वैलेंटाइन डे: रोमांटिक प्रेम का त्योहार

1
177

-ललित गर्ग-

”आंधी से भी भयानक होती है रक्त की वह हलचल जिसे मनुष्य ने प्रेम की संज्ञा दी है।“ रांगेय राघव की यह प्रेम एवं प्रणय से जुड़ी अभिव्यक्ति आज के युवा प्रेमियों पर सही साबित होती है, युवा दिलों पर उमड़ती इसी आंधी को अभिव्यक्त होने का अवसर मिलता है, वैलेंटाइन डे यानी प्रेम एवं प्यार दिवस पर। यह रोमांटिक प्रेम का त्योहार है। वैलेंटाइन दिवस या संत वैलेंटाइन दिवस जिसे अनेकों लोगों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। अंग्रेजी बोलने वाले देशों में, ये एक पारंपरिक दिवस है, जिसमें विवाहित प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वैलेंटाइन कार्ड भेजकर, फूल देकर, या उपहार आदि देकर करते हैं।
भारत में भी अब वैलेंटाइन डे बड़े स्तर पर मनाया जाने लगा है। वसंत के प्रेम एवं प्रणय मौसम में 14 फरवरी को मनाया जाने वाला वेलेंटाइन डे मानवीय संवेदना की सबसे खूबसूरत अभिव्यक्ति का वह अवसर है जिसमें प्रेम एक उत्सव की शक्ल में प्रस्तुत होता है। यह वह पर्व है जिसमें सभी पे्रम का संदेश बाँटते हैं। न केवल मानवीय स्तर पर बल्कि प्रकृति के स्तर पर भी प्रेम बरसता है। यह वह मौसम है जब प्रकृति भी नई साज-सज्जा व शंृगार के साथ मस्ती व खुशी में झूमती नजर आती है। ऐसे में प्रेम से भरे दिल मचल न उठे, तो फिर वसंत की सार्थकता क्या?
असल में भारतीय संस्कृति और परंपरा में वेलेंटाइन डे आयातीत पर्व है। पश्चिमी संस्कृति से जुड़ा यह पर्व आज भारतीय जीवनशैली एवं संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बनता जा रहा है। वेलेंटाइन डे से जुड़ा है संत वेलेंटाइन डे का नाम जो रोम में पादरी थे। संत वैलेंटाइन डे ने प्रेमियों के लिए संघर्ष करते हुए अपने सम्राट के आदेशों का उल्लंघन किया। इस उल्लंघन के लिए सम्राट ने क्रोधित होकर संत को मौत की सजा सुनाई। वह दिन था 14 फरवरी। तब से इस दिन को वेलेंटाइन डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन के साथ और भी किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं। रोमन सभ्यता से निकले प्रेम की इस महक से धीरे-धीरे सारी दुनिया के युवा प्रेमी जुड़ते चले गए। आधुनिक संदर्भ में वैलेंटाइन डे अपने प्रेम के इजहार एवं दिल में मचलते प्रेम के सागर को अभिव्यक्ति का एक खूबसूरत पर्व बन गया है। मन में लंबे समय से हिलोरे लेते प्रेम को व्यक्त करने का यह एक खास अवसर है। कुछ अपनी कहना, कुछ उनकी सुनना, कुछ गिले-शिकवे, नोकझोंक, फूल, गुलदस्ता, कार्ड्स, चोकलेट, घुमना-फिरना, मस्ती, ख्वाब यही सब चैदह फरवरी यानी वेलेंटाइन डे पर प्रेम के पर्याय बन गए हैं।
भारत में पिछले दो दशक में ही वैलेंटाइन डे को मनाने की शुरुआत हुई है। धीरे-धीरे यह पर्व हमारी संस्कृति के साथ गहराई से जुड़ता जा रहा है और इस दिन के नाम से युवाओं के दिलों की धड़कनें बेकाबू हो जाती हैं। जब से बाजारवाद की आंधी चली है वेलेंटाइन डे को एक सशक्त व्यावसायिक माध्यम के रूप में भूनाने के लिए बड़ी-बड़ी कंपनी उतावली रहती हैं। इस दिन दिल में उमड़ती भावनाओं के सैलाब को व्यक्त करने के लिए उपहार एक माध्यम है। प्रेम पत्र, लव काडर््स, गुलाब के फूल, तरह-तरह के गुलदस्ते, चोकलेट के अतिरिक्त अन्य बहुत से उपहारों का प्रयोग भी बढ़ता जा रहा है। होली एवं दीपावली की तरह वैलेंटाइन डे पर भी बाजारों में खूब चहल-पहल होने लगी है और बाजार भी वेलेंटाइन डे की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार दिखाई देते हैं। आर्चीज जैसी कंपनियाँ तो वैलेंटाइन डे के लिए पूरी तैयारी के साथ बाजार में प्रस्तुत होती हैं, असल में इन्हीं कंपनियों ने वैलेंटाइन डे को देश में बढ़-चढ़कर मान्यता दिलवाई है।
महात्मा गांधी ने लिखा है-”प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह तो हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है न कभी झंुझलाता है, न बदला लेता है।“ वास्तव में अगर हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसे स्वीकार करने या प्रदर्शन कर इजहार करने में शर्म व हिचकिचाहट कैसी। प्रेम सबको रास नहीं आता है। इसमें कुछ आबाद होते हैं तो कुछ बरबाद भी होते हैं। आजकल बरबाद होने वाले व दूसरों को बरबाद करने वाले प्रेमियों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन प्रेम शरीर से नहीं आत्मा से जुड़ी एक संवेदना है जिसमें यदि कोई किसी को आबाद या बरबाद करता है तो वह प्रेम ही कैसा है। न यह प्रदर्शन की चीज है और न ही यह कोई खिलौना है, जिसे जो चाहे, जब चाहे खरीद ले, खेल ले और तोड़कर फेंक दे। प्रेम एक पवित्र भावना है इसके साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।
