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‘दीप’ हमारी सभ्यता और संस्कृति की अलौकिकता का प्रतीक है

~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

भारतीय धर्म-दर्शन में दीप का अपना अलग महत्व है। हमारे त्यौहार , दैनन्दिनी, पूजा-पाठ सभी दीपक के साथ रीतिबद्ध रहते हैं। प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व दीप प्रज्वलन की अनूठी परम्परा सनातन काल से चली आ रही है, जिसमें सम्भवतः हमारे पूर्वजों का इस पध्दति के पीछे का यही उद्देश्य रहा होगा कि दीप के प्रकाश के साथ ही अन्धकार का हरण होता है।
अन्धकार के नाश के साथ ही नवोत्साह, नवचेतना का प्रारम्भ होता है तथा इसके साथ शुभ्रता के वातावरण में कार्यों के कुशल सम्पादन की आधारशिला रखी जाती है। दीप का अर्थ महज उसकी लौ से उत्पन्न प्रकाश से नहीं है, अपितु उसके पीछे हमारी अन्तश्चेतना की आत्मिक अनुभूति एवं भावात्मक लगाव भी जुड़ा हुआ है।चूँकि आधुनिक समय में प्रकाश के लिए विभिन्न तकनीकें उपलब्ध हो चुकी हैं जिससे किसी भी सीमा तक का प्रकाश विभिन्न आयामों में प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु क्या उससे ‘दीप’ का भाव कभी प्राप्त किया जा सकता है?
दीपक हमारे अन्त:चक्षुओं का प्रतिबिम्ब भी है जो सतत हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक विभागों के मध्य समन्वय का सेतु बनने का कार्य करता है। दीप की सतत् ज्वलित लौ, हमारी अन्तरात्मा के साथ सीधे सम्पर्क एवं साम्य स्थापित करने की अनुभूति प्रदान करती है।
प्रत्येक शुभकार्य के साथ दीप प्रज्वलन की रीति लगभग यह सुनिश्चित कर देती है कि प्रारंभ किया गया कार्य कुशलतापूर्वक अपनी सम्पन्नता को प्राप्त करेगा व उसमें जीवन मूल्यों व संस्कारों के साथ आगे का पथ प्रशस्त होगा। ‘दीप’ क्या तेल-बाती एवं पात्र के संयोग की निष्पत्ति मात्र है? याकि इसके अलावा अन्य हेतु भी है जिसके कारण दीप ने अपनी यह महत्ता प्राप्त कर ली कि वह हमारे जीवन के सुख-दु:ख दोनों में बराबर का सहभागी-मार्गदर्शक बनकर साहचर्यता के साथ प्रत्येक परिस्थिति में दृढ़तापूर्वक अपनी जलती हुई ‘लौ’ के साथ जीवन की राह दिखलाता और बतलाता है।
दीप का अपने समवेत ढँग से जलना एवं उसकी ‘लौ’ में उतार-चढ़ाव के साथ अनवरत अपने क्षेत्र में प्रकाश बिखेरना इस बात का द्योतक है कि जीवन के इस रणक्षेत्र में अपने मूलस्वरूप तथा स्वभाव के साथ जलते हुए सकारात्मकता तथा नि:स्वार्थ भाव से समूचे संसार की भलाई करना ही ध्येय होना चाहिए। दीप यह भी प्रेरणा प्रदान करता है कि जीवन का अन्त सुनिश्चित है। इसलिए जब तक जीवन है तब तक भला करते रहिए व परहित की भावना को जीवन का ध्येय बनाकर चलते रहें।
दीपक अज्ञानता और अन्धकार के भय को नष्ट कर ज्ञान और प्रकाश पुञ्ज से सर्वत्र दीप्ति उत्पन्न कर सम्पूर्णता के आनन्द को प्रसारित करने का अमोघ अस्त्र है। दीप हमारे बिखरे जीवन को समेटने की युक्ति है तथा अदम्य साहस एवं कर्मठता की जिजीविषा का दर्शन है। दीप उन मूल्यों के सम्यक निर्वहन करने का श्रेष्ठतम मानक है जिनमें जीवन का अर्थ ही ‘परोपकार’ में जीवन की आहुति समर्पित करने से है।
दीप, नैराश्य के समय आशा की किरण बनता है तो आह्लाद के समय उत्साह के साथ सर्वोत्कृष्ट करने का मार्गदर्शन प्रदान करता है। दीप के निर्माण एवं उसके गुणों के प्राकट्य तक में कई सारी संरचनाओं का संयोजन होता है जो जीवन को सुगठित करने में अपना योगदान देते हैं। वास्तव में दीप हमारे मनोमस्तिष्क के सम्पूर्ण तंत्र का एकाकार रुप है जिसमें हम अपने जीवन का निहितार्थ ढूँढ़ सकते हैं।
हमारी आद्य भारतीय सनातन वैदिक परम्परा की दैनन्दिनी में ही दीप प्रज्वलन- ॐ असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय॥अर्थात् हे! परब्रह्म परमात्मा हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो और मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। के मंत्र के साथ किया जाता है।
दीप की लौ के एकाकार दर्शन एवं उसमें ध्यानकेन्द्रित करने पर जो आत्मिक शान्ति का भाव प्राप्त होता है उसकी उपस्थिति में जीवन आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करता है। इस आध्यात्मिक भाव के साथ ही जीवन में बाह्य थपेड़ों/कारकों द्वारा निर्मित कलुषित एवं ध्वंसात्मक वृत्तियों का निर्मूलन होता है। दीप की लौ हमारे अन्तर्ज्ञान एवं स्थूल से लेकर सूक्ष्म विषयों के सद्-मार्ग तथा नवोन्मेष का पथप्रदर्शित करती है। हम दीपक की ज्योति को परब्रह्म का स्वरूप मानकर उसकी अर्चना करते हैं और अपने कुशलक्षेम का मनोरथ माँगते हैं, किन्तु यहाँ भी हम सभी के अन्दर सम्पूर्ण जगत के कल्याण की भावना निहित होती है।
दीपक जीवन में नीरसता से सरसता, अन्धकार से प्रकाश, दु:ख से सुख, सुख से शान्ति, चिन्ता से मुक्ति और स्वयं को आहुत करते हुए सभी के लिए अपना जीवन दान कर प्रसन्नता का पथ प्रशस्त करने की दिशा दिखलाता है। दीप प्रज्वलन का हमारे धर्मग्रन्थों में आध्यात्मिक एवं पौराणिक उल्लेख रहा है जो विभिन्न युगों के ईश्वरीय अवतारों के कालक्रम से लेकर वर्तमान समय तक उसी निष्ठा और भक्ति के साथ चलता आ रहा है। यह क्रम जीवन के सम्पूर्ण वाङ्मय के सम्-विषम् परिस्थितियों में समन्वय तथा प्रकृति के अनुसार सञ्चालन का बोध स्पष्ट करता है।
क्या हमने कभी यह प्रयोग किया है कि- हम जब कभी भी गहरी  निराशा के भँवर जाल में डूबे होते हैं,तथा उस समय हमारे मनोभावों में अशान्ति एवं अवसाद का स्तर लगभग अपने चरम पर होता है याकि हमारी मनोदशाओं को दिग्भ्रमित करता है। ठीक ऐसी ही परिस्थितियों याकि सामान्य परिस्थितियों में हम जब भी जीवन में निरुत्साहित महसूस करते हैं।उसी समय– पूजा का दीपक जलाकर उसके समक्ष बैठने पर हमारे जीवन में निराशा का आवरण धीरे-धीरे छंटने लगता है तथा हम स्वयं में एक नई शक्ति का संचार अनुभव करते हैं।
 आखिर! यह चमत्कार कैसे हो जाता है? इस पर विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि कोई न कोई केन्द्र हमारी चेतना एवं ‘दीप’ के मध्य अवश्य है जो हमें क्षण भर में ही ऊर्जावान बना देता है। यह तो उसी दीप की शक्ति-सौन्दर्य का एक सामान्य सा उदाहरण है। दीप में निहित शक्तियाँ एवं भावों का क्षेत्र अनन्त व व्यापक है जिसे अन्तर्दीप एवं बाह्य-दीप के मध्य के केन्द्र का मिलान कर प्राप्त किया जा सकता है।
हमारे जीवन का कोई भी ऐसा शुभकार्य नहीं होता है जो दीपप्रज्वलन के साथ शुरु न होता हो :― दीपों की इसी पवित्रता, महत्ता, श्रेष्ठता के लिए हमारी संस्कृति में दीपोत्सव का अपने आप में अनूठा पावन पर्व ‘दीपावली’ मनाया जाता है। यह पर्व राष्ट्र की संस्कृति के आधारस्तम्भ जगन्नियन्ता भगवान श्रीराम प्रभु के चौदह वर्ष के वनवास की समाप्ति पर उनके अयोध्या आगमन की प्रसन्नता में अयोध्यावासियों द्वारा किए गए दीप प्रज्ज्वलन के साथ ही आर्यावर्त्त की जीवन  पध्दति का अनिवार्य अङ्ग बन गया।
वहीं वैज्ञानिकीय दृष्टि से अवलोकन करें तो कार्तिक मास की अमावस्या यानि ‘घोर अन्धकार’ की तिथि को इस पर्व को मनाने की रीति ‘अन्धकार’ की पराजय एवं विपरीत परिस्थितियों में दृढ़ता के साथ प्रकाश रुपी लक्ष्य को प्राप्त करने का आधार है। यह पर्व इस बात का भी द्योतक है कि सद्प्रयासों से असत्य को पराजित कर सत्य की स्थापना की जा सकती है। इस प्रकार दीप प्रज्वलन के साथ हमारी उत्सवधर्मिता एवं मानवीय मूल्यों के साथ जीवन का पथानुगमन करने की अन्त:प्रेरणा व श्रेष्ठ मूल्यों की स्थापना का संकल्प है।
यदि इसे इस तर्क के साथ रखा जाए कि पूर्व के समय में केवल और केवल प्रकाश के लिए दीपक जलाया जाता था, तो यह तर्क असंगत माना जाएगा क्योंकि वर्तमान में प्रकाश के विभिन्न यन्त्रों के आ जाने के बाद भी दीप-प्रज्वलन की अपनी अनूठी पुण्य-पवित्र महत्ता है। चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थिति क्यों न हो, किन्तु हमारे – जीवन से मरणकाल एवं मरणोपरान्त  तक दीपक की ज्योति तथा उसकी अनुभूति हमारे साथ सर्वदा रहती है।ध्यान करिए कि चाहे जन्म काल में दीप जलाना हो या जीवन चक्र में पूजा-पाठ सहित हमारे षोडश संस्कारों में दीप प्रज्वलन का अपना अलग महत्व क्यों न हो। वहीं विषम परिस्थितियों में दीप हमारे जीवन में सचेतक एवं सहायक का सम्बन्ध निभाता है।
हमारे यहाँ किसी भी प्राणी की मृत्यु जैसी दु:ख एवं शोक की असहनीय परिस्थिति में भी अग्निसंस्कार के समय दीपदान से लेकर वार्षिक श्राद्ध/तर्पण तक में प्रतिदिन सांध्यकाल में जीव के मोक्ष प्राप्ति के लिए दीप प्रज्वलित होना अपने आप में अनेकानेक प्रश्नों का उत्तर है। दीप इसका अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है कि परिस्थिति चाहे कैसी भी हो किन्तु सदाबहार तरीके से दीप अपनी उपस्थिति के माध्यम से जीवन का बोध स्पष्ट करता है। इस प्रकार यह सहज ही समझ लेना चाहिए कि दीप का जीवन में कितना अभिन्न योगदान है।
जीवन में प्रत्येक पर्व, कार्य, अनुष्ठान दीप के बिना अधूरा है। दीपक उत्साह- उल्लास, शान्ति सुख, समन्वय, आरोग्यता, स्नेह और आध्यात्मिक एवं आत्मिक शान्ति प्रदान तो करता ही इसके साथ ही  सरसता, पवित्रता-पुण्यता के अक्षय कोष से जीवन को आप्लावित करता है।
जब सम्पूर्ण विश्व विभिन्न समस्याओं से त्राहिमाम कर रहा है , नित -नए संकट अपने विभिन्न स्वरुपों में आ रहें जिसकी निष्पत्ति मृत्यु, हताशा, अवसाद से घिरे हुए आवरण में हो रही है। उस समय सम्पूर्ण विश्व को भारत की सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न तत्व एक नई राह दिखला रहे हैं कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी दुस्कर क्यों न हों । हम आत्मतेज एवं अपने अदम्य साहस तथा धीरता के माध्यम से विजयी होंगे। दीप उसी अनूठी संस्कृति की अलौकिकता का प्रतीक है। जीवन के अन्धकार को नष्ट करने एवं उत्साह के सञ्चार के लिए राष्ट्र व वीर हुतात्माओं के  नाम दीप प्रज्वलन अवश्य करें।
~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल 

