ऋषि श्रृंगी की कहानी एवं उनका आश्रम

shringi rishiउन दिनों देवता व अप्सरायें पृथ्वी लोक में आते-जाते रहते थे। बस्ती मण्डल में हिमालय का जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ करता था। जहां ऋषियों व मुनियों के आश्रम हुआ करते थे। आबादी बहुत ही कम थी। आश्रमों के आस-पास सभी हिंसक पशु-पक्षी हिंसक वृत्ति और वैर-भाव भूलकर एक साथ रहते थे। परम पिता ब्रहमा के मानस पुत्र महर्षि कश्यप थे। उनके पुत्र महर्षि विभाण्डक थे। वे उच्च कोटि के सिद्ध सन्त थे। पूरे आर्यावर्त में उनको बड़े श्रद्धा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उनके तप से देवतागण भयभीत हो गये थे। इन्द्र को अपना सिंहासन डगमगाता हुआ दिखाई दिया था।
ं महर्षि की तपस्या भंग करने के लिए उन्होंने अपने प्रिय अप्सरा उर्वशी को भेजा था। जिसके प्रेमपाश में पड़कर महर्षि का तप खंडित हुआ और दोनों के संयोग से बालक श्रृंगी का जन्म हुआ। पुराण में श्रृंगी को इन दोनों का संतान कहा गया है। बालक के मस्तक पर एक सींग था। अतः उनका नाम श्रृंगी पड़ा । बालक को जन्म देने के बाद उर्वशी का काम पूरा हो गया और वह स्वर्गलोक वापस लौट गई। इस धोखे से विभाण्डक इतने आहत हुए कि उन्हें नारी जाति से ही घृणा हो गई। वे क्रोधित रहने लगे तथा लोग उनके शाप से बहुत डरने लगे थे। उन्होंने अपने पुत्र को मां, बाप तथा गुरू तीनों का प्यार दिया और तीनों की कमी पूरी की। उस आश्रम में किसी भी नारी का प्रवेश वर्जित था। वे अपने पूरे मनोयोग से बालक का पालन पोषण किये थे। बालक अपने पिता के अलावा अन्य किसी को जानता तक नहीं था। सांसारिक वृत्तियों से मुक्त यह आश्रम साक्षात् स्वर्ग सा लगता था। शक्ति और रूप अपनी अप्रत्याशित मण्डनहीन ताजगी में बालक श्रृंगी को अभिसिंचित कर रहे थे। यह आश्रम मनोरमा जिसे सरस्वती भी कहा जाता था, के तट पर स्थित था।
एक अन्य जनश्रुति कथा के अनुसार एक बार महर्षि विभाण्डक इन्द्र के प्रिय अप्सरा उर्वशी को देखते ही उस पर मोहित हो गये तथा नदी में स्नान करते समय उनका वीर्यपात हुआ। एक शापित देवकन्या मृगी के रूप में वहां विचरण कर रही थी। उसने जल के साथ वीर्य को ग्रहण कर लिया । इससे एक बालक का जन्म हुआ उसके सिर पर सींग उगे हुए थे। उस विचित्र बालक को जन्म देकर वह मृगी शापमुक्त होकर स्वर्ग लोक चली गई।
उस आश्रम में कोई तामसी वृत्ति नहीं पायी जाती थी। महर्षि विभाण्डक तथा नव ज्वजल्यमान बालक श्रृंगी का आश्रम अंग देश से लगा हुआ था। देवताओं के छल से आहत महर्षि विभाण्डक तप और क्रोध करने लगे थे।जिसके कारण उन दिनों वहां भयंकर सूखा पड़ा था। अंग के राजा रोमपाद ( चित्ररथ ) ने अपने मंत्रियों व पुरोहितों से मंत्रणा किया। ऋषि श्रृंगी अपने पिता विभाण्डक से भी अधिक तेजवान एवं प्रतिभावान बन गये। उसकी ख्याति दिग-दिगन्तर तक फैल गई थी।
अंगराज को सलाह दिया गया कि महर्षि श्रृंगी को अंग देश में लाने पर ही अंग देश का अकाल खत्म होगा। एक बार महर्षि विभाण्डक कहीं बाहर गये थे । अवसर की तलाश में अंगराज थे। उन्होंने श्रृंगी ऋषि को रिझाने के लिए देवदासियों तथा सुन्दिरियों का सहारा लिया और उन्हें वहां भेज दिया। उनके लिए गुप्त रूप में आश्रम के पास एक शिविर भी लगवा दिया था। त्वरित गति से उस आश्रम में सुन्दरियों ने तरह-तरह के हाव-भाव से श्रृंगी को रिझाने लगी। उन्हें तरह-तरह के खान-पान तथा पकवान उपलब्ध कराये गये। श्रृंगी इन सुन्दरियों के गिरफ्त में आ चुके थे। महर्षि विभाण्डक के आने के पहले वे सुन्दरियां वहा से पलायन कर चुकी थीं। श्रृंगी अब चंचल मन वाले हो गये थे। पिता के कहीं वाहर जाते ही वह छिपकर उन सुन्दिरियों के शिविर में स्वयं पहुच जाते थे। सुन्दरियों ने श्रृंगी को अपने साथ अंग देश ले लाने मे सफल हुई। वहां उनका बड़े हर्श औेर उल्लास से स्वागत किया गया। श्रृंगी ऋषि के पहुचते ही अंग देश में वर्षा होने लगी। सभी लोग अति आनन्दित हुए।
