“फलित ज्योतिष वेदज्ञान के अनुकूल न होने से मान्य नहीं है”

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-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

ऋषि दयानन्द सरस्वती ने आर्य हिन्दुओं के पतन के कारणों में मूर्तिपूजा एवं फलित ज्योतिष को प्रमुख कारण
स्वीकार किया है। उनके अनुसार यह दोनों विचार व इन पर विश्वास
अवैदिक होने से इनसे मनुष्यों को कोई लाभ नहीं होता अपितु हानि ही हानि
होती है। इसका प्रमाण भारत पर मुस्लिम आक्रमणों व अंग्रेजों के राज्य में
हमारे राजाओं की पराजय सहित सोमनाथ, कृष्ण जन्म भूमि, राम जन्म
भूमि, काशी-विश्वनाथ मन्दिर के ध्वंस व लूट आदि को माना जा सकता है।
यदि हमारे धर्म में यह विजातीय विचार व मान्यतायें न होती तो हमने विगत
1300 वर्षों में जो अपमान व पराजय के दुःख झेले हैं, वह कदापि न हुए होते।
इसे बात को यदि एक वाक्य में कहा जाये तो हमारे सभी दुःखों का कारण
वेदमत का त्याग और अज्ञान व अन्धविश्वासों से युक्त अवैदिक मतों व मान्यताओं को मानना था। यदि आज भी हम सब
सनातन धर्मी वैदिक धर्मी लोग पुराणों की मान्यताओं का त्याग कर ईश्वरीय ज्ञान वेद व उसकी मान्यताओं को स्वीकार कर
संगठित हो जायें, तो संसार की कोई ताकत हमें पराजित नहीं कर सकती। शायद इसीलिये ऋषि दयानन्द ने वेदों की
मान्यताओं के आधार पर आर्यसमाज का चौथा नियम बनाया है जिसमें उन्होंने कहा है कि सत्य के ग्रहण करने और असत्य
का त्याग करने में सदा उद्यत रहना चाहिये। तीसरा नियम है कि वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना
और सुनना-सुनाना सब आर्यों हिन्दुओं सहित अन्य सभी मतावम्बियों का भी परम धर्म है। एक प्रमुख नियम यह भी है कि
अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये। हम समझते हैं कि यदि सनातन धर्म के सभी अनुयायियों ने ऋषि
दयानन्द के इन महान सन्देशों को आत्मसात् किया होता तो आज विश्व में हमारी स्थिति कहीं अधिक सुदृण होती और देश के
स्वतन्त्रता आन्दोलन व उसके बाद जो गलतियां हमारे कुछ नेताओं से हुई हैं, वह न हुईं होती।
फलित ज्योतिष हमारे सौर्य मण्डल के ग्रहों की स्थिति व गतियों को हमारे भाग्य व सुख-दुःखों से जोड़ता है। हमारी
सफलताओं और असफलताओं को पुरुषार्थ व आलस्य का परिणाम न मानकर उसे ग्रह योग के अनुसार मानता है। आर्यसमाज
समाज की मान्यता है कि खगोल ज्योतिष का ज्ञान तो सत्य है परन्तु फलित ज्योतिष व उसके सिद्धान्त मिथ्या हैं। मनुष्य
के भाग्य से हमारे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र व शनि आदि ग्रहों का कोई सम्बन्ध नहीं है। आर्यसमाज की मान्यता
के अनुसार यह सभी ग्रह जड़ व ज्ञानशून्य हैं। यह ग्रह किसी भी प्रकार के ज्ञान एवं सम्वेदना से रहित हैं। हमें किसी वस्तु से
सुख व दुःख तभी प्राप्त हो सकता है जब कि वह चेतन पदार्थ अर्थात् मनुष्य या पशु आदि प्राणी हों। ज्ञान होने के साथ हमें सुख
व दुःख पहुंचाने वाली सत्ता में विवेक एवं शक्ति भी होनी चाहिये। जड़ व निर्जीव होने के कारण किसी भी ग्रह में न कुछ ज्ञान है
न हमें सुख व दुःख देने की शक्ति। सूर्य के प्रकाश व ताप से संसार के सभी लोगों को समान रूप से लाभ व हानि होती है। सभी
व्यक्तियों के प्रति सूर्य का व्यवहार अलग अलग नहीं हो सकता। इसी प्रकार से शनि व अन्य ग्रहों के बारे में भी जाना व माना
जा सकता है।
आर्यसमाज वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानता है और इसे प्रमाणित भी करता है। वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक हैं।
यदि फलित ज्योतिष का ज्ञान सत्य होता तो इसका उल्लेख वेदों में अवश्य होता। वेदों में उल्लेख न होने के कारण भी फलित
ज्योतिष का ज्ञान वेदों के विपरीत सिद्ध होता है। सत्य और असत्य का विचार करने पर भी फलित ज्योतिष का ज्ञान अविद्या
ही सिद्ध होता है। हमने अनेक ज्योतिषियों की फलित ज्योतिष के आधार पर भविष्यवाणियों को निरर्थक व असत्य पाया है।
पाकिस्तान भारत में आतंकवादी भेज कर अशान्ति उत्पन्न करने सहित निर्दोष लोगों की हत्या करता रहता है। कोई ज्योतिषी

