रौशनी के बिना शिक्षा की लौ नहीं जलती

बशारत अख़्तर
कुपवाड़ा, कश्मीर
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 का बजट प्रस्तुत करते हुए मोदी सरकार की
जिन महत्वाकांक्षी योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया है उनमें सौभाग्य योजना भी
शामिल है। बजट में इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया गया है कि साल 2022 तक शत
प्रतिशत परिवारों तक बिजली पहुंचा दी जाएगी। उत्तर प्रदेश, ओडिशा, जम्मू कश्मीर,
झारखंड, दिल्ली और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के सभी गांव में बिजली पहुँचाने के
उद्देश्य से वर्ष 2017 में सौभाग्य योजना प्रारंभ की गई थी। इसके तहत दिसंबर
2018 तक लक्ष्य की प्राप्ति रखी गई थी। यानि सभी परिवारों तक बिजली का
कनेक्शन पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। ख़ास बात यह है कि इस योजना की
सफलता के लिए जम्मू कश्मीर को इसी वर्ष मार्च में ‘सौभाग्य एक्सीलेंस अवार्ड’ से
सम्मानित भी किया गया है। 
17 अक्टूबर 2018 को जम्मू कश्मीर से प्रकाशित एक अंग्रेजी अखबार ‘ग्रेटर कश्मीर’ ने
राज्य के ऊर्जा सचिव हृदेश कुमार के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस
रिपोर्ट के अनुसार सौभाग्य योजना के अंतर्गत राज्य के छह ज़िलों श्रीनगर, बडगाम,
पुलवामा, जम्मू, सांबा और कठुआ में शत प्रतिशत बिजली पहुंचाने का काम पूरा कर
लिया गया है। जबकि बाकि 16 ज़िलों में कार्य अंतिम चरण में है। साथ ही उन्होंने
यह भी बताया कि राज्य के सीमावर्ती 102 गांव को भी बिजली से जोड़ने लिए
बुनियादी ढांचे तैयार कर लिए गए हैं और बहुत जल्द इन क्षेत्रों को भी रौशन कर
दिया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट मानी जाने वाली ‘सहज बिजली
हर घर योजना’ (सौभाग्य) के अंतर्गत जम्मू कश्मीर के ग्रामीण क्षेत्रों में 31 मई 2019
तक कुल 6337 गांव में बिजली पहुंचा दी गई है। इसके लिए 133.42 करोड़ रूपए
मंज़ूर किये गए हैं, जिनमें 53.24 करोड़ रूपए अब तक जारी किये चुके हैं। वहीँ
875.03 करोड़ रूपए अतिरिक्त राशि में से 435.13 करोड़ रूपए खर्च किये जा चुके हैं।
अब तक कुल 18,72,195 घरों में से 15,10,271 घरों को बिजली से रौशन किया जा
चुका है। वहीं 8,861 अतिरिक्त घरों तक भी बिजली के कनेक्शन पहुंचा दिए गए हैं।
राज्य के बिजली विभाग के दावे और आंकड़ों से पता चलता है कि जम्मू कश्मीर में
बिजली की व्यवस्था बहुत अच्छी है और राज्य को रौशन करने के अमल पर तेज़ी से
अमल किया जा रहा है। लेकिन दूसरी तरफ ज़मीनी स्तर पर जायज़ा लिया जाये तो

