Home राजनीति जलियाँवाला बाग़ नरसंहार क्या षड्यन्त्र था?

जलियाँवाला बाग़ नरसंहार क्या षड्यन्त्र था?

– डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

                                भारतीय पंचांग में वैशाख मास पवित्र माना जाता है । लोग नदियों में स्नान करते हैं । वैशाख पर्व या वैसाखी सर्वत्र अत्यन्त उत्साह से मनाई जाती है । नए वर्ष की शुरुआत भी वैशाख के प्रथम दिन से ही की जाती है । पश्चिमोत्तर भारत या सप्त सिन्धु क्षेत्र में वैशाख मास की एक अतिरिक्त महत्ता भी है । इसी मास में दशगुरु परम्परा के दशम गुरु गोविन्द सिंह जी ने शिवालिक की उपत्यकाओं में माखोबाल, जो अब आनन्दपुर के नाम से विख्यात है , में एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुला कर 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी । लेकिन जिस बैसाखी की हम चर्चा कर रहे हैं , वह बैसाखी 1919 की थी । अब तक सप्त सिन्धु की नदियों में बहुत पानी बह चुका था । अब पंजाब पर इंग्लैंड की सरकार राज कर रही थी और उसने पंजाब के लोगों के आक्रोश का दमन करने के लिए रौलट एक्ट लागू कर दिया था । लेकिन उससे ग़ुस्सा कम होने की वजाए बढ़ने लगा था । इस समय 1919 की वैसाखी के अवसर पर  भारत का वायसराय Lord Chelmsford था ।  Edwin Montagu लंदन में भारत सचिव था ।  पंजाब का लेफ़्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओडवायर  था । जालन्धर में 45वीं इन्फैंटरी ब्रिगेड का कमांडर ब्रिगेडियर जनरल आर ई एच डायर ( R.E.H.Dyer) था । अमृतसर में तनाव और ग़ुस्से को देखते हुए प्रशासन ने ब्रिगेडियर जनरल आर ई एच डायर को जालन्धर से अमृतसर बुला लिया था । उसने आते ही  पूरे प्रशासन को अपने क़ब्ज़े में ले लिया । जलियाँवाला कांड पर अपने शोध कार्य के लिए ख्याति प्राप्त इतिहासकार कहते हैं कि लेकिन हैरानी की बात है कि उस समय अमृतसर में मार्शल ला नहीं लगा था । सिविल प्रशासन ही कार्यरत था । बिना मार्शल ला के जनरल डायर के हाथों सारा प्रशासन कैसे दे दिया गया ? अमृतसर में जनसभाओं को रोकना , भीड़ को हटाना सिविल प्रशासन का काम है । यह काम सेना ने कैसे संभाल लिया ? ज़िलाधीश तो अचानक पूरे परिदृश्य से गायब ही हो गया ।  ज़िलाधीश अनुपस्थित था और जनरल डायर की सेना ने मोर्चा संभाला हुआ था । यह जनरल डायर और पंजाब के तत्कालीन लैफ्टीनैंट जनरल माइकल ओडवायर के आपसी षड्यंत्र के बिना संभव दिखाई नहीं देता । 

