मेरे ही कफन का साया छिपाया है

ओठों ने करके दफन अपने तेरे प्यार को भुलाया है

सताया है रूलाया है मुझे तेरा यादों ने बुलाया है।

चाहा था दिल में, हम गम की कब्र खोदेगें

दिल का क्या कसूर, जो इसमें गम ही नहीं समाया है।

दिखती है मेरे लबों पर, तुमको जमाने भर की हंसी

हॅसी में मेरे ही कफन का, मैंने साया छिपाया है।

तुम्हारी खुशी के लिये ही, ये शौक पाले थे मैंने

ये मेरी ही खता थी, जो तुमने बदनाम करवाया है।

गल्तियों को अपनी कहाँ छुपाओगे, तुम यहां पर

झुकाकर नजर गुजर जाना, तूने अच्छा सबब अपनाया है।

कसूर आंखों में छिपाकर, कसूर वालों ने अकडना सीख लिया

तब से हर शरीफजादा, गली से चुपचाप निकल आया है।

दिल की बोतल से तेरी, मैंने पी डाले न जाने कितने कडवे घूट

जलजले जहर के मैंने, पीव की रहमत से पचाया है।

शमें रोशनी को, कहीं और जलाओ तुम लोगों

अंधेरों से हमें,  कुछ इस कदर प्यार आया है।

आत्‍माराम यादव पीव 

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