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यह नहीं बताता कि आगामी आतंकी हमारा किस स्थान पर कब होगा और उस हमले के शिकार हमारे सेना के कौन कौन से
अधिकारी व जवान होंगे? हमारे एक मित्र उच्च कोटि के ज्यातिषाचार्य थे। अनेक ज्योतिषी उनसे परामर्श भी लिया करते थे।
एक बार उनकी पत्नी का एक दुर्घटना में हाथ टूट गया। हम उनके घर शिष्टाचार के लिये गये और पति-पत्नी से मिले। बातें
करते हुए हमारे मित्र की पत्नी ने कहा कि मेरे पति नगर के अनेक लोगों का भाग्य बताते हैं परन्तु इन्होंने कभी मुझे यह नहीं
बताया कि मेरी दुर्घटना हो सकती है और मेरा हाथ टूट सकता है। हमने यह भी पाया कि हमारे मित्र की पत्नी अपने पति के
ज्योतिषीय कार्यों से प्रायः खिन्न रहा करती थी और उन्हीं के सामने हमसे उनकी शिकायत किया करती थी। हमारे मित्र श्री
चन्द्रदत्त शर्मा व उनकी धर्मपत्नी दोनों ही हमें अपने छोटे भाई की तरह स्नेह देते थे। दुर्भाग्य से आज दोनों ही इस संसार में
नहीं हैं। हमने अपने मित्र की अनेक भविष्यवाणियां असत्य सिद्ध होते देखी हैं। इससे हमारा निश्चित मत है कि फलित
ज्योतिष मनुष्य के लिए हितकारी नहीं अपितु अहितकारी है। माता-पिता अपने युवक युवती पुत्र व पुत्रियों के लिए वर व वधु
ढूंढते हैं। उन्हें गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार वर-वधू मिल भी जाते हैं परन्तु हमारे ज्योतिषि पण्डित अनेक मामलों में उनके
ग्रहों की स्थिति आदि के कारण उनका विवाह होना हानिकारक बताकर उनका विवाह नहीं होने देते। वास्तविकता यह भी है कि
जिन अनेक लोगों की जन्ममत्री मिल जाती है उनके विवाह में अनेक प्रकार की अनहोनी यथा वर की विवाह से पूर्व भीषण
दुर्घटना, कुछ मामलों में किसी एक की मृत्यु व विवाह के दिन आंधी व तूफान आदि से अनेक प्रकार की बाधायें अथवा परिवार
में किसी सदस्य की मृत्यु आदि जैसी बातें हो जाती हैं। अतः ज्योतिष को न मानने में ही लाभ हैं। विश्व में ईसाई, मुसलमान,
सिख एवं वाममार्गी आदि लोग व अन्य कुछ मत-मतान्तरों के लोग फलित ज्योतिष की किसी मान्यता को नहीं मानते और
ऐसे लोगों को जीवन में सुखी व सम्पन्न देखा जाता है। इससे फलित ज्योतिष एक आधारहीन मिथ्या मान्यता व अविद्या
सिद्ध होती है। शिक्षित बन्धुओं को फलित ज्योतिष के जाल में नहीं फंसना चाहिये और ईश्वर तथा अपने प्रारब्ध सहित
पुरुषार्थ पर विश्वास रखना चाहिये। कहा भी गया है कि प्रारब्ध से पुरुषार्थ बलवान होता है। पुरुषार्थ से प्रारब्ध को भी बदला जा
सकता है। अतः विद्या अर्जित करने, वेदों के स्वाध्याय सहित पुरुषार्थ को ही महत्व देना चाहिये।
वैदिक काल में फलित ज्योतिष का अस्तित्व था, इसकी सम्भावना नहीं है। रामायण एवं महाभारत ग्रन्थों में फलित
ज्योतिष विषयक कोई सन्दर्भ प्राप्त नहीं होता। रामचन्द्र जी के राज्याभिषेक का निश्चय वसिष्ठ आदि ऋषियों की सम्मति से
राजा दशरथ ने किया था। यह निश्चय कैकेयी के राजा दशरथ से वर मांग लेने के कारण कृतकार्य नहीं हो सका। यदि
राज्याभिषेक का निर्णय फलित ज्योतिष के आधार पर हुआ था तो भी वह गलत सिद्ध हुआ और यदि बिना फलित ज्योतिष
के विचार के किया गया तो इससे भी यही सिद्ध होता है कि रामायण काल में फलित ज्योतिष जैसे अवैदिक कृत्यों का
अस्तित्व नहीं था। वेदज्ञानी ऋषियों की उपस्थिति में फलित ज्योतिष जैसा कोई अन्धविश्वास पनप भी नहीं सकता था।
महाभारत की अनेक घटनाओं के वर्णनों में ऋषि वेद व्यास जी ने फलित ज्योतिष का वर्णन नहीं किया। अतः फलित ज्योतिष
महाभारत काल के उत्तरकाल में आरम्भ हुआ। जिन्होंने भी इसका आरम्भ किया वह वेदज्ञान व ईश्वर के सत्य ज्ञान सहित
योग-ध्यान-अध्यात्म विद्या से विहीन प्रतीत होते हैं। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश के द्वितीय समुल्लास में जन्म-पत्र की
आलोचना कर इसे मरण-पत्र बताया है। उन्होंने जो वर्णन किया है वह सजीव एवं मार्मिक है। सोमनाथ मन्दिर के ध्वस्त करने,
लूटने व उसके पतन में फलित ज्योतिष का ही मुख्य योगदान था। यदि मूर्तिपूजा का अन्धविश्वास तथा फलित ज्योतिष के
प्रति अनावश्यक विश्वास न होता तो देश व आर्य-हिन्दू जाति को अपमानित करने वाली यह घटना कदापि न होती। ऋषि
दयानन्द जी के अनुसार बुद्धिमान एवं विवेकशील मनुष्यों को अपनी सन्तानों का जन्म पत्र नहीं बनवाना चाहिये और न ही
किसी फलित ज्योतिषी से अपने बच्चों का भाग्यफल ही पूछना चाहिये अन्यथा वह अनेक असत्य भ्रम एवं मानसिक विकारों
से ग्रस्त हो सकते हैं। आर्यसमाजी बनने के बाद से हमने अपने जीवन में कभी फलित ज्योतिष पर विश्वास नहीं किया और हमें
इससे हानि कुछ भी नहीं हुई अपितु लाभ अनेक हुए हैं। बच्चों की जितनी बौद्धिक क्षमता व परिवेश था उसके अनुसार उन्होंने
शिक्षा प्राप्त की और सभी बच्चे स्वस्थ एवं पुरुषार्थरथ हैं। सभी आर्य विचारधारा को मानते हैं और मूर्तिपूजा एवं फलित