     उधर अमृतसर में वैशाखी के उत्सव का परम्परागत उत्साह तो था ही , इस बार इस राजनैतिक उथल पुथल से वातावरण और भी गरमा गया था । जलियाँवाला बाग में वैशाखी पर्व की तैयारियाँ शुरु हो गईं । ऐसा नहीं कि आम लोगों को अंग्रेज़ों की नीचता का पता नहीं था । अमृतसर में उसका नंगा नाच कई दिनों से हो ही रहा था । लेकिन लोग इस बार केसरिया बाना पहन कर मानों शहादत देने के लिए ही निकले थे । देखना है ज़ोर कितना बाजुए क़ातिल में है । विदेशी शासक अपनी क्रूरता में किसी भी सीमा तक जा सकते थे । पंजाब में अब शासन रणजीत सिंह का नहीं था बल्कि इंग्लैंड के डायरों का था । 
                    श्रद्धालु सुबह से ही बाग में जुटने शुरु हो गए थे । साढ़े चार बजे तक पन्द्रह से लेकर बीस हज़ार के लगभग लोग जलियाँवाला बाग़ में एकत्रित हो चुके थे । चारों ओर नर मुंड ही दिखाई दे रहे थे । मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर खड़े होकर जनता को सम्बोधित करने की व्यवस्था की गई थी ।  सभा शुरु हो चुकी थी । दो प्रस्ताव पारित किए जा चुके थे । तीसरे प्रस्ताव पर चर्चा शुरु हुई थी । यह प्रस्ताव  था कि ब्रिटिश सरकार भारत में अपनी दमन की नीति को बदले । लेकिन तब तक ब्रिटिश सरकार की दमन की नीति का नंगा प्रदर्शन करने के लिए डायर जलियाँवाला बाग के मुहाने पर हथियारबन्द फ़ौज लेकर पहुँच चुका था ।  पूरे पाँच बज कर पन्द्रह मिनट पर जनरल डायर पचास राइफ़लमैन और मशीनगन से लदी दो गाड़ियाँ लेकर बाग़ के मुख्य  प्रवेश द्वार पर आ डटा । प्रवेश द्वार पर उसने अपने राइफ़लमैन तैनात किए । उसकी इच्छा मशीनगन भी प्रवेश द्वार पर लाने की थी लेकिन द्वार इतना तंग था कि गाड़ी अन्दर नहीं आ सकती थी । बिना किसी चेतावनी के डायर की सेना ने वहाँ उपस्थित श्रद्धालुओं पर गोलीबारी शुरु कर दी । गोलियाँ उन दिशाओं में चलाई जा रही थीं , जहां के संकरे रास्तों से लोग निकलने की कोशिश कर रहे थे । अनुमान किया जाता है कि 1650 से भी ज़्यादा राउंड फ़ायर किए गए । अंग्रेज़ सरकार ने जो स्वयं आधिकारिक आँकड़े जारी किए उसके अनुसार 379 लोग शहीद हुए और 1100 घायल हुए । लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा की गई जाँच के अनुसार एक हज़ार से भी ज़्यादा श्रद्धालु शहीद हुए और पन्द्रह सौ से भी ज़्यादा घायल हुए थे । बाग के अन्दर एक कुँआ था , उसी  में से 120 से भी ज़्यादा लाशें निकाली गईं । इस कुकृत्यों से ब्रिटेन सरकार का अमानवीय और साम्राज्यवादी विकृत चेहरा नंगा हो गया । इस नरसंहार के बाद डायर ने पंजाब के लैफ्टीनैंट गवर्नर ओडवायर को सूचित किया , "मेरा सामना एक क्रान्तिकारी सेना से था ।"  लैफ्टीनैंट गवर्नर ओडवायर ने उत्तर दिया , " तुमने जो किया , बिलकुल ठीक किया । मैं इसका समर्थन करता हूँ ।" और लैफ्टीनैंट गवर्नर ने वायसराय को लिखा कि अब इस नरसंहार के बाद मार्शल ला की अनुमति दी जाए और वायसराय ने अनुमति दे दी । मार्शल ला के बाद अमृतसर निवासियों पर जो अमानुषिक अत्याचार हुए , उसने गोरों की साम्राज्यवादी चेतना और अमानवीय मानसिकता का पर्दाफ़ाश कर दिया । किसी गली में किसी मिशनरी चर्च की एक अंग्रेज़ औरत के साथ कुछ लोगों ने दुर्व्यवहार किया था लेकिन बाद में वहीं के लोगों ने उसे भीड़ से छुड़ा कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया था । उस गली में सभी हिन्दुस्तानियों को रेंग कर चलने के लिए विवश किया गया , ताकि उनको पता चले कि एक अंग्रेज़ औरत की क़ीमत तुम्हारे देवी देवताओं से भी ज़्यादा है , जिनके आगे तुम रेंगते हो । शहर में कर्फ़्यू होने के कारण जलियाँवाला बाग में कराह  रहे घायलों को हस्पताल नहीं पहुँचाया जा सका जिसके कारण उन्होंने वहीं तड़पते हुए दम तोड़ दिया । 

क्या जलियाँवाला ब्रिटिश षड्यंत्र था ?

