कल रात जब मैं सोया तो मैंने एक सपना देखा, जिसका जिक्र मै आपसे करने पर विवश हो गया हूं… सपने में मै हिंदी दिवस मनाने जा रहा था तभी कही से आवाज आई… रुको! मैने मुड़ के देखा तों वहा कोई नहीं था… मै फिर चल पड़ा… फिर आवाज आयी… रुको! मेरी बात सुनो… मैने गौर से सुना तो लगा की कोई महिला वेदना भरे स्वरों में मुझे पुकार रही हो… मैने पूछा आप कौन हो? जबाब आया…मैं हिंदी हूं… मैने कहा कौन हिंदी? मै तो किसी हिंदी नाम की महिला को नहीं जानता… दोबारा आवाज आई – तुम अपनी मातृभाषा को भूल गए??? मेरे तों जैसे रोगटे खड़े हो गए… मैने कहा मातृभाषा आप! मै आपको कैसे भूल सकता हूँ… फिर आवाज आयी ‘जब तुम सब मुझे बोलने में शर्म महसूस करते हो, तो भूलना न भूलना बराबर ही है’…
फिर हिंदी ने बोलना शुरू किया- ‘तुम मेरी शोक सभा में जा रहे हो न??? मैने कहा ऐसा नही है ये दिवस आपके सम्मान में मनाया जाता है… हिंदी ने कहा – नही चाहिए ऐसा सम्मान… मेरा इससे बड़ा अपमान क्या होगा की हिन्दुस्तानियों को हिंदी दिवस मानना पड़ रहा है…
उसके बाद हिंदी ने जो भी कहा वो वो इन पक्तियों के माध्यम से प्रस्तुत है…
हिंदी हूँ मैं! हिंदी हूँ मैं..
भारत माता के माथे की बिंदी हूँ मैं
देवों का दिया ज्ञान हूँ मैं,
घट रही वो शान हूँ मैं,
हिन्दुस्तानियों का इमान हूँ मैं॥
इस देश की भाषा थी मै,
करोडों लोगों की आशा थी मैं
हिंदी हूँ मैं! हिंदी हूँ मैं..
भारत माता के माथे की बिंदी हूँ मैं
सोचती हूँ शायद बची हूँ मैं,
किसी दिल में अभी भी बसी हूँ मैं,
पर अंग्रेजी के बीच फसी हूँ मैं…
न मनाओ तुम मेरी बरसी,
मत करों ये शोक सभाएं,
मत याद करो वो कहानी…
जो नही किसी की जुबानी
सोचती थी हिंद देश की भाषा हूँ मैं,
अभिव्यक्ति की परिभाषा हूँ मैं,
सच्ची अभिलाषा हूँ मैं,
लेकिन अब निराशा हूँ मैं…
जी हाँ हिंदी हूँ मैं
भारत माँ के माथे की बिंदी हूँ मैं…
ये सपने के बाद मै हिंदी दिवस के किसी कार्यक्रम में नहीं गया…घर में बैठ कर बस यही सोचता रहा कि क्या आज सच में हिंदी का तिरस्कार हो रहा हैं??? क्या हमे अपनी मातृभाषा के सम्मान के लिए किसी दिन की आवश्यकता है??? शायद नहीं…
मेरा तो यही मानना है कि आप अपनी मातृभाषा को केवल अपने दिलों-जुबान से सम्मान दो…और अगर ऐसा सब करे तो हर दिन हिंदी दिवस होगा…
जय हिंदी…
-हिमांशु डबराल
sir ji aapne sahi kaha aaj hamare desh me hindi ki ahmiyat samapt hoti ja rahi hai….