बदन हमारा करके, दरिंदो के हवाले,
वे चैन से बैठे हैं, हम गुस्सा भी न करें.
इन जख्मों पर मरहम, उसकी हैसियत में नहीं,
जिसने कुर्सी के लिये, अपना ईमान बेच डाला है.
इतिहास पलट के देखो, ऐ मुल्क के हुक्मरानों,
खुद को जलाकर हमने, बादशाहों को मिटाया है.
मुगालते में हैं वे, जो सोचते हैं अक्सर,
कि मोमबत्ती जलाकर, हम घर को लौट जायेंगे.
कमज़ोर दरख्तों को आँधी उखाड़ती है जैसे,
तुमको उखाड़ने के लिये, वैसी हवा अब आयी है.
कर रहे हैं इन्तज़ार, अब चुनाव के मौसम का,
कि लोकतंत्र की जड़ें, इस दिल में गहरे समाई है.
अपने बच्चों के लिये मुल्क बेचने वालों, संभलो!
भारत का हर बच्चा, मिलकर कसम खाता है,
इस बार ताज़ रखेगा, उस गरीब के सर पर,
जिसकी हर इबादत में, मुल्क का नाम होता है.