उत्तर कोरियाः सनकी तानाशाह के हाथ में ब्रह्मास्त्र

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प्रमोद भार्गव

उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर अमेरिका, जापान और भारत समेत दुनिया के अनेक देशों को चोंका दिया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों और अमेरिकीं चेतावानियों को नजरअंदाज कर उत्तर कोरिया के सनकी साम्यवादी तानाशाह किम जोंग ने खतरे के इस परीक्षण को बेखौफ होकर अंजाम दिया है। किम ने दावा किया है कि उसका यह छटा परमाणु परीक्षण पांचवें परीक्षण से छह गुना शक्तिशाली है। इसमें उन्नत तकनीक का प्रयोग किया गया है। इस हाइड्रोजन बम का निर्माण लंबी दूरी की अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल से दागने के लिए किया गया है। इस बम की खासियत है कि इसके सभी उपकरण उत्तर कोरिया में ही तैयार किए गए हैं। इसकी क्षमता सैंकड़ों किलो टन है। जब इसका समुद्र में परीक्षण किया गया तब जापान, चीन, रूस के भवन हिल गए। दक्षिण कोरिया की धरती पर भूकंप के झटके अनुभव किए गए। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.3 आंकी गई। उत्तर कोरिया ने इस परीक्षण के चित्र जारी किए हैं। किम को परमाणु हथियार संस्थान में बम के मिनिएचर का जायजा लेते हुए दिखाया है। यहां की सरकारी न्यूज एजेंसी केसीएनए ने दावा किया है यह हाइड्रोजन बम बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकता है।

दुनिया के मानचित्र पर देखने में तो उत्तर कोरिया इतना छोटा देश है कि इसे कई बड़े देश स्वतंत्र ही देश नहीं मानते हैं। यह 1910 से 1945 तक कोरिया का हिस्सा होने के साथ जापान का उपनिवेष था। स्वतंत्रता के बाद कोरिया का विभाजन हुआ तो कोरिया को उत्तर और दक्षिण कोरिया नाम के दो देशों में बांट देने की त्रासदी भारत की तरह झेलनी पड़ी। किंतु आज वह उत्तर कोरिया एक ऐसी आक्रमक शक्ति के रूप में उभर आया है कि जिस पर किसी का वश नहीं चलता है। किम जोंग को दक्षिण कोरिया फूटी आंख भी नहीं सुहाता है। इसलिए वह उसका अस्तित्व नेस्तनाबूत करने की कसमें खाता रहता है। जबकि दक्षिण कोरिया के अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। लिहाजा उसने बाईदवे दक्षिण कोरिया पर हमला किया भी तो वह अलग-थलग पड़ जाएगा। लेकिन विवेकशून्य तानाशाह की यह कार्यवाही बरबादी की किस हद तक होगी यह कहना मुश्किल है ?