यमराज का भय दूर करता है भैया दूज का पर्व

भैया दूज- 6 नवम्बर 2021 पर विशेष
 ललित गर्ग 

दीपावली पांच पर्वां का संगम है, उसी से जुड़ा है भैया दूज का पर्व। हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक पर्व है यह भैया दूज पर्व। भैया दूज यानी भाई-बहन के प्यार का पर्व। एक ऐसा पर्व जो घर-घर मानवीय रिश्तों में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। बहनों में उमंग और उत्साह को संचरित करता है, वे अपने प्यारे भाइयों के टीका लगाने को आतुर होती हैं। बेहद शालीन और सात्विक यह पर्व सदियों पुराना है। इस पर्व से भाई-बहन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा नाता रहा है। भाई और बहन के रिश्ते को यह फौलाद-सी मजबूती देने वाला है। आदर्शों की ऊंची मीनार है। सांस्कृतिक परंपराओं की अद्वितीय कड़ी है। रीति-रिवाजों का अति सम्मान है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को फिर स्थापित करने, एक श्रेष्ठ और मूल्यनिष्ठ समाज एवं परिवार की स्थापना करने, पूरे विश्व को एकता, सौहार्द एवं प्रेम के सूत्र में बांधने तथा सभी मनुष्यों को पवित्रता के संकल्प में बंधकर हर एक को इसकी पहल करने का अलौकिक संदेश देता है भैया दूज का पर्व।  
बहन के द्वारा भाई की रक्षा के लिये मनाये जाने वाले इस पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास से मनाते हैं। इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई को टीका लगाकर उनके जीवन रक्षा, दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। पारिवारिक सुदृढ़ता, सांस्कृतिक मूल्य एवं आपसी सौहार्द के लिये त्यौहारों का विशेष महत्व है। इन्हीं त्यौहारों में भाई-बहन के आत्मीय रिश्ते को दर्शाता है यह अनूठा त्यौहार। इस पर्व के पीछे यही संदेश है कि भाई-बहन के संबंध में पवित्रता, स्नेह, प्रेम, सहयोग, सौहार्द एवं अहिंसा की जैसी पवित्र भावना है, वह भावना हमें सभी मनुष्यजनों तथा सभी प्राणियों के प्रति धारण करनी चाहिए। ऐसे आचरण से ही इंसान इंसान बन सकता है। भैया दूज का आध्यात्मिक महात्म्य भूलने के कारण ही मर्यादाओं का दायरा सिकुड़ रहा है, महिलाओं एवं बहनों पर अत्याचार-व्यभिचार बढ़ रहे हैं। आज भाईयों की बहनों के प्रति रक्षा भावना एवं आत्मीयता कमजोर होती जा रही है। इसलिये समय की मांग है कि हम भैया दूज के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महात्म्य को जाने और उसे अपने जीवन में दृढ़तापूर्वक अपनाएं। तभी हमारे भीतर व्याप्त आसुरी प्रवृत्तियों का नाश हो सकता है और समाज में सच्ची शांति, प्रेम, सौहार्द एवं विश्वबंधुत्व की भावना का पुनः संचार हो सकता है।
भैया दूज भारत में कई जगह अलग-अलग नामों के साथ मनाई जाती है। बिहार में भिन्न रूप में मनाया जाता है, जहां बहनें भाईयों को खूब कोसती हैं फिर अपनी जबान पर कांटा चुभाती हैं और क्षमा मांगती हैं। भाई अपनी बहन को आशीष देते हैं और उनके मंगल के लिए प्रार्थना करते हैं। गुजरात में यह भाई बीज के रूप में तिलक और आरती की पारंपरिक रस्म के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र और गोवा के मराठी भाषी समुदाय के लोग भी इसे भाई बीज के तौर पर मनाते हैं। यहां बहने फर्श पर एक चैकोर आकार बनाती हैं, जिसमें भाई करीथ नाम का कड़वा फल खाने के बाद बैठता है। भैया दूज के बहाने स्वजनों और भाइयों से भेंट की भावना छिपी होती थी। सभी शादीशुदा लड़कियां अपने ससुराल में भाई को बुलाती है और खूब सत्कार करती है।
इस त्यौहार को मनाने के पीछे की ऐतिहासिक कथा भी निराली है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। यमुना ने अपने भाई यमराज को आमंत्रित किया कि वह उसके घर आकर भोजन ग्रहण करें, किन्तु व्यस्तता के कारण यमराज उनका आग्रह टाल जाते थे। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर दिया कि जो भी इस दिन यमुना में स्नान करके बहन के घर जाकर श्रद्धापूर्वक उसका सत्कार ग्रहण करेगा उसे व उसकी बहन को यम का भय नहीं होगा। तभी से लोक में यह पर्व यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हो गया। भाइयों को बहनों टीका लगाती है, इस कारण इसे भातृ द्वितीया या भाई दूज भी कहते हैं।
इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं। उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे-धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए मंत्र बोलती हैं कि ‘गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े’। एक और मंत्र है- ‘सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे’ इस तरह के मंत्र इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु भी काट ले तो यमराज भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं।
इस दिन एक विशेष समुदाय की औरतें अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा करती है। स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम किया जाता हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें भाइयों को चावल खिलाती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।
भैया दूज के बारे में प्रचलित कथाएं सोचने पर विवश कर देती हैं कि कितने महान उसूलों और मानवीय संवेदनाओं वाले थे वे लोग, जिनकी देखादेखी एक संपूर्ण परंपरा ने जन्म ले लिया और आज तक बदस्तूर जारी है। आज परंपरा भले ही चली आ रही है लेकिन उसमें भावना और प्यार की वह गहराई नहीं दिखायी देती। अब उसमें प्रदर्शन का घुन लग गया है। पर्व को सादगी से मनाने की बजाय बहनें अपनी सज-धज की चिंता और तिलक के बहाने कुछ मिलने के लालच में ज्यादा लगी रहती हैं। भाई भी उसकी रक्षा और संकट हरने की प्रतिज्ञा लेने की बजाय जेब हल्की कर इतिश्री समझ लेता है। अब भैया दूज में भाई-बहन के प्यार का वह ज्वार नहीं दिखायी देता जो शायद कभी रहा होगा।
इसलिए आज बहुत जरूरत है दायित्वों से बंधे भैया दूज पर्व का सम्मान करने की। क्योंकि भैया दूज महज तिलक लगाने एवं उपहार देने की परंपरा नहीं है। लेन-देन की परंपरा में प्यार का कोई मूल्य भी नहीं है। बल्कि जहां लेन-देन की परंपरा होती है वहां प्यार तो टिक ही नहीं सकता। ये कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसे भाई की पुकार बहन तक पहुंचती तो बहन हर तरह से भाई की सुरक्षा के लिये तत्पर हो जाती। आज घर-घर में ही नहीं बल्कि सीमा पर भाई अपनी जान को खतरे में डालकर देश की रक्षा कर रहे हैं, उन भाइयों की सलामती के लिये बहनों को प्रार्थना करनी चाहिए तभी भैया दूज का यह पर्व सार्थक बन पड़ेगा और भाई-बहन का प्यार शाश्वत एवं व्यापक बन पायेगा। 

जुनून

 मुझे बचपन से ही पढ़ने और लिखने का, जुनून था। मैं चाहता रहा था कि मैं लिखूँ, लोग मेरा लिखा पढ़ें और मानें कि मेरे पास एक वक्तव्य है और यह कि मुझे कहने का हुनर भी है। पर मैं ज़िन्दगी की जरुरी उलझनों में अपने इस जुनून को जाहिर करने में कामयाब नहीं हो पाया था, कसक रह गई थी। पढ़ना भी अपने पेशे से सम्बन्धित जानकारी जुटाने तक ही सीमित रह गया था। मैं अपने को उस ब्राह्मण की तरह महसूस करता था जिसकी पढ़ाई पुरोहिती करने के नमो नमो में सीमाबद्ध रह गई हो।अपने आपके प्रति अपराध-बोध से ग्रस्त थी मेरी चेतना। व्यर्थता का अहसास।
नौकरी से सेवानिवृत्ति के समय मैं पारिवारिक दायित्वों से भी मुक्त हो चुका था। इसलिएअब मेरा जुनून ही मेरी प्रासंगिकता और प्राथमिकता हो गई थी। जैसे ही मैंने लिखने पर अपने को केन्द्रित किया, तो पाया कि मेरी लिखावट काफीअस्पष्ट होती जा रही है। मेरी लिखावट पढ़ना सहज नहीं है। मैं हताश हो गया था।

