हिंदी ग़ज़ल

अविनाश ब्यौहार

गरज गरज कर अंबुद बरसे।
औ सावन प्यासा ही तरसे।।

अषाढ़-सावन-भादों में है,
हरीतिमा के खुले मदरसे।

याद आते त्यौहार में अब,
माँ के हाँथों बने अँदरसे।

घटाटोप बादल को देखा,
मोर, पपीहा, दादुर हरषे।

भूख पेट में मचल रही है,
सूखी रोटी भी है सरसे।

अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर

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