कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म विश्व में शांति स्थापित करने हेतु भारतीय संस्कृति का उत्थान आवश्यक है December 22, 2025 / December 22, 2025 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment कहा जाता है कि सतयुग में समाज पूर्णत: एकरस था और उस समय के समाज में भारतीय संस्कृति की झलक स्पष्टत: दिखाई देती थी। एक कहानी के माध्यम से इस बात को बहुत आसानी से समझा जा सकता है। सतयुग के खंडकाल में एक किसान ने अपनी जमीन बेची। जिस व्यक्ति ने वह जमीन खरीदी थी Read more » भारतीय संस्कृति का उत्थान
धर्म-अध्यात्म “अयोध्या”लहराया रामलला पर केशरिया ध्वज December 19, 2025 / December 19, 2025 by पवन शुक्ला | Leave a Comment राम नाम की शक्ति ने इस पूरे आंदोलन को ऊर्जा दी। हर रामभक्त ने इस संकल्प को अपने जीवन का हिस्सा बनाया कि "रामलला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएँगे।" इस यात्रा में त्याग और तपस्या की भावना सर्वोपरि रही। Read more »
धर्म-अध्यात्म भारतीय वैदिक संस्कृति में सोलह संस्कार: जीवन को वैज्ञानिक और नैतिक दिशा देने वाली परंपरा December 17, 2025 / December 17, 2025 by सुरेश गोयल धूप वाला | Leave a Comment जातकर्म, नामकरण और निष्क्रमण संस्कार शिशु के जन्मोपरांत उसके स्वास्थ्य, सामाजिक पहचान और बाह्य संसार से परिचय से जुड़े हैं। नामकरण केवल पहचान नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण की प्रथम सीढ़ी है। मनोविज्ञान भी मानता है कि नाम व्यक्ति के आत्मबोध और सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है। Read more » जीवन को वैज्ञानिक और नैतिक दिशा देने वाली परंपरा भारतीय वैदिक संस्कृति में सोलह संस्कार
धर्म-अध्यात्म श्रीमद्भगवद्गीता है ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वित विज्ञान December 1, 2025 / December 1, 2025 by मयंक चतुर्वेदी | Leave a Comment वर्तमान समय में केंद्र सरकार ने गीता को वैश्विक सांस्कृतिक संवाद के रूप में प्रस्तुत किया है। कुरुक्षेत्र में आरंभ हुआ अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव इसका उदाहरण है। इस वर्ष चालीस देशों में गीता जयंती का आयोजन होना यह संकेत देता है कि गीता का सनातन संदेश भौगोलिक और सांस्कृतिक सीमाओं से परे मानवता को जोड़ने वाला सार्वभौमिक ज्ञान है। Read more » श्रीमद्भगवद्गीता
धर्म-अध्यात्म शख्सियत देवरहा बाबा के जीवन के रोचक किस्से December 1, 2025 / December 1, 2025 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment भारत सदा से ही ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यहां की संत परंपरा धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृति का मिश्रण है जो सदियों से विकसित हुई है। संतों की भक्ति की शक्ति का एहसास लोगों को प्राचीन काल से ही है। Read more »
धर्म-अध्यात्म सरयू नदी का द्वीप : फैला सकती है विरासत की ज्योति November 19, 2025 / November 19, 2025 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment सरयू नदी की दुर्दशा से आस्थावान व्यथित हो जाता हैं। सदियों से अयोध्या की पहचान रही सरयू अपनी धारा कई बार बदल चुकी है। घाटों को छोड़कर नदी कई किमी. तक हट कर संकीर्ण धारा के रूप में प्रवाहित हो जाती है। Read more »
धर्म-अध्यात्म Mokshada Ekadashi 2025: मोक्षदा एकादशी व्रत के नियम। November 19, 2025 / November 19, 2025 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi 2025) भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का Read more » Mokshada Ekadashi 2025 1 dec मोक्षदा एकादशी व्रत
धर्म-अध्यात्म भजन : कृष्णा जन्म लीला कीर्तन November 18, 2025 / November 18, 2025 by नन्द किशोर पौरुष | Leave a Comment भजन : कृष्णा जन्म लीला कीर्तन Read more » भजन : कृष्णा जन्म लीला कीर्तन
