विनोद कुमार सर्वोदय
ऐसा प्रतीत होता है कि “हिन्दू पाकिस्तान” व “हिन्दू तालिबान” जैसे नये शब्दों की उत्पत्ति करने वाले केवल अपने दल की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गांधी के दिखाये मार्ग पर ही चलने को विवश हो रहे हैं। निसंदेह 2004 से 2014 तक के दस वर्षीय कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के कार्यकाल को केवल अल्पसंख्यकों के प्रति समर्पित करने वाली सोनिया गांधी की बीमारू मानसिकता पीछा नही छोड़ रही है। उन्होंने कांग्रेस की 22 जुलाई को हुई कार्यसमिति की बैठक में वर्तमान केंद्रीय सरकार को आरोपित करते हुए कहा कि देश की जनता को इस “खतरनाक शासन” से बचाना होगा, जो भारत के लोकतंत्र को संकट में डाल रहा है। इतना ही नही हिंदुओं के प्रति अपनी इतनी अधिक चिढ़ और घृणा का परिचय देते हुए समाचार पत्रों के अनुसार उन्होंने यह भी कहा कि देश में नफरत और भय का वातावरण है और जनता पर एक विचारधारा को थोपा जा रहा है। क्या उन्हें इतना भी ज्ञान नही की वर्तमान सरकार का गठन लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार हुआ है और राष्ट्रीय बहुमत आज भी भाजपानीत राजग सरकार के साथ खड़ा है। उन्होंने ऐसा कहकर भारतीय बहुमत व संस्कृति के प्रति अपनी नकारात्मक सोच को ही दर्शाया है।
इसी प्रकार सोनिया गांधी की स्वामीभक्ति का परिचय देने वाले इनके कुछ सहयोगी भी समाज में घृणा फैलाने का कार्य कर रहे है। ऐसे भारतवासी कभी “भगवा-आतंकवाद”, “हिन्दू पाकिस्तान” व कभी “हिन्दू तालिबान” का भय दिखा कर साम्प्रदायिकता की भट्टी में भारत को झोंकने वाले, 2011 में क्यों चुप थे ? जब सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने “साम्प्रदायिक व लक्षित हिंसा निरोधक विधेयक (2011)” के लगभग 67 पृष्ठों वाले प्रारूप जिसमें केवल और केवल बहुसंख्यकों (हिंदुओं) को ही दोषी बनाने का भयानक षड्यंत्र रचा गया था। क्या उस प्रस्तावित विधेयक से यह स्पष्ट नही था कि बहुसंख्यक हिन्दू और अल्पसंख्यक मुसलमान व ईसाई आदि के बीच होने वाले साम्प्रदायिक विवादों में केवल बहुसंख्यकों को ही दोषी माना जायेगा। कुछ वरिष्ठ बुद्धिजीवियों के अनुसार 9 अध्यायों को 138 धाराओं में विस्तार पाने वाले इस प्रस्तावित विधेयक का सार-संक्षेप यह था कि बहुसंख्यक कभी निर्दोष नही होगा और अल्पसंख्यक कभी दोषी नही ठहराया जायेगा। इसको विस्तृत समझने वाले विधिवेत्ताओं का स्पष्ट मत था कि यह तो बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के मध्य घृणा और वैमनस्य बढ़ा कर केवल बहुसंख्यकों को कारागारों में ठूसने का एक अप्रत्यक्ष वारंट की तैयारी थी। प्रायः किसी भी धर्मनिरपेक्ष व मानवतावादी राष्ट्र में ऐसा कानून न था और न है और न ही किसी की भविष्य में सोनिया गांधी के समान ऐसी भयावह मानसिकता होगी। श्रीमती सोनिया गांधी जो पिछली 10 वर्षीय केंद्रीय सरकार में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की चेयरपर्सन थी , भारत में अल्पसंख्यकों को एकजुट करके बहुसंख्यकों के प्रति घृणित भाव भर कर भी समाज को बांटने में सफल नही हो सकी।
आज क्या ऐसा विचार करना अनुचित होगा कि देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल कांग्रेस की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गांधी जो हमारे देश में पिछले लगभग 50 वर्षो से अत्यंत वैभवपूर्ण व राजकीय जीवन व्यतीत कर रही हैं फिर भी उन्होंने भारतीय संस्कृति व हिंदुत्व की गहराइयों को जानने व समझने का कोई प्रयास क्यों नही किया ? यह ठीक है कि वे मूलतः भारतीय न होकर इटैलियन है और उनका धर्म कैथोलिक ईसाई है, फिर भी उनको यहां नेहरू-गांधी परिवार की बहु होने के नाते अपने देश के विपरीत अति विलासितापूर्ण जीवन का राजसी ठाठ-बाट मिला। इसके अतिरिक्त उनके सहयोगी व कार्यकर्ता आदि पार्टीजन हज़ारों की संख्या में उनके सामने सदैव नतमस्तक सेवा में तत्पर रहते है। लेकिन यह दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह यहां की मूल संस्कृति व रीति रिवाजों के प्रति क्यों नही आकर्षित हुई ? यह बिंदु देशवासियों को आज भी झकझोर रहा है। वैसे भी एक सामान्य व्यक्ति या कोई अन्य भी इतने वर्षों में तो अपना सब कुछ छोड़ कर उसी धरती को आत्मसात कर लेता है जहां उसकी समस्त इच्छायें व आवश्यकताएं दशकों से पूर्ण हो रही होती है। इससे और अधिक बढ़ कर उन्हें अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों ( VVIP ) की श्रेणी की मिलने वाली सारी सुविधाओं का बोझ भारतीय जनता अभी भी उठा रही है।
अतः आज सोनिया गांधी व उनके सहयोगियों को अगर भविष्य में अपने राजनैतिक दल को सुचारू व व्यवस्थित करना है तो उन्हें अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा। उन्हें हिंदुओं के प्रति चिढ़ना और उनसे घृणा करना छोड़ना होगा और भारत की मूल सत्य सनातन संस्कृति के प्रति कोई भी नकारात्मक व अपमानजनक विवादित बयानों से बचना होगा।