प्रख्यात कहानीकार प्रेमचंद ने लिखा है-”प्रेम जैसी निर्मल वस्तु क्या भय से बांधकर रखी जा सकती है? वह तो पूरा विश्वास चाहती है, पूरी स्वाधीनता ेचाहती है, पूरी जिम्मेदारी चाहती है। उसके पल्लवित होने की शक्ति उसके अंदर है। उसे प्रकाश और क्षेत्र मिलना चाहिए। वह कोई दीवार नहीं है, जिस पर ऊपर से ईंटें रखी जाती हैं उसमें तो प्राण है, फैलने की असीम शक्ति है। सचमुच प्रेम जीवन को नए अर्थ प्रदान करता है। मेरी दृष्टि में यह कहना गलत होगा कि सच्चे प्रेमियों का युग खतम हो गया है। आज भी शीरी-फरहाद व लैला-मजनू जैसे प्रेमी युगल मौजूद हैं। एक दूसरे को पूरी तरह समर्पित, वर्षों तक एक दूसरे का इंतजार करते, एक दूसरे के लिए जान न्यौछावर करने वाले एवं प्रेम को गंभीरता एवं गहराई से जीने वाले प्रेमी युगल हमारे आसपास मौजूद हैं। हाँ उपभोक्ता संस्कृति के चलते एक नया वर्ग जरूर उभरकर आया है जिसमें उच्चस्तरीय जीवन जीने की आकांक्षाएँ इतनी प्रबल है कि उनकी संवेदनाएँ शुष्क हो गई हैं। इस वर्ग के युवाओं की जरूरतें व अपेक्षाएँ इतनी बढ़ गई हैं कि वे प्रेम भी करते हैं तो दूसरों का बाहरी सौंदर्य, आर्थिक वैभव व रहन-सहन का स्तर देखकर। किसी एक लड़के या लड़की की दोस्ती उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाती है। वे कई लड़के-लड़कियों पर अपना प्रेम आजमाते हैं। अपनी अपेक्षाओं की कसौटी पर उन्हें कसकर देखते हैं। ऐसे लोगों ने ही वेलेंटाइन डे को एक विडंबना बना दिया है।
प्रेम एक सुखद अहसास, गुदगुदा देने वाली अनुभूति है। इस भीड़ भरी दुनिया में किसी एक के बारे में सोचना, हर गम उसके साथ साझा करना, सोते-जागते सपनों में उसे अपने करीब महसूस करना ही प्रेम है। पूरे बदन में रोमांच पैदा कर देने वाला शब्द है प्रेम। प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो अनुभव करने वाला ही जान सकता है। उसका अस्तित्व सृष्टि के आरंभ से ही रहा है। यह न तो किसी बंधन को मानता है, न ही किसी तर्क को स्वीकार करता है। धर्म, जाति, आयु इन सबसे ऊपर है प्रेम। असल में जीवन को खूबसूरत एवं सार्थक बनाने में प्रेम की अहम भूमिका होती है। वेलेंटाइन डे जैसे अवसर उपयोगी हैं क्योंकि इनसे जीवन की उलझनें, व्यस्तताओं व परेशानियों से उभरने का मौका मिलता है।
जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-”पे्रम में स्मृति का ही सुख है। एक टीस उठती है, वही तो प्रेम का प्राण है।“ प्रेम का यही हार्द है, प्रेम तो मन की कोमल भावना है, जो हर इंसान के मन में समाई रहती है। चाहे बाहरी रूप में इंसान का अपने प्रेमी से नाता रहे या न रहे। भारतीय समाज में ऐसे अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं जहाँ माता-पिता की इच्छा की खातिर या पारिवारिक संस्कारों एवं दबावों के चलते अनेक युवा अपने-अपने प्रेम का बलिदान कर विरह को खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं। जिंदगी का नाम ही संघर्ष है। इस संघर्ष में दुख-तकलीफ और विरह की घड़ियाँ तो आती ही हैं। इनका सामना करने वाले और इनसे पार पाने वाले जिंदगी को जीते हैं। गोपियों की विरह वेदना प्रेम की अतृप्ति की चिरवेदना है और प्रेम को जाज्वल्यमान रखने के लिए यह श्रेयस्कर भी है। गोपियों की विरह वेदना से ही श्रीकृष्ण जान पाए कि उन्हें गोपियाँ कितना प्रेम करती हैं। विरह की विकलता प्रेमी के मन में प्रेम को बढ़ाती है।
वैलेंटाइन डे का यही संदेश है कि प्रेम के धागे को ढीला मत होने दीजिए। प्रेम को मानवीय संबंधों का एक सशक्त आधार बनाइए, आपसी संबंधों में प्रेम की मिठास घोलिए। आज सच्चे और पवित्र रिश्तों के अभाव में जीवन बौझिल और जटिल बनता जा रहा है, ऐसे दौर में प्रेम में भीगे रिश्तों को बनाइए। जो रिश्ते आपके बने हुए हैं उन्हें संभालकर रखिए और अधिक प्रगाढ़ बनाने का प्रयास कीजिए। सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेम का स्पर्श जरूरी होता है और इसी से जीवन निखरता भी है।

1 COMMENT

Leave a Reply to madhusudan Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here