जन-जागरण सृष्टि का निर्माण किससे व क्यों? December 9, 2014 / December 9, 2014 | Leave a Comment ओ३म् हम सब अपनी आंखों से संसार को देखते हैं। सूर्य को भी हम अपने चर्म चक्षुओं की सहायता से देखते हैं। चन्द्र व पृथिवी व इस पर वन, पर्वत, नदी व समुद्र, मैदान, अग्नि आदि सभी आकार वाले पदार्थों को देखते व अनुभव करते हैं। यह जो देखने वाला है और यह जिसे देखता […] Read more » evolution of world with whom सृष्टि का निर्माण सृष्टि का निर्माण किससे
धर्म-अध्यात्म श्रेष्ठ समाज और देश का आधार आर्य समाज का छठा नियम December 8, 2014 | Leave a Comment आर्य समाज के 10 नियम है जो संसार की सभी संस्थाओं व संगठनों में श्रेष्ठ कहे जा सकते हैं। इन नियमों में छठे नियम के अनुसार संसार का उपकार करना आर्य समाज का मुख्य उद्दैश्य कहा गया है अर्थात् सभी मनुष्यों की शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसका अपना […] Read more » आर्य समाज का छठा नियम
शख्सियत अद्भुत प्रतिभावान डा. भीमराव रामजी अम्बेदकर December 7, 2014 / December 8, 2014 | Leave a Comment ओ३म् पुण्य तिथि 7 दिसम्बर पर श्रद्धांजलि मनमोहन कुमार आर्य 7 दिसम्बर 1956 को दिवगंत डा. भीमराव रामजी अम्बेदकर जी की आज 58 वीं जयन्ती है। वह भारत के पहले कानून मंत्री रहे। भारत के संविधान के निर्माण व उसका प्रारूप तैयार करने में उनकी प्रमुख भूमिका थी। भारतीय रिसर्व बैक की स्थापना में भी […] Read more » डा. भीमराव रामजी
धर्म-अध्यात्म सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग ही मनुष्य का धर्म है December 6, 2014 / December 7, 2014 | Leave a Comment किसी विषय पर यदि दो बातें हैं, इनमें हो सकता कि एक सत्य हो और दूसरी असत्य या दोनों ही असत्य भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में सत्य इन दोनों बातों से भिन्न हो सकता है। सत्य विचारों, सिद्धान्तों और मान्यताओं से जीवन में लाभ होता है और असत्य से लाभ तो कुछ नहीं […] Read more » असत्य का त्याग सत्य का ग्रहण
धर्म-अध्यात्म स्वाध्याय से जीवनोद्देश्य का ज्ञान व इच्छित फलों की प्राप्ति December 5, 2014 | Leave a Comment संस्कृत का “स्व” शब्द विश्व के भाषा साहित्य का एक गौरवपूर्ण व महिमाशाली शब्द है। इस शब्द में स्वयं को जानने व समझने की प्रेरणा छिपी है। जिसने “स्व” अथवा स्वयं को जान लिया वह जीवन में सफल हुआ कहा जा सकता है। जिसने “स्व” को न जाकर अन्य सब कुछ भौतिक सुख समृद्धि […] Read more » स्वाध्याय
शख्सियत स्वामी अनुभूतानन्द जी का प्रेरक व समर्पित जीवन December 2, 2014 / December 3, 2014 | Leave a Comment स्वामी अनुभूतानन्द दलितों व पिछड़ों के सच्चे हितैषी व श्रेष्ठ कर्मयोगी पुरूष थे। आप एक दलित परिवार में जन्में थे। पांच हजार वर्ष पूर्व हुए महाभारत के पश्चात अज्ञानता के युग मध्यकाल में किसी समय हमारे तथाकथित पण्डित वर्ग ने अपने अज्ञान व स्वार्थो के कारण गुण, कर्म व स्वभाव पर आधारित वर्ण व्यवस्था […] Read more » Swami Anubhutanand Ji's inspiring and dedicated life दलित आर्य स्वामी अनुभूतानन्द जी
