शख्सियत किस प्रकार जी रहे थे* November 3, 2012 / November 3, 2012 | Leave a Comment शंख घोष वे कैसे जी रहे थे, नये समय के पाठक अब इसे सिर्फ उनकी कविता के जरिये जानेंगे। नये दिनों की कविता कैसी हो सकती है, इसके बारे में नौजवान सुनील को एक बार ठीक पचास साल पहले उनके तभी बने मित्र ऐलेन गिन्सबर्ग ने कुछ बातें लिखी थी। तब अपने ‘हाउल’ से पूरी […] Read more » सुनील गंगोपाध्याय
आर्थिकी ‘गैर-बराबरी’ आखिर अर्थशास्त्र का मुद्दा बना November 3, 2012 / November 3, 2012 | 2 Comments on ‘गैर-बराबरी’ आखिर अर्थशास्त्र का मुद्दा बना अरुण माहेश्वरी नवउदारवाद के लगभग चौथाई सदी के अनुभवों के बाद मुख्यधारा के राजनीतिक अर्थशास्त्र को बुद्ध के अभिनिष्क्रमण के ठीक पहले ‘दुख है’ के अभिज्ञान की तरह अब यह पता चला है कि दुनिया में ‘गैर-बराबरी है’, और, इस गैर-बराबरी से निपटे बिना मुक्ति नहीं, अर्थात लगातार घटती अवधि के आर्थिक-संकटों के आवर्त्तों में […] Read more » Economy
टॉप स्टोरी पश्चिम बंगाल के बहाने October 5, 2012 / October 5, 2012 | Leave a Comment अरुण माहेश्वरी पश्चिम बंगाल की आज की दशा देख कर सचमुच काफी आश्चर्य होता है। कहावत है कि जैसा स्वामी वैसा दास। इसीप्रकार, कहा जा सकता है कि संसदीय जनतंत्र में जैसा शासन वैसा ही प्रतिपक्ष। अभी सिर्फ 16 महीने बीते हैं जब वाममोर्चा सरकार के लंबे 34 साल के शासन का, बल्कि एक क्रांतिकारी […] Read more » पश्चिम बंगाल के बहाने
शख्सियत एक सच्चा जनकवि हरीश भादानी October 2, 2012 / October 2, 2012 | Leave a Comment अरुण माहेश्वरी हरीश भादानी की तीसरी पुण्य तिथि के अवसर पर श्रद्धांजलि लेख सचमुच इससे कठिन शायद ही कोई दूसरा काम हो सकता है कि एक बेहद मासूम, सरल और सीधे आदमी को गहराई से समझा जाए। किसी कपटी, कठिन और टेढ़े चरित्र की गुत्थियों को खोलना आसान होता है। उसमें बहुत कुछ ऐसा होता है […] Read more » harish bhadani
विविधा ‘हिंदी प्रलाप’ – अरुण माहेश्वरी September 29, 2012 | 4 Comments on ‘हिंदी प्रलाप’ – अरुण माहेश्वरी दक्षिण अफ्रीका के विश्व हिंदी सम्मेलन से घूम कर आने के ठीक बाद हिंदी के प्रोफेसर और भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के पूर्व निदेशक शंभुनाथ का एक लेख ‘हिंदी का अरण्यरोदन’ जनसत्ता के आज (26 सितंबर 2012) के अंक में प्रकाशित हुआ है। थोड़ा सा ध्यान से पढ़ने पर ही यह लेख भारत […] Read more » विश्व हिंदी सम्मेलन
राजनीति भारतीय वामपंथ के पुनर्गठन की एक प्रस्तावना / अरुण माहेश्वरी June 2, 2011 / June 6, 2012 | Leave a Comment (”आत्मालोचना क्रियात्मक और निर्मम होनी चाहिए क्योंकि उसकी प्रभावकारिता परिशुद्ध रूप में उसके दयाहीन होने में ही निहित है। यथार्थ में ऐसा हुआ है कि आत्मालोचना और कुछ नहीं केवल सुंदर भाषणों और अर्थहीन घोषणाओं के लिए एक अवसर प्रदान करती है। इस तरह आत्मालोचना का ‘संसदीकरण हो गया है’।”(अन्तोनियो ग्राम्शी : राजसत्ता और नागरिक […] Read more » communism कम्युनिज्म मार्क्सवाद साम्यवाद