उत्तर कोरिया लगातार परमाणु विस्फोट और नई-नई मिसाइलों का परीक्षण करके अमेरिका जैसे ताकतवर देश को भी धमकाता रहता है। इसी कारण कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव की स्थिति बनी हुई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ‘उत्तर कोरिया के हरकतें अमेरिका के लिए खतरनाक और शत्रुतापूर्ण लग रही हैं। वे रक्षा सलाहकारों के साथ बैठक कर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी में हैं।‘ जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भी कहा है कि ‘उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण बर्दाश्त से बाहर होते जा रहे हैं।‘ इस हाइड्रोजन बम परीक्षण की खबर सार्वजनिक होते ही ट्रंप और आबे ने अगली रणनीति क्या हो, इस मकसद से टेलीफोन पर बातचीत भी की है। हालांकि अमेरिका ही वह देश है, जिसने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान पर परमाणु हमला किया था। किंतु अब परिस्थितियों ने दोनों देशों को करीब ला दिया है। इस समय उत्तर कोरिया की चीन और पाकिस्तान के साथ नजदीकी रिश्ते बने हुए हैं। यही देश उत्तर कोरिया को परमाणु परीक्षणों के लिए उकसाने का काम कर रहे हैं। जबकि एशिया में भारत, अमेरिका, और जापान के एकजुट होने से चीन को अपना सामरिक तथा आर्थिक वर्चस्व खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के षहर हिरोशिमा पर 6 अगस्त और नागासाकी पर 9 अगस्त 1945 को परमाणु बम गिराए थे। इन बमों से हुए विस्फोट से फूटने वाली रेडियोधर्मी विकिरण के कारण दो लाख लोग तो मरे ही, हजारों लोग अनेक वर्षों तक लाइलाज बीमारियों की भी गिरफ्त में रहे। विकिरण प्रभावित क्षेत्र में दशकों तक अपंग बच्चों के पैदा होने का सिलसिला जारी रहा। अपवादस्वरूप आज भी इस इलाके में लंगड़े-लूल़े बच्चे पैदा होते हैं। अमेरिका ने पहला परीक्षण 1945 में किया था। तब आणविक हथियार निर्माण की पहली अवस्था में थे, किंतु तब से लेकर अब तक घातक से घातक परमाणु हथियार निर्माण की दिशा में बहुत प्रगति हो चुकी है। लिहाजा अब इन हथियारों का इस्तेमाल होता है तो बर्बादी की विभीषिका हिरोशिमा और नागासाकी से कहीं ज्यादा भयावह होगी ? इसलिए कहा जा रहा है कि आज दुनिया के पास इतनी बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार हैं कि समूची धरती को एक बार नहीं, अनेक बार नष्ट- भ्रष्ट किया जा सकता है। उत्तर कोरिया ने जिस हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है, उसकी विस्फोटका क्षमता 50 से 60 किलो टन होने का अनुमान है।

जापान के आणविक विध्वंस से विचलित होकर ही 9 जुलाई 1955 को महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन और प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक बट्र्रेंड रसेल ने संयुक्त विज्ञप्ति जारी करके आणविक युद्ध से फैलने वाली तबाही की ओर इशारा करते हुए षांति के उपाय अपनाने का संदेश देते हुए कहा था, ‘यह तय है कि तीसरे विश्व युद्ध में परमाणु हथियारों का प्रयोग निश्चित किया जाएगा। इस कारण मनुष्य जाति के लिए अस्तित्व का संकट पैदा होगा। किंतु चौथा विश्व युद्ध लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा।‘ इसलिए इस विज्ञप्ति में यह भी आगाह किया गया था कि जनसंहार की आशंका वाले सभी हथियारों को नष्ट कर देना चाहिए। तय है, भविश्य में दो देशों के बीच हुए युद्ध की परिण्ति यदि विश्वयुद्ध में बदलती है और परमाणु हमले शुरू  हो जाते हैं तो हालात कल्पना से कहीं ज्यादा डरावने होंगे। हमारे दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस भयावहता का अनुभव कर लिया था, इसीलिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में आणविक अस्त्रों के समूल नाश का प्रस्ताव रखा था। लेकिन परमाणु महाशक्तियों ने इस प्रस्ताव में कोई रूचि नहीं दिखाई, क्योंकि परमाणु प्रभुत्व में ही, उनकी वीटो-शक्ति अंतनिर्हित है। अब तो परमाणु शक्ति संपन्न देश, कई देशों से असैन्य परमाणु समझौते करके यूरेनियम का व्यापार कर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा की ओट में ही कई देश परमाणु-शक्ति से संपन्न देश बने हैं और हथियारों का जखीरा इकट्ठा करते चले जा रहे हैं।

दुनिया में फिलहाल 9 परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। ये हैं, अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इजराइल और उत्तर कोरिया। इनमें से अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन के पास हाइड्रोजन बम भी हैं। इस पांत में अब उत्तर कोरिया भी शामिल हो गया है। इन देशों के पास परमाणु बमों का इतना बड़ा भंडार है कि वे दुनिया को कई बार नष्ट कर सकते हैं। हालांकि ये पांचों देश परमाणु अप्रसार संधि में शामिल हैं। इस संधि का मुख्य उद्देष्य परमाणु हथियार व इसके निर्माण की तकनीक को प्रतिबंधित बनाए रखना है। लेकिन ये देश इस मकसद पूर्ति में सफल नहीं रहे। पाकिस्तान ने ही तस्करी के जरिए उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार निर्माण तकनीक हस्तांतरित की और वह आज परमाणु एवं हाइड्रोजन  शक्ति संपन्न नया देश बन गया है। उसने पहला परमाणु परीक्षण 2006, दूसरा 2009, तीसरा 2013, चैथा 2014, पांचवां 2015 और अब छटा हाइड्रोजन बम के रूप में 3 सितंबर 2017 को कर दिया है।

