दुनिया को जानने की ललक है,अनजान हैं आस-पास के बारे में

 डॉ. दीपक आचार्य

हमें पूरी दुनिया में क्या हो रहा है, यह जानने की जिज्ञासा और उतावलापन दिन भर सताता रहता है लेकिन हमारे आस-पास क्या हो रहा है और क्या होना चाहिए, इसके बारे में हमें ज्यादा जानने की जरूरत कभी नहीं रहती।

गाँव-कस्बों और शहरों के चौरों पर समूह बनाकर बैठने के आदी लोग हों या निठल्लों की जमात अथवा बौद्धिक चिन्तन के ठेकेदारों के डेरे, सभी जगह चर्चाओं में होती है पूरी दुनिया।

अपनी गली और मोहल्ले में क्या समस्या है, अपने गांव-शहर में क्या होना चाहिए और अपने आस-पास ऐसा क्या हो रहा है जिसमें हमारी भागीदारी हो, इसकी ओर कभी कोई ठोस चर्चा नहीं करते। इसकी बजाय हम कभी ओबामा के बारे में सोचते हैं, कभी अमरीका और चीन के बारे में तो कभी दुनियावी और कई विषयों के बारे में जिनसे हमारा कोई लेना-देना नहीं होता।

जब हमारी इस तरह की मनोवृत्ति विकसित हो जाती है तब हमारी संतति और नौनिहालों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। अपने घर से शुरू करें और आस-पड़ोस और समाज तथा क्षेत्र में सर्वे कर लें तो पाते हैं कि हमारे बच्चों तक को हमारे आस-पास की कोई जानकारी नहीं है।

हम जहाँ पैदा हुए हैं, जहाँ रहे हैं और जहाँ वर्तमान में रह रहे हैं वहाँ कि पूरी जानकारी होनी चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। नई पीढ़ी के बच्चों को अपने क्षेत्र के इतिहास, कला-संस्कृति, महापुरुषों, संत-महात्माओं, धार्मिक, दर्शनीय एवं प्राकृतिक स्थलों, भूगोल, परम्पराओं, सभी मेलों-पर्वों-उत्सवों और तीज-त्योहारों आदि के बारे में जानकारी होनी चाहिए।

अपने अंचल की स्थानीय जानकारी के बिना हम पूर्ण नहीं कहे जा सकते। दुनिया भर का ज्ञान मस्तिष्क में ठूंस लिया और घर के बारे में अनभिज्ञ बने रहने वाले ज्ञानी नहीं कहे जा सकते।

दिन-रात किताबों की दुनिया में परिभ्रमण करते रहते हुए मोटे-मोटे काँच के चश्मे चढ़ा लेने वाले अपने बच्चे भले ही खूब पढ़-लिख कर कुछ समय बाद पैसा कमाने की बड़ी फैक्ट्री के रूप में हमारे सामने आ जाएं, आँचलिकता की जानकारी के अभाव में आधे-अधूरे ही कहलाएंगे।

आँचलिक परिवेशीय जानकारियों से अनभिज्ञ ऐसे लोगों को जीवन में पग-पग पर हास्यास्पद स्थितियों का सामना करना पड़ता है जब कई मौकों पर इनसे अपने क्षेत्र के बारे में बाहर के लोग ही पूछ बैठते हैं। तब इनका निरूत्तर रह जाना इस बात को साफ इंगित करता है कि अज्ञानता के मामले में ये भी पीछे नहीं हैं। यह स्थिति सीधे-सीधे इनके अभिभावकों को भी कहीं न कहीं आरोपित करती है।

यह स्थिति बहुसंख्य परिवारों की है जहाँ न तो माता-पिता को पता है और न बच्चों को अपने क्षेत्र के बारे में कोई जानकारी है। इसका खामियाजा बच्चों को आगे चलकर तब भुगतना पड़ता है जब प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं और साक्षात्कार में इनसे अपने क्षेत्र के बारे में पूछा जाता है।

शैशव से लेकर किशोरावस्था और इससे भी आगे की वय में भी जो क्षेत्र अपनी आँखों से देखे जाते हैं वे ताज़िन्दगी स्मृति पटल पर बने रहते हैं और इनका लाभ व्यक्ति अपने समग्र जीवन में लेता रहता है।

इन स्थितियों में यह जरूरी है कि हम अपने बच्चों को आधे-अधूरे नहीं रहने देने और उनके व्यक्तित्व की पूर्णता के लिए सभी संस्कारों के संवहन के साथ ही इस पर भी पूरा-पूरा ध्यान दें कि उन्हें अपने क्षेत्र के बारे में सभी प्रकार की जानकारी हो।

इसके लिए क्षेत्र में होने वाले सभी प्रकार के परंपरागत सांस्कृतिक सामाजिक आयोजनों में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करें। इन्हें अपने क्षेत्र में भ्रमण के लिए प्रेरित करें और उन सारे स्थलों की सैर कराएं जिन्हें ख़ास माना गया है।

विद्यार्थी जीवन के लिए किताबी ज्ञान के साथ ही परिवेशीय ज्ञान को होना नितान्त जरूरी है। नई पीढ़ी को कूप मण्डूक न बनाएँ। उन्हें उन सब बातों को जानने दें जो उनके जीवन की पूर्णता के लिए आवश्यक है। याद रखें आपने आज और अभी इस दिशा में गंभीरता से नहीं सोचा तो वह दिन भी आ सकता है जब आपका लाड़ला आधे-अधूरे व्यक्तित्व का परिचय देते हुए आपकी भूमिका पर भी कहीं प्रश्नचिह्न न लगा दे।

शिक्षा-दीक्षा से जुड़े लोगों को भी इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि वे सिर्फ पैसा कमाने और नौकरी को ही सर्वोपरि लक्ष्य न मानें बल्कि गुरु के वास्तविक स्वरूप में आकर नई पीढ़ी को सर्वगुण सम्पन्न बनाएं जिससे कि इन पर गर्व किया जा सके।

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