अपने आश्रम में श्रृंगी को ना पाकर महर्षि विभाण्डक को आश्चर्य हुआ। उन्होने अपने योग के बल से सब जानकारी प्राप्त कर लिया। अपने पुत्र को वापस लाने तथा अंग देश के राजा को दण्ड देने के लिए महर्षि विभाण्डक अपने आश्रम से अंग देश के लिए निकल पड़े । अंगदेश के राजा रोमपाद तथा दशरथ दोनों मित्र थे। महर्षि विभाण्डक के शाप से बचने के लिए रोमपाद ने राजा दशरथ की कन्या शान्ता को अपनी पोश्या पुत्री का दर्जा प्रदान करते हुए जल्दी से श्रृंगी ऋषि से उसकी शादी कर दिये। महर्षि विभाण्डक को देखकर एक योजना के तहत अंगदेश के वासियों ने जोर-जोर से शोर मचाना शुरू किया कि ’इस देश के राजा महर्षि श्रृंगी है।’ पुत्र को पुत्रवधू के साथ देखने पर महर्षि विभाण्डक का क्रोध दूर हो गया और उन्होंने अपना विचार बदलते हुए बर वधू के साथ राजा रोमपाद को भी आशीर्वाद दिया।
पुत्र व पुत्रवधू को साथ लेकर महर्षि विभाण्डक अपने आश्रम लौट आये और शान्ति पूर्वक रहने लगे। अयोध्या के राजा दशरथ के कोई सन्तान नहीं हो रही थी। उन्होने अपनी चिन्ता महर्षि वशिष्ठ से कह सुनाई। महर्षि वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि के द्वारा अश्वमेध तथा पुत्रेष्ठीकामना यज्ञ करवाने का सुझाव दिया। दशरथ नंगे पैर उस आश्रम में गयें थे। तरह-तरह से उन्होंने महर्षि श्रृंगी की बन्दना की। ऋषि को उन पर तरस आ गया। महर्षि वशिष्ठ की सलाह को मानते हुए वह यज्ञ का पुरोहिताई करने को तैयार हो गये। उन्होने एक यज्ञ कुण्ड का निर्माण कराया । इस स्थान को मखौड़ा कहा जाता है। रूद्रायामक अयोध्याकाण्ड 28 में मख स्थान की महिमा इस प्रकार कहा गया है –
कुटिला संगमाद्देवि ईशान्ये क्षेत्रमुत्तमम्।
मखःस्थानं महत्पूर्णा यम पुण्यामनोरमा।।
स्कन्द पुराण के मनोरमा महात्य में मखक्षेत्र को इस प्रकार महिमा मण्डित किया गया है-
मखःस्थलमितिख्यातं तीर्थाणामुत्तमोत्तमम्।
हरिष्चन्ग्रादयो यत्र यज्ञै विविध दक्षिणे।।
महाभारत के बनपर्व में यह आश्रम चम्पा नदी के किनारे बताया है। उत्तर प्रदेश के पूवोत्तर क्षेत्र के पर्यटन विभाग के बेवसाइट पर इस आश्रम को फ़ैजाबाद जिले में होना बताया है। परन्तु अयोध्या से इस स्थान की निकटता तथा परम्परागत रूप से 84 कोस की परिक्रमा मार्ग इसे सम्मलित होने कारण इसकी सत्यता स्वमेव प्रमाणित हो जाती है। ऋषि श्रृंगी के यज्ञ के परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को राम ,लक्ष्मण , भरत तथा शत्रुघ्न नामक चार सन्तानें हुई थी। जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ करवाये थे वहां एक प्राचीन मंदिर बना हुआ है। यहां श्रृंगी ऋषि व माता शान्ता का मंदिर बना हुआ है। इनकी समाधियां भी यहीं बनी हुई है। यह स्थान अयोध्या से पूरब में स्थित है। आषाढ़ माह के अन्तिम मंगलवार को बुढ़वा मंगल का मेला लगता है। माताजी को पूड़ी व हलवा का भोग लगाया जाता है। इसी दिन त्रेतायुग में यज्ञ का समापन हुआ था। यहां पर शान्ता माता ने 45 दिनों तक अराधना किया था। यज्ञ के बाद ऋषि श्रृंगी अपनी पत्नी शान्ता को अपने साथ लिवा जाना चाहते थे जो वहां नहीं गई और वर्तमान मंदिर में पिण्डी बनकर समां गयी । पुरातत्वविदों के सर्वेक्षणों में इस स्थान के ऊपरी सतह पर लाल मृदभाण्डों, भवन संरचना के अवशेष तथा ईंटों के टुकड़े प्राप्त हुए हैं।

