शब्द झरना संस्कृति का (२)

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gauडॉ. मधुसूदन

सारांश:
(९)===>गौ के सन्तान-प्रेम का आदर्श, वत्सलता में, स्थापित कर दिया।
(१०)===>वत्स,वत्सा, वत्सिका, वत्सलता या वात्सल्य, वत्सला इत्यादि।
(११)===>जो व्यक्ति को ऊपर ना उठाएँ, वह संस्कृति नहीं, विकृति है।
(१२)===>वत्स से निर्मित शुद्ध शब्दावली
(१३)===>वत्स के प्राकृत रूप:

(आठ) भाषा की श्रेष्ठता:

कुछ पुनरूक्ति का दोष सहकर कहता हूँ। एक ओर गौ के सन्तान-प्रेम का आदर्श, वत्सलता में, स्थापित कर दिया। और दूसरी ओर, सरगम के रे को, गौ के रँभाने पर स्थिर कर, राग प्रणाली ने, अमर कर दिया। साथ बछिया के रँभाने पर कोमल रे (ऋषभ)को स्थापित किया।
सरगम ऐसे प्राकृतिक स्वरों पर आसीन है। और, हमारे सरगम का ही विकृत अनुकरण है पश्चिमी सरगम। हमारी संस्कृति को हेय मानने वाले सुन लें।—सारा संसार हमारा ऋणी है; ऐसा विल ड्युराण्ड को भी कहना पडा।

(नौ) वत्स की विकसित शब्द छटाएँ:

वत्स शब्द के बीज पर पुट चढाकर एक बडी शब्द-श्रृंखला ही रच डाली है।
वत्स, वत्सा, वत्सिका, वत्सलता या वात्सल्य, वत्सला इत्यादि अनेक शब्द भाषाओं में फैले हैं।
वत्स कहते है गौ के बछडे को ही। बछिया को वत्सा या वत्सिका।और इस वत्स पर गौ के स्नेह को कहा जाता है वत्सलता। अब वत्स से विकसित वत्सला नाम बालाओं को भी दिया जाता है।
बाल-बालाओं के प्रति माता का प्रेम अतुल्य होता है। मातृ-प्रेम ही प्रेम की पराकोटि होती है इस पृथ्वीपर; चरम सीमा होती है। यह वह मापदण्ड है, जिस के आधारपर निःस्वार्थ प्रेम की मात्रा नापी जा सकती है। इस धरातल पर मातृप्रेम से बढकर कोई प्रेम नहीं होता। ऐसा प्रेम निःस्वार्थ होता है; और निःस्पृह भी होता है।
जब हम, एक पशु गौ के सन्तान के प्रति प्रेम, वत्सलता को, वहाँ से उठाकर, बालाओं का वत्सला नामकरण करते हैं। तो हम गौ के बछडे के प्रति प्रेम को मात्र प्रमाणित ही नहीं करते, भाषा में आदर सहित अमर कर देते हैं।

(दस) करूणा मूर्ति गौ

जिस गौ की आँखो में अपार करुणा झलकती है, उसे पशु मानना अन्याय है। और, उसकी हत्त्या कृतघ्नता की चरम सीमा है; महापाप है। बेटा! जिस माँ का दूध पिया, उसी की हत्त्या? वाह माँ के लाल? किस जंगली संस्कृति से आते हो? ऐसे लोगों को कहूँगा; जाओ जंगल में जा कर रहो।
संस्कृति उपभोगवादी नहीं होती। जो व्यक्ति को ऊपर ना उठाएँ, वह छद्म संस्कृति है; संस्कृति नहीं, विकृति है।
गौ की आँखों में किसे करुणा के दर्शन नहीं होते? मानवीयता को धर्म-मज़हब-रिलिजन में नहीं उलझाना चाहिए। राजनीति भी नहीं करनी चाहिए। क्या इतने पाषाण-हृदयी हो,या पत्थर की मूर्ति हो?