तभी छःमहीनों के लिए पटना अपने छोटे बेटे के साथ रहने जाना हुआ हमारा। इस यात्रा ने घटनाओं का एक ऐसे सिलसिले की शुरुआत की जो मेरे लिए सार्थकता का आशीर्वाद हो गया। वहाँ बेटी भी उस समय रहती थी . उसने मुझे कम्प्यूटर की ओर खींचा। उसने कहा, कि आप तो लिखा करते हैं। इसमें यह खूबी है कि आपका लिखा हुआ सुरक्षित ही नहीं रहेगा , उसमें आप कहीं कहीं से जब कभी जोड़ या हटा या बदल सकते हैं। उसने ही कम्य्यूटर की प्रारम्भिक चरणो से मुझे परिचित किया। मेल भेजना भी सिखाया। अब मुझे भी दिलचस्पी होने लगी। बन्द दरवाजा खुल गया हो जैसे। मैं सेवानिवृत्त और संगी विहीन था। मेरे पास समय और अवसर भी थे। । फिर हम चण्डीगढ़ आ गए।
इसी बीच अपु ने बांग्ला के कवि जय गोस्वामी की कविताओं का हिन्दी अनुवाद करने को कहा। मैं जय गोस्वामी की कविताओं के विशिष्टता को समझना चाहता था। इसलिए अपने निकट के फ्लैट में रहनेवाली डॉक्टर सुष्मिता चक्रवर्ती से बात की। डॉ सुष्मिता को साहित्य से गहरा लगाव है। वे एक व्यक्ति के साथ एक दिन आई, और उनका परिचय देते हुए कहा कि जय गोस्वामी की विशिष्टता के बारे में आप इनसे जानिए। वे पंजाब विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर हरजिन्दर सिंह लाल्टु थे। हिन्दी, बांग्ला,पंजाबी और अंगरेजी साहित्य में विचरण करनेवाले व्यक्ति। लाल्टु ने अपने सहकर्मी बौद्ध अध्ययन सह तिब्बती भाषा के प्राध्यापक डॉ विजय कमार सिंह से परिचय कराया और उसके बाद डॉ वी.के सिंह के साथनियमित सम्पर्क बन गया। इस सम्पर्क ने मुझे कम्प्यूटर में लिखने और इण्टरनेट का उपयोग करने का आत्मविश्वास दिया। इस तरह मैं अपनी लिखावट के अपाठ्य होने की असुविधा से मुक्त हो गया। अब तो मैं कलम पकड़ नहीं पाता, पर कम्प्यूटर के उपयोग से सुगमतापूर्वक पन्ने पर पन्ना लिखा करता हूँ। एक अन्य सम्पर्क भी मुझे सशक्त और समर्थ करनेवाला कायम हुआ। वह है श्री बलदेव पांडे और श्री राजशेखर के साथ का सम्पर्क। बलदेव मुझे संगठित ऊर्जा के एक असामान्य युवा लगे. जिसे ऊर्जा चैन नहीं लेने देती है। दिशा तथा लक्ष्य की तलाश में बेचैन। राजशेखर को रामकृष्ण मिशन के संस्कार से मण्डित, ठाकुर के आशीर्वाद से प्रेरित, स्नेह,सम्मान कर पाने में सक्षम ।
तभी मुेरा छः महीनों के लिए पटना जा हुआ। वहाँ बेटी कम्युटर पर काम करती थी। कम्प्युटर तो चण्डीगढ़ में भी था। पर मेरे मन में उसके प्रति कोई आकर्षण उत्पन्न नहीं हुआ था। यहाँ बेटी ने मुझे बताया कि कम्युटर पर मैं सहजता और दक्षता के साथ लिख सकता हूँ। उसने मुझे मेल लिखना और भेजना भी सिखाया। मुझे बताया कि हिन्दी में भी लिखा जा सकता है। उस वक्त हिन्दी के लिए यूनिकोड उपलब्ध नहीं था कई एक स्वतन्त्र सॉफ्टवेयर उपलब्ध थे। उनके उपयोग की पद्धति के लिए प्रशिक्षण की जरुरत थी। तभी मुझे अपने जुनून को पूरा करने के प्रति अवसर मिलने की सम्भावना का आश्वासन मिला। चण्डीगढ़ लौटने पर अब कम्प्यूटर के प्रति मेरा आग्रह प्रबल हो गया था। अवसर भी उपलब्ध था।
यह सब इतनी सहजता से होता गया कि मेरा जुनून बढ़ता ही गया। एक और इत्तेफाक इस शृंखला में जुड़ा। डॉ शंकरनाथ झा( बच्चू) ने बातों बातों में अपने लेखन का जिक्र किया। तो मैंने प्रस्ताव दिया कि मैं अपने कम्प्यूटर पर टाइप कर पाण्डुलिपि प्रस्तुत करने में सहायता कर सकता हूँ। फिर हमारी सहयात्रा की शुरुआत हुई.। वे लिखते रहे और मैं टाइप करने के लिए सामग्री पाता रहा। साथ साथ मैं अपना लेखन भी करता गया। उस समय उपलब्ध हिन्दी के विभिन्न सॉफ्टवेयर पर लिखना मेरे लिए सहज होता गया। इस बीच हिन्दी का यूनिकोड विकसित हुआ और उसमें काम करना सहज होता गया। इण्टरनेट,wifi (वायफाय) सहज रुप से उपलब्ध हो गए, होते गए।
I was excited to use e mail service. It opened access to known and unknown persons. Came to know about digital publications from these mails. I sent my articles for publication to a few of them.More than one editors showed interest. The articles began to be accepted and published. The
वेब पत्रिकाओं की जानकारी मिली, कुछ से सम्पर्क हुआ। मैंने अपनी रचनाएँ उन्हें भेजी। कई पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ स्वीकृत और प्रकाशित होने लगीं। एकाधिक सम्पादकों ने दिलचस्पी दिखलाई। मुझे स्वीकृति की उपलब्धि हुई। लिखना अधिक सार्थक लगने लगा। कुछ पाठकों ने भी सम्पर्क किया। बहुत लिखा, अपनी जीवन-यात्रा का खाका भी लिखा. अपने लिखे का अनेक पाठकों द्वारा पढ़े और पसन्द किए जाने की जानकारी मिलती रही।.इतना ही तो मैंने चाहा था। इसके साथ ही इस सवाल का जवाब मिल गया कि क्या मेरे पास कहने को कुछ है और क्या मेरे पास उन बातों को प्रस्तुत करने का हुनर है।
लिखने के साथ साथ पढ़ने के सुयोग भी मुझे मिलते गए। बब्बू, अपु और बेटी तीनो के ही जरिए मुझे किताबें मिलती रही जिन्होने मुझे सवाल करनेऔर पुराने सवालों के जवाब हासिल करने के लिए प्रेरित किया। डॉ पूरबी मण्डल ने बांग्ला साहित्य और राजशेखर ने अपने शिक्षक-गुरु समर्पण की रचनाओं के बहाने आध्यात्मिक चर्चा की ओर मुझे प्रवृत्त किया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीत मेरे लिए सम्बल से हो गए। नौकरी और पारिवारिक दायित्वों से मुक्त होने के साथ प्रासंगिकताहीन से जन्मी खालीपन को भरने में इनकी भूमिका के प्रति कृतज्ञता से मन भरा रहता है। अन्त में फेसबुक का धन्यवाद.। फेसबुक से जुड़े होने से मैं व्यापक समाज में अपनी उपस्थिति की स्वीकृति महसूस कर पाता हूँ। अन्त में, इस उक्ति का ध्यान आ ही जाता है- जब हम किसी चीज की कामना अन्तर से करते हैं, सारी सृष्टि उसे पूरा करने के लिए साजिश करने लग जाती है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एक गीत की पंक्ति आमाय जागिये राखो, आमि तोमाय गान शोनाबो।

आर्यन खान व ड्रग माफिया

आर्यन खान से रिलेटेड मुम्बई क्रूज़ ड्रग्स रिलेटेड केस NCB से NIA (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) को ट्रान्सफर किया जा रहा है …!  इसका स्पष्ठ अर्थ ये होता है कि आर्यन खान, SRK व बॉलीवुड इंडस्ट्री के बहुत से माने जाने बड़े लोग केवल ड्रग्स के कारोबार में ही लिप्त नहीं हैं, बल्कि उनका मुस्लिम माफियाओं व इस्लामिस्ट जिहादियों के साथ  आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न होने का सन्देह भी है…! NCB की इन्वेस्टिगेशन में निश्चित ही कुछ ऐसे अकाट्य क्लू मिले होंगे जिसके कारण यह केस NIA को हैंड ओवर किया जा रहा है …! NIA केन्द्र की स्वतंत्र आर्गेनाइजेशन है, यानि NIA को किसी भी स्टेट में वहाँ के प्रशासन वह पुलिस डिपार्टमेंट से किसी भी प्रकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती, वे किसी की भी जाँच कर सकते हैं और किसी को भी अरेस्ट कर सकते हों …. चाहे स्टेट का चीफ मिनिस्टर ही क्यों न हो, यदि उसके विरुद्ध किसी भी क्रिमिनल एक्टिविटी या षडयंत्र (विशेषकर देश की सुरक्षा से संबंधित) में इन्वॉल्व होने का सन्देह होता है या कोई प्रूफ मिलता है तो उसे भी नहीं बक्सा जाता …!  मुझे लगता है कि NCB से NIA को केस हैंड ओवर करने का मतलब है उद्धव ठाकरे, शरद पँवार, नवाब मालिक जैसे एक्सटॉर्शनिस्ट, षड्यंत्रकारी, अति-भ्रष्ट नेताओं तथा बॉलीवुड की कई हस्तियों को; जो ड्रग्स रैकेट, मनी लॉन्ड्रिंग करने वाले, अंडरवर्ल्ड माफियाओं के कारोबार एवम इस्लामिस्ट जिहादियों व अन्य देशद्रोही एक्टिविटीज में बुरी तरह से लिप्त हैं अथवा उनको सहयोग व शरण देते हैं को एक्सपोज करना है …!  पूरा देश जानता है कि जब से उद्धव के नेतृत्व में महाराष्ट्र में महा-अघाड़ी सरकार बनी है महाराष्ट्र पूरी तरह से भ्रष्ट नेताओं, अंडरवर्ल्ड माफियाओं, ड्रग्स रेकेटरों, बॉलीवुड इंडस्ट्री के चरित्रहीन दुष्कर्मी मलेच्छों (जिनमें पुरुष व स्त्रियां दोनों हैं), एक्सटॉरनिस्टों, इस्लामिक जिहादियों  के खतरनाक अलायन्स के हाथों चला गया है …!  
मुम्बई भारतवर्ष की आर्थिक राजधानी है, यदि यहाँ ये सब होने लगा तो निश्चित ही पूरे भारतवर्ष की सुरक्षा व अर्थ व्यवस्था खतरे में पड़ जायेगी;  इसलिये केन्द्र की मोदी जी की राष्ट्रवादी व विकासवादी सरकार ने निर्णय लिया होगा इस केस को NCB से लेकर NIA के हैंड ओवर किया जाये …!  मैं केन्द्र सरकार के इस डिसिशन व एक्शन अत्यन्त प्रसन्न हूँ और आशा करता हूँ कि NIA महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में पनप चुके इस खतरनाक नेक्सस को बस्ट करने में कामयाब होगी …!  

