समाज सार्थक पहल अति उपभोक्तावाद अस्वस्थता की ओर समाज July 16, 2022 / July 16, 2022 | 1 Comment on अति उपभोक्तावाद अस्वस्थता की ओर समाज आज पूरा विश्व निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है और होना भी चाहिए। उपभोक्तावाद के ही कारण मनुष्य के जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं का आगमन हुआ है। आधुनिक सुख-सुविधाओं के कारण मानव के आचार-विचार एवं व्यवहार में काफी परिवर्तन भी आया है। किसी न किसी रूप में समाज उस दिशा में भी […] Read more » Society Towards Unhealthiness अति उपभोक्तावाद अस्वस्थता की ओर समाज
लेख नीयत या नियती July 16, 2022 / July 16, 2022 | Leave a Comment नीयत और नियती दोनों ही मनुष्य से जुड़े हुए शब्द हैं जिनका मानव जीवन से पल-पल का संबंध है। नीयत मनुष्य के जेहन में इस कदर होती है कि उसका किसी को आभास नहीं हो सकता। यह या तो उसके कथन से अनुमान लगाया जा सकता है या उसकेद्वारा सम्पादित कार्यों, क्रिया-कलापों के घटित होने […] Read more » intention or destiny
शख्सियत समाज डॉ. कलाम एक पुण्य आत्मा July 16, 2022 / July 16, 2022 | Leave a Comment भारत एवं पूरे विश्व में समय-समय पर पुण्य आत्माओं का उदय होता रहा है। इन पुण्य आत्माओं ने समाज में एक आदर्श प्रस्तुत करते हुए दिशा देने का काम किया है। भारत में देखा जाये तो आर्य भटट, चरक ऋषि, स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सत्य साईं, गुरू नानक, संत कबीर, संत रविदास, स्वमी […] Read more » Dr. Kalam a virtuous soul डॉ. कलाम
लेख ऑनलाइन मार्केटिंग के दौर में ठगे न रह जायें मजदूर एवं कारीगर July 16, 2022 / July 16, 2022 | Leave a Comment औद्योगिक एवं व्यापारिक क्षेत्रा में देश एवं दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है। अपने-अपने दृष्टिकोण से लोग अपना बिजनेस एवं व्यापार बढ़ाने में लगे हैं। आज-कल देश में मार्केटिंग क्षेत्रा में एक बात बहुत जोर-शोर से कही जाती है कि ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ इस मार्केटिंग पंच के आविष्कारक रिलाएंस गु्रप के संस्थापक स्व. […] Read more » online marketing Workers and artisans should not be cheated in the era of online marketing ऑनलाइन मार्केटिंग
राजनीति राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री एक गाड़ी के दो पहिए July 16, 2022 / July 16, 2022 | Leave a Comment प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने जब से देश की बागडोर संभाली है, तब से देश एवं विदेश में कुछ न कुछ बेहतर होता जा रहा है। होने के लिए तो वैसे भी बहुत अच्छा हो रहा है किंतु मैं तो यही मानकर चल रहा हूं कि यदि धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा भी बेहतर होता रहे तो भी कम […] Read more » President and Prime Minister President and Prime Minister are two wheels of a cart राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री
लेख भारतीय मुसलमान नहीं बनेगा विश्व के कट्टरपंथी मुसलमानों की कठपुतली July 16, 2022 / July 16, 2022 | Leave a Comment वर्तमान समय में भारत में असहिष्णुता को लेकर काफी चर्चा हो रही है। असहिष्णुता के मामले में सच्चाई क्या है, यह एक बहस का विषय है। इस संबंध में तमाम लोग अपने-अपने नजरिये से चर्चा करने में लगे हैं किंतु जहां तक भारतीय मुसलमानों की बात है तो वे अच्छी तरह जानते एवं समझते हैं […] Read more » Indian Muslims will not become a puppet of radical Muslims of the world