(ग्यारह)वत्स से निर्मित शुद्ध शब्दावली

वत्सीयः = गोप, ग्वाला
गोवत्सः = बछड़ा
मित्रवत्सल = मित्रों के प्रति कृपालु, शिष्टाचारयुक्त।
वत्सिका = बछिया, बछड़ी
विवत्सा = बिना वछड़े की गाय
वत्सलम् = स्नेह, प्रेम
पुंवत्सः = बछड़ा
वत्सा = बछिया, बछड़ी
वत्सल = स्नेहशील, प्रिय, दयालु”
वत्सपाल = बछड़ों को पालने वाला, कृष्ण
कृपणवत्सल = दीनदयाल =दीनों पर दया करनेवाला
वत्सतरी = बछिया
वत्सतरः = वह बछड़ा जिसने अभी हाल में दूध चूंघना छोड़ा है,
बालवत्सः =कबूतर
भक्तवत्सल = भक्तों के प्रति कृपालु
वत्सराजः = वत्स देश का राजा
वत्सकाम = बच्चों को प्यार करने वाला
श्रीवत्सः= विष्णु का विशेषण
वत्सशाला = गौशाला
वत्सकामा = बछड़े से मिलने की प्रबल लालसा वाली गाय
धर्मवत्सल = कर्त्तव्यशील, धर्मात्मा
हिमवत्सुता = गंगा
दीनवत्सल = दीन- दुखियों के प्रति कृपालु
अप-वत्सय = ऐसा व्यवहार करना जैसा कि बिना बछड़े वाले के साथ किया जाता है
परिवत्सः = बछड़ा, गौ का बच्चा
अप-वत्सः = बिना बछड़े का
वत्सायितः = बछडे के रुप में संवर्धित
जीववत्सा = स्त्री जिसका पुत्र जीवित है
अनुपूर्ववत्सा = नियमित रूप से बच्चे देने वाली गाय
वत्सेशः = वत्स देश का राजा
वत्सलयति = उत्कण्ठा पैदा करना, स्नेहयुक्त करना”
वत्सला = बछड़े को प्यार करने वाली गौ
वत्सलः = घास से प्रज्वलित अग्नि
वरवत्सला = सास, श्वश्रू”

(बारह) वत्स के प्राकृत रूप:

आपने सोचा कभी, कि प्राकृत शब्द *बच्चा* कहाँ से आया? कुछ लोग इसे फारसी मानते हैं। यह भ्रांति है। यदि फारसी में होगा, तो, यह संस्कृत से ही गया होगा। मूल धातु से जोडकर व्युत्पत्ति को देखना चाहिए।
और व्युत्पत्ति हमारे पास है।
प्राकृत मार्गोपदेशिका भी यही कहती है। ये बच्चा शब्द वत्स से ही आया है। प्राकृतों में *व* का *ब* हो जाता है।और त्स का च्च या च्छ भी होता है।तो वत्स–>बच्च–>बच्चा –>बच्छ भी हुआ है।आगे बच्चा और बच्चे भी। वत्सराज हो गया बच्छराज आगे बछराज भी हुआ है।बछिया, बछडा इसी से हुए हैं। मराठी में वासरू और वासरी चलता है।गुजराती में वाछरडी और वाछरडु भी चलता है।
भूले नहीं, मूलतः गौ का बालक वत्स होता है। यही इसका स्रोत है। और गौ का इस वत्स के प्रति प्रेम होता है वत्सलता।

(तेरह)येनिश का कथन

परिपूर्ण भाषा के विषय में, येनिश(१७९४) कहता है।
==>(१)सभ्य समाज की भाषा परिमार्जित और कोमल होती है।
==>(२) जंगली मनुष्य की भाषा स्थूल और रूक्ष होती है।
येनिश पूरी भाषा की बात करता है; मुझे तो एक वत्स शब्द में ही परिमार्जित कोमलता अनुभव होती है।
एक शब्द में भी झलक है, हमारी संस्कृति की। जी हाँ मैं बडी गम्भीरता से यह बात कह रहा हूँ?

