ अपनी पैठ बनाता चला जा रहा है।

अतः इस पार्टी ने गठबंधन के साथ मिलकर फूलपुर एवं गोरखपुर की सीटों पर अपना जो दम-खम दिखाया था उससे गठबंधन के पुजारियों की कुछ आस जगी थी। परन्तु, ब्याह होने से पहले ही मंडप में घमासान युद्ध शुरू हो गया। और फाईटिंग शुरू हो गई।

    अतः इस रस्सा कसी एवं बिखरते हुए गठबंधन का असर जनता पर बहुत ही विपरीत पडेगा जोकि महागठबंधन की हार का कारण भी बन सकता है। क्योंकि, ब्याह न हुआ होता और आज तलाक की स्थिति न आती तो जनता पर इसका इतना असर नहीं पड़ता। परन्तु, ढ़ोल नगाड़े के साथ पहले ब्याह किय जाना उसके बाद तलाक की स्थिति उत्पन्न होना और अन्ततोगत्वः तलाक भी हो जाना। यह मुद्दा जनता के बीच बनना तय है साथ ही विरोधियों को आरोप-प्रत्यारोप एवं राजनीतिक प्रहार करने का बड़ा अवसर अवश्य ही मिल जाएगा।

    इन सभी घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश की मौजुदा राजनीतिक स्थिति में भाजपा पूरी तरह से विजयी होती हुई दिखाई दे रही है। क्योंकि, “बिखरता हुआ विपक्ष तथा एकजुट होता हुआ पक्ष” जनता को पूरी तरह से यह संदेश देने में सफल रहेगा कि उत्तर प्रदेश की धरती पर गठबंधन धर्म निभाने वाली पार्टी भाजपा ही एक मात्र ऐसी पार्टी है जोकि, मजबूती के साथ अपने सभी दलों को साथ लेकर चुनावी मैदान में डटी हुई है।

साथ ही जनता के बीच यह संदेश तेजी जाएगा कि जब गठबंधन अपने सहयोगी दलों के साथ टिकट बंटवारे एवं चुनाव चिन्ह को लेकर बड़ा दिल नहीं कर सकता तो फिर आप लोग इस बात का आंकलन कर लीजिए की देश में इस गठबंधन के द्वारा काल्पनिक सरकार किस रूप में चलेगी?

अतः शब्दों को परिवर्तित करके कहें तो प्रधानमंत्री के उन शब्दों को और बल मिलेगा कि आप देश में मजबूत सरकार चाहते हैं अथवा मजबूर सरकार?  स्थिति आप जनता के सामने पहले से ही आने लगी है। जबकि, अभी कोई चुनाव नहीं हुए। अभी तो सीट एवं सिम्बल की बात है, कुर्सी और सत्ता की नहीं।

    अतः निषादपार्टी के द्वारा इस समय गठबंधन से बाहर होने का फैसला महागठबंधन के लिए पूरी तरह से इस लोकसभा के चुनाव में हानिकारक सिद्ध होगा। बाकि परिणाम तो आने वाला समय ही बताएगा कि सियासी ऊँट किस करवट बैठता है।      

 सज्जाद हैदर

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