संदर्भः बुलंदशहर सामूहिक दुष्कर्म कांड में आजम खान के विवादित ब्यान पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला-
प्रमोद भार्गव
राजनेताओं के पास जब विचारों और तार्किक जवाबों का टोटा होता है तो वे अनर्गल बयान दे देते हैं। कुछ इसी तरह का बयान समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री आजम खान ने बुलंदशहर दुष्कर्म कांड पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दिया था। उन्होंने मां-बेटी के साथ सामूहिक रूप से किए गए इस दुष्कर्म पर पर्दा डालने की कोशिश करते हुए इसे राजनीतिक साजिश करार दिया था। मसलन सपा सरकार को बदनाम करने के लिए इस साजिश को अंजाम भाजपा या अन्य विपक्षी दलों ने दिया है ? इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ के न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और अमिताभ राव ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि आजम खान पीड़ित परिजनों से बिना शर्त माफी मांगें और अदालत में इस आशय का शपथ-पत्र भी प्रस्तुत करें। यह निर्णय दुष्कर्म पीड़िता की याचिका पर न्यायालय ने सुनाया है।
दरअसल हमारे यहां खासतौर से नेता सुर्खियों में बने रहने के लिए जाने अनजाने ऐसे बयान दे देते है, जो न केवल आहत करने वाले होते हैं, बल्कि देश में असहिष्णुता का भी निर्माण करते है। ज्यादातर ऐसे नेता पूर्वग्रही मानसिकता से ग्रस्त है। उनके दिमाग में संकीर्णता प्रभावी रहती है। ऐसे में जब मीडियाकर्मी जब किसी चर्चित मुद्दे या घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया लेते हैं तो अपनी कथित-कुंठित क्षुद्रता को बेवाकी से बाहर निकालने में न तो संकोच करते हैं और न ही मर्यादा का पालन करते हैं। ऐसे में यह अमार्यादित बयान समाज को अराजक बनाने का काम तो करता ही है, समाज को संस्कृति, धर्म, संप्रदाय और जातीयता के स्तर पर ध्रुवीकृत भी करता है। हमारे राजनेताओं में आजम खान, दिग्विजय सिंह, उमर अब्दुल्ला और पी. विदंरबरम तो कभी-कभी ऐसे बयान दे देते हैं, जो जहर घोलने वाली राजनीति को तो बढ़ावा देते ही हैं, कभी-कभा आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी ताकतों को समर्थन देते भी लगते हैं।
आजम खान की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने अदालत में एक शपथ-पत्र प्रस्तुत किया था। इसमें आजम के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने जान-बूझकर पीड़िता का अपमान नहीं किया है और न ही कभी उसे आहत करने या मानसिक ठेस पहुंचाने की मंशा रही है। अदालत में आजम खान के 1 अगस्त 2016 को प्रेसवार्ता के दौरान दिए बयान का ब्यौरा भी प्रस्तुत किया गया। इसमें सिर्फ विपक्षी विचारधारा की बात कही बताई गई है। इस बयान से यह कतई साबित नहीं होता कि यह घटना सिर्फ राजीतिक साजिश है और इसके सिवाय कुछ नहीं है। साजिश और षड्यंत्र जैसे शब्दों का तो हलफनामे के मार्फत प्रयेाग करना ही नहीं बताया गया है। इसके उलट मीडिया को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया और उसका गलत अर्थ निकाला गया।
