हम तुम

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चट्टान थे तुम

हम लहर से ,

तुम से टकराते रहे,

चोट खा खा के फिर

वापिस आते रहे।

तुम क्षितिज थे,

हम थे राही,

तुम भ्रम थे,

हम पुजारी,

हम चले, चलते गये

तुम दूर जाते गये।

तुम थे सागर,

हम थे दरिया,

बहते बहते,

पहुँचे तुम तक,

तुम जगह से

हिले ही नहीं,

हम तुममें समाते गये।

तुम ग़ज़ल के,

रदीफ़ बनकर,

ज़रा न बदले,

हमने कितने,

वेश बदले,

काफ़िये बने,

तुम्हारे आस पास रहे,

तुम्हारे संग

हर शेर की दाद पर,

हम मुस्कराते रहे।

तुम हमें अपना

समझो न समझो,

धरती की तरह

हम सूर्य के चक्कर

लगाते रहे।

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