आओ हम दीप जलाएं

प्रभुनाथ शुक्ल

आओ हम एक दीप जलाएं!
मन का अँधियारा दूर भगाएं!!

आओ हम मन के दीप जलाएं!
तन के तम को हम दूर भगाएं!!

आओ हम एकता का दीप जलाएं!
दम्भ-कपट और छल-छीद्र भगाएं!!

आओ हम स्नेह का दीप जलाएं!
द्वेष-राग को मिल सब दूर भगाएं!!

आओ हम भाईचारे का दीप जलाएं!
नफरत की खड़ी वह दिवार गिराएं!!

आओ हम राष्ट्र प्रेम का दीप जलाएं!
मिल कर सब भारत की जय गाएं!!

अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!

मन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार !
हर पल, हर दिन ही रहे, दीपों का त्यौहार !!
दीपों की कतार से, सीख बात ले नेक !
अँधियारा तब हारता, होते दीपक एक !!
फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग !
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग !!
दीये से बात्ती रुठी, बन बैठी है सौत !
देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत !!
बदल गए इतिहास के, पहले से अहसास !
पूत राज अब भोगते, पिता चले वनवास !!
रुठी दीप से बात्तियाँ, हो कैसे प्रकाश !
बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश !!
पहले से त्यौहार कहाँ, और कहाँ परिवेश !
अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!
मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद !
जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद !!
— डॉo सत्यवान सौरभ,

दीपावली 2021: जानिये पूजन की सम्पूर्ण विधि एवं शुभ मुहुर्त

दीपावली पर ऐसे करें लक्ष्मी-गणेश का पूजन

दीपावली पर विधि-विधान से किया गया लक्ष्मी-गणेश पूजन आने वाले पूरे वर्ष परिवार में धन्य-धान्य एवं सुख-समृद्धि के लिये शुभ माना जाता है । आईये जानते हैं दीपावली पूजन की सम्पूण विधि ।
क्यों मनाते हैं दीपावली ?

भगवान श्रीराम चैदह वर्ष का वनवास पूर्ण कर सीताजी एवं लक्ष्मण जी के साथ कार्तिक अमावस्या को अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों प्रसन्नता प्रकट करते हुये राजा राम के स्वागत में अपने घरों के बाहर घी के दीपक जलाए। तब से आज तक सनातनधर्म प्रेमी प्रति वर्ष प्रकाश के इस पर्व पर अपने घरों पर दीपक जलाकर सनातन धर्म परम्परा और भगवान श्रीराम के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करते हैं ।
क्यों किया जाता है लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन ?

माता लक्ष्मी धन की देवी हैं, हिंदू धर्म और शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की अमावस्या के दिन समुद्र मंथन से मां लक्ष्मीजी की उत्पत्ति हुई थी। इसीलिए दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

सभी कार्य शुभ और निर्विघ्न हों इसलिये लक्ष्मी जी से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है । श्री गणेश जी हमें सद्बुद्धि दें और उस सद्बुद्धि का आश्रय लेकर हम धनोपार्जन करें और उस धन का सही दिशा में उपभोग करें ऐसी प्रार्थना करनी चाहिये । देवी सरस्वती हमें ज्ञान का प्रकाश और उच्च शिक्षा का वरदान दें इस कामना के साथ दिवाली पर माँ सरस्वती की पूजा भी की जाती है।  

दीपावली पूजन के लिये यह चाहिये पूजन सामग्री  –

दीपावली पूजन के लिये कमल गट्टा, साबुत हल्दी गाँठ, साबुत धनिया, कौड़ी, पीली सरसों, सुपाड़ी, लौंग-इलायची, सिंदूर, रोली, जनेऊ, गुड़, अक्षत (चावल), कपूर, जौ, शहद, पंचमेवा, खील बताशे-खिलोने, चंदन, कलावा, गंगाजल, गाय का घी, इत्र, लक्ष्मी गणेश जी मूर्ति एवं छविचित्र आदि रखने चाहिये । दूध, दही, बूरा, पान के पत्ते, अशोक के पत्ते, मिठाई स्वेच्छानुसार, ऋतुफल सिंगाड़े, हरी दूर्वा घास, पुष्प माला आदि भी पूजा के लिये एकत्रित कर लें ।

शुभ फल के लिये कैसे करें दीपावली का पूजन –

दीपावली को पूरे परिवार को एक साथ बैठकर लक्ष्मी-गणेश जी का पूजन करना चाहिये । सुबह ही घर के मुख्य द्वार पर अशोक के पत्ते की वंदनवार बाँध दें । संध्या पूजा में सभी अपने हाथ एवं पैर अच्छे से धोकर स्वच्छ होकर बैठें । जिस स्थान पर पूजा की जा रही है उस जगह गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें । नकारात्मक ऊर्जा के नाश के लिये पूजा स्थान तथा घर में पीली सरसों बिखेरें । पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके पूजन हेतु चौकी स्थापित करें। थोड़े से घी में सिंदूर मिलाकर पूजा स्थान एवं द्वार परएक ओर शुभ एवं दूसरी ओर लाभ लिख दें, स्वास्तिक का चिन्ह बनायें। पृथ्वी को प्रणाम करते हुये आसन गृहण करे –
ऊँ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वम् विष्णुना धृता ।
त्वम् च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् ।।

पूजन सामग्री को कटोरियों में सुविधानुसार रख लें । चौकी पर लाल कपड़ा बिछायें एवं एक स्थान पर थोड़े से चावल, गैंहू, जौ आदि के दाने रखकर उस पर मंगल कलश या एक लौटा पानी भरकर रखें । इसमें ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखें । इसके पश्चात लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करें । चौकी पर पूजन के लिये घर से कुछ मुद्रा एवं स्वर्ण आभूषण भी रख लें । आँख बंद कर सभी देवों का ध्यान एवं आव्हान करें । थोड़े से चावल के ऊपर घी का बड़ा दीपक रखें एवं प्रज्ज्वलवित करते हुये यह मंत्र पढें । धूप बत्ती जलायें ।
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते।।
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।  
     इसके पश्चात लक्ष्मी-गणेश जी सहित सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें –
ऊँ सिद्धि बुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । ऊँ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः । ऊँ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः । ऊँ शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।
ऊँ मातापितृचरणकमलेभ्यो नमः । ऊँ कुलदेवताभ्यो नमः । ऊँ इष्टदेवताभ्यो नमः ।
ऊँ ग्रामदेवताभ्यो नमः । ऊँ स्थानदेवताभ्यो नमः । ऊँ वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
ऊँ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । ऊँ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः । ऊँ सर्वेभ्यस्तीर्थेभ्यो नमः ।
ऊँ एतत्कर्म-प्रधान-श्रीगायत्रीदेव्यै नमः । ऊँ पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु ।
श्री गणेश जी को नमस्कार –
सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरश्च विकटो विघ्न नाशो विनायकः ।।
लक्ष्मी गणेश जी का पूजन प्रारम्भ करें । पूजा स्थान पर एक खाली कटोरी रख लें जिसमें चम्मच से देवों के निमित्त पूजन सामग्री अर्पित की जायें ।

सर्वप्रथम लक्ष्मी-गणेश जी के निमित्त पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान हेतु पाॅंच बार चम्मच से इस कटोरी में जल छोड़ें । पंचामृत से स्नान के निमित्त क्रम से दूध, दही, घृत (घी), बूरा/बताशा और शहद की थोड़ी-थोड़ी मात्रा कटोरी में छोड़ें । इसके पश्चात चम्मच से शुद्ध जल कटोरी में छोडें । भगवान को वस्त्र के लिये मूर्ति के पास कलावा अपर्ण करें । गणेश जी को जनेऊ चढ़ायें । रूई में इत्र लगाकर मूर्ति को अर्पित करें । सिंदूर से लक्ष्मी जी का चरण से मस्तक तक सर्वांग पूजन करें । रोली-चंदन से लक्ष्मीगणेश जी का तिलक करें, अक्षत लगायें । इसके पश्चात पुष्प एवं माला चढ़ायें । लक्ष्मी-गणेश जी को धूप और दीपक दिखायें । एक बार पुनः हाथ धो लें ।

दीपावली पर लक्ष्मी गणेश जी को खील-बताशे एवं मीठे खिलोने का भोग लगाना अति शुभ माना जाता है । इनके साथ ही गुण, पंचमेवा एवं अन्य मिष्ठान का भी भोग लगायें, मूर्तियों पर खील की वर्षां करें । ऋतुफल चढ़ायें, अगर सिंगाडे़ हो तो अच्छा है । आचमन के लिये पुनः कटोरी में थोड़ा जल छोड़ें । परिवार में वंश वृद्धि के लिये लक्ष्मी गणेश जी को दूर्वा घास अर्पण करें । लक्ष्मी गणेश जी को पान के पत्ते पर सुपाड़ी-लौंग-इलायची रखकर अर्पित करें । महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये कमल पुष्प एवं कमलगट्टा चढ़ायें ।  