धर्म-अध्यात्म गुरूकुल प्रणाली November 30, 2014 | Leave a Comment ‘ महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द और गुरूकुल प्रणाली’ महर्षि दयानन्द सरस्वती (1825-1883) आर्य समाज के संस्थापक हैं। आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल, 1875 को मुम्बई के काकडवाड़ी स्थान पर हुई थी। इसी स्थान पर संसार का सबसे पुराना आर्य समाज आज भी स्थित है। आर्य समाज की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य वेदों का प्रचार […] Read more » importance of gurukul system in spread of knowledge गुरूकुल प्रणाली’ महर्षि दयानन्द सरस्वती स्वामी श्रद्धानन्द
धर्म-अध्यात्म वेदो की उत्पत्ति कब व किससे हुई? November 29, 2014 / November 29, 2014 | 2 Comments on वेदो की उत्पत्ति कब व किससे हुई? ओ३म् मनमोहन कुमार आर्य भारतीय व विदेशी विद्वान स्वीकार करते हैं कि वेद संसार के पुस्तकालय की सबसे पुरानी पुस्तकें हैं। वेद चार है, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। यह चारों वेद संस्कृत में हैं। महाभारत ग्रन्थ का यदि अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि महाभारत काल में भी वेद विद्यमान थे। महाभारत में […] Read more » emergence of vedas वेदो की उत्पत्ति
धर्म-अध्यात्म ‘हमारा जीवात्मा अजन्मा, अमर, अनुत्पन्न, सनातन, नित्य व शाश्वत है’ November 26, 2014 | Leave a Comment ओ३म् संसार की उत्पत्ति व इसमें विद्यमान पदार्थों पर विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि जड़ व चेतन दो प्रकार के पदार्थ हैं। जड़ संवेदना से रहित होते हैं और चेतन संवेदनशील होते हैं। यदि हम जड़ पदार्थों को अग्नि में जलाते हैं तो उन्हें कोई पीड़ा नहीं होती परन्तु यदि हमारा […] Read more »
समाज पीडि़तों की सेवा मनुष्य का धर्म November 18, 2014 | Leave a Comment ओ३म मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके चारों ओर अपने निकट सम्बन्धी और पड़ोसियों के साथ मि़त्र व पशु-पक्षी आदि का समुदाय दृष्टिगोचर होता है। समाज में सभी मनुष्यों की शारीरिक, सामाजिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य की स्थिति व आर्थिक स्थिति समान नहीं होती है। इनमें अन्तर हुआ करता है। यह सम्भव है कि एक व्यक्ति आर्थिक […] Read more » ‘पीडि़तों की सेवा Religion of Man serving victims
धर्म-अध्यात्म मैं और मेरा परमात्मा November 17, 2014 | Leave a Comment ओ३म् मनमोहन कुमार आर्य एक शाश्वत प्रश्न है कि मैं कौन हूं। माता पिता जन्म के बाद से अपने शिशु को उसकी बौद्धिक क्षमता के अनुसार ज्ञान कराना आरम्भ कर देते हैं। जन्म के कुछ समय बाद से आरम्भ होकर ज्ञान प्राप्ति का यह क्रम विद्यालय, महाविद्यालय आदि से होकर चलता रहता है और इसके […] Read more » मेरा परमात्मा
समाज नास्तिकता बनाम् आस्तिकता November 16, 2014 / November 17, 2014 | Leave a Comment हमारे देश व समाज में कुछ बन्धु स्वयं को नास्तिक कहते हैं। उनसे पूछिये कि नास्तिक का क्या अर्थ होता है तो वह कहते हैं कि हम ईश्वर और जीवात्मा के अस्तित्व को नहीं मानते। यदि उनसे पूछा जाये कि क्या आपने ईश्वर व जीवात्मा से सम्बन्धित उपलब्ध सभी साहित्य का अनुसंधानात्मक अध्ययन किया है […] Read more » Atheism Atheism theism theism आस्तिकता नास्तिकता