साम्यवादी गढ़ों में योग का उत्सव

0
144

संदर्भः- 21 जून योग दिवस
योग को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रिय योग-दिवस के रूप में मान्यता मिल जाने के बाद से इसकी स्वीकार्यता देश और दुनिया में लगातार बढ़ रही है। तमाम विवादों के बावजूद साम्यवादी विचारधारा के प्रखर पैरोकार रहे जवाहरलाल नेहरू विवि में विद्वत परिशद् ने योग को पाठ्यक्रम का दर्जा दे दिया है। यह पाठ्यक्रम संस्कृत केंद्र के अंतर्गत योग दर्शन पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। दूसरी तरफ चीन से खबर आई है कि चीन में योग जादू की तरह वहां की आबादी पर असर डाल रहा है। 21 जून को इस कम्युनिष्ट देश में सैंकड़ों कार्यक्रम आयोजित हो रहे है, जिनमें लाखों लोग हिस्सा लेंगे। चीनी अधिकारियों ने दावा किया है कि भारत के बाद दुनिया में योग का सबसे बड़ा आयोजन होगा। चीन में योग वहां की परंपरा में शामिल शारीरिक फीटनेस वाले मार्शल आर्टस ताई-ची को टक्कर दे रहा है। बीजिंग की सबसे बड़ी प्राचीन दीवार समेत कई उद्यानों, झीलों और रिसोर्ट को योग स्थल के रूप में चुना गया है। इन जगहों पर सरकारी और गैर-सरकारी योग कार्यक्रम आयोजित होंगे। चीन ने योग दिवस का भी समर्थन किया था। भारत के बाद पहला योग महाविद्यालय भारत और चीन द्वारा साझा रूप में कुनमिंग में यूनान मिंजू विश्वविद्यालय में खोला गया है। साफ है, सनातन हिंदू धर्म की परंपरा में शामिल योग की पैठ साम्यवादी विचारधारा में सेंध लगाने का काम कर रही है।    वह योग ही है, जो जीवनशैली को बदलकर और मस्तिष्क की चेतना को जगाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है। याद रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा भी गया है कि लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और जिस तेजी से दुनिया में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, उनका एक कारण जलवायु में हो रहा बदलाव भी है। व्यक्ति की कार्यशैली और संस्कृति जटिल व तनावपूर्ण होते जाने के कारण भी योग को कम्युनिष्ठ और इस्लामिक देश भी स्वीकारते जा रहे हैं। क्योंकि जो तनाव है, उससे मुक्ति का स्थाई उपाय किसी उपचार पद्धति की बजाय योग में कहीं ज्यादा है। फिर इसको करने में न तो धन खर्च होता है और न ही किसी चिकित्सक के पास जाने की जरूरत पड़ती है। घर बैठे ही पतंजलि योग दर्शन में उल्लेखित आसनों के अनुसार शरीर को कुछ समय के लिए क्रियाशील बनाए रखने से ही, तनाव मुक्त जीवन जीने के द्वार खुलने लग जाते है। इसीलिए इस बार पूंजीवादी देश अमेरिका के नेशनल माॅल में हजारों लोग योग दिवस मनाएंगे। अमेरिका में ही नहीं दुनिया योग आंदोलन, तमाम राजनीतिक और आर्थिक आंदोलनों को पीछे छोड़ता जा रहा है।  योग शब्द अपने भावार्थ में आज अपनी सार्थकता पूरी दुनिया में सिद्ध कर रहा है। योग का अर्थ है जोड़ना। वह चाहे किसी भी धर्म जाति अथवा संप्रदाय के लोग हों, योग का प्रयोग सभी को शारीरिक रूप से स्वास्थ्य और मानसिक रूप से सकारात्मक सोच विकसित करता है। योग भारत के किसी ऐसे धर्म ग्रन्थ का हिस्सा भी नहीं है, जो बाइबिल और कुरान की तरह पवित्र आस्था का प्रतीक हो। योग की आसनें प्रसिद्ध प्राचीन ग्रंथ पतंजली योग सूत्र के प्रयोग हैं। जो हिंदु अथवा अन्य भारतीय धर्मों में धर्म ग्रथों की तरह पूज्य नहीं है। पतंजली योग सूत्र का सार इस