दावे और हकीकत में ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आता है। सौभाग्य योजना के
तहत दिसंबर 2018 तक राज्य के सभी परिवारों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा
गया था, लेकिन समय सीमा बीत जाने के बाद भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है।
हालांकि सौभाग्य योजना के लांच होने के बाद से जम्मू कश्मीर में बिजली की स्थिती
में पहले से काफी सुधार आया है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां आज भी बिजली के
तार और खंभे पहुंचने का इंतज़ार है। भौगोलिक संरचना की दृष्टि से देखें तो जम्मू
कश्मीर के अधिकतर क्षेत्र पहाड़ों पर स्थित है जो साल के आधे से अधिक महीने बर्फ
से ढंके रहते हैं। ऐसे क्षेत्रों में बिजली की निर्बाध सप्लाई सबसे बड़ा चैलेंज होता है।
कई बार इन क्षेत्रों में आने वाले बर्फीले तूफ़ान भी यहां की बिजली व्यवस्था को बुरी
तरह से प्रभावित करती हैं। इसके अतिरिक्त राज्य के कई क्षेत्रों में बिजली व्यवस्था
इसलिए भी चरमराई रहती है क्योंकि इन क्षेत्रों में तारों को लकड़ी के खंभो के सहारे
पहुंचने का प्रयास किया गया है। जो तेज़ आंधी और बारिश में अक्सर उखड़ जाते हैं।
कई बार टूटे खंभों में दौड़ती बिजली स्थानीय निवासियों के लिए जानलेवा साबित हुई
हैं। 
लोगों की तकलीफ यहीं ख़त्म नहीं होती है। अगर बिजली सप्लाई की व्यवस्था को
ठीक भी कर लिया जाता है तो लो वोल्टेज गाँव वालों की मुसीबतों को बढ़ा देते हैं।
बिजली की इस कुव्यवस्था का शिकार जम्मू कश्मीर का लदोरण गांव भी है। ज़िला
हेडक्वॉर्टर कुपवाड़ा से करीब दस किमी दूर उत्तर पश्चिम की पहाड़ियों पर
स्थित इस गांव की आबादी 3200 है। लेकिन आज भी गांव में बिजली नाममात्र के लिए
है। यहां लो वोल्टेज की इस कदर समस्या है कि बल्ब जलने के बावजूद गांव वालों
को रौशनी की वैकल्पिक व्यवस्था करनी होती है। हालांकि पहाड़ पर आबाद होने के
कारण यहां बिजली की तारें और खंभे पहुंचना सबसे कठिन चुनौती थी, जिसे
सफलतापूर्वक पूरा किया गया। लेकिन लगातार लो वोल्टेज की समस्या ने विभाग की
सफलता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। इस समस्या के कारण एक तरफ जहां लोगों
की स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है वहीं छात्रों को भी इसका खामियाज़ा
भुगतना पड़ रहा है और उनकी पढ़ाई इससे लगातार बाधित हो रही है। दसवीं में पढ़ने
वाली एक स्थानीय छात्रा दिलशादा बानो के अनुसार लो वोल्टेज के कारण इस गांव
का कोई भी विद्यार्थी स्कूल में मिलने वाले गृह कार्य समय पर नहीं कर पाता है।
जिससे अक्सर उन्हें क्लास में टीचर की डांट सुननी पड़ती है। वहीं प्रतियोगिता परीक्षा
की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों का भविष्य लो वोल्टेज की भेंट चढ़ रहा है। यही
कारण है कि इस समस्या से परेशान होकर कई छात्र धीरे धीरे पढ़ाई से दूर होते जा
रहे हैं। 

हालांकि गांव तक बिजली का साजो सामान पहुंचाने में विभाग ने लाखों रूपए खर्च
किये हैं, लेकिन मांग के अनुरूप कम मेगावाट का ट्रांसफार्मर स्थापित किये जाने से
समस्या का समाधान संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इस गांव में बिजली का होना
नहीं होने के बराबर माना जाता है। जबकि महंगी होने के कारण सौर ऊर्जा विकल्प
नहीं बन पा रहा है। इस संबंध में गांव के सरपंच ग़ुलाम मोहिउद्दीन वाणी भी बिजली
की समस्या पर लोगों की शिकायतों को वाजिब मानते हैं। उनका कहना है कि लो
वोल्टेज के संबंध में उन्होंने विभाग के उच्च अधिकारियों को कई बार अगवत भी
कराया है लेकिन आश्वासन के अलावा अभी तक कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने बताया
कि गांव के लिए कम से कम 10 मेगावाट की ज़रूरत है जबकि विभाग द्वारा मात्र 6
मेगावाट का ट्रांसफार्मर ही लगाया गया है। जिससे ट्रांसफार्मर पर अत्यधिक बोझ बढ़
जाता है और परिणामस्वरूप लो वोल्टेज समस्या उत्पन्न हो जाती है। इस समस्या
का समाधान उच्च मेगावाट वाले ट्रांसफार्मर को स्थापित करके ही क्या जा सकता है।
इसके अतिरिक्त बिजली के तारों की मरम्मती और लकड़ी के बजाये उचित खंभों के
माध्यम से भी बिजली की समस्या को दूर किया जा सकता है। हालांकि विभाग ने
पिछले वर्ष ही इस गांव को दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना के तहत नामांकित किया
है, लेकिन गांव वालों आज भी इसके लाभ का इंतज़ार है। उन्हें उम्मीद है कि अब केंद्र
से चली योजना कागज़ों से निकलकर आम आदमी तक शत प्रतिशत पहुंचती है। ऐसे
में इस गांव में भी एक दिन रौशनी से शिक्षा की लौ जलेगी। (चरखा फीचर्स)

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