लेख हमें स्वयं को भी बदलना होगा… July 16, 2022 / July 16, 2022 | Leave a Comment सब कुछ सरकार करे, सब कुछ सरकार को ही करना चाहिए या सब कुछ सरकार की ही जिम्मेदारी है, इस प्रकार की मानसिकता हमारे समाज में बहुत व्यापक रूप से विकसित हो चुकी है किंतु यह पूरी तरह ठीक नहीं है क्योंकि लोग यदि चाहें तो बहुत सी समस्याएं एवं तमाम कार्य अपने आचरण में […] Read more » We have to change ourselves too… स्वच्छ भारत अभियान स्वच्छता अभियान में खामियां हमें स्वयं को भी बदलना होगा…
शख्सियत समाज जैन दर्शन भगवान महावीर और समाजवाद June 10, 2022 / June 10, 2022 | Leave a Comment सृष्टि व्यवस्था में ‘धर्म’ को प्राकृतिक सत्ता माना गया है। जैन धर्म का न तो कोई आदि है और न ही अंत इसलिए यह निरग्रंथ है और प्राकृतिक धर्म है। वेदों में भी जैन धर्म को वेदों से पूर्व का स्वीकर किया गया है और जैन दर्शन की सृष्टि संबंधी व्याख्या आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से […] Read more » भगवान महावीर और समाजवाद
आर्थिकी लेख सावधान! बिटॅक्वाइन – एक काल्पनिक मायावी मुद्रा ? June 9, 2022 / June 9, 2022 | 2 Comments on सावधान! बिटॅक्वाइन – एक काल्पनिक मायावी मुद्रा ? आर्थिक जगत में आजकल बिटॅक्वाइन बहुत ही चर्चित है, आखिर बिटॅक्वाइन है क्या? बिटॅक्वाइन को समझने से पहले यहां यह समझ लेना जरूरी है कि किसी भी देश की मुद्रा का चलन और उसकी कुल कीमत उस देश के पास कितना स्वर्ण भण्डार है इस पर निश्चित होता है। अधिकतर देश इसी परिपाटी को अपनाते […] Read more » Attention Bitcoin - a fictitious elusive currency Bitcoin - a fictitious elusive currency बिटॅक्वाइन
राजनीति अटल-आडवाणी के बाद अब राजनाथ-मोदी June 7, 2022 / June 7, 2022 | Leave a Comment भारतीय राजनीति में वैसे तो तमाम जोड़ियां हिट रही हैं लेकिन कुछ जोड़ियां बेमिसाल साबित हुई हैं। ऐसी ही जोड़ियों में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं श्री लालकृष्ण आडवाणी की भी जोड़ी रही है। हिन्दुस्तान के राजनैतिक इतिहास में जितनी लम्बी अटल जी एवं आडवाणी जी की जोड़ी सक्रिय […] Read more » After Atal-Advani now Rajnath-Modi अटल-आडवाणी के बाद अब राजनाथ-मोदी
राजनीति नरेंद्र मोदी की प्रतीक्षा में उतावला राष्ट्र June 6, 2022 / June 7, 2022 | Leave a Comment आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष गुजरात के मुख्यमंत्राी नरेंद्र मोदी जबसे बने हैं, तबसे पूरे देश में एक अजीब हलचल देखने को मिल रही है। देशवासियों को लगता है कि अब सब कुछ ठीक होने वाला है। यूपीए सरकार के नेतृत्व में सोये राष्ट्र की जागने […] Read more » Nation eager to wait for Narendra Modi नरेंद्र मोदी की प्रतीक्षा में उतावला राष्ट्र
राजनीति भारतीय व्यवस्था में ‘अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग’ का बोलबाला June 5, 2022 / June 7, 2022 | Leave a Comment वर्तमान समय भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए मंथन का दौर है? इस मंथन से क्या निकलेगा यह तो वक्त ही बतायेगा, किंतु उम्मीद की जा रही है कि आने वाला समय पूरी दुनिया के लिए अच्छा ही होगा। मंथन का दौर किसी एक क्षेत्रा में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्रा में चल रहा है। इस मंथन में नकारात्मक शक्तियों का क्षय