अष्टलक्ष्मी पूजन के लिये निम्न मंत्र बोलें –

ऊँ आद्य लक्ष्म्यै नमः , ऊँ विद्यालक्ष्म्यै नमः , ऊँ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः , ऊँ अमृतलक्ष्म्यै नमः ,ऊँ कामलक्ष्म्यै नमः , ऊँ सत्य लक्ष्म्यै नमः , ऊँ भोगलक्ष्म्यै नमः , ऊँ योगलक्ष्म्यै नमः ।
     इसके पश्चात सभी देवी-देवताओं से अपनी भूलों के लिये हाथ जोड़कर क्षमायाचना करें तथा परिवार में धन,यश एवं सुख-शांति प्रदान करने के लिये प्रार्थना करें ।
पूजन पश्चात खड़े होकर थाली में कटोरी में कपूर जलाकर लक्ष्मी जी एवं गणेश जी की आरती उतारें । घंटी एवं शंख बजाकर देवी-देवताओं को प्रसन्न करें । दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरों में शंख और घंटी बजाना चाहिए। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता बाहर चली जाती है। तेल के दीपक में एक लौंग डालकर हनुमानजी की आरती करें । चैकी पर पुष्प अर्पित करें । अपने स्थान पर हीे दो बार घूमकर प्रदक्षिणा करें । अन्त में शाष्टाँग दण्डवत प्रणाम करें । पूजा पश्चात अपने घर के सभी बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आर्शीवाद अवश्य लें ।
विद्यार्थी सरस्वती जी के चित्र समक्ष अपनी कलम तथा व्यापारी अपनी बही रखकर उनका पूजन करें । पूजा के पश्चात शेष कलावे को सभी अपनी कलाई पर बाँध लें । शेष प्रसाद को वितरित कर दें । घर के बाहर दरवाजों पर एवं घर के अंदर सभी दिशाओं में मिट्टी से बने तेल के दीपक जलायें ।

कुबेर पोटली पूजन कर तिजोरी में रखें –

दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ कुबेर भगवान का भी पूजन किया जाता है । इसके लिये कुबेर पोटली बनायी जाती है । एक लाल कपड़े पर कुछ कमलगट्टे, हल्दी की गाँठें, साबुत धनियाँ, कौड़ी, सुपाड़ी, दूर्वा घास और कुछ सिक्के रखकर उनका रोली चावल से पूजन करें । खील-बताशे अर्पित करें । पूजन पश्चात इन सबकी एक पोटली बनालें तथा अपने धनस्थान तिजोरी आदि में रखें । धन्यधान्य वृद्धि के लिये यह शुभ माना जाता है ।
पूजन पश्चात रात्रि को लक्ष्मी-गणेश जी के आगे अखण्ड ज्योति जलायें जो अगले दिन सुबह तक जलती रहे । इस प्रकार पूजन से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में रिद्धि-सिद्धि का वास होता है ।

दीपावली पूजन शुभ महूर्त – 4 नवम्बर 2021

धनु लग्न प्रात: 9.49 से 11.53 तक । इस लग्न में लाभेष शक्र है । धनवृद्धि कारक है ।
राहू काल – दोप0 1.30 से 3 बजे तक ।
संध्या पूजन –
वृष लग्न – संध्या 6.10 से 8 बजकर 7 मिनट तक ।
सिंह लग्न – रात्रि 12 बजकर 4 मिनट से 1.42 बजे तक

– पं0 भगवान स्वरूप शर्मा (ज्योतिषाचार्य), पुष्पांजली बैकुंण्ठ, वृन्दावन प्रस्तुति – जगदीश वर्मा ‘समंदर’

इंसानियत से प्यार मुझे

—विनय कुमार विनायक
मैंने जहां से इश्क किया है,
इंसानियत से प्यार मुझे!

धर्म व मजहब में आडम्बर,
कभी नहीं स्वीकार मुझे!

धर्म वहां तक जायज लगते,
जहां लगे सब यार मुझे!

मानव मानव में भेदभाव हो,
वह धर्म लगे बेकार मुझे!

धर्म मजहब की बुराइयों से,
सदा से है तकरार मुझे!

धर्म नहीं वो जो हथियार हो,
नापसंद ये औजार मुझे!

धर्म वो जो करे सबका उपकार,
पसंद नहीं अपकार मुझे!

हर धर्म में अच्छाई बुराई होती,
पसंद धर्मों का सार मुझे!

धर्म नहीं है धमकाने का अस्त्र,
ऐसे धर्मों से इंकार मुझे!

धर्म मजहब नहीं ईश्वर का घर,
व्यर्थ लगे ऐसे संसार मुझे!

धर्म-मजहब-रब है मानव निर्मित,
घृणित लगे इनकी मार मुझे!

मानव विनाश का कारण है धर्म,
ऐसे धर्मों से है रार मुझे!

धर्म बने आत्म संतुष्टि साधन,
चाह है धर्म में सुधार मुझे!

धर्म यदि सृष्टि का संहार करे,
तो ना सुना धर्म प्रचार मुझे!

ऐसे अध्यात्मिक मानव दर्शन से,
करो ना साजिशी प्रहार मुझे!
—विनय कुमार विनायक

पोप, मोदी और पोपलीला

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस भावभीने ढंग से वेटिकन में पोप फ्रांसिस से मिले, उसके फोटो अखबारों और टीवी पर देखकर कोई भी चकित हो सकता है। वैसे मोदी सभी विदेशी महाप्रभुओं से इसी गर्मजोशी के साथ मिलते हैं, चाहे वह डोनाल्ड ट्रंप हो या जो बाइडन हो। लेकिन यह एकतरफा अति उत्साह नहीं है। सामनेवाले की गर्मजोशी भी उतनी ही दर्शनीय हो जाती है। लेकिन मोदी की पोप से हुई भेंट को न तो केरल के कुछ ईसाई और न ही कुछ कम्युनिस्ट नेता आसानी से पचा सकते हैं लेकिन वे यह न भूलें कि पोप से मिलनेवाले ये पहले भारतीय प्रधानमंत्री नहीं है। इनके पहले चार अन्य भारतीय प्रधानमंत्री पोप से वेटिकन में मिल चुके हैं। वे हैं— जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, इंदर गुजराल और अटलबिहारी वाजपेयी। अप्रैल 2005 में जब पिछले पोप का निधन हुआ तो भारत के उप-राष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत स्वयं वेटिकन गए थे। उस समय यह प्रश्न भारत और फ्रांस दोनों जगह उठा था कि यदि आपका राष्ट्र धर्म-निरपेक्ष है तो केथोलिक धर्म गुरु की अंत्येष्टि में आपका प्रतिनिधि शामिल क्यों हो? इसका जवाब यह है कि पोप की धार्मिक हैसियत तो है ही लेकिन वेटिकन एक राज्य भी है और पोप उसके सर्वोच्च शासक हैं। यों भी किसी भी देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री रोम जाते हैं तो वे पोप से प्रायः मिलते हैं लेकिन मोदी और पोप की इस भेंट से जो लोग नाराज हुए हैं, उनकी शिकायत है कि मोदी-राज में ईसाइयों और मुसलमानों पर काफी जुल्म हो रहे हैं लेकिन भाजपा इस भेंट का इस्तेमाल उन जुल्मों पर पर्दा डालने के लिए करेगी। इतना ही नहीं, गोवा और मणिपुर के आसन्न चुनावों में ईसाई वोटों को भी इस भेंट के बहाने पटाने की कोशिश करेगी। इस भेंट का इस्तेमाल नगालैंड, मिजोरम तथा देश के अन्य हिस्सों में रहनेवाले ईसाइयों को लुभाने के लिए भी किया जाएगा। यह संदेह निराधार नहीं है लेकिन सरकार के प्रवक्ता ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि इस भेंट के दौरान धर्मांतरण का सवाल उठा ही नहीं। धर्मांतरण के सवाल पर भाजपा-शासित राज्य कड़े कानून बना रहे हैं और संघ के महासचिव दत्तात्रय होसबोले ने भय और लालच दिखाकर किए जा रहे धर्मांतरण को अनैतिक और अवैधानिक बताया है। सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए धर्म-परिवर्तन कराने के गलत तरीकों पर पोप भी कोई रोक नहीं लगाते। अब तो पोपों की व्यक्तिगत पवित्रता पर कभी सवाल नहीं उठता लेकिन यूरोप में उसके पोप-शासित हजार साल के समय को अंधकार-युग माना जाता है। इस काल में पोपों को अनेक कुत्सित कुकर्म करते हुए और लोगों को ठगते हुए पाया गया है। इसीलिए ईसाई परिवारों में पैदा हुए वाल्तेयर, विक्टर ह्यूगो, कर्नल इंगरसोल और बुकनर जैसे विख्यात बुद्धिजीवियों ने पोप-लीला के परखचे उड़ा दिए थे। केथोलिक चर्च के इसी पाखंड पर प्रहार करने के लिए कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम की संज्ञा दी थी। आशा है, पोप फ्रांसिस जब भारत आएंगे तो वे अपने पादरियों से कहेंगे कि ईसा के उत्तम सिद्धांतों का प्रचार वे जरुर करें लेकिन सेवा के बदले भारतीयों का धर्म नहीं छीनें।

हिन्दूराष्ट्र भारत व सनातन संस्कृति में उन्नति का सार

~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

हम देखते हैं कि विभिन्न देशों की यात्राओं में जब हमारे राजनेता,राजनयिक जाते हैं,तो उनके स्वागत के लिए विश्वभूमि के बन्धु/भगिनी भारतीय संस्कृति की परम्पराओं, धार्मिक श्लोकों व हिन्दू संस्कृति के विविध प्रतीकों,पध्दतियों,कलाओं के माध्यम से उनका सम्मान करने के लिए अग्रसर रहते हैं। भारत में भले ही छुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए विभिन्न धड़े सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति को उपेक्षा के भाव से देखते हैं,और उसके प्राकट्य को कभी साम्प्रदायिकता से जोड़कर अपमानित करने का प्रयास करते हैं,तो कभी पन्थनिरपेक्षता की दुहाई देकर इसे असहिष्णुता बतलाते हैं।
 हालाँकि ऐसा करने वाले पाश्चात्य देशों की ओर श्रध्दा भाव से झुके रहते हैं,किन्तु जब हम विश्व की दृष्टि का भारत के प्रति अवलोकन देखते हैं तो उनके केन्द्र में – सनातन हिन्दू धर्म व संस्कृति ही रहती है । यह देख और सुनकर हम गर्व से भर जाते हैं कि समूचा विश्व हमारी संस्कृति का सम्मान कर रहा है,लेकिन हम उस संस्कृति का कितना सम्मान करते हैं यह प्रायः भूल जाते हैं। हालाँकि भारत में भी कई वर्ग ऐसे हैं जो विदेशों में भी भारतीय संस्कृति की झंकार से आहत महसूस करते हैं।वे भारत में तो भले ही विषवमन कर लें,किन्तु समूचे विश्व में भारतीय संस्कृति,हिन्दू व हिन्दुत्व के प्रति अगाध श्रद्धा व सम्मान के भाव को तो कभी भी कम नहीं कर सकते हैं। यह श्रध्दा व सम्मान विश्व को  हिन्दू जाति के द्वारा दिए गए महान अवदानों व उसके संस्कारों के कारण स्थापित हुआ है।  वस्तुतः सत्य यही है भारत स्वभावतः और नैसर्गिक तौर पर हिन्दूराष्ट्र है और भारत की  पहचान सनातन हिन्दू धर्म एवं संस्कृति है। जो कि समूचे विश्व को सर्वस्वीकार्य है।
इटली यात्रा में गए प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी के स्वागत में पढ़ा गया शिव ताण्डव स्त्रोत और जय श्रीराम के गगनभेदी नारे यह केवल प्रधानमन्त्री का सम्मान नहीं है,बल्कि समूचा विश्व भारत को जिस कारण से जानता है-जिस संस्कृति के कारण जानता है  यह उसका सम्मान है। सम्पूर्ण विश्व भारत को धर्म-कर्म,ज्ञान, अध्यात्म और उच्च जीवनमूल्यों के साथ -साथ मानवता के अग्रदूत और जीवमात्र के  कल्याण की भावना का सर्जक पोषक एवं रक्षक मानता है।
आप विश्व के किसी हिस्से में जाइए वे आपको आपके वेद,उपनिषदों, धर्म, अध्यात्म, हिन्दुओं के त्याग, बलिदान,सहिष्णुता, विश्वबन्धुत्व ,श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत व भारतीय संस्कृति के आधार भगवान श्रीराम – कृष्ण,ऋषि-महर्षियों की मेधा,तेजोमय दर्शन  व आधुनिक परिप्रेक्ष्य में स्वामी विवेकानन्द की विचार दृष्टि। विविधता में एकता, संस्कृति व समाज, परम्पराओं की बहुलता के साथ ‘एकत्व’ व सहजता,सरलता,निश्छलता व पावित्र्य भाव से परिपूर्ण आपके स्नेहानुराग से पुष्ट उन अनगिनत श्रेष्ठ उदाहरणों के माध्यम से जानते हैं जिनमें भारतीय संस्कृति प्रकट होती है।
विदेशों में आप किसी भी विद्वान के पास जाइए और उससे पूँछिए कि भारत की संस्कृति व धर्म क्या है? तब आपको एक ही उत्तर मिलेगा – सनातन हिन्दू संस्कृति।  गर्व कीजिए कि ‘हिन्दू ‘ शब्द के जुड़ जाने के साथ ही समूचा विश्व आपको आत्मीयता के साथ  अपना लेता है,और वह आपके प्रति कृतज्ञ भाव से नि:शंक होकर खिंचा चला आता है। क्योंकि वह जानता है कि हिन्दू होने का अर्थ क्या है? विश्व भावना जानती है कि ‘हिन्दू’ श्रेष्ठता का दम्भ नहीं पालते बल्कि सबके साथ आत्मीय होकर ,अपनी महान संस्कृति व विरासत के विविध माध्यमों से संसार की भलाई व मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए ही सतत् प्रयत्नशील रहते हैं।
किन्तु दुर्भाग्य देखिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सम्मिलित ‘पन्थनिरपेक्षता’ का यहाँ आशय ही उलट कर देखा जाता है। और भारत में ऐसे दूषित मानसिकता वाले विदूषकों की कमीं नहीं है,जो हिन्दू-हिन्दुत्व और सनातन संस्कृति के प्रति घ्रणा रखते हैं। इतना ही नहीं बल्कि वे सनातन हिन्दू धर्म- संस्कृति के प्रतीकों व परम्पराओं को अपमानित करने का कोई भी अवसर नहीं चूकते हैं। अतएव अन्य मतावलम्बियों को यह समझना चाहिए कि पूजा,उपासना पध्दति से धर्म व संस्कृति नहीं बदलती है। वैमनस्य व कलुषता फैलाने के स्थान पर गर्व करिए कि आपको परम् पावनी पुण्यमयी सरस,सलिला  भारत-भूमि का अङ्ग होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।  क्षुद्र स्वार्थों, निकृष्ट राजनीति व सामाजिक ऐक्यता को  छिन्न-भिन्न करने वालों से सतर्क रहिए,उनका निर्मूलन करिए और सर्जनात्मकता के साथ राष्ट्रोत्थान के लिए अग्रसर रहिए।
सम्पूर्ण विश्व के दु:खो ,अशान्ति, हिंसा, उत्पात इत्यादि का वास्तविक हल केवल भारतीय संस्कृति में ही है,क्योंकि यह वही धरा-वही संस्कृति है जो केवल भौतिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक और इहलौकिक से लेकर पारलौकिक उन्नति का मार्ग दिखलाती है। सनातन हिन्दू संस्कृति चैतन्य व वात्सल्यमयी है,यह सहज ही सबको आत्मसात कर उसे पोषण प्रदान करती है।  समूचा विश्व भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है और वह लालायित है भारत-भूमि से अविरल नि:सृत होने वाली धर्म व अध्यात्म की सर्वकल्याणकारक अमृत धार का रसपान करने के लिए। हम अपने ‘स्व’ को पहचाने और उसके उत्कृष्ट मानबिन्दुओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति के स्वभाव का पथानुसरण करते हुए ‘विश्वगुरू’ भारत यानि किसी पर साम्राज्य चलाने की इच्छा नहीं अपितु मनुष्यत्व की प्रतिष्ठा के माध्यम से विश्व कल्याण की कामना करना है। 
किन्तु ध्यान यह भी रखना होगा और यह आत्मावलोकन करना होगा कि जिस संस्कृति, जिस धर्म, जिस दर्शन, जिस संसार, जिस विरासत के कारण भारत का विश्वभर में अनन्य स्थान है उसको लेकर हमारी  क्या धारणा है? क्या हम विश्व भर में सनातन धर्म की झंकृति व संकेतों को अभी भी समझ नहीं पा रहे हैं? यदि किसी भी प्रकार का ग्लानिबोध है तो उसको समाप्त करिए और अपनी भारतीय संस्कृति की ओर उन्मुख होकर स्वामी विवेकानन्द के शब्दानुसार ही – कट्टर सनातनी हिन्दू बनिए। यदि भारत अपने मूल को नहीं पहचानेगा तो समूचा विश्व जिस कारण से आपको यह अपार स्नेह दे रहा है क्या वह दीर्घकाल तक संभव होगा? यदि भारत नहीं जगेगा अपनी संस्कृति की ओर उन्मुख नहीं होगा तो कहीं ऐसा न हो कि भारतीय धर्म-दर्शन के लिए हमें पाश्चात्य देशों की ओर ही रुख करना पड़े,हालाँकि ऐसा कभी संभव नहीं होगा। साथ ही साथ महर्षि अरविन्द की भविष्यवाणी यानि इक्कीसवीं सदी भारत की है यह हमें ध्यान रखना है। और यह भविष्यवाणी तभी फलित होगी और सत्य बनकर सभी के समक्ष होगी जब भारत अपने ‘स्व’ को पहचानकर अग्रसर होगा।
 अपने स्वत्व को पहचानिए,गर्वोन्नत होकर अपने मेरूदण्ड को सीधा करिए, सगर्व अपने हिन्दू होने की घोषणा करिए। और महान पुरखों की परम्परा से प्राप्त मेधा व विरासत को सँजोइए,संरक्षण  व सम्वर्द्धन करते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए वह करके जाइए जिसकी हमारे महान पुरखों ने कल्पना की थी। 
भारत का मूल धर्म व अध्यात्म है जिसकी साधना करनी होगी और निरन्तर अथक भारतीय समाज की विकृतियों को दूर करते हुए आगे बढ़ते रहना होगा। अन्तिम में स्वामी विवेकानन्द का यह आह्वान जो अभी तक पूर्ण नहीं हुआ किन्तु जिसको पूर्ण करने का दायित्व वर्तमान पीढ़ी पर है उसके साथ अपनी बातों को यहाँ अल्पविराम देता हूँ- ” क्या तुम जनता की उन्नति कर सकते हो?उनकी स्वाभाविक वृत्ति को बनाए रखकर ,क्या तुम उनका खोया हुआ व्यक्तित्व लौटा सकते हो? क्या समता,स्वतन्त्रता,कार्य- कौशल तथा पौरुष में तुम पाश्चात्यों के गुरु बन सकते हो ? क्या तुम उसी के साथ -साथ स्वाभाविक आध्यात्मिक प्रेरणा तथा अध्यात्म -साधनाओं में एक कट्टर सनातनी हिन्दू हो सकते हो ? यह काम करना है और हम  इसे करेंगे ही। “

“सर”- वर्ग विभाजन के साये में पनपी एक खूबसूरत प्रेम कहानी

जावेद अनीस

वर्ग विभाजन के विषय पर आधारित फ़िल्में हमेशा से ही भारतीय सिनेमा का एक प्रमुख आकर्षण रही हैं जिसमें एक अमीर और एक गरीब का प्रेमी जोड़ा अपने वर्गीय दायरे को पीछे छोड़ते हुए प्यार में पड़ जाता है. देवदास, बॉबी, मैंने प्यार किया और राजा हिंदुस्तानी जैसी हिंदी फिल्मों का एक लंबा सिलसिला है जो इसी सिनेमाई फार्मूले पर आधारित रही हैं. लेकिन रोहेना गेरा की फिल्म क्या प्यार काफी है?“सर” इन सबसे अलग है जो इस विषय को बहुत ही यथार्थवादी तरीके से गहराई और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है. “सर” वर्ग विभाजन के साए में एक नाजुक प्रेम कहानी को पेश करती है जिसे बिना किसी बनावटीपन के बहुत संजीदगी के साथ डील किया गया है. स्वाभाविकता इसकी सबसे बड़ी खासियत है जो इसे सरलीकरण और अतिरेकत दोनों से बचाती है. अभी तक कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्डों से नवाजी जा चुकी है. इस फिल्म का साल 2018 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुआ था,दो साल बाद नवम्बर 2020 में इसे कोविड के साए में भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज किया गया, इसके एक महीने बाद इसे नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया.

फिल्म की कहानी बहुत सीधी और सरल है. कहानी के केंद्र में रत्ना (तिलोत्तमा शोम) नाम की एक घरेलू नौकरानी है जो मूलतः महाराष्ट्र के किसी गांव से है, उसकी कम उम्र में शादी हो गयी थी लेकिन दो साल बाद पति के मौत से वो विधवा हो जाती है और काम के तलाश में मुम्बई आ जाती है. कहानी के दूसरे छोर पर अश्विन (विवेक गोम्बर) है जो अमीर है और पेशे से आर्किटेक्ट है, लेकिन वह मूल रूप से एक लेखक है, अश्विन कुछ साल पहले अमरीका से पढ़ाई करके लौटा है.

तमाम विभिन्नताओं के बावजूद इन दोनों किरदारों में कुछ समानताएं भी हैं जो इस कहानी के बनने का कारण भी. जैसे भावनात्मक रूप से अश्विन का हाल भी कुछ रत्ना जैसी ही है. हाल ही में उसकी अपनी प्रेमिका के साथ मंगनी टूट गयी है क्योंकि उसका किसी और लड़के के साथ अफेयर हो जाता है. इसकी वजह से रत्ना की तरह उसके भी जीवन में एक खालीपन का दौर चल रहा है. इसी प्रकार से दोनों का एक ख़ास सपना रहा है, रत्ना का ख्वाब एक फैशन डिजाइनर बनने का था जो जल्दी शादी और वर्गीय सीमाओं के चलते पूरा नहीं हो सका है. अश्विनी को भी अपने भाई के बीमार होने की वजह से न्यूयार्क से वापस आकर अपने बिल्डर परिवार के काम में लगाना पड़ता है जबकि वो एक लेखक बनना चाहता है और इसके लिए अपना अधूरा उपन्यास पूरा करना चाहता है.

रत्ना अश्विन के अपार्टमेंट में रहते हुए मेड (घरेलू नौकरानी) के तौर पर फुल टाईम काम करती है, अश्विन की गर्लफ्रेंड के चले जाने के बाद अब इस घर में यहीं दोनों अकेले हैं. इसी माहौल में समानांतर लेकिन पूरी तरह से अलग जीवन जीने वाले ये दोनों लोग एक-दूसरे में रुचि लेने लगते हैं और फिर धीरे-धीरे उन दोनों के बीच असंभव-सा लगने वाला आकर्षण बढ़ने लगता है. इन दोनों के बीच का यह आकर्षण स्वभाविक मानवीय संबंधों के आधार पर परवान चढ़ता है और कहानी एक अनोखे भोलेपन और मिठास के साथ आगे बढ़ती है. 

फिल्म का मूल विषय प्यार है, लेकिन दो विभिन्न वर्गीय पृष्ठभूमि से आये लोगों के बीच का प्यार इसे  सामाजिक रूप से एक वर्जित प्रेम कहानी बनाती है. भारत में प्यार करना एक मुश्किल काम है, अपने दायरे से बाहर जाकर प्यार करना तो खतरनाक भी साबित हो सकता है. धर्म, जाति और वर्गीय दीवारों ने प्यार और शादी की एक हद तय कर रखी है जिससे बाहर निकलना एक जोखिम भरा काम है.

हमारे मुल्क में घरेलू कामगारों की स्थिति वर्गीय विभाजन को समझने का एक आईना है. सदियों से चली आ रही मान्यता के तहत यहां आज भी घरेलू काम करने वालों को नौकर, नौकरानी का दर्जा दिया जाता है. ज्यादातर घरेलू कामगार वंचित समुदायों और निम्न आय वर्ग समूहों से आते हैं, इनमें से अधिकतर पलायन कर रोजगार की तलाश में शहर आते हैं. उन्हें अपने काम का वाजिब मेहनताना नहीं मिलता है और सब कुछ नियोक्ताओं पर निर्भर होता है जो की अधिकार का नहीं मनमर्जी का मामला होता है. घरेलू कामगारों को कार्यस्थल पर गलत व्यवहार, शारीरिक व यौन-शोषण, र्दुव्यवहार, भेदभाव एवं छुआछूत का शिकार होना पड़ता है. आम तौर पर नियोक्ताओं का व्यवहार इनके प्रति नकारात्मक होता है. इस पृष्ठभूमि में क्या रत्ना और अश्विन के लिए इन सब से पार पाना, एक दूसरे से प्रेम करना और “अपने नियमों के अनुसार जीना” संभव है? अगर इन दोनों के बीच प्यार पनप भी जाता है तो क्या बाकी का समाज इसे स्वीकार करने के लिये तैयार हैं?

निर्देशक रोहेना गेरा इस फिल्म के जरिये अमीर-गरीब के बीच प्रेम को लेकर बनाई गयी हिंदी फिल्मों की अवधारणा का खंडन करती है बल्कि उसके स्थान पर एक नयी अवधारणा को पेश भी करती हैं जहाँ प्यार का मतलब साझा स्वीकृति और एक दूसरे के व्यक्तिगत आकांक्षाओं का सम्मान है. फिल्म प्यार के कारण अमीर-गरीब होने के अंतर को जबरिया पाटने की कोशिश नहीं करती है बल्कि यहां प्यार का मतलब दूसरे व्यक्ति की खोज के साथ खुद की खोज भी है.

अलग वर्गीय पृष्ठभूमि और मालिक-मेड (घरेलू नौकरानी) का रिश्ता होने के बावजूद दोनों के बीच पारस्परिक सम्मान का रिश्ता है. हमारी अधिकतर फिल्मों में महिलाओं को अक्सर कमजोर, सेक्स के रूप में चित्रित किया जाता है लेकिन “सर” की नायिका रत्ना कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से होने के बावजूद एक मजबूत किरदार है. अपने निजी जीवन में नायक अश्विन के मुकाबले अधिक मजबूत और परिपक्व है. अश्विन भी एक व्यक्ति के तौर पर रत्ना और उसके श्रम का सम्मान करता है,उससे कभी बदतमीजी नहीं करता और हर काम के बात उसे शुक्रिया जरूर कहता है. जब अश्विन के पिता को उन दोनों के रिश्ते के बारे में पता चलता है तो अश्विन के पिता का पहला सवाल होता है कि क्या वो अपनी नौकरानी के साथ सो रहा है, इसपर अश्विन का जवाब होता है कि “नहीं, लेकिन मुझे उससे प्यार हो गया है.” जाहिर है उनके प्रेम में एक स्थायित्वपन जो शारीरिक आकर्षण से कही अधिक है और यही वो भाव है जो उन्हें एक दूसरे को वर्गीय दीवार को मिटा कर एक इंसान के तौर पर देखने का मौका देता है.

यह फिल्म सिनेमा के असली ताकत का एहसास कराती है, फिल्म में संवादहीन दृश्यों और मौन का बहुत खूबसूरती से उपयोग किया गया है, फिल्म संवादों से अधिक दृश्यों और भावों से कहानी को व्यक्त करती है. “सर” उन चुनिन्दा फिल्मों में से एक है जिसे देखने के बाद आप पर लम्बे समय तक इसका असर बरकरार रहता है साथ ही यह एक ऐसी फिल्म है जिसे पूरी तरह से समझने और सराहना करने के लिए एक से अधिक बार देखना जरूरी है.

“सर” में तिलोत्तमा शोम, विवेक गोम्बर, गीतांजलि कुलकर्णी जैसे उम्दा कलाकारों ने काम किया है. तिलोत्तमा शोम जिन्हें हम 2001 में आई मीरा नायर की फिल्म ‘द मॉनसून वेडिंग’ में देख चुके हैं यहां अपने अभिनय के चरम पर दिखाई देती हैं. इसी प्रकार से विवेक गोम्बर ने अश्विन के किरदार को सादगी भरे जादूगरी से निभाया है. विवेक को इससे पहले हम चर्चित मराठी फिल्म ‘कोर्ट’ में वकील के किरादर में देख चुके हैं.

निर्देशक रोहेना गेरा ने इस फिल्म के माध्यम से हमारे सामने अपने असीमित सिनेमाई संभावनाओं के साथ पेश होती हैं. उनकी शरुआत 2003 में “जस्सी जैसी कोई नहीं” सीरियल के पटकथा लेखक के तौर पर हुयी थी. साल 2014 में वे “व्हाट्स लव गॉट टू विद इट” नाम की चर्चित  डॉक्यूमेंट्री बना चुकी है.  जो पारंपरिक अरेंज मैरिज में प्यार की तलाश थी.

उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों की विश्वसनीयता बढ़ाना है SBTi के नए नेट जीरो मानक का उद्देश्य

तमाम देश और कंपनियां सफल जलवायु कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण नेट जीरो लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं। ख़ास तौर से इसलिए क्योंकि पेरिस समझौते की वार्ताओं के आसपास अनिश्चितता अब भी बनी हुई है। इन लक्ष्यों को प्रमाणित करने के लिए कोई स्वतंत्र निकाय नहीं होने के कारण, एक “अच्छा नेट जीरो” वास्तव में कैसा दिखता है, और नेट जीरो प्रतिबद्धताओं के भीतर ऑफसेट करने की भूमिका के बारे में भयंकर विवाद रहा है। साइंस बेस्ड टारगेट्स इनिशिएटिव (SBTi) अपनी विज्ञान-आधारित नेट ज़ीरो स्टैंडर्ड के लॉन्च के साथ इसे बदलना चाह रही है। उम्मीद है कि यह एक बहुत ही गलत तरह से समझे जाने वाले शब्द, नेट जीरो, का उपयोग करके रणनीतियों के वैश्विक मानकीकरण की दिशा में पहला कदम है।

नेट ज़ीरो कॉर्पोरेट और वित्तीय स्थिरता की चर्चा में उपयोग किए जाने वाले शब्दों की एक लंबी लाइन में नवीनतम शब्द है, जिसने ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री पर आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट के बाद से लोकप्रियता में तेजी लाई है। पिछले कुछ दशकों में कॉर्पोरेट स्थिरता स्पष्ट रूप से काफी विकसित हुई है – यह गैर-वित्तीय प्रदर्शन और संचालन पर प्रभाव में शुरू हुई और लागतों का प्रबंधन करने, संक्रमण जोखिम, संचालित करने के लिए लाइसेंस, सभी कार्यों में स्थिरता को शामिल करने के महत्व की समझ में विकसित हुई है। आर्थिक और शासन कारक और निश्चित रूप से, प्रतिस्पर्धियों पर रणनीतिक लाभ प्राप्त करना।

अब हम जो देख रहे हैं, वह इस तरह के दृष्टिकोणों का अधिक मजबूत, तुलनीय और पारदर्शी दृष्टिकोणों में विकास है। नवीनतम शोध के अनुसार, देशों द्वारा नेट जीरो  लक्ष्यों का उठाव, जिसमें अब तक 131 देश शामिल हैं, जो वैश्विक उत्सर्जन के 72% को कवर करते हैं, अगर पूरी तरह से लागू हो जाते हैं, तो 2100 तक 0.8-0.9 डिग्री के बीच वार्मिंग को कम कर सकते हैं। नेचर में प्रकाशित एक पेपर क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर और यूएन एमिशन गैप रिपोर्ट द्वारा किए गए आकलनों की समीक्षा की और पेरिस समझौते के लिए प्रस्तुत वर्तमान नीतियों या प्रतिज्ञाओं में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया।

यह जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई के अंतिम लक्ष्य के रूप में, एक अवधारणा के रूप में नेट जीरो  के महत्व पर प्रकाश डालता है। साथ ही, यह समय, लक्ष्य और प्रदर्शन के संदर्भ में प्रभावी जलवायु कार्रवाई को समझने में आने वाली चुनौतियों पर भी प्रकाश डालता है। नीति, वित्त और स्थिरता की दुनिया के इर्द-गिर्द बंधी शर्तों की सीमाएँ और परिभाषाएँ कंपनियों के लिए, निवेशकों के लिए (संस्थागत और खुदरा दोनों) और यहाँ तक कि सरकारों के लिए भी भ्रम पैदा करती हैं।

जबकि उम्मीदें अधिक हैं कि COP26 पेरिस समझौते को आगे बढ़ाने के लिए ठोस कार्रवाई करेगा, अंतरराष्ट्रीय वार्ता अब शहर में एकमात्र खेल नहीं है। यह माना जाता है कि दीर्घकालिक सफलता के लिए कॉर्पोरेट कार्रवाई महत्वपूर्ण होने जा रही है। प्रतिबद्धताओं का पालन करने का नवीनतम तरीका नेट ज़ीरो ट्रैकर है, जिसमें 134 देशों, 110 क्षेत्रों, 616 कंपनियों को शामिल किया गया है। यह उस प्रतिज्ञा के प्रमुख घटकों के गठन के संदर्भ में सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध 2000 की सबसे बड़ी कंपनियों का एक सिंहावलोकन भी प्रदान करता है। लेकिन इससे कंपनियों को यह समझने में मदद नहीं मिलती है कि नेट जीरो  रणनीति कैसे विकसित की जाए, अकेले ही इसमें क्या शामिल होना चाहिए।

इस संदर्भ में, निगम तेजी से सार्वजनिक बाजारों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। कई लोगों ने प्राकृतिक पूंजी, सामग्री और संसाधनों, स्वच्छ पानी और स्वस्थ आबादी पर अपनी निर्भरता को मान्यता दी है, शुद्ध शून्य और एक स्थायी भविष्य प्राप्त करने के लिए रणनीति बना रहे हैं। लेकिन अलग-अलग लक्ष्यों का क्या मतलब है? कुछ व्यवसाय दीर्घकालिक परिवर्तनकारी रणनीतियों को लागू कर रहे हैं, जबकि अन्य हमेशा की तरह व्यापार की उम्मीद कर रहे हैं, ऑफसेटिंग या कार्बन अकाउंटिंग ट्रिक्स की भूमिका पर निर्भर हैं।

केंद्रीय प्रश्न यह है कि हम उन कंपनियों के लक्ष्यों की तुलना कैसे करें जो अलग-अलग तरीकों से शुद्ध शून्य लक्ष्य की बात करती हैं? अमेज़ॅन जैसी कंपनी का 2040 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य निर्धारित करने वाले Microsoft के 2030 तक कार्बन नकारात्मक होने का लक्ष्य निर्धारित करने का क्या प्रभाव है? ‘बेहतर’ क्या है, क्यों और किन हितधारकों के लिए?

SBTi ने शुद्ध शून्य लक्ष्यों को अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप उत्सर्जन में कमी लाने के लिए विभिन्न शुद्ध शून्य दृष्टिकोणों का आकलन और सत्यापन करने के लिए अपना मानक लॉन्च किया है। मानक लंबी अवधि के 2050 लक्ष्यों और पेरिस समझौते के लक्ष्यों के खिलाफ पूर्ण कार्बन न्यूट्रलाइजेशन योजनाओं का पहला प्रमाणीकरण है। इसका विचार नेट-जीरो टारगेट सेटिंग के मौजूदा ‘वाइल्ड वेस्ट’ नेटवर्क को संबोधित करना है और कंपनियों को जलवायु विज्ञान के साथ संरेखित दीर्घकालिक शुद्ध शून्य लक्ष्य निर्धारित करने का अवसर प्रदान करना है। अब तक दुनिया भर में सात कंपनियों ने अपने लक्ष्यों को SBTi द्वारा सत्यापित किया है, जिनमें AstraZeneca, rsted, Wipro और CVS Health शामिल हैं।

इसका मतलब यह है कि पहली बार, SBTi ने विज्ञान-आधारित शुद्ध-शून्य लक्ष्य के भीतर वास्तविक डीकार्बोनाइजेशन और कार्बन ऑफ़सेट के स्वीकार्य स्तर को स्पष्ट किया है। यह स्वीकार किया जाता है कि कंपनियों को अपनी मूल्य श्रृंखलाओं से परे जलवायु शमन में शुद्ध शून्य की ओर निवेश करना चाहिए, लेकिन यह विज्ञान के अनुरूप गहरे उत्सर्जन में कटौती के बजाय, इसके अतिरिक्त होना चाहिए। नए मानक के तहत, कंपनियों को 2050 तक उत्सर्जन में कम से कम 90% की कमी करनी चाहिए। तभी वे उत्सर्जन को बेअसर करने के लिए ऑफसेट की ओर रुख कर सकते हैं, जिसमें कटौती नहीं की जा सकती है – क्षेत्र के आधार पर 5-10% की सीमा के साथ।

डिकार्बोनाइजेशन के रास्ते पर सेक्टरों के बीच अलग-अलग चुनौतियों और पूंजी परिनियोजन के बारे में निवेश निर्णयों के लिए प्रासंगिक विविध समय-सीमा के कारण क्षेत्रीय भेदभाव मायने रखता है। उदाहरण के लिए, जो लोग अब स्टील और सीमेंट संयंत्रों में निवेश कर रहे हैं, वे दशकों से उन संपत्तियों का उपयोग करने का इरादा कर सकते हैं – जो मध्यम और दीर्घकालिक पेरिस लक्ष्यों के अनुरूप नहीं होंगे। SBTi के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक अल्बर्टो कैरिलो पिनेडा ने कहा, “हम रणनीतिक योजना प्रथाओं के आधार पर विभिन्न रणनीतियों के साथ दीर्घकालिक और अल्पकालिक लक्ष्यों का मिश्रण देखने की उम्मीद करते हैं।”

नए मानक के तहत लक्ष्यों की हर पांच साल में समीक्षा की जाएगी, बड़े हिस्से में क्योंकि पांच साल की अवधि में कंपनियों, प्रासंगिक मानदंडों और अंतर्निहित परिदृश्यों में बदलाव की संभावना होगी जो आवश्यक कार्यों को सूचित करते हैं। हमने देखा है कि तकनीक कितनी तेजी से विकसित होती है और जो संभव है, और नहीं, उसमें एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है।

कंपनियों को यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता होगी कि उनके लक्ष्य विश्वसनीय हैं, स्वतंत्र तृतीय पक्षों द्वारा मूल्यांकन किया गया है, और यह कि वे उत्सर्जन के प्रकटीकरण और उन्हें कम करने पर प्रगति दोनों के लिए प्रतिबद्ध होंगे। Carrillo Pineda कहते हैं, “पहली बार, SBTi नेट-ज़ीरो स्टैंडर्ड उपभोक्ताओं, निवेशकों और नियामकों को प्रदर्शित करने के लिए कंपनियों को मजबूत प्रमाणन प्रदान करता है कि उनके शुद्ध-शून्य लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 ° तक बनाए रखने के लिए आवश्यक गति और पैमाने पर उत्सर्जन को कम कर रहे हैं। सी।”

SBTi निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन के लिए मानकों को निर्धारित करने के लिए और अधिक स्पष्ट नियमों के साथ क्या और कैसे रिपोर्ट करना है, पर अधिक बारीकी से काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रकृति और जलवायु परिवर्तन के बीच अंतर्संबंधों पर भी काम हो रहा है। कैरिलो पिनेडा का कहना है कि एसबीटीआई उन उत्सर्जन को अपने लक्ष्य में शामिल करने के लिए भूमि उपयोग की तीव्रता (जैसे वानिकी, कृषि और भोजन) वाली कंपनियों से स्पष्ट मांग कर रही है।

कई कंपनियों के लिए कठिनाई योजना और कार्यान्वयन दोनों में उत्सर्जन में कमी के पीछे की रणनीतिक प्रक्रिया है। एक आपूर्ति श्रृंखला को डीकार्बोनाइज़ करना मुश्किल हो जाता है यदि यह किसी उत्पाद को प्रतिस्पर्धियों की तुलना में अधिक महंगा बनाता है लेकिन यदि सभी रिपोर्टिंग ढांचे को गठबंधन किया जाता है तो इसे अधिक सहयोगात्मक रूप से किया जा सकता है। कैरिलो पिनेडा कहते हैं, “आखिरकार हमें जो चाहिए वह है जलवायु क्रिया पारिस्थितिकी तंत्र में अभिसरण। विभिन्न ढांचे अलग-अलग लक्ष्यों की पूर्ति करते हैं: प्रबंधन जोखिम की पहचान करना, संक्रमण का प्रबंधन करना, निवेशकों को जुटाना, वित्तीय संस्थानों में बदलाव लाना। लेकिन जब हमारा संरेखण बढ़ रहा है तो पर्याप्त एकीकरण नहीं है।” इस तरह के एकीकरण को प्राप्त करने का एक तरीका यह सुनिश्चित करना है कि लक्ष्य और उन तक पहुंचने की रणनीति विज्ञान के अनुरूप हों।

इसलिए, कैरिलो पिनेडा कहती हैं, “अब हम सभी कंपनियों को शुद्ध-शून्य लक्ष्य और महत्वाकांक्षाओं के साथ आमंत्रित कर रहे हैं ताकि हितधारकों को दिखाया जा सके कि उनका डीकार्बोनाइजेशन मार्ग विज्ञान के साथ संरेखित है। और बाकी व्यापार क्षेत्र – हम आपसे रेस टू जीरो में शामिल होने का आह्वान करते हैं।”