उत्तरी कोरिया के इन परीक्षणों से पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में बहुत गहरा असर पड़ा है। चीन का उसे खुला समर्थन प्राप्त है। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया को वह अपना दुश्मन देश मानता है। इसीलिए यहां के तानाशाह किम जोंग अमेरिका और दक्षिण कोरिया को आणविक युद्ध की खुली धमकी देते रहे हैं। हाल ही में उत्तरी कोरिया की सत्तारूढ़ वर्कर्स पार्टी ने 70 वीं वर्शगांठ मनाई है। इस अवसर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी लिऊ युनशान भी मौजूद थे। इसी समय किम ने कहा कि ‘कोरिया की सेना तबाही के हथियारों से लैस है। इसके मायने हैं कि हम अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देश की ओर से छेड़ी गई किसी भी जंग के लिए तैयार हैं।‘ अमेरिका के अधिकारी इस समारोह के ठीक पहले यह आशंका जता भी चुके हैं कि उत्तर कोरिया के पास अमेरिका के विरुद्ध परमाणु हथियार दागने की क्षमता है। दरअसल, कोरिया 10 हजार किलोमीटर की दूरी की मारक क्षमता वाली केएल-02 बैलेस्टिक मिसाइल बनाने में सफल हो चुका है। वह अमेरिका से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने दक्षिण कोरिया में सैनिक अड्ढे बनाए हुए हैं।

 

क्या होता है हाइड्रोजन बम ?

हाइड्रोजन बम एक थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस है, जिसमें सूरज की तरह फ्यूजन रिएक्षन से भयंकर ऊर्जा निकलती है। इस फ्यूजन रिएक्षन को शुरू करने के लिए 5 करोड़ डिग्री संेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है, जिसे फिषन डिवाइस से पैदा किया जाता है। इसे आमतौर पर छोटे परमाणु बम से करते है। हाइड्रोजन बम शक्तिशाली परमाणु बम है। इसमें हाइड्रोजन के आइसोटोप ड्यूटीरियम और ट्राइटीरियम की आवष्यकता पड़ती है। परमाणुओं का फ्यूजन करने से इस बम में विस्फोट होता है। जब परमाणु बम आवश्यक ऊर्जा उत्पन्न करता है तभी हाइड्रोजन परमाणु जारी होते हैं। इस फ्यूजन से ऊश्मा और शक्तिशाली किरणें उत्पन्न होती हैं, जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देती हैं। इससे बहुत अधिक मात्रा में ऊश्मा और हानिकारक विकिरण पैदा होते हैं। ये बेहद खतनाक होते हैं। जहां पर यह धमाका किया जाता है, वहां पर जीवन की सम्भावनाएं लगभग सैंकड़ों वर्षों के लिए समाप्त हो जाती हैं।

1922 में सबसे पहले यह पता चला था कि हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है। 1932 में ड्यूटीरियम और 1934 में ट्राइटीरियम नामक भारी हाइड्रोजन का आविश्कार हुआ। 1950 में संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति टू मैन न हाइड्रोजन बम तैयार करने का आदेश दिया था। इसके लिए 1951 में साउथ कैरोलिना में एक बड़े कारखाने की स्थापना की गई। हाइड्रोजन बम का पहला परीक्षण अमेरिका ने 1952 में किया था। 1953 में राष्ट्रपति आइजेनहाबर ने घोषणा की थी कि उनका हाइड्रोजन बम तैयार हो गया है। इसके बाद 1955 में सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया, फिर चीन और फ्रांस ने भी इसका परीक्षण किया।

 

प्रमोद भार्गव

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