– अजीत कुमार सिंह
हमारे देश में गुरू को भगवान की संज्ञा दी जाती है। जब गुरू ही आतंक की खेती करने लगे तो इससे बड़ी विडंबना देश के लिए क्या हो सकती है…? जिसने गंगा-जमुनी तहजीब का पाठ पढ़ाया, जब वही हिंसा का पैरोकार हो जाय..तो क्या कहा जाय…? हाल के कुछ आतंकी घटनाओं पर गौर करें तो पता चलता है कि किस तरह धर्म के नाम पर आतंक को पाला और पोसा जा रहा है, खासकर एक धर्मगुरू के द्वारा…। जब बांग्लादेश के ढाका में होली आर्टिसन बेकरी पर हुए आतंकी हमले में लोग मारे गये तो पूरे विश्व के आंखों में पानी थे, खासकर भारतीय जन समुदाये के आंखों में..। लेकिन लोंगो को कहां पता था कि इस आतंक को खाद-पानी देने वाले हमारे देश में ही मौजूद हैं, जब लोगों को पता चला कि ये आंतकी, प्रसिद्ध इस्लामी धर्मगुरू जाकिर नाईक के भाषण से प्रेरित हैं तो भारतीय जनमानस को झकझोर कर रख दिया। क्योंकि जाकिर नाईक हमारे देश में शांति दूत कहे जाते हैं।
कौन जानता था कि इस मासूम चेहरे के पीछे एक कुत्सित आत्मा पल रही है..। जाकिर नाईक पेशे से डॉक्टर हैं उनके पिता अब्दुल करीम भी पेसे से डॉक्टर थे। डॉ अब्दुल करीम के दो बेटे और तीन बेटियां हैं। अभी कुछ महीनें पहले ही अब्दुल करीम का निधन हो गया, लोगों को उम्मीद था कि जाकिर नाईक अपने पिता के अंतिम संस्कार में जरूर आयेगें लेकिन गिरफ्तारी के डर से वे नहीं आये। अभी भी वे विदेश में ही हैं और गिरफ्तारी के डर से भागे फिर रहे हैं।
ऐसे बने मुस्लिम उपदेशक
जाकिर नाईक ने मुंबई के टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज एंड बीवाईएल चैरिटेबल हॉस्पीटल से अपनी एमबीबीएस के आखिरी साल में दक्षिण अफ्रीका के इस्लामिक उपदेशक अहमद दीदत का लेक्चर सुना था। ये 80 के दशक की आखिरी की बात है। दीदत ने तब दूसरे धर्मों के मुकाबले इस्लाम को महान साबित करके काफी नाम कमाया था। दीदत को देखकर ही जाकिर नाईक बड़े इस्लामिक उपदेशक बने। जाकिर का सफर को करीब से देखने वाले के अनुसार वह अंग्रेजी में लेक्चर देनेवाले ‘दीदत का क्लोन’ बन गया है। फर्राटे की अंग्रेजी बोलने वाले जाकिर नाईक सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह एक्टिव रहते थे, उनके लाखों फॉलोवर भी है। माना जा रहा है कि इसी का फायदा उठाकर वे आतंक का नया रूप गढने में कामयाब हुए।
कसता जा रहा है शिकंजा
जाकिर नाईक पर सरकार ने शिंकजा कसना शुरू कर दिया है। जाकिर से जुड़ी सभी वेबसाइट, भाषण और वीडियो आदि पर ब्लॉक करने की कार्रवाई शुरू कर दिया गया है। नाईक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) को केन्द्र सरकार ने पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दी है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भी जांच शुरू कर दी है। एनआईए के मुताबिक आईआरएफ से जुड़े कई ठिकानों की तलाशी ली जा चुकी है, जहां से बड़े पैमाने पर डीवीडी, वीडियो टेप, जाकिर के भाषणों का संग्रह सूची, संपत्ति निवेश, देश-विदेश से मिले चंदे और वित्तीय लेनदेने के दस्तावेज बरामद हुए हैं। दस्तावेज की पड़ताल जारी है।
सरकार ने कहा है कि अगर भारत नहीं लौटते हैं तो उनके खिलाफ गैर जमानती वॉरेंट जारी किया जाएगा। साथ ही इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाया जाएगा। रेड कॉर्नर जारी होने के बाद को भारत के सुपुर्द करना होगा।
आईएस के आतंकी को जाकिर नाईक के संस्था से छात्रवृति
इस्लामिक स्टेट के भर्तीकर्ताओं और जाकिर नाईक के बीच सीधे संबध का एक नया साक्ष्य सामने आया है। कथित रूप से नाईक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) की और से आईएस के संदिग्ध आतंकी अनस को 80,000 रूपये बतौर छात्रवृति दिया गया।
