कविता तुम सबसे अंनूठी हो मॉ March 14, 2020 / March 14, 2020 | Leave a Comment तुम सबसे अंनूठी हो मॉ दुख आया तो दवा नहीं ली हारी नहीं, तू खुद से लडी थी पिताजी देखे, सख्त बहुत थे तनखा लाकर वे दादी को देते पाई पाई को तू तरसा करती मजबूरी थी तू मजदूरी करती बेकार हुये जब कपड़े पिता के झट सिलवाती,,रहे न हम उघडे वे भी क्या दिन […] Read more » तुम सबसे अंनूठी हो मॉ
कविता खण्डहर लगता पुराना मकान March 12, 2020 / March 12, 2020 | Leave a Comment सदैव अपने बच्चों के भविष्य के लिए हर पिता बनाता है एक सुंदर सा मकान जिसमें वह अधिष्ठित करता है अपने इष्टदेव अपने कुलदेवता को । साल दिन महीने वर्ष के साथ बदलती है ऋतुए, सर्दी गर्मी ओर बरसात हर साल वह देवों को सुलाता है होली दीवाली नवरात्रि मनाता है गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी […] Read more » खण्डहर लगता पुराना मकान
व्यंग्य होशंगशाह किले की व्यथा March 7, 2020 / March 7, 2020 | Leave a Comment होशंगशाह गौरी का किला है कुछ खास खण्डहर हो चुका कभी था वह आवास नर्मदा का तट था सुल्तान को भाया सन चोदह सौ एक में किला बनवाया मंगलवारा घाट से मैं उसे अक्सर निहारू किले के अतीत का चिंतन मन में विचारु अनगिनत सवालों का सैलाब मन में होता अपने घर लौट आता ख्याल […] Read more » होशंगशाह किले की व्यथा
कविता शीशे का शहर होशंगाबाद March 7, 2020 / March 7, 2020 | Leave a Comment नर्मदातट पर बसा होशंगाबाद एक पारदर्शी शीशे का शहर है महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें कुछ ऊंचे लोग बसते है जो शहरवासियों को दुर्भावनाओ षडयंत्रो ओर दुरभिसंधिओ के काँच से निहार, पत्थर बने है ॥ आधे अधूरे गुमनाम से ये लोग एक नहीं दो-दो पहचान रखते है सत्ता के गलियारे ओर दरवाजे पर गिरगिट […] Read more » Glass town hoshangabad शीशे का शहर होशंगाबाद होशंगाबाद
लेख भरत से हारकर राम ने मनाई जीत की खुशी March 3, 2020 / March 3, 2020 | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण, भरत ओर शत्रुघन सहित अपने बाल सखायो की टोली लिए राजमहल से बाहर आते है ओर अयोध्या की गलियों में भमरा, लट्टू डोरी का खेलते है। गोस्वामी तुलसीदास ने गीतावली में भगवान के अनेक ललित लीलाओ उनके रूपमाधुर्य ओर उच्च चरित्र का चित्रण किया है। […] Read more » Ram celebrates victory by defeating Bharat राम ने मनाई जीत की खुशी
कविता हम इंसान कहलाने योग्य कब होंगे ? February 28, 2020 / February 28, 2020 | Leave a Comment दिल्ली सुलग रही है ओर देश चुप है देश का आम आदमी चुप है पता नहीं क्यों कुछ विशेष आततायी भीड़ मे घिनोना चेहरा लिए आसानी से फूँक देते है मकान-दुकान जला देते है राष्ट्र की संपत्ति । उखाड़ फैकते है पीढ़ी दर पीढ़ी रह रहे लोगों के इंसानी रिश्ते फूँक देते है उनके आशियाने […] Read more » हम इंसान कहलाने योग्य कब होंगे ?
कविता बोलिये…. प्यारी-प्यारी बोलियाँ… February 27, 2020 / February 27, 2020 | Leave a Comment अब कहाँ बोली जाती है, लोगों में रसीली बोलियाँ जहाँ देखों वहीं मिलती है, लोगों में बनावटी बोलियाँ । भले प्रेमियों की आँखों में बँसी हो, प्रेमसनी अनकही बोलियाँ भले नाते-रिश्तों में घुली हुई हो, मिश्री सी मीठी बोलियाँ। बिखरे से है सभी साबुत लोग, बोलते है आपस में अटपटी बोलियाँ। व्हाटसअप’-फेसबुक के हजारों मित्र […] Read more » बोलिये…. प्यारी-प्यारी बोलियाँ...
कविता थकान February 27, 2020 / February 27, 2020 | Leave a Comment बहुत छायी,खूब छायी, जीवन में उदासी हताश मन,बोझल तन,ड़ूबी है बोझ से जिन्दगी उबासी। हैरान है,परेशान है, जीवन के रास्ते, हम बहुत थके, खूब थके, जिन्दगी तलाशते। हाथ थके,पाँव थके, थके सारे अंग, श्रद्धा थकी, विश्वास थका, थका जीने का ढंग। उम्मीद थकी, इंतजार थका, कल्पनाओं का आकाश थका मान थका,सम्मान थका, जीवन का हर […] Read more » थकान
कविता अभी जिंदा हूं खुद को बताना February 25, 2020 / February 25, 2020 | Leave a Comment अभी मरी नहीं हूं यह जतलाना खुदसे कहना, घर को जाती हूं मैं खुदसे कहना, घर को आती हूं मैं खुद से कहना, खाना खा लिया क्या खुद ही कहना, अभी कहां,खाती हूं मैं। जब भी घर में अकेली होती है, वह सभी काम कर रोती है बर्तन-कपड़े साफ करना खाना पकाना और खिलाना एक […] Read more » अभी जिंदा हूं खुद को बताना
कविता आदमी की कोई हद न रही February 20, 2020 / February 25, 2020 | Leave a Comment जाने ये क्या हद हो गयी ? कि आदमी की हद सरहदों में खो गयी सरहद बना ये आदमी,आदमी है कहाँ खोखला उसका वजूद और झूठा उसका जहाँ, सगे भाईयों के बीच,आपस में ठनी हो गयी, आंगन में लगी बाँगड़., और घनी हो गयी ? जाने ये क्या हद हो गयी कि आदमी मुस्कान गमों […] Read more » आदमी की कोई हद न रही
कविता साहित्य दान… February 20, 2020 / February 26, 2020 | Leave a Comment उतारो उतारो आज तुम जिस्म से अपनी खूबसूरत आत्मा का यह गहना उठो दुआयें देकर यमराज को, यह आत्मा दान दे दो। बनाकर भेजी थी विधाता ने तेरी निराली सूरत जिस्म इंसान का देकर, गढी गजब की मूरत उठो प्रार्थनायें गाकर अपने प्रभु को, इन साँसों का आभार दे दो। आज मगरूर है कितना, तेरा […] Read more » दान
कविता पहनी है धरती ने ज्योति की पायल February 20, 2020 / February 26, 2020 | Leave a Comment आज आसमाँ से ये जाकर कह दे कोई सितारों की महफिल कहीं और सजायें। पहनी है धरती ने ज्योति की पायल, दीपों के घुंघरू, स्वर झाँझन सुनायें। खैर नहीं तेरी ओ अमावस्या के अंधेरे धरती से उठा ले तू आज अपने ड़ेरे। रोशनी को देख अंधेरा थरथराया खूब चीखा पटाखों में, अंधेरे का हुआ सफाया। […] Read more » पहनी है धरती ने ज्योति की पायल