एवं सकारात्मक श्ािक्तयों का पुनः उत्थान एक तरह से निश्चित माना जा रहा है। आज जिस तरह पूरी दुनिया में तमाम तरह की अप्राकृतिक एवं असामयिक घटनाएं देखने एवं सुनने को मिल रही हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि मंथन का दौर चल रहा है। मंथन में अमृत एवं विष दोनों का निकलना स्वाभाविक है किंतु भगवान भोलेनाथ की तरह समाज में आज ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो ‘विष’ का पान स्वयं करें और ‘अमृत’ समाज कल्याण के लिए छोड़ दें। पूरी दुनिया के साथ यदि भारत की बात की जाये तो यह पूर्ण रूप से एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र है। प्रजातंत्रा का वास्तविक अर्थ है प्रजा यानी आम जनता का राज्य किंतु आज यह निहायत ही विचारणीय प्रश्न है कि क्या वास्तव में देश में आम जनता का ही शासन है या प्रजातंत्रा के नाम पर प्रजा यानी आम जनता के साथ छल हो रहा है। यह बात आम जनता की भी समझ में नहीं आ रही है कि देश तो प्रजातांत्रिक है, किंतु प्रजा के हाथ कुछ लग नहीं रहा है। ‘आम जनता’ के नाम पर ‘खास’ लोगों का पोषण हो रहा है। भारतीय शासन-प्रशासन प्रणाली या व्यवस्था इस प्रकार की बन चुकी है कि इस व्यवस्था में ‘कोई खा-खाकर परेशान है तो कोई खाने बिना मर रहा है।’ आखिर इस प्रकार की व्यवस्था को एक आदर्श व्यवस्व्था कैसे कहा जा सकता है? आखिर ऐसा हो भी क्यों न? क्योंकि व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए जो आवश्यक अंग हैं, उनमें आपसी समन्वय एवं एकता की कमी है। संविधान में हमारी व्यवस्था को संचालित करने के लिए कार्यपालिका, न्याय पालिका एवं विधायिका की विधिवत व्यवस्था की गई है और यह तय किया गया है कि किसके क्या काम, क्या कर्तव्य एवं क्या अधिकार हैं? कार्यपालिका, न्यायपालिका एवं विधायिका के अतिरिक्त एक मीडिया भी है, जिसे व्यवस्था के अंतर्गत चौथे स्तंभ के रूप में माना जाता है। व्यवस्था के ये चारों स्तंभ एक दूसरे के पूरक एवं सहायक हैं। यदि इनमें से कोई एक भी स्तंभ अपनी जिम्मेदारियों से विमुख हो जाये तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी। वैसे तो सभी अंगों का अपना एक विशेष महत्व है, किंतु विधायिका एक ऐसा स्तंभ है जिसे देश में विधान यानी नियम-कानून बनाने का अधिकार है। इस सतंभ को सीधे-सीधे जन-प्रतिनिधियों का माना जा सकता है। ये जनप्रतिनिधि प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाते हैं। इन्हीं के नेतृत्व में देश के लिए नीतियां एवं कार्यक्रम बनाये जाते हैं। जन प्रतिनिधियों की देख-रेख में इन्हीं नीतियों एवं कार्यक्रमों को सुचारु रूप से संचालित करने की जिम्मेदारी कार्यपालिका की होती है। कार्यपालिका का सीधा-सा अर्थ ब्यूरोक्रेसी या पूरी की पूरी नौकरशाही से है। इस व्यवस्था को सीधे-सीधे इस भाषा में भी समझा जा सकता है कि जिन लोगों को जनता की सेवा करने की जिम्मेदारी दी गई है, चाहे वह किसी भी रूप में हों, कार्यपालिका के अंतर्गत आते हैं। शासन-प्रशासन में किसी भी किस्म का व्यवधान उत्पन्न न हो, कोई नियमों-कानूनों के खिलाफ कार्य करने एवं चलने का दुस्साहस न करे या अनैतिक कार्य न करे, ऐसे सभी लोगों को दंडित करने की जिसकी जिम्मेदारी है, वह न्यायपालिका है। न्यायपालिका के बारे में समझने एवं जानने के लिए अलग से लिखा जा सकता है, किंतु फिलहाल अभी यही कहा जा सकता है कि संविधान विरोधी, समाज विरोधी, देश विरोधी एवं अन्य अनैतिक कार्य न हों, इसे नियंत्रित करने में न्यायपालिका