एक वाक्य ‘‘योगष्तिवृत्ति निरोधः‘‘ में निहित है। इसका भावार्थ है, चित्त अथवा मन की चंचलता को स्थिर करना अथवा रखना। जिससे मन भटके नहीं और इन्द्र्रियों के साथ वासनाएं भी नियंत्रित हों। लेकिन योग केवल वासनाओं को नियंत्रित करने तक ही सीमित नहीं है। योग के नियमित प्रयोग से मधुमेह, रक्तचाप तो नियंत्रित होते ही   हैं कमो वेश मोटापा भी दूर होता है। यदि बाबा रामदेव की बात पर विश्वास करें तो कैंसर और एड्स जैसे असाध्य रोगों को भी योग नियंत्रित करता है। शायद इसीलिए योग को जीवन की चेतना का मंत्र कहा जाता है।हालांकि योग शिक्षा को लेकर एक, समय अमेरिका और ब्रिटेन के धर्मगुरुओं में भय व्याप्त हो चुका है क्योंकि वे योग को धार्मिक शिक्षा के रुप में देखते हैं। उन्हें आशंका है कि यदि योग की शिक्षा दी जाती रही तो उनके बच्चे भारतीय धर्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं। इसी शंका के चलते केलिर्फोनिया नगर में तो विद्यालयों में योग की शिक्षा से जुड़े पाठों को हटाने की मांग भी की जा चुकी है। अकेले इस शहर की पाठशालाओं में पांच हजार से भी ज्यादा बच्चे योग सीखकर स्वास्थ्य व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे है। धार्मिक पूर्वाग्रह के चलते ही योग के पाठ पर इग्ंलैण्ड की दो चर्चों ने पाबंदी लगा दी थी, जबकि योग के रहस्यों को स्वास्थ लाभ से जोड़कर बाबा रामदेव ने जबसे सार्वजनिक करना शुरू किया है,तभी से योग की महत्ता को पूरे विश्व ने स्वीकारा, न कि किसी धार्मिक प्रचार प्रसार के चलते ? योग के द्वारा ध्यान और प्राणायाम करने से मस्तिश्क एकाग्र और शरीर चुस्त-दुरुस्त व काया निरोगी रहती है। योग से जुड़ी आसनें धर्म से मुक्त शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी वैज्ञानिक आसनें हैं। इनका हिंदु धर्म के विस्तार से कोई वास्ता नहीं है।  दरअसल भारत अथवा पूर्वी देशों से जो भी ज्ञान यूरोपीय देशों में पहुंचता है, तो इन देशों की ईसाइयत पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। गौरतलब है कि जब भगवान रजनीश अमेरिका में गीता और उपनिषदो को बाइबिल से तथा राम, कृष्ण और महावीर को जीसस से श्रेष्ठ घोषित करना शुरू किया और धर्म तथा अधर्म की अपनी विशिष्ट  शैली में व्याख्या की तो रजनीश के आश्रमों में अमेरिकी लेखक ,कवि, चित्रकार, मूर्तिकार, वैज्ञानिक और प्राध्यापकों के साथ आमजनों की भीड़ उमड़ने लगी थी। उनमें यह जिज्ञासा भी पैदा हुई कि पूरब के जिन लोगों को हम हजारों ईसाई मिशननरियों के जरिए षिक्षित करने में लगे हैं, उनके ज्ञान का आकाश तो कहीं बहुंत ऊंचा है। यही नहीं, जब रजनीश ने व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन जो ईसाई धर्म को ही एक मात्र धर्म मानते थे और वेटीकन सिटी में पोप को धर्म पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती दी तो ईसाइयत पर संकट छा गया। नतीजतन देखते ही देखते रजनीश को उनके तामझाम समेत अमेरिका से बेदखल कर दिया गया। लेकिन अब लगता है नरेंद्र मोदी के प्रभाव के चलते दुनिया में सद्भाव और सहिष्णुता का वातावरण नये ढंग से निर्मित हो रहा है। वरना महज दो साल के भीतर योग दिवस को कम्युनिष्ट और इस्लामिक देश स्वीकार नहीं करते।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,071 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress