अवनीश सिंह भदौरिया
आज वायु प्रदूषण से देश के हालात चिंताजनक, डऱाने वाले हैं। भारत आज प्रदूषण का एक मंडल बनता जा रहा है। आज तेजी प्रदूषण काली आंधी की तरह तबाही मचा रहा है और इस काली आंधी से जन जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है। इस प्रदूषण के काले अंधकार को रोकने के सभी प्रयास विफल होते जा रहे हैं। और इसका मूल भूत कारण सरकार का लचीला पन भी है। बढ़ते प्रदूषण से केवल जीवन ही नहीं ब्लकि इस संंसार की समस्त पदार्थ व जीव जन्तुओं और नदियों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है और जिससे आज हमारी जान पर आ बनी है। बढ़ते प्रदूषण में अहम रोल प्लास्टिक का भी है जो जान को लेने का काम करती है। प्लास्टिक कैरी बैग्स ना सिर्फ जानवरों व मानव जीवन के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहद हानिकारक व खतरनाक है। राज्य सरकार ने करीब छह साल पहले प्रदेश में प्लास्टिक कैरी बैग्स को प्रतिबंधित किया था, इसके बावजूद खुले आम इसका चलन बदस्तूर जारी है। जिम्मेदार सरकारी एजेंसियां भी महज औपचारिकता के लिए इसके खिलाफ कार्रवाई करती है और खानापूर्ति कर अपना रिकॉर्ड मैन्टेन रखती है। जिसके चलते प्रदेश में प्लास्टिक पर प्रभावी रुप से बैन का असर नहीं दिखाई दे रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है पॉलीथिन का उपयोग करने पर पकड़े जाने व्यक्ति को पांच साल की सजा एवं एक लाख रुपए का जुर्माने का प्रावधान है इसके बावजूद इस तरह की कोई कार्रवाई सामने नहीं आई।
छह साल पहले आदेश: राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर एक अगस्त 2010 से राज्य में प्लास्टिक कैरी बैग्स को प्रतिबंधित किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में आयोजित पर्यावरण संरक्षण संबंधी उच्च स्तरीय बैठक में फैसला लिया गया था।
प्लास्टिक का प्रभाव: प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकठ्ठाा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है। जिससे वन्य जन्तुओं और मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दिखने में छोटी हल्की व खूबसूरत प्लास्टिक कैरी बैग्स मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा माने जाते है। इसके बढ़ते प्रयोग व निष्पादन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने से यह पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है। विशेषज्ञों की माने तो खेत खलिहानों में लगे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में भी कैरी बैग्स बाधा उत्पन्न करते है। जबकि कई बार चरने के क्रम में पशु इनको निगल लेते है, जिससे उनकी असामयिक मौत हो जाती है। प्रतिवर्ष सैकड़ों पक्षियों की मौत भी प्लास्टिक प्रदूषण से हो जाती है।
केन्द्र ने की थी पहल: प्लास्टिक बैगों से जानवरों की मौत और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को गहरी चिंता का विषय बताते हुए केंद्र सरकार ने 40 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक बैग का उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाईयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। सरकार का मानना है कि प्लास्टिक की चालीस माइक्रोन से नीचे की थैलियां स्वाभाविक रुप से सड़ गलकर (बायोडिग्रेडेबल) नहीं होती है बल्कि वे पर्यावरण में यथावत बनी रहती है। वायु प्रदूषण का हमारी जिंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहा है। ताजा खुलासा तो और भी चौंकाने वाला है कि इससे हमारी जिंदगी के छह साल भी कम हो रहे हैं। दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है और पूरे देश में होने वाली कुल मौतों का यह पांचवां बड़ा कारक है। अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली में जिंदगी के औसतन 6.3 साल कम हो जाते हैं।
दिल्ली में प्रदूषण चिंताजनक स्थिति तक पहुंच चुका है, लेकिन पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (आईआईटीएम) के खुलासे ने कई और राज्यों में प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर रोशनी डाली है। इनमें उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र भी शामिल है। बढ़ते प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें यूपी में प्रदूषण से होती हैं आईआईटीएम के अध्ययन में जहां प्रदूषण के चलते दिल्ली के हालात चिंताजनक हैं वहीं, इससे सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में होती है। इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान आता है। यह अध्ययन आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने नेशनल सेंटर फॉर एटमोस्फोरिक रिसर्च (एनसीएआर) के सहयोग से किया है। अध्ययन में खुलासा हुआ है कि लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से दिल्ली बदतर स्थिति में है। हालांकि, यह अध्ययन 2011 की जनगणना के आधार पर है। अध्ययन के मुताबिक, प्रदूषण के चलते असमय मौतों को सिलसिला बढ़ा है। 3.4 साल कम हो रही है भारतीयों की जिंदगी: पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (आईआईटीएम) की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण से एकआम भारतीय की जिंदगी के औसत 3.4 साल कम हो रहे हैं।
दिल्ली में घट जाते हैं जिंदगी के औसतन 6.3 साल : वहीं देश के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में शुुमार दिल्ली के बाशिंदों को इसकी कहीं ज्यादा बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण से उनकी जिंदगी के औसतन 6.3 साल घट जाते हैं। बताया गया है कि जिस तरह से हवा जहरीली होती जा रही है, आने वाला वक्त और भी चिंताजनक होगा।
आईआईटीएम के मुताबिक, भले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट में दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर नहीं रहा है, लेकिन वायु प्रदूषण से जीवन पर पडऩे वाला असर राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती आबादी और शहरीकरण के साथ परिवहन, ऊर्जा का उपभोग बढऩे का सीधा प्रभाव पीएम2.5 और ओजोन स्तर पर देखने को मिलेगा। इससे फेफड़ों में आसानी से प्रवेश करने वाले सूक्ष्म प्रदूषणकारी कणों का स्तर और बढ़ेगा।
हृदयरोग से ज्यादा मौतें: अध्ययन में कहा गया है कि प्रदूषण के कारण असमय मौतों के मामले में सबसे ज्यादा ढाई लाख लोग हृदय रोग की चपेट में आए। जबकि प्रदूषण के कारण पक्षाघात से 1.9 लाख लोगों ने जान गंवाई।
दिल्ली के अलावा इन प्रदेशों में भी स्थिति खतरनाक: विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में दुनिया के सबसे प्रदूशित शहरों में दिल्ली का स्थान 11वां है। वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार में भी खतरा कम नहीं है। पश्चिम बंगाल में प्रदूषित हवा से आम इंसान की जिंदगी करीब 6.1 साल कम हो रही है, वहीं बिहार के लिए यह आंकड़ा 5.7 साल है।2011 की जनगणना के अनुसार, जहरीले कणों वाली हवा के सेवन से देश में हर साल 5.7 लाख लोगों की मौत हो रही है। वहीं 31,000 लोगों की मौत ग्राउंड लेवर ओजोन के सेवन से हुई है। आईआईटीएम के मुख्य अनुसंधानकर्ता सचिन घुडे के मुताबिक, बीते दो दशक में देश में औद्योगिकीकरण और ट्रैफिक बहुत बढ़ा है। इसका साफ असर लोगों की जिंदगी पर नजर आ रहा है।
दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन हमें मौसम की स्थितियों में आ रहे तेज और अतिवादी बदलाव और उसकी सघनता की ओर ले जा रहा है।
रिपोर्ट में पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच के संपर्क की पड़ताल की गई है और कहा गया है कि पर्यावरण कारकों के चलते बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां देश भर में लोगों को पेश आ रही हैं।
रिपोर्ट में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के अलावा घरों के भीतर अंगीठी के कारण होने वाले प्रदूषण और इसके जैसे अन्य मुद्दों की भी पड़ताल की गई है। रिपोर्ट के अनुसार नियंत्रण से बाहर हो चुके वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की दर पूरे विश्व में बढ़ी है और पिछले दशक में यह 300 फीसद तक बढ़ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वर्ष 2000 के 8 लाख से यह 2012 में 32 लाख हो गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2014 के रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा प्रदूषित दिल्ली में वायु प्रदूषण से हर साल 10,000 से 30,000 तक मौतें हो रही हैं।’ इस प्रकरण में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने सम-विषम योजना भी चलाई थी लेकिन प्रदूषण तूफान के आगे फीकी पड़ गई। सरकार को इस प्रकरण के बारे में जोर देना चाहिए और विचार विर्मश करके इस प्रदूषण के मुद्दे पर जल्द से जल्द हल निकालना चाहिए वरना देश लोगों की बढ़ते मौत का कारण यह भी होगा। आसा है कि जल्द दी इस मुद्दे पर कार्रवाई होगी।