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो० विश्वनाथ दत्त ने बहुत परिश्रम करके इस नरसंहार से सम्बंधित ब्रिटिश राज की फ़ायलों का अध्ययन किया और कुछ चौंकाने वाले तथ्य प्रकाशित किए । उनके अनुसार अमृतसर में जलियाँवाला बाग में जनसभा का आयोजन हंसराज नामक व्यक्ति ने किया था । उसी की यह योजना थी । लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न है कि यह हंसराज कौन था ? हंस राज अमृतसर कांग्रेस में काफ़ी महत्वपूर्ण ही नहीं हो गया था बल्कि वह उस समय के क़द्दावर कांग्रेसी नेता सैफ़ुद्दीन किचलू का काफ़ी अन्तरंग भी हो चुका था । किचलू की गिरफ़्तारी के बाद वह ही परोक्ष रूप से कांग्रेस में निर्णय लेने की स्थिति में था । वह क्योंकि किचलू का काफ़ी नज़दीकी था इसलिए आम कांग्रेसियों को उसका नेतृत्व और निर्णय स्वीकारने में कोई दिक़्क़त नहीं थी । कांग्रेस में ब्रिटिश सरकार ने अपने कुछ पिट्ठु काफ़ी अरसे से सक्रिय कर रखे थे । हंसराज इनमें से ही प्रमुख व्यक्ति था । वी.एन.दत्त के अनुसार , ब्रिटिश सरकार की यह अपनी ही योजना थी कि बैसाखी के दिन किसी तरह हज़ारों भारतीयों को किसी ऐसे स्थान पर लाया जाए , जहाँ से भागने का कोई रास्ता न हो हो । इस प्रकार उनको घेर कर गोलियों से भून दिया जाए ताकि सदा के लिए उनके मन में ब्रिटिश सरकार का आतंक बैठ जाए । इस काम के लिए उन्होंने बैसाखी के दिन का चयन किया । लोगों को जलियाँवाला बाग में लाने का दायित्व हंसराज को दिया गया और उन्हें गोलियों से भून देने का कार्य अंजाम देने के लिए जालन्धर से विशेष तौर पर डायर को बुलाया गया था । अमृतसर में भी ब्रिटिश सेना के उच्च अधिकारी विद्यमान थे लेकिन ब्रिटिश सरकार को शायद लगता होगा कि वे इस हैवानियत के काम को अंजाम देने में शायद कहीं चूक न जाएँ । जनरल डायर , पंजाब के उस समय के लैफ्टीनैंट गवर्नर जनरल ओडवायर का दोस्त भी था और उसकी हैवानियत भरे स्वभाव की प्रसिद्धि भी थी । जनरल डायर के बाग के मुख्य द्वार पर मोर्चा संभाल लेने के बाद लोगों ने उठना भी शुरु कर दिया था लेकिन हंसराज में उन्हें मंच से आश्वस्त किया कि जाने की ज़रूरत नहीं है , सेना गोली नहीं चलाएगी । वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के इस आश्वासन के बाद लोग बैठ गए और डायर ने गोलीबारी शुरु कर दी और हंसराज मंच से ग़ायब हो गया । बाद में अंग्रेज़ सरकार ने उसे चुपचाप दूसरे देश मैसेपटामिया में स्थापित कर दिया । जब लोगों को हंसराज की करतूत का पता चला तो उन्होंने अमृतसर में उसका घर जला दिया ।

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