कहा जा रहा है यह रकम उस समय अनस को दिया गया जब वह आईएस में भर्ती के मकसद से सीरिया जाने की फिराक में था। उसने आईआरएफ की वेबसाइट पर स्कॉलरशिप के लिए आवेदन किया था और मुंबई में उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। अनस को जनवरी में राजस्थान से गिरफ्तार किया गया था।
विदेशी चंदे पर लगी रोक
गृह मंत्रालय ने के एनजीओ आईआरएफ पर विदेशी चंदे पर रोक लगाने की कवायद शुरू कर दी है। जिससे सरकार की अनुमति के बिना कोई भी विदेशी चंदा नहीं हासिल कर पाएगा, कहा जाता है कि संगठन के लिए आने वाले धन का इस्तेमाल युवाओं में कट्टरपंथी भावना भरने में और उन्हें आतंकी गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने में शामिल है। आईआरएफ के विदेशी चंदे को आपत्तिजनक कार्यक्रम बनाने के लिए पीस टीवी को भी हस्तांतरित किया। इनमें अधिकतर कार्यक्रम में नाईक के कथित नफरत भरे भाषण थे जो कि भारत में बने थे।
कहा जा रहा है कि नाईक पीस टीवी के माध्यम से सभी मुस्लिमों को आतंकवादी बनने की बात करता था, नाईक पर सुरक्षा एजेंसियों की नजर तब लगी जब बांग्लादेश के एक अखबार ने खबर प्रकाशित की थी कि ढाका में एक जुलाई को आतंकी हमले को अंजाम देने वालों में शामिल रोहित इम्तयाज पिछले साल फेसबुक पर के हवाले से दुष्प्रचार करता था।
भारत में मुसलमानों की स्थिति पर चुप्पी
अपने आप को मुसलमानों का रहुनुमा कहने वाले जाकिर से जब मुसलमानों की निरक्षरता, मुस्लिम बच्चों के विद्यालय से विमुख होने पर सवाल किया गया था तो कुछ देर तक कोई जवाब नहीं दिया था। जब पत्रकारों ने दोबारा इसी सवाल को दोहराया तो वे भड़क गये और कहा कि यह सवाल प्रासंगिक नहीं है। मुझे मुसलमानों के शिक्षा और रोजगार के आंकड़ो के बारे में नहीं पता।
कनाडा और ब्रिटेन में के भाषणों पर लग चुका है प्रतिबंध
आपकों यहां बता दें कि दूसरे धर्मों के खिलाफ नफरत भरे भाषण देने के लिए इस्लामी उपदेशक पर ब्रिटेन और कनाडा में प्रतिबंध लगा है। उनकी पीस कॉनफ्रेंस बॉलीवुड शो से भी भव्य होती है। वह मलेशिया में 16 प्रतिबंधित इस्लामी विद्वानों में शामिल हैं। कहा जाता है कि 2009 में जाकिर के भाषणों के चलते भारतीय सुन्नी मौलवी उनके खिलाफ एकजुट हो गए थे और शिया भी नाईक के खिलाफ एकजुट होकर मुंबई के तत्कालीन आयुक्त के पास शिकायत लेकर चले गए थे, तब जाकिर ने माफी मांगकर मामले को सुलझाया था।
विचारणीय तथ्य यह है कि जब एक पढ़े-लिखे संभ्रात वर्ग आत्मघाती हमला को जायज ठहराये, अपने चैनल के जरिये मनोवैज्ञानिक रूप से लोगों को आतंक की ओर प्रेरित करे, तो साफ तौर पर यह जाहिर होता है कि इन्हीं धार्मिक और शिक्षित उपदेशकों के चलते शिक्षित परिवारों के बच्चे प्रेरित होकर इस्लामिक आतंकवाद के लिए हथियार उठा रहे हैं । ऐसे ही धार्मिक गुरूओं के कारण ही मुस्लिम युवा उस कट्टर विचारधारा के समर्थन में आ रहे हैं और ढाका, पेरिस, इंस्तांबुल, पठानकोट, उरी जैसे घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। अगर जाकिर निर्दोष है तो भागे क्यों फिर रहे हैं, उन्हें भारतीय अदालत में आकर अपने बेगुनाही का साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए। जब अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी वे शामिल नही हुए तो लोगों का शक यकीन में बदलने लगा । वर्षों से कमाया गया ख्याति मिट्टी में मिलने को है। अगर जाकिर दोषी है तो सरकार के द्वारा ऐसा दंड दिया जाना चाहिए जैसे फिर कोई दूसरा जाकिर पैदा न हो पाये जो मुस्लिम समुदाय के युवकों को गुमराह कर सके।