निर्मल रानी
धर्म की जीत हो-अधर्म का नाश हो, धर्मस्थानों से इस प्रकार की प्रेरणादायक व आदर्शवादी आवाज़ें कुछ ज़्यादा सुनाई देती हैं। यह उद्घोष हमारे देश के मंदिरों में प्रात: व सायंकाल की आरती के बाद ज़रूर सुना जाता है। प्रतिदिन करोड़ों लोग इस उद्घोष में शामिल होते हैं। तो क्या वास्तव में ऐसे उद्घोष से हमारे देश या समाज को कुछ हासिल भी हो पाया है या फिर इस प्रकार के नारे केवल औपचाकिता व रस्म अदायगी के लिए ही उछाले जाते हैं? धर्म की बातें करने वाले लोग स्वयं कितना अधर्म करने लगे हैं इस बात का अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता जा रहा है। इस प्रकार की आदर्श बातें सुनने वाली आम जनता की बात तो छोड़िए धर्म के मार्ग पर चलने व चलाने का दावा करने वाले बड़े से बड़े धर्मगुरु,बड़े-बड़े आश्रम, प्रसिद्ध समाज सेवी संस्थाएं,अनाथआश्रम,शेलटर होम आदि सबकुछ संदिग्ध होते जा रहे हैं। हर जगह भ्रष्टाचार,व्याभिचार,दुराचार तथा अत्याचार का वातावरण दिखाई दे रहा है। ख़ासतौर पर आज के दौर में बच्चे विशेषकर किशोरियां तो बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं रह गई हैं। भगवान का रूप समझे जाने वाले गुरू से लेकर पिता व भाई स्वरूप सगे संबंधी,रिश्तेदार आदि किसी के भी हाथों बच्चियों की आबरू सुरक्षित नज़र नहीं आती। क्या हमारी स यता,संस्कृति,हमारा धर्म-कर्म तथा हमारे सदाचारी होने का प्रदर्शन हमें इसी बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि हम धार्मिक व मानवतावादी होने का दिखावा तो करते फिरें परंतु अपने भीतर एक राक्षसी प्रवृति का पोषण भी करते रहें?
भारतवर्ष में ग़रीब,बेसहारा,असहाय,लावारिस तथा यतीम लोगों के लिए भारत रत्न मदर टेरेसा द्वारा संचालित मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी देश के सबसे प्रतिष्ठित समाजसेवी संगठनों में एक है। लाखों असहाय व अपने परिवार व समाज से तिरस्कृत किए गए लोग जिनमें बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक शामिल हैं मदर टेरेसा द्वारा संचालित निर्मल हृदय अथवा मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी नामक होम में रहा करते हैं। भारतवर्ष में मदर टेरेसा की पहचान भी एक ऐसी महान
समाजसेवी महिला के रूप में रही है जिनका मुकाबला अब तक कोई दूसरा समाजसेवी नहीं कर सका। बिना धर्म-जाति व भेद-भाव के मदर प्रत्येक दु:खी,परेशान व तिरस्कृत आत्मा को गले लगाने वाली शख़्सियत थीं। उनकी इसी समाजसेवा के लिए उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया। 1979 में मदर टेरेसा को उनकी समाजसेवा तथा शान्ति व सद्भाव हेतु किए गए कार्यों के लिए उन्हें विश्व के सर्वोच्च नोबल शांति पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था। हालांकि भारत में मदर टेरेसा पर दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन कराने के आरोप भी लगाए जाते रहे हैं। परंतु उन्होंने अपनी सेवा के बल पर अपने क़द को इतना ऊंचा कर लिया था कि उनपर कीचड़ उछालने वालों की हैसियत वैसी ही हो जाती जैसे कि सूरज के सामने चिराग़ जलाने का प्रयास करना।
बहरहाल, सवाल यह है कि क्या मदर टेरेसा द्वारा संचालित होम आज भी मदर द्वारा बताए गए रास्तों पर चल पा रहे हैं? क्या वजह है कि आज मदर के रांची स्थित निर्मल हृदय नामक एक होम से बच्चे बेचे जाने जैसे घिनौने कारोबार की ख़बर सुनाई देती है? क्या इस प्रकार के धर्मार्थ केंद्र चलाने के लिए देश-विदेश से पैसे इसीलिए इकठ्ठा किए जाते हैं ताकि अनाथाश्रम के मुखिया या उसके कर्मचारी उन पैसों से ऐश करें? और तो और उन अनाथाश्रम में पलने वाले बदनसीब बच्चों की ख़रीद -फ़रोख़्त भी करें? मदर टेरेसा ने अपनी नि:स्वार्थ तथा धर्म व नैतिकता पूर्ण सेवा के बल पर 1950 में स्थापित अपनी मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी को इतना अधिक विस्तार दे दिया था कि इस समय उनका यह धर्मार्थ मिशन 130 देशों में फैला हुआ है। और इन मिशनरीज़ में चार हज़ार पांच सौ से अधिक नन तथा कर्मचारी काम कर रहे हैं। ज़ाहिर है किसी ग़ैर सरकारी संस्था का इतना व्यापक विस्तार केवल विश्वास,सच्चाई तथा नैतिक आधार पर अर्जित की गई लोकप्रियता के चलते ही हो सकता है। परंतु गत् दिनों रांची से जिस प्रकार मदर के होम में पलने वाले बच्चों को ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से बेचे जाने का समाचार मिला और इस संबंध में झारखंड पुलिस द्वारा होम की दो स्वयंसेवी महिलाओं को भी गिरफ़्तार किया गया वह वास्तव में बेहद चिंता का विषय है। होम के कर्मचारियों द्वारा कथित रूप से एक लाख रुपये से लेकर एक लाख बीस हज़ार रुपये तक की क़ीमत लेकर बच्चों को बेचे जाने का आरोप सामने आया है।
बिहार राज्य के मुज़फ़्फ़रपुर शहर से भी ऐसी ही एक ताज़ातरीन घटना का समाचार प्राप्त हुआ है। मुज़फ़्फ़रपुर स्थित शेलटर होम जोकि किसी स्थानीय रसूख़दार व्यक्ति द्वारा संचालित किया जा रहा है इसमें भी ग़रीब लोग अपनी बच्चियों को दाख़िल कराते थे। इस बालिका गृह की 29 बालिकाओं के साथ बलात्कार होने की पुष्टि मेडिकल जांच द्वारा हुई है। पता यह भी पता चला है कि इस बालिका गृह में यौन शोषण का घिनौना खेल गत् कई वर्षों से चल रहा था। परंतु इस घिनौने नेटवर्क का पटाक्षेप उस समय हुआ जबकि इसी बालिका गृह में रहने वाली एक लड़की ने यह आरोप लगाया कि उसी आश्रम की उसकी एक साथी लड़की के साथ पहले बलात्कार किया गया उसके बाद उसकी बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। ख़बरों के अनुसार जो व्यक्ति इस बालिका गृह को संचालित कर रहा है उसके संबंध सत्ता में बैठे ऊंचे लोगों के साथ हैं। और यह भी बताया जा रहा है कि वह अपने आश्रम में रहने वाली लड़कियों को अपने ऊंचे रसूख़दारों को ख़ुश करने के लिए इस्तेमाल किया करता था। इस विषय पर बिहार की राजनीति में उबाल आया हुआ है तथा मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग हो रही है। पुलिस द्वारा इस बालिका गृह से 44 लड़कियों को निकाला जा चुका है जिनमें 42 बालिकाओं की मेडिकल जांच के बाद ही 29 लड़कियों के साथ बलात्कार होने की पुष्टि हुई है। यही है हमारे आज के सफ़ेद पोश रसूख़दारों व सत्ता तक पहुंच रखने वाले शक्तिशाली लोगों का असली चेहरा।
कभी आसाराम जैसा अंतर्राष्ट्रीय याति प्राप्त ढोंगी संत दुराचार,बलात्कार व दूसरे घृण्ति अपराधों में जेल की सलाखों के पीछे दिखाई देता है तो कभी ज्योतिषाचार्य का चोला पहने बैठा स्वयंभू ज्योतिषाचार्य दाती ‘महाराज’ ऐसे ही मामलों में आरोपी नज़र आता है। कभी गुरमीत सिंह राम रहीम को क़ानून आईना दिखाता है और उसे उसकी माशूक़ा के साथ जेल में ठूंस देता है तो कभी हरियाणा से जलेबी बाबा नाम का भगवाधारी पोर्न फ़िल्म इंडस्ट्री चलाता सुनाई देता है। गोया देश में धर्म के बजाए अधर्म का बोलबाला होता जा रहा है। विश्वास के बजाए अविश्वास तेज़ी से पनप रहा है। नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले ख़ुद अनैतिकता के सारे कीर्तिमान तोड़ते दिखाई दे रहे हैं। जिनसे चरित्रवान होने की उ मीद हुआ करती थी वही चरित्रहीनता की सारी सीमाएं लांघते जा रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे वातावरण में क्या सरकार द्वारा दिए जाने वाले ‘बेटी बचाओ व बेटी पढ़ाओ जैसेनारे केवल लोक लुभावने नारे मात्र प्रतीत नहीं होते? जब धर्मगुरू से लेकर नेता तक और अधिकारी से लेकर साधारण कर्मचारी तक किसी को किसी की इज़्ज़त,इस्मत,आबरू व चरित्र की परवाह ही न हो ऐसे में इस प्रदूषित व अविश्वासपूर्ण वातावरण में माता-पिता द्वारा अपने बच्चों ख़ासतौर पर किशोरियों को लेकर इस चिंता का उठना लाजि़मी है कि वे इन्हें सुरक्षित रखने हेतु आख़िर- ‘जाएं तो जाएं कहां’?