परिशिष्ट(एक)

षड्जं वदति मयूरो गावो रम्भति चर्षभम् ।
अजा वदति गान्धारं क्रौञ्चो वदति मध्यमम् ॥
पुष्पधारणे काले कोकिलो वदति पञ्चमम्।
अश्वस्तु धैवतं वक्ति निषादं वक्ति कुञ्जरः॥
—-नारदी शिक्षा
अर्थ:
मयूरों के स्वर से षड्ज(सा) बनता है; गौओं के रम्भाने से ऋषभ (रे)
बकरी के स्वर से गान्धार(गा)निकलता है। क्रौंच (कराँकुल) नामक चिडिया (मा)मध्यम।बसन्त ऋतु में कोयल पञ्चम (पा) , घोडे का हिनहिनाना (धा)धैवत का मूल है। और नि हाथी (कुञ्जर)के चित्कार से निकला है।

परिशिष्ट (दो)

बेचरदास जीवराज दोश लिखित प्राकृत मार्गोपदेशिका
(पृष्ठ २२६)==>वच्छ (वत्स)=वत्स, पुत्र, बच्चा।
(पृष्ठ २८०)===>वच्छ(वत्स)=वत्स, गायका बछडा,बेटा।

परिशिष्ट (तीन)

येनिश: १७९४ में आयोजित, *आदर्श भाषा के गुण* विषय
पर बर्लिन अकादमी की निबंध-स्पर्धा का प्रथम क्रम का विजेता।

 

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डॉ. मधुसूदन
मधुसूदनजी तकनीकी (Engineering) में एम.एस. तथा पी.एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त् की है, भारतीय अमेरिकी शोधकर्ता के रूप में मशहूर है, हिन्दी के प्रखर पुरस्कर्ता: संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती के अभ्यासी, अनेक संस्थाओं से जुडे हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (अमरिका) आजीवन सदस्य हैं; वर्तमान में अमेरिका की प्रतिष्ठित संस्‍था UNIVERSITY OF MASSACHUSETTS (युनिवर्सीटी ऑफ मॅसाच्युसेटस, निर्माण अभियांत्रिकी), में प्रोफेसर हैं।

10 COMMENTS

  1. आपका वत्स शब्द पर यह आलेख बहुत ज्ञानवर्धक है. कोटि कोटि धन्यवाद.- ओम गुप्ता, ह्यूस्टन

  2. In internet age a language needs to be translatable with high frequency words which limits a cascade of words of culture. In Sanskrit there are so many words for an elephant but how many of them are popular in Indian languages?

  3. प्रिय मधुभाई ,
    वत्स सम्बन्धी आपका लेख पढ़ा। बहुत मननीय और उपयोगी सामग्री है। विषयसे सीधी सम्बंधित तो नहीं परन्तु कुछ शब्द संयोगसे दो अन्य चीजे ध्यान में आयी। अपनी संघ प्रार्थना में प्रथम पंक्तिमेही : नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे: ऐसा उल्लेख है। चर्चामे अधिकारीने कहा था की सदा शब्द नमस्ते के साथ का है न की वत्सले के साथ का क्योंकि माँ सदाही वत्सल होती है। सदा अलगसे कहनेकी आवश्यकता नहीं। हाँ सदा नमस्ते ऐसाही भाव है। .
    आगे आपने नारदी शिक्षाका उल्लेख किया है। गत सप्ताह एक लेख पढ़ा था उसमे इसी नारदी शिक्षाका उल्लेख था।
    उसमे लिखा था की *षडज का नाम षडज इसलिए है की उसका उच्चार छह स्थानोसे होता है* और वैसाही मध्यम और पंचम का अर्थ है ।
    अस्तु आपका लेख बहुत उपादेय है
    (डॉ.) शंकर तत्ववादी

    • आ. शंकर तत्ववादी जी—आप की टिप्पणी मुझे मेरी वैचारिक
      दिशा का औचित्य परखने के लिए अतीव उपयोगी है। ऐसी कृपा बनाए रखें। कृपांकित मधुसूदन

  4. ब. शकुन्तला जी–
    (१)आप का (हिमवत्सुता पर) विचार पूर्णतः (सत्य है।) मानता हूँ। मेरी धारणा ही भ्रान्त थीं। शब्दसाम्यता के कारण गलती कर गया। आप का तर्क ही सही है।
    (२)आपने और भी रोचक बिन्दू दर्शाए हैं, जो, वत्स शब्द के भाव वलय पर आवश्यक प्रकाश डालते हैं। संस्कृत शब्द ही अभिव्यक्ति को, गरिमा-गौरव प्रदान करता है। यह उपलब्धि भी बहुत प्रशंसनीय गुण है। येनिश भी मानता है।
    (३) आलेख में टिप्पणी द्वारा सुधार दर्शाता हूँ। पुस्तक प्रकाशन के समय आलेख को सँवारा जाएगा।
    (४) पाठक हिमवत्सुता शब्द को निकालकर पढें।
    (५) शकुन जी अनुरोध। आप, अवश्य सुधार सुझाती रहें} संकोच ना करें।
    सत्यमेव जयते। हमें सच्चाईपर ही खडा रहना हैं।
    हृदयतल से कृतज्ञता सहित धन्यवाद।
    मधुसूदन