25 COMMENTS

  1. PUTRAKAMESHTI YAGYA;S kHEER CAN GIVE ONLY SONS. HIGLY DEVELOPED SCIENCE.POOR WE, HAVE TO KILL OUR GIRLS AFTER BIRTH. BETTER THEY WERE, WHO OFFERED THEIR GIRLS TO RISHIS.

  2. अखिल भारतीय श्रृंगी ऋषि महासभा स्वर्ग आश्रम झरना बरुआसागर जिला झांसी उत्तर प्रदेश में स्थित मंदिर श्रृंगी ऋषि समाज का प्रमुख स्थान है जो बुंदेलखंड में श्रृंगी ऋषि समाज बंधुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है आप सभी से अनुग्रह है कि आप इस पवित्र स्थान पर जरूर पधार कर गुरुदेव के दर्शन का लाभ प्राप्त करें धन्यवाद

  3. श्रीमान आशा करता हूं आगामी लेख में श्रृंगी ऋषि आश्रम जो बिहार के मधुबनी जिले के बिस्फी प्रखंड अंतर्गत सींगीया पश्चिमी पंचायत में अवस्थित है पर भी कुछ लिखने की कृपा करें और कुछ जानना चाहते हो तो मुझे मेल करें।
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

  4. It is said shringi had. Cursed king parikshit fornhis Death in 7 days by snake bite.
    How How he and his father survived so long

    • श्रृंगी ऋषि का एक आश्रम बिहार के मधुबनी जिले के बिस्फी प्रखंड अंतर्गत सिंगिया पश्चिमी पंचायत में अवस्थित है।
      जहां शताब्दी पहले दरभंगा महाराज द्वारा दस कट्ठा जमीन में महादेव मंदिर का निर्माण किया गया है।
      यहां के पुराने लोग बताते हैं कि श्रृंगी ऋषि के नाम पर ही इस गाउ का नाम सींगिया पड़ा है।
      यह एक उपेक्छित स्थल है।

    • शृंगी ऋषि का एक मंदिर हिमाचल प्रदेश के ज़िला कुलू के वंजार नामक सुन्दर स्थान में भी है ।

  5. Rajasthan me udaipur or charbhuja nath ke pas me bhi rishi shringi ka bahut bda mandir hai …….jai shringi rishi …jai gurudev

  6. Shringi rishi ashram is also situated in Ang desh which is called Monghyr,in Bihar.
    Ashram is 10 Kms from kiul railway station.it is very nice to see very clean water fall from seven pipes in a kund.It is said that sringi rishi was worshiping there.
    Thanks

    • मेरी जानकारी में दो आश्रम है एक बस्ती में दूसरा फैजाबाद में । आप नेट से सर्च कर और पुष्टि कर सकते हैं।
      श्रृंगी ऋषि आश्रम
      स्थान फैजाबाद जिले में अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत से लगभग 38 किमी
      टाइमिंग्स 24hours, सभी दिन खुलता है
      आदर्श समय के लिए यात्रा विशेष दिन सोमवार, मंगलवार, अमावस्या, पूर्णिमा
      पहुँचने के लिए कैसे करें Mayabazar-Mahboobganj-श्रृंगी आश्रम रोड के माध्यम से फैजाबाद / अयोध्या से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है इस सुंदर सुंदर स्थान सरयू नदी है, जहां संत श्रृंगी और उनकी पत्नी शांता देवी की समाधि स्थित हैं के तट पर स्थित है। एक भगवान शिव मंदिर भी परिसर के अंदर स्थित है। यह वह जगह है जहां संत श्रृंगी राजा दशरथ के लिए Putrakamakshi यज्ञ प्रदर्शन किया था, और राजा दशरथ यज्ञ के बाद बेटों के साथ आशीर्वाद दिया गया था।

    • श्रृंगी ऋषि का एक आश्रम बिहार के मधुबनी जिले के बिस्फी प्रखंड अंतर्गत सिंगिया पश्चिमी पंचायत में अवस्थित है।
      जहां शताब्दी पहले दरभंगा महाराज द्वारा दस कट्ठा जमीन में महादेव मंदिर का निर्माण किया गया है।
      यहां के पुराने लोग बताते हैं कि श्रृंगी ऋषि के नाम पर ही इस गाउ का नाम सींगिया पड़ा है।
      यह एक उपेक्छित स्थल है।

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