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार धरती के माथे का तिलक गोवर्धन, जहाँ ईश्वर ने विनम्रता सिखाई October 21, 2025 / October 21, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment भारतीय संस्कृति में पर्व केवल तिथियों के अनुसार मनाए जाने वाले उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और प्रकृति के संतुलन को समझाने वाले अध्याय हैं। ऐसा ही एक दिव्य पर्व है – गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट भी कहा जाता है। यह दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है, जब सम्पूर्ण व्रज भूमि में श्रद्धा, भक्ति और उत्साह का अद्भुत संगम दिखाई देता है। परंतु इस पर्व का रहस्य केवल पूजा या परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव-जीवन के अहंकार, विनम्रता, प्रकृति और भगवान के साथ सामंजस्य का गूढ़ संदेश देता है। अहंकार के गर्व को तोड़ने वाली लीला प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, जब इंद्र के मन में अपनी देवत्व-शक्ति का अहंकार अत्यधिक बढ़ गया, तो उन्होंने वर्षा के नियंत्रण को अपनी व्यक्तिगत सत्ता समझ लिया। वे भूल गए कि वर्षा भी उसी परम ब्रह्म की व्यवस्था का एक अंश है। उसी समय बालरूप श्रीकृष्ण ने व्रजवासियों को समझाया कि “हम सबका पोषण इंद्र नहीं, प्रकृति करती है – यह गोवर्धन पर्वत, यह गायें, यह वन-भूमि।” इंद्र-यज्ञ को रोककर उन्होंने व्रजवासियों से कहा कि वे इस पर्वत का पूजन करें, क्योंकि यह हमारी अन्नदात्री धरती का प्रतीक है। जब इंद्र को यह बात अहंकारजन्य लगी, तो उन्होंने प्रलयकारी वर्षा से गोकुल को डुबाने का प्रयास किया। परंतु वही बालक श्रीकृष्ण सात दिनों तक अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाए खड़े रहे, और समस्त व्रज की रक्षा की। यह केवल चमत्कार नहीं था, बल्कि एक प्रतीकात्मक शिक्षा थी – जिसके भीतर श्रद्धा और करुणा का बल हो, उसके लिए प्रकृति भी सहायक बन जाती है। गोवर्धन की दिव्यता और प्रतीकात्मकता गोवर्धन केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि जीवित चेतना का प्रतीक माना गया है। यह पर्वत धरती, जल, वायु और जीवन के संरक्षण का साक्षात् प्रतीक है। पुराणों में कहा गया है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं को गोवर्धन के रूप में प्रकट कर यह दर्शाया कि ईश्वर प्रकृति में ही बसते हैं। गोवर्धन पूजा का अर्थ केवल पहाड़ की आराधना नहीं है, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि मनुष्य का अस्तित्व पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण से ही संभव है। जब हम गोवर्धन की पूजा करते हैं, तो वस्तुतः हम अपने अन्न, जल, पशु, वनस्पति और पर्यावरण का सम्मान करते हैं। अन्नकूट का दार्शनिक अर्थ गोवर्धन पूजा के दिन व्रजवासी तरह-तरह के अन्न और पकवान बनाकर उन्हें पर्वत के प्रतीक रूप में सजाते हैं, इसे अन्नकूट कहा जाता है। यह केवल भोग नहीं, बल्कि “अन्न ही ब्रह्म है” की वेदवाणी का प्रत्यक्ष प्रदर्शन है। इस दिन मनुष्य अपने श्रम और प्रकृति की देन के प्रति आभार प्रकट करता है। अन्नकूट यह सिखाता है कि समृद्धि तब तक अर्थहीन है जब तक उसमें बाँटने की भावना न हो। श्रीकृष्ण ने जब सबके साथ बैठकर अन्न का सेवन किया, तो यह सामाजिक समरसता और समानता का अद्भुत उदाहरण बना। विनम्रता का पाठ इंद्र का अहंकार तब शांत हुआ जब उन्होंने देखा कि जिस ‘बालक’ को वे साधारण मानव समझते थे, वही परमात्मा स्वयं हैं। वे पश्चाताप से भर उठे और श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गए। इस क्षण में देवता से भी बड़ा दर्शन छिपा है – जिस क्षण अहंकार मिटता है, वहीं सच्चा देवत्व प्रकट होता है। आज जब मानव अपने विज्ञान, सत्ता और संपत्ति के बल पर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगा है, तब गोवर्धन लीला यह याद दिलाती है कि अहंकार चाहे देवों में भी क्यों न हो, उसका पतन निश्चित है। गोवर्धन और आधुनिक संदर्भ यदि हम इस पर्व को