हालांकि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील किसलय पाण्डेय ने दलील दी थी कि आजन खान ने न्यायालय में पत्रकार वार्ता का जो विवरण दिया है, वह पूरा नहीं है। इस विवरण से पत्रकार द्वारा पूछे गए उस प्रश्न के उत्तर को हटा दिया गया है, जो विवाद और अपमान का आधार बना है। पत्रकार ने सवाल किया था कि क्या आप मानते हैं कि इस उुश्कर्म के पीछे राजनीतिक साजिश है। इसके उत्तर में आजम ने कहा था कि उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव करीब हैं और सपा को बदनाम करने का इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं हो सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में बहुत देर बहस हुई। अंत में अपने मुव्बकिल के पक्ष में कोई निष्कर्श नहीं निकलते देख कपिल सिब्बल ने कहा कि उनकी मंशा कभी भी पीड़िता को आहत करने की नहीं रही। इसलिए आजम बिना शर्त माफी मांगते हैं। लिहाजा उनके इस बयान को दर्ज करते हुए मामला यहीं समाप्त कर दिया जाएं। लेकिन पीठ ने आदेश दिया कि इस संदर्भ में आजम बिना शर्त माफी मांगने का शपथ-पत्र अदालत में दो सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करें। साथ ही, अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को पीड़िता को केंद्रीय विद्यालय में प्रवेश दिलाने और उसकी पढ़ाई का खर्च उठाने का निर्देश भी दिया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान खास बात यह देखने में आई कि अदालत में न्यायमित्र फली नारिमन के सुझाव पर अदालत ने दुष्कर्म और छेड़ाखानी जैसे मामलों में गैरजिम्मेदाराना बयान दिए जाने के मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई का मन बनाया है। इस बावत अदालत ने महाअधिवक्ता मुकुल रोहतगी से अदालत की मदद करने का आग्रह किया है। इस सिलसिले में अगली सुनवाई 7 दिसंबर को होगी।
अनर्गल बयान पर यह फैसला बड़बोलेपन पर अंकुश लगाएगा। वैसे भी राजनीति जैसे सेवाकार्य में लगे लोगों को महिलाओं के संदर्भ में बेहद संवेदनशीलता और सावधानी बरतने की जरूरत होनी चाहिए। क्योंकि तमाम कानूनी उपायों के बावजूद महिलाओं के साथ हिंसा और दुष्कर्म के मामले बढ़ रहे हैं। 2014 में महिलाओं के विरुद्ध दर्ज अपराधों की कुल संख्या 3,22,000 थी, इनमें से 37000 मामले केवल बलात्कार के थे। बावजूद महिलाओं पर राजनेताओं द्वारा आनुचित टिप्पणियां करने में कोई परहेज देखने में नहीं आ रहा है। पुलिस अधिकारियों और भारतीय प्रशासन की ओर से लांछनों और भेदभाव के चलते महिलाओं को यौन हिंसा की शिकायत दर्ज करने से भी रोका जाता है। अधिकतर राज्यों में अब भी महिलाओं के खिलाफ बरती जा रही हिंसा से निपटने के लिए पुलिस के पास मानक प्रक्रियाओं का अभाव है। यहां तक की जेलों में भी विचाराधीन कैदी महिलाओं के साथ यौन प्रताड़ता के मामले सामने आ रहे हैं। इसी दृष्टि से उच्चतम न्यायालय ने सकारात्मक रुख अपनाते हुए सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के निर्देश दिए हैं। वहीं केंद्र सरकार ने यह भरोसा जताया है कि वह प्रताड़ना को अपराध करार देने के लिए भारतीय दंड प्रक्रिया सांहिता में संशोधन का विचार कर रही है। यह संशोधन इसलिए जरूरी है क्योंकि नागरिक अधिकारों के दमन की परिकल्पना किसी भी लोकतांत्रिक देश में विधायिका और कार्यपालिका द्वारा नहीं की जा सकती है।
प्रस्तुत लेख में आजम खान द्वारा दिए वक्तव्य का पीड़िता पर प्रभाव केवल क्षमा मांगने से दूर नहीं होता| बड़बोलेपन पर अंकुश तो तब लगेगा जब आजम खान को अभियोग में अभियुक्त बना कानूनी कार्यवाही की जाए| प्रमोद भार्गव जी के विवरणात्मक लेख से एक बात अवश्य प्रमाणित हो गई है कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी नौकरशाही में राष्ट्रवादी परिवर्तन लाने में सफल हो रहे हैं|