विविधा सच को छिपाने की भाषा July 24, 2010 / December 23, 2011 | 2 Comments on सच को छिपाने की भाषा -अरुण माहेश्वरी बीस साल में मानव विकास की बीस रिपोर्ट आ चुकी है। विकास के केंद्र में हमेशा मनुष्य रहे, और मनुष्य-केंद्रित विकास को मापने के पैमाने क्या हो जिनके अनुसार विकास कार्यों का एक सही परिप्रेक्ष्य और आगे की योजनाओं का स्वरूप तय किया जा सके – इन्हीं घोषित उद्देश्यों से संयुक्त राष्ट्र संघ […] Read more » Human Developement Report मानव विकास रिपोर्ट
प्रवक्ता न्यूज़ हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष थे प्रभाष जोशी July 16, 2010 / December 23, 2011 | 2 Comments on हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष थे प्रभाष जोशी – अरुण माहेश्वरी प्रभाष जोशी का निधन 5 नवंबर 2009 के दिन उस समय दिल का दौरा पड़ने से हुआ था जब वे अपने गाजियाबाद स्थित घर में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच एकदिवसीय रोमांचक क्रिकेट मैच देख रहे थे। पत्रकरिता के साथ ही क्रिकेट प्रभाष जी के जीवन की एक बड़ी उत्कंठा थी। हिंदी […] Read more » Prabhat joshi प्रभाष जोशी
साहित्य मार्कण्डेय : जीवन के बदलते यथार्थ के संवेगों का साधक July 10, 2010 / December 23, 2011 | Leave a Comment -अरुण माहेश्वरी ‘निर्मल वर्मा की कहानियों में लेखकीय कथनों की एक कतार लगी हुई है। जहां जरा-सा गर्मी-सर्दी लगी कि कमजोर बच्चों को छींक आने लगती है। यदि और सफाई से कहें, तो जैसे रह-रह कर बैलगाड़ी के पहिये की हाल उतर जाती है, ठीक वैसे ही, पात्र जरा-सा संवेदनात्मक संकट पड़ते ही खिड़की के […] Read more » Markandeya मार्कण्डेय
विज्ञान जीव विज्ञान के दूसरे चरण की दहलीज पर July 5, 2010 / December 23, 2011 | 3 Comments on जीव विज्ञान के दूसरे चरण की दहलीज पर -अरुण माहेश्वरी पूरे दस साल पहले की बात है। 26 जून 2000 के दिन जीव विज्ञान के क्षेत्र में खुशियों की एक लहर दौड़ गयी थी जब यह पता चला था कि मानव जेनोम के पूरे नक्शे को तैयार कर लिया गया है। जेनोम के तीन अरब अक्षरों को क्रमवार सजा कर यह दावा किया […] Read more » Manav मानव जेनोम
राजनीति वर्गीय एकता के पक्ष में June 22, 2010 / December 23, 2011 | Leave a Comment -अरुण माहेश्वरी ‘तद्भव’ पत्रिका के ताजा अंक में पी.सी.जोशी का लेख है ‘विस्थापन की पीड़ा’। ज्योति बसु के साथ उनके संस्मरणों पर आधारित लेख। ज्योति बसु से श्री जोशी की मुलाकात कोलकाता में 55 साल पहले 1955 में हुई थी जब वे उनके चुनाव क्षेत्र बारानगर में स्थित प्रोफेसर चिन्मोहन महालनोबीस के प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन […] Read more » communism कम्युनिज्म ज्योति बसु पी सी जोशी साम्यवाद
राजनीति शहर और उसके लोग June 5, 2010 / December 23, 2011 | Leave a Comment -अरुण माहेश्वरी पश्चिम बंगाल के हाल के नगरपालिका चुनाव में कितनी भी राजनीतिक उत्तेजना क्यों न रही हो, इनके दौरान बहसों और बातों के कुछ ऐसे पहलू देखने को मिलें, जिन पर इस स्तंभ के पाठकों से कुछ दिलचस्प चर्चा की जा सकती है। मसलन्, ममता बनर्जी कह रही थी कि हमें सत्ता सौंपों, हम […] Read more » West Bengal पश्चिम बंगाल