आधुनिक दृष्टि से देखें, तो यह पर्यावरण चेतना का सबसे प्राचीन संदेश देता है। गोवर्धन पूजा बताती है कि मानव को केवल उपभोग नहीं, बल्कि संरक्षण का भाव रखना चाहिए। आज जब धरती जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अंधाधुंध उपभोग से कराह रही है, तब श्रीकृष्ण की यह लीला हमें पुनः सिखाती है कि — “धरती की पूजा करना ही सबसे श्रेष्ठ धर्म है।” गोवर्धन पूजा में गायों की सेवा, अन्न का दान, वृक्षों का पूजन और पशुधन की रक्षा, ये सब प्रतीक हैं संतुलित जीवन के। गोप और गोकुल की आत्मा गोवर्धन पूजा केवल धर्म का पालन नहीं, बल्कि प्रेम और समुदाय की अभिव्यक्ति भी है। जिस प्रकार सभी व्रजवासी बच्चे, वृद्ध, नारी, पुरुष एक साथ खड़े होकर संकट का सामना करते हैं, वही समाज की एकता का सबसे सुंदर उदाहरण है। आज जब समाज में विभाजन और स्वार्थ की दीवारें ऊँची हो रही हैं, तब गोवर्धन पर्व यह संदेश देता है कि “एकता और सहयोग से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।” गिरिराज की पावन स्मृति व्रजभूमि में आज भी गोवर्धन पर्वत के परिक्रमा-पथ पर लाखों श्रद्धालु जाते हैं। कहा जाता है कि जहाँ-जहाँ श्रीकृष्ण का चरण पड़ा, वहाँ की मिट्टी भी तिलक बन जाती है। गिरिराज के चरणों में झुकना, वास्तव में स्वयं के अहंकार को मिटाना है। गोवर्धन का प्रत्येक कंकड़ हमें यह सिखाता है कि जो झुकता है, वही ऊँचा उठता है। गोवर्धन का शाश्वत संदेश गोवर्धन पूजा केवल पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आत्मबोध का उत्सव है। यह हमें सिखाता है – · अहंकार का अंत ही दिव्यता की शुरुआत है। · प्रकृति का सम्मान ही सच्ची पूजा है। · समरसता और सहयोग ही जीवन का आधार हैं। जब-जब मानव अपने सीमित अस्तित्व को ईश्वर से बड़ा समझने लगेगा, तब-तब कोई न कोई श्रीकृष्ण उसे उसकी मर्यादा का स्मरण कराएगा। गोवर्धन पर्व इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर हमारे बाहर नहीं, हमारे भीतर की विनम्रता और प्रेम में निवास करते हैं। और शायद यही कारण है कि यह पर्व दीपोत्सव के अगले दिन आता है, क्योंकि अहंकार के अंधकार के बाद ही भक्ति का प्रकाश फैलता है। उमेश कुमार साहू Read more » गोवर्धन पूजा
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार अन्नकूट पर्व के दिन गौपूजा का है विशेष महत्व October 21, 2025 / October 21, 2025 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment गोवर्धन पूजा / अन्नकूट पर्व (22 अक्तूबर) पर विशेष– योगेश कुमार गोयलहिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल प्रतिपदा को अर्थात् दीवाली के अगले दिन ‘अन्नकूट पर्व’ मनाया जाता है, जिसे ‘गोवर्धन पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। पांचदिवसीय दीवाली पर्व की शुरूआत धनतेरस से होती है और चौथे दिन कार्तिक माह […] Read more » गौपूजा
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार भाई-बहन को समर्पित अनूठा, ऐतिहासिक एवं संवेदनात्मक त्यौहार October 21, 2025 / October 21, 2025 by ललित गर्ग | Leave a Comment भाई दूज- 23 अक्टूूबर, 2025-ललित गर्ग-भ्रातृ द्वितीया (भाई दूज) कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक पर्व है जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यह दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को […] Read more » भाई दूज
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार दीपावली : सभ्यता की स्मृति में जलता हुआ ज्ञानदीप October 19, 2025 / October 19, 2025 by उमेश कुमार साहू | Leave a Comment उमेश कुमार साहू भारत की संस्कृति में पर्व केवल तिथियाँ नहीं होते, वे जीवन के सूत्र हैं, जो समय की धारा में मनुष्य की चेतना को प्रकाशित करते हैं। इन्हीं में दीपावली, वह अनोखा पर्व है जो प्रकाश से अधिक ‘अर्थ’ का उत्सव है। यह केवल दीप जलाने का नहीं, ‘अंधकार से संवाद’ करने का […] Read more » दीपावली