बहुत मददगार साबित हो रही है। कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका के अलावा एक स्तंभ मीडिया भी है, जिसे चौथे स्तंभ के रूप में जाना जाता है। मीडिया की जिम्मेदारी यह है कि इन स्तंभों से कहीं कोई चूक हो जाये या अपने दायित्व का निर्वाह न करें तो उसके प्रति मीडिया जनता को जागरूक करे और इन स्तंभों को अपने कर्तव्यों से भटकने न दे। देश में जहां कहीं अज्ञानता, अशिक्षा, सामाजिक कुरीति, अंधविश्वास, भ्रष्टाचार, अपराध, बेरोजगारी या अन्य किसी तरह की बुराई या कमजोरी नजर आये तो मीडिया शासन-प्रशासन एवं देश की आम जनता को उसके प्रति जागरूक करे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि समाज में मीडिया की भूमिका एक सजग प्रहरी की है। मीडिया यदि प्रहरी की भूमिका ठीक ढंग से निभाये तो बाकी तीनों स्तंभ सचेत रहेंगे। उन्हें ऐसा लगेगा कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं, उन पर किसी की नजर है। वर्तमान समय में देखने में आ रहा है कि ये चारों स्तंभ एक दूसरे के पूरक न होकर प्रतिद्धंदी के रूप में नजर आते हैं। हालांकि, इस प्रकार की स्थिति सभी मामलों में देखने को मिलती है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है, किंतु तमाम मौकों पर ऐसा देखने को मिल जाता है। कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि एक स्तंभ दूसरे स्तंभ पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करता है। ऐसे में हर स्तंभ के अधिकारों का संतुलन बिगड़ जाता है। विशेषकर जन-प्रतिनिधियों की इच्छा तो यही होती है कि उनके ऊपर किसी तरह का कोई नियंत्राण स्थापित न हो। जन-प्रतिनिधि यही चाहते हैं कि उनका प्रभुत्व हर किसी पर बना रहे। कई बार देखने में आया है कि न्याय पालिका की तरफ से कुछ सख्त निर्णय या टिप्पणी आ जाती है तो जन-प्रतिनिधियों को नागवार लगने लगती है और इसके विरोध में सभी दलों के नेता एकजुट होने लगते हैं। अभी हाल-फिलहाल कुछ ऐसा ही देखने को मिला है। कई बार न्यायपालिका की भूमिका को देखकर ऐसा लगता है कि यदि न्यायपालिका न होती तो देश में किसी भी घोटाले का पर्दाफाश ही नहीं हो पाता। हाल के कुछ वर्षों में देखने में आया है कि न्यायपालिका की सक्रियता के कारण ही कुछ घोटालों को पर्दाफाश हो गया और कुछ माननीयों को जेल की हवा भी खानी पड़ी। आज न्यायपालिका कह रही है कि यदि किसी भी व्यक्ति को सजा हो जाये तो उसे चुनाव लड़ने से तुरंत रोक दिया जाये तो इसमें क्या हर्ज है? यह तो बहुत अच्छी बात है किंतु दुर्भाग्य इस बात का है कि इस निर्णय के विरुद्ध पूरी राजनैतिक बिरादरी एकजुट हो गई है। इसी प्रकार राजनैतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के पक्ष में राजनैतिक दल तैयार नहीं हैं। इसके विरोध में तमाम राजनैतिक दल लामबंद हो गये, किंतु संसद में जब सांसदों का वेतन-भत्ता बढ़ाने एवं अन्य किसी तरह की सुविधा देने की बात आती है तो सभी दल एकजुट हो जाते हैं। आखिर इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई कि देश की राजनीति को सुधारने एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए न्यायपालिका को आगे आना पड़ रहा है। यह काम तो विधायिका एवं कार्यपालिका को करना चाहिए था। तमाम लोग तो अब यहां तक कहने लगे हैं कि अब न्यायपालिका ही उम्मीद की एक मात्रा किरण है। कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि यदि मीडिया न होता तो ऐसा नहीं होता, […] Read more » भारतीय व्यवस्था