  5. आदरणीय मधुसूदन भाई,
    आपके द्वारा प्रेषित दोनों मेल्स पढ़ीं । अद्भुत आनन्द आया । आपकी जिज्ञासु मेधा ने मूल से खोज कर जो शब्द-निर्झर प्रवाहित किया है ,उस एक ही मूल से झरने वाली शब्दों की झड़ी को मैं आश्चर्य चकित हो कर देखती रह गई । इसका संगीत के स्वरों से संबद्ध होना भी नूतन विचार सा लगता है और तत्संबंधी श्लोक भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।आपका सतत परिश्रम और शोध का परिणाम सराहनीय है, जिसने मुझे निश्चय ही अभिभूत कर दिया है । किन शब्दों में प्रशंसा करूँ ?
    हाँ , “वत्स” शब्द से प्राकृत में “बच्छ” और संभवत: अपभ्रंश में “बछड़ा” शब्द बना , जो हिन्दी में गाय के बेटे के अर्थ में ही स्थिर रूप से मान्य होगया।
    मज़े की बात ये है कि “वत्स” का ही अपभ्रंश रूप होने पर भी,मानव-सुत के लिये यदि कोई उस व्यक्ति का “बछड़ा” कहे तो नितान्त हास्यास्पद होगा । यद्यपि उसका “वत्स” कहने में किसी को आपत्ति नहीं होगी । ये चर्चा मैंने वर्षों पूर्व अपनी छात्राओं से भी की थी ।
    एक बात और …(हिमवत्+सुता) हिमवत्सुता शब्द “गंगा”के लिये प्रयुक्त होता है , वैसे हिमालय से प्रसूत किसी भी नदी के लिये हो सकता है । यद्यपि समास हो जाने पर इस शब्द का अंश “वत्सुता” का रूप और ध्वनि साम्य “वत्स” जैसा लगने लगता है , किन्तु ये विग्रह उचित नहीं होने से इसका संबंध “वत्स” शब्द से मान्य नहीं होगा । ऐसा मेरा अपना विचार है । मूल शब्द “हिमवत्” से ही प्रथमा विभक्ति (कर्त्ता कारक ) के एकवचन रूप में “हिमवान्” बना । यानी हिमालय की पुत्री । आशा है कि आप जैसे मनीषी मेरी धृष्टता को क्षमा करेंगे और इसे बहन की अल्पज्ञता समझ कर अन्यथा नहीं लेंगे । इसीलिये अपना विचार विनम्र भाव से आपके समक्ष रखने का साहस किया है । इस संबंध में
    आपका विचार जानना चाहूँगी ।
    सादर ,
    शकुन्तला बहन

  6. मधु जी
    बहुत ही भावुक और संवेदनशील प्रस्तुति |बस, अनुभव ही किया जा सकता है ,शब्दातीत |
    धन्यवाद,
    रमेश जोशी
    लेखक, कवि, पूर्व हिंदी अध्यापक, प्रधान सम्पादक, ‘विश्वा’, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की त्रैमासिक पत्रिका। मेरे अन्य लिंक्स – Youtube, Blog, Facebook, Navabharat Times
    Kindle Books: Begaane Mausam, Pitaa, Karze ke Thaath

  7. विलियम्स मोनियर का शब्द कोष भी फीका लगता है . बहुत सुन्दर व्याख्या ….

    • आ. गोयल जी—-सादर नमस्कार।
      कभी कभी वीणा वादिनी की ऐसी कृपा हो जाती है; और साथ मित्रों की शुभेच्छाएँ भी होती हैं। हृदयतल से, कृतज्ञता सहित धन्यवाद।
      मधुसूदन

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