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ज्योतिष जैसे अन्धविश्वासों से पूर्णतः मुक्त हैं। बच्चों में किसी पर न कभी शनि की दशा आई और न किसी अन्य ग्रह ने कोई
प्रकोप किया।
आज का युग विज्ञान का युग है। हम कोई काम करते हैं तो उसके सभी पहलुओं पर विचार कर निर्णय लेते हैं। निर्णय
लेने में बुद्धि का ही प्रमुख योगदान होता है। ऋषि दयानन्द जी की कृपा से हमारे पास वेदज्ञान है। हमारा यह संसार परमात्मा
ने जीवों के पूर्वजन्मों के कर्म फल प्रदान करने के लिये बनाया है। ‘अवश्यमेव हि भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्’ के अनुसार
जीवात्मा को अपने किये हुए प्रत्येक कर्मों के फलों को भोगना होता है। हमारे प्रारब्ध के अनुसार ही हमें सुख व दुःख प्राप्त होते
हैं। यह व्यवस्था वेद सम्मत एवं तर्क एवं युक्ति के अनुकूल है। फलित ज्योतिष का विधान वेद में न होने से वह त्याज्य है।
संसार में यूरोप व अन्य देश भारत से कहीं अधिक भौतिक उन्नति को प्राप्त हैं। वहां भारत जैसे फलित ज्योतिष तथा मूर्तिपूजा
को कोई नहीं मानता। यदि मानते तो वह भी भारत की तरह अविद्या एवं अविकसित देश होते। हमारे ऋषियों ने सभी विषयों
पर ज्ञानपूर्ण रचनायें दी हैं। 6 दर्शन और 11 उपनिषदों के समान विश्व साहित्य में कोई ग्रन्थ नहीं है। फलित ज्योतिष का
उनमें कहीं किंचित भी उल्लेख नहीं है। वेदानुकूल का ही प्रमाण होता है व उसे ही स्वीकार किया जाता है। फलित ज्योतिष से
मनुष्य को कोई लाभ नहीं है अपितु हानि ही हानि है। वेदों के प्रकाण्ड विद्वान ऋषि दयानन्द ने भी फलित ज्योतिष को व्यक्ति
एवं राष्ट्र के लिए अग्राह्य बताया है। हमें ऋषियों की आज्ञाओं व शिक्षाओं का पालन करना चाहिये। इसी से हमारी आर्य हिन्दू